< अह 14 >

1 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा,
وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى:١
2 'कोढ़ी के लिए जिस दिन वह पाक क़रार दिया जाए यह शरा' है, कि उसे काहिन के पास ले जाएँ,
«هَذِهِ هِيَ نُصُوصُ التَّعْلِيمَاتِ الْمُتَعَلِّقَةِ بِالأَبْرَصِ الْمُطَهَّرِ مِنْ بَرَصِهِ. يُحْضِرُونَهُ إِلَى الْكَاهِنِ فِي يَوْمِ شِفَائِهِ،٢
3 और काहिन लश्करगाह के बाहर जाए, और काहिन ख़ुद कोढ़ी को मुलाहिज़ा करे और अगर देखे कि उसका कोढ़ अच्छा हो गया है,
فَيَخْرُجُ الْكَاهِنُ إِلَى خَارِجِ الْمُخَيَّمِ لِيَفْحَصَهُ فَإِنْ وَجَدَ أَنَّهُ قَدْ بَرِئَ مِنْ دَاءِ الْبَرَصِ،٣
4 तो काहिन हुक्म दे कि वह जो पाक क़रार दिए जाने को है, उसके लिए दो ज़िन्दा पाक परिन्दे और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़ा और ज़ूफ़ा लें।
يَأْمُرُ الْكَاهِنُ أَنْ يُؤْتَى لِلأَبْرَصِ الْمُبَرَّءِ بِعُصْفُورَيْنِ حَيَّيْنِ طَاهِرَيْنِ، وَخَشَبِ أَرْزٍ، وَخَيْطٍ أَحْمَرَ وَبَاقَةِ زُوفَا.٤
5 और काहिन हुक्म दे कि उनमें से एक परिन्दा किसी मिट्टी के बर्तन में बहते हुए पानी के ऊपर ज़बह किया जाए।
فَيَأْمُرُ الْكَاهِنُ بَذَبْحِ عُصْفُورٍ وَاحِدٍ فِي إِنَاءٍ خَزَفِيٍّ فَوْقَ مَاءٍ جَارٍ.٥
6 फिर वह ज़िन्दा परिन्दे को और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़े और ज़ूफ़े को ले, और इन को और उस ज़िन्दा परिन्दे को उस परिन्दे के ख़ून में ग़ोता दे जो बहते पानी पर ज़बह हो चुका है।
أَمَّا الْعُصْفُورُ الْحَيُّ فَيَأْخُذُهُ مَعَ خَشَبِ الأَرْزِ وَالْخَيْطِ الأَحْمَرِ وَالزُّوفَا، وَيَغْمِسُهَا جَمِيعاً فِي دَمِ الْعُصْفُورِ الْمَذْبُوحِ فَوْقَ الْمَاءِ الْجَارِي،٦
7 और उस शख़्स पर जो कोढ़ से पाक करार दिया जाने को है, सात बार छिड़क कर उसे पाक क़रार दे और ज़िन्दा परिन्दे को खुले मैदान में छोड़ दे।
ثُمَّ يَرُشُّ عَلَى الْمُتَطَهِّرِ مِنَ الْبَرَصِ سَبْعَ مَرَّاتٍ فَيُطَهِّرُهُ، ثُمَّ يُطْلِقُ الْعُصْفُورَ الْحَيَّ عَلَى وَجْهِ الصَّحْرَاءِ.٧
8 और वह जो पाक करार दिया जाएगा अपने कपड़े धोए और सारे बाल मुन्डाए और पानी में ग़ुस्ल करे, तब वह पाक ठहरेगा; इसके बाद वह लश्करगाह में आए, लेकिन सात दिन तक अपने ख़ेमे के बाहर ही रहे।
وَيَغْسِلُ الْمُتَطَهِّرُ ثِيَابَهُ، وَيَحْلِقُ كُلَّ رَأْسِهِ، وَيَسْتَحِمُّ بِمَاءٍ فَيَطْهُرُ، ثُمَّ يَدْخُلُ الْمُخَيَّمَ. إِلّا أَنَّهُ يُقِيمُ خَارِجَ خَيْمَتِهِ سَبْعَةَ أَيَّامٍ.٨
9 और सातवें रोज़ अपने सिर के सब बाल और अपनी दाढ़ी और अपने अबरू ग़र्ज़ अपने सारे बाल मुंडाए, और अपने कपड़े धोए और पानी में नहाए, तब वह पाक ठहरेगा।
وَفِي الْيَوْمِ السَّابِعِ يَحْلِقُ مَا نَمَا مِنْ شَعْرِ رَأْسِهِ، وَكَذَلِكَ لِحْيَتَهُ وَحَوَاجِبَهُ، وَيَغْسِلُ ثِيَابَهُ وَيَسْتَحِمُّ بِمَاءٍ فَيُصْبِحُ طَاهِراً.٩
10 और वह आठवें दिन दो बे — 'ऐब नर बर्रे और एक बे — 'ऐब यक — साला मादा बर्रा और नज़्र की क़ुर्बानी के लिए ऐफ़ा के तीन दहाई हिस्से के बराबर तेल मिला हुआ मैदा और लोज भर तेल ले।
وَفِي الْيَوْمِ الثَّامِنِ يُحْضِرُ إِلَى الْكَاهِنِ كَبْشَيْنِ صَحِيحَيْنِ، وَنَعْجَةً حَوْلِيَّةً سَلِيمَةً وَثَلاثَةَ أَعْشَارٍ (نَحْوَ سَبْعَةِ لِتْرَاتٍ) مِنَ الدَّقِيقِ الْمَعْجُونِ بِزَيْتٍ وَلُجَّ (نَحْوَ ثُلْثَ لِتْرٍ) زَيْتٍ.١٠
11 तब वह काहिन जो उसे पाक करार देगा, उस शख़्स को जो पाक करार दिया जाएगा और इन चीज़ों को ख़ुदावन्द के सामने ख़ेमा — ए — इजितमा'अ के दरवाज़े पर हाज़िर करे।
فَيُوْقِفُ الْكَاهِنُ الْقَائِمُ بِالتَّطْهِيرِ الأَبْرَصَ الْمُتَطَهِّرَ وَتَقْدِمَتَهُ عِنْدَ مَدْخَلِ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ،١١
12 और काहिन नर बर्रों में से एक को लेकर जुर्म की क़ुर्बानी के लिए उसे और उस लोज भर तेल की नज़दीक लाए, और उनको हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर ख़ुदावन्द के सामने हिलाए;
ثُمَّ يَأْخُذُ أَحَدَ الْكَبْشَيْنِ وَالزَّيْتَ وَيُرَجِّحُهُمَا فِي حَضْرَةِ الرَّبِّ، وَيُقَرِّبُهُمَا ذَبِيحَةَ إِثْمٍ.١٢
13 और उस बर्रे को हैकल में उस जगह ज़बह करे जहाँ ख़ता की क़ुर्बानी और सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर ज़बह किए जाते हैं, क्यूँकि जुर्म की क़ुर्बानी ख़ता की क़ुर्बानी की तरह काहिन का हिस्सा ठहरेगी; वह बहुत पाक है।
ثُمَّ يَذْبَحُ الْكَبْشَ فِي الْجَانِبِ الشِّمَالِيِّ مِنَ الْمَذْبَحِ حَيْثُ يَذْبَحُ قُرْبَانَ الْخَطِيئَةِ وَالْمُحْرَقَةَ فِي الْمَكَانِ الْمُقَدَّسِ، لأَنَّ ذَبِيحَةَ الإِثْمِ هِيَ كَذَبِيحَةِ الْخَطِيئَةِ، تَكُونُ مِنْ نَصِيبِ الْكَاهِنِ. إِنَّهَا قُدْسُ أَقْدَاسٍ.١٣
14 और काहिन जुर्म की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून ले और जो शख़्स पाक क़रार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अँगूठे पर और दहने पाँव के अंगूठे पर उसे लगाए,
وَيَضَعُ الْكَاهِنُ مِنْ دَمِ ذَبِيحَةِ الإِثْمِ عَلَى شَحْمَةِ أُذْنِ الْمُتَطَهِّرِ الْيُمْنَى، وَعَلَى إِبْهَامِ يَدِهِ الْيُمْنَى، وَإِبْهَامِ قَدَمِهِ الْيُمْنَى،١٤
15 और काहिन उस लोज भर तेल में से कुछ लेकर अपने बाएँ हाथ की हथेली में डाले;
ثُمَّ يَأْخُذُ الْكَاهِنُ الزَّيْتَ وَيَصُبُّ فِي كَفِّهِ الْيُسْرَى،١٥
16 और काहिन अपनी दहनी उँगली को अपने बाएँ हाथ के तेल में डुबोए, और ख़ुदावन्द के सामने कुछ तेल सात बार अपनी उँगली से छिड़के।
وَيَغْمِسُ إِصْبَعَهُ الْيُمْنَى فِي الزَّيْتِ الْمَصْبُوبِ فِي يَدِهِ الْيُسْرَى، وَيَرُشُّ مِنْهُ سَبْعَ مَرَّاتٍ أَمَامَ الرَّبِّ.١٦
17 और काहिन अपने हाथ के बाक़ी तेल में से कुछ ले और जो शख़्स पाक करार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ के अंगूठे और दहने पांव के अंगूठे पर, जुर्म की क़ुर्बानी के ख़ून के ऊपर लगाए।
وَيَضَعُ الْكَاهِنُ مِنَ الزَّيْتِ الْبَاقِي فِي كَفِّهِ عَلَى شَحْمَةِ أُذْنِ الْمُتَطَهِّرِ الْيُمْنَى وَعَلَى إِبْهَامِ يَدِهِ الْيُمْنَى وَإِبْهَامِ رِجْلِهِ الْيُمْنَى فَوْقَ دَمِ ذَبِيحَةِ الإِثْمِ،١٧
18 और जो तेल काहिन के हाथ में बाक़ी बचे उसे वह उस शख़्स के सिर में डाल दे जो पाक करार दिया जाएगा, यूँ काहिन उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।
وَيَسْكُبُ الْكَاهِنُ مَا تَبَقَّى مِنْ زَيْتٍ فِي كَفِّهِ عَلَى رَأْسِ الْمُتَطَهِّرِ، وَيُكَفِّرُ عَنْهُ أَمَامَ الرَّبِّ.١٨
19 और काहिन ख़ता की क़ुर्बानी भी पेश करे, और उसके लिए जो अपनी नापाकी से पाक करार दिया जाएगा कफ़्फ़ारा दे; इसके बाद वह सोख़्तनी क़ुर्बानी के जानवर को ज़बह करे।
ثُمَّ يُقَدِّمُ الْكَاهِنُ ذَبِيحَةَ الْخَطِيئَةِ تَكْفِيراً عَنِ الْمُتَطَهِّرِ مِنْ بَرَصِهِ ثُمَّ يَذْبَحُ الْمُحْرَقَةَ١٩
20 फिर काहिन सोख़्तनी कुबानी और नज़्र की क़ुर्बानी को मज़बह पर अदा करे। यूँ काहिन उसके लिए कफ़्फ़ारा दे तो वह पाक ठहरेगा।
وَيُصْعِدُ الْكَاهِنُ الْمُحْرَقَةَ وَالتَّقْدِمَةَ عَلَى الْمَذْبَحِ تَكْفِيراً عَنْهُ، فَيُصْبِحُ طَاهِراً.٢٠
21 “और अगर वह ग़रीब हो और इतना उसे मक़दूर न हो तो वह हिलाने के लिए जुर्म की क़ुर्बानी के लिए एक नर बर्रा ले ताकि उसके लिए कफ़्फ़ारा दिया जाए और नज़्र की क़ुर्बानी के लिए ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर तेल मिला हुआ मैदा और लोज भर तेल,
أَمَّا إِذَا كَانَ الْمُتَطَهِّرُ فَقِيراً وَعَاجِزاً عَنْ ذَلِكَ، يُحْضِرُ كَبْشاً وَاحِداً ذَبِيحَةَ إِثْمٍ تَكْفِيراً عَنْهُ، وَعُشْراً (نَحْوَ لِتْرَيْنِ وَنِصْفِ اللِّتْرِ) مِنْ دَقِيقٍ مَعْجُونٍ بِزَيْتٍ كَتَقْدِمَةٍ، وَلُجَّ (نَحْوَ ثُلْثِ لِتْرٍ) زَيْتٍ،٢١
22 और अपने मक़दूर के मुताबिक़ दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे भी ले, जिन में से एक तो ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए हो।
وَيَمَامَتَيْنِ أَوْ فَرْخَيْ حَمَامٍ، حَسَبَ قُدْرَتِهِ، فَيَكُونُ الْوَاحِدُ ذَبِيحَةَ خَطِيئَةٍ وَالآخَرُ مُحْرَقَةً.٢٢
23 इन्हें वह आठवें दिन अपने पाक करार दिए जाने के लिए काहिन के पास ख़ेमा — ए — इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़ुदावन्द के सामने लाए।
يُحْضِرُ هَذِهِ كُلَّهَا فِي الْيَوْمِ الثَّامِنِ إِلَى الْكَاهِنِ عِنْدَ مَدْخَلِ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ لِفَرِيضَةِ تَطْهِيرِهِ،٢٣
24 और काहिन जुर्म की क़ुर्बानी के बर्रे को और उस लोज भर तेल को लेकर उनको ख़ुदावन्द के सामने हिलाने की क़ुर्बानी के तौर पर हिलाए।
فَيَأْخُذُ الْكَاهِنُ كَبْشَ الإِثْمِ وَالزَّيْتَ وَيُرَجِّحُهُمَا أَمَامَ الرَّبِّ،٢٤
25 फिर काहिन जुर्म की क़ुर्बानी के बर्रे को ज़बह करे, और वह जुर्म की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून लेकर जो शख़्स पाक क़रार दिया जाएगा, उसके दहने कान की लौ पर और दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर उसे लगाए।
ثُمَّ يَذْبَحُ كَبْشَ الإِثْمِ وَيَأْخُذُ مِنْ دَمِهِ وَيَضَعُ مِنْهُ عَلَى شَحْمَةِ أُذْنِ الْمُتَطَهِّرِ الْيُمْنَى، وَعَلَى إِبْهَامَيْ يَدِهِ الْيُمْنَى وَرِجْلِهِ الْيُمْنَى.٢٥
26 फिर काहिन उस तेल में से कुछ अपने बाएँ हाथ की हथेली में डाले,
وَيَصُبُّ الْكَاهِنُ فِي كَفِّهِ الْيُسْرَى زَيْتاً،٢٦
27 और वह अपने बाएँ हाथ के तेल में से कुछ अपनी दहनी उँगली से ख़ुदावन्द के सामने सात बार छिड़के।
وَيَرُشُّ مِنْهُ بِإِصْبَعِهِ الْيُمْنَى سَبْعَ مَرَّاتٍ أَمَامَ الرَّبِّ.٢٧
28 फिर काहिन कुछ अपने हाथ के तेल में से ले, और जो शख़्स पाक करार दिया जाएगा उसके दहने कान की लौ पर और उसके दहने हाथ के अंगूठे और दहने पाँव के अंगूठे पर, जुर्म की क़ुर्बानी के ख़ून की जगह उसे लगाए;
وَكَذَلِكَ يَضَعُ الْكَاهِنُ مِنَ الزَّيْتِ الَّذِي فِي كَفِّهِ عَلَى شَحْمَةِ أُذْنِ الْمُتَطَهِّرِ الْيُمْنَى وَعَلَى إِبْهَامَيْ يَدِهِ الْيُمْنَى وَرِجْلِهِ الْيُمْنَى فَوْقَ مَوْضِعِ دَمِ ذَبِيحَةِ الإِثْمِ.٢٨
29 और जो तेल काहिन के हाथ में बाक़ी बचे उसे वह उस शख़्स के सिर में डाल दे जो पाक क़रार दिया जाएगा, ताकि उसके लिए ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दिया जाए।
وَيَسْكُبُ مَا تَبَقَّى مِنْ زَيْتٍ فِي كَفِّهِ عَلَى رَأْسِ الْمُتَطَهِّرِ، تَكْفِيراً عَنْهُ أَمَامَ الرَّبِّ.٢٩
30 फिर वह कुमरियों या कबूतर के बच्चों में से जिन्हें वह ला सका हो एक को अदा करे,
ثُمَّ يُقَدِّمُ الْكَاهِنُ الْيَمَامَتَيْنِ أَوْ فَرْخَيِ الْحَمَامِ، بِحَسَبِ قُدْرَةِ الْمُتَطَهِّرِ،٣٠
31 या'नी जो कुछ उसे मयस्सर हुआ हो उस में से एक को ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर और दूसरे को सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर, नज़्र की क़ुर्बानी के साथ पेश करे। यूँ काहिन उस शख़्स के लिए जो पाक क़रार दिया जाएगा, ख़ुदावन्द के सामने कफ़्फ़ारा दे।
فَيُقَرِّبُ إِحْدَاهُمَا ذَبِيحَةَ خَطِيئَةٍ وَالأُخْرَى مُحْرَقَةً مَعَ التَّقْدِمَةِ، تَكْفِيراً عَنِ الْمُتَطَهِّرِ أَمَامَ الرَّبِّ.٣١
32 उस कोढ़ी के लिए जो अपने पाक क़रार दिए जाने के सामान को लाने का मक़दूर न रखता हो शरा' यह है।”
هَذِهِ هِيَ نُصُوصُ التَّعْلِيمَاتِ الْمُتَعَلِّقَةِ بِالأَبْرَصِ الْمُتَطَهِّرِ الْفَقِيرِ».٣٢
33 फिर ख़ुदावन्द ने मूसा और हारून से कहा,
وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى:٣٣
34 “जब तुम मुल्क — ए — कनान में जिसे मैं तुम्हारी मिल्कियत किए देता हूँ दाख़िल हो, और मैं तुम्हारे मीरासी मुल्क के किसी घर में कोढ़ की बला भेजूँ।
«عِنْدَمَا تَدْخُلُونَ أَرْضَ كَنْعَانَ الَّتِي وَهَبْتُهَا لَكُمْ مُلْكاً، وَجَعَلْتُ الْبَرَصَ الْمُعْدِي يَتَفَشَّى فِي أَحَدِ الْبُيُوتِ فِي الأَرْضِ الَّتِي امْتَلَكْتُمْ،٣٤
35 तो उस घर का मालिक जाकर काहिन को ख़बर दे कि मुझे ऐसा मा'लूम होता है कि उस घर में कुछ बला सी है।
يَأْتِي صَاحِبُ الْبَيْتِ وَيُخْبِرُ الْكَاهِنَ أَنَّ دَاءَ الْبَرَصِ قَدْ يَكُونُ مُتَفَشِّياً بِالْبَيْتِ،٣٥
36 तब काहिन हुक्म करे कि इससे पहले कि उस बला को देखने के लिए काहिन वहाँ जाए लोग उस घर को ख़ाली करें, ताकि जो कुछ घर में हो वह नापाक न ठहराया जाए। इसके बाद काहिन घर देखने को अन्दर जाए।
فَيَأْمُرُ الْكَاهِنُ بِإِخْلاءِ الْبَيْتِ قَبْلَ أَنْ يَدْخُلَ إِلَيْهِ لِئَلّا يَتَنَجَّسَ كُلُّ مَا فِي الْبَيْتِ، ثُمَّ يَدْخُلُ الْكَاهِنُ الْبَيْتَ لِيَفْحَصَهُ.٣٦
37 और उस बला को मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह बला उस घर की दीवारों में सब्ज़ी या सुर्ख़ीमाइल गहरी लकीरों की सूरत में है, और दीवार में सतह के अन्दर नज़र आती है,
فَإِذَا عَايَنَ الإِصَابَةَ وَوَجَدَ أَنَّ فِي حِيطَانِ الْبَيْتِ نُقَراً لَوْنُهَا ضَارِبٌ إِلَى الْخُضْرَةِ أَوْ إِلَى الْحُمْرَةِ، وَبَدَا مَنْظَرُهَا غَائِراً فِي الْحِيطَانِ،٣٧
38 तो काहिन घर से बाहर निकल कर घर के दरवाज़े पर जाए और घर को सात दिन के लिए बन्द कर दे;
يُغَادِرُ الْكَاهِنُ الْبَيْتَ وَيُغْلِقُ بَابَهُ سَبْعَةَ أَيَّامٍ.٣٨
39 और वह सातवें दिन फिर आकर उसे देखें। अगर वह बला घर की दीवारों में फैली हुई नज़र आए,
فَإِذَا رَجَعَ فِي الْيَوْمِ السَّابِعِ وَفَحَصَهُ، وَوَجَدَ أَنَّ الإِصَابَةَ قَدِ امْتَدَّتْ فِي حِيطَانِ الْبَيْتِ،٣٩
40 तो काहिन हुक्म दे कि उन पत्थरों को जिन में वह बला है, निकालकर उन्हें शहर के बाहर किसी नापाक जगह में फेंक दें।
يَأْمُرُ الْكَاهِنُ بِقَلْعِ الْحِجَارَةِ الْمُصَابَةِ وَطَرْحِهَا خَارِجَ الْمَدِينَةِ فِي مَكَانٍ نَجِسٍ،٤٠
41 फिर वह उस घर को अन्दर ही अन्दर चारों तरफ़ से खुर्चवाए, और उस खुर्ची हुई मिट्टी को शहर के बाहर किसी नापाक जगह में डालें।
وَتُكْشَطُ حِيطَانُ الْبَيْتِ الدَّاخِلِيَّةُ، وَيَطْرَحُونَ التُّرَابَ الْمَكْشُوطَ خَارِجَ الْمَدِينَةِ فِي مَكَانٍ نَجِسٍ٤١
42 और वह उन पत्थरों की जगह और पत्थर लेकर लगाएं और काहिन ताज़ा गारे से उस घर की अस्तरकारी कराए।
ثُمَّ يَأْتُونَ بِحِجَارَةٍ أُخْرَى يَضَعُونَهَا مَكَانَ الْحِجَارَةِ الْمُقْتَلَعَةِ وَيُعِيدُونَ تَطْيِينَ الْبَيْتِ مِنْ جَدِيدٍ.٤٢
43 और अगर पत्थरों के निकाले जाने और उस घर के खुर्च और अस्तरकारी कराए जाने के बाद भी वह बला फिर आ जाए और उस घर में फूट निकले,
فَإِنْ رَجَعَتِ الإِصَابَةُ وَانْتَشَرَتْ فِي الْبَيْتِ بَعْدَ قَلْعِ الْحِجَارَةِ وَكَشْطِ الْحِيطَانِ وَتَطْيِينِهَا،٤٣
44 तो काहिन अन्दर जाकर मुलाहिज़ा करे, और अगर देखे कि वह बला घर में फैल गई है तो उस घर में खा जाने वाला कोढ़ है; वह नापाक है।
وَوَجَدَ الْكَاهِنُ ذَلِكَ، تَكُونُ هَذِهِ إِصَابَةَ دَاءِ بَرَصٍ مُعْدٍ فِي الْبَيْتِ، إِنَّهُ نَجِسٌ.٤٤
45 तब वह उस घर को, उसके पत्थरों और लकड़ियों और उसकी सारी मिट्टी को गिरा दे; और वह उनको शहर के बाहर निकाल कर किसी नापाक जगह में ले जाए।
فَيَتِمُّ هَدْمُ الْبَيْتِ بِمَا فِيهِ مِنْ حِجَارَةٍ وَأَخْشَابٍ وَتُرَابٍ، وَتُنْقَلُ كُلُّهَا إِلَى خَارِجِ الْمَدِينَةِ إِلَى مَكَانٍ نَجِسٍ.٤٥
46 इसके सिवा, अगर कोई उस घर के बन्द कर दिए जाने के दिनों में उसके अन्दर दाख़िल हो तो वह शाम तक नापाक रहेगा;
وَمَنْ دَخَلَ الْبَيْتَ فِي أَثْنَاءِ غَلْقِهِ يَكُونُ نَجِساً إِلَى الْمَسَاءِ.٤٦
47 और जो कोई उस घर में सोए वह अपने कपड़े धो डाले, और जो कोई उस घर में कुछ खाए वह भी अपने कपड़े धोए।
وَعَلَى كُلِّ مَنْ نَامَ فِيهِ أَوْ أَكَلَ، أَنْ يَغْسِلَ ثِيَابَهُ.٤٧
48 “और अगर काहिन अन्दर जाकर मुलाहिज़ा करे और देखे कि घर की अस्तरकारी के बाद वह बला उस घर में नहीं फैली, तो वह उस घर को पाक क़रार दे क्यूँकि वह बला दूर हो गई।
لَكِنْ إِنْ وَجَدَ الْكَاهِنُ أَنَّ الإِصَابَةَ لَمْ تَنْتَشِرْ فِي الْبَيْتِ بَعْدَ تَطْيِينِهِ، يُطَهِّرُهُ الْكَاهِنُ، لأَنَّ دَاءَ الْبَرَصِ قَدْ زَالَ منْهُ.٤٨
49 और वह उस घर को पाक करार देने के लिए दो परिन्दे और देवदार की लकड़ी और सुर्ख़ कपड़ा और ज़ूफ़ा ले,
فَيُحْضِرُ لِتَطْهِيرِ الْبَيْتِ عُصْفُورَيْنِ وَخَشَبَ أَرْزٍ وَخَيْطاً أَحْمَرَ وَزُوفاً،٤٩
50 और वह उन परिन्दों में से एक को मिट्टी के किसी बर्तन में बहते हुए पानी पर ज़बह करे;
فَيَذْبَحُ أَحَدَ الْعُصْفُورَيْنِ فِي إِنَاءٍ خَزَفِيٍّ فَوْقَ مَاءٍ جَارٍ،٥٠
51 फिर वह देवदार की लकड़ी और ज़ूफ़ा और सुर्ख़ कपड़े और उस ज़िन्दा परिन्दे को लेकर उनको उस ज़बह किए हुए परिन्दे के ख़ून में और उस बहते हुए पानी में गोता दे, और सात बार उस घर पर छिड़के।
وَيَغْمِسُ خَشَبَ الأَرْزِ وَالزُّوفَا وَالْخَيْطَ الأَحْمَرَ وَالْعُصْفُورَ الْحَيَّ بِدَمِ الْعُصْفُورِ الْمَذْبُوحِ وَبِالْمَاءِ الْجَارِي، وَيَرُشُّ الْبَيْتَ سَبْعَ مَرَّاتٍ،٥١
52 और वह उस परिन्दे के ख़ून से, और बहते हुए पानी और ज़िन्दा परिन्दे और देवदार की लकड़ी और ज़ूफ़े और सुर्ख़ कपड़े से उस घर को पाक करे;
وَيُطَهِّرُ الْبَيْتَ بِدَمِ الْعُصْفُورِ وَبِالْمَاءِ الْجَارِي وَبِالْعُصْفُورِ الْحَيِّ وَبِخَشَبِ الأَرْزِ وَالزُّوفَا وَالْخَيْطِ الأَحْمَرِ.٥٢
53 और उस ज़िन्दा परिन्दे को शहर के बाहर खुले मैदान में छोड़ दे; यूँ वह घर के लिए कफ़्फ़ारा दे, तो वह पाक ठहरेगा।”
ثُمَّ يُطْلِقُ الْعُصْفُورَ الْحَيَّ إِلَى خَارِجِ الْمَدِينَةِ عَلَى وَجْهِ الصَّحْرَاءِ، تَكْفِيراً عَنِ الْبَيْتِ، فَيُصْبِحُ طَاهِراً.٥٣
54 कोढ़ की हर क़िस्म की बला के, और साफ़े के लिए,
هَذِهِ هِيَ نُصُوصُ التَّعْلِيمَاتِ الْمُتَعَلِّقَةِ بِكُلِّ أَنْوَاعِ إِصَابَاتِ الْبَرَصِ وَالْقَرَعِ،٥٤
55 और कपड़े और घर के कोढ़ के लिए,
الَّتِي مِنْهَا بَرَصُ الثَّوْبِ وَالْبَيْتِ،٥٥
56 और वर्म और पपड़ी, और चमकते हुए दाग़ के लिए शरा' यह है;
وَالْوَرَمُ الْجِلْدِيُّ وَالْقُوبَاءُ وَالْبُقْعَةُ اللّامِعَةُ.٥٦
57 ताकि बताया जाए कि कब वह नापाक और कब पाक करार दिए जाएँ। कोढ़ के लिए शरा' यही है।
وَهَذِهِ التَّعْلِيمَاتُ هِيَ لِلتَّمْيِيزِ بَيْنَ مَا هُوَ نَجِسٌ وَمَا هُوَ طَاهِرٌ فِي حَالَةِ الإِصَابَةِ بِمَا يَبْدُو أَنَّهُ دَاءُ الْبَرَصِ».٥٧

< अह 14 >