< नोहा 1 >

1 वह बस्ती जो लोगों से भरी थी, कैसी ख़ाली पड़ी है! वह क़ौमों की 'ख़ातून बेवा की तरह हो गई! वह कुछ गुज़ारे के लिए मुल्क की मलिका बन गई!
אֵיכָ֣ה ׀ יָשְׁבָ֣ה בָדָ֗ד הָעִיר֙ רַבָּ֣תִי עָ֔ם הָיְתָ֖ה כְּאַלְמָנָ֑ה רַּבָּ֣תִי בַגּוֹיִ֗ם שָׂרָ֙תִי֙ בַּמְּדִינ֔וֹת הָיְתָ֖ה לָמַֽס׃ ס
2 वह रात को ज़ार — ज़ार रोती है, उसके आँसू चेहरे पर बहते हैं; उसके चाहने वालों में कोई नहीं जो उसे तसल्ली दे; उसके सब दोस्तों ने उसे धोका दिया, वह उसके दुश्मन हो गए।
בָּכ֨וֹ תִבְכֶּ֜ה בַּלַּ֗יְלָה וְדִמְעָתָהּ֙ עַ֣ל לֶֽחֱיָ֔הּ אֵֽין־לָ֥הּ מְנַחֵ֖ם מִכָּל־אֹהֲבֶ֑יהָ כָּל־רֵעֶ֙יהָ֙ בָּ֣גְדוּ בָ֔הּ הָ֥יוּ לָ֖הּ לְאֹיְבִֽים׃ ס
3 यहूदाह ज़ुल्म और सख़्त मेहनत की वजह से जिलावतन हुआ, वह क़ौमों के बीच रहते और बे — आराम है, उसके सब सताने वालों ने उसे घाटियों में जा लिए।
גָּֽלְתָ֨ה יְהוּדָ֤ה מֵעֹ֙נִי֙ וּמֵרֹ֣ב עֲבֹדָ֔ה הִ֚יא יָשְׁבָ֣ה בַגּוֹיִ֔ם לֹ֥א מָצְאָ֖ה מָנ֑וֹחַ כָּל־רֹדְפֶ֥יהָ הִשִּׂיג֖וּהָ בֵּ֥ין הַמְּצָרִֽים׃ ס
4 सिय्यून के रास्ते मातम करते हैं, क्यूँकि ख़ुशी के लिए कोई नहीं आता; उसके सब दरवाज़े सुनसान हैं, उसके काहिन आहें भरते हैं; उसकी कुँवारियाँ मुसीबत ज़दा हैं और वह ख़ुद ग़मगीन है।
דַּרְכֵ֨י צִיּ֜וֹן אֲבֵל֗וֹת מִבְּלִי֙ בָּאֵ֣י מוֹעֵ֔ד כָּל־שְׁעָרֶ֙יהָ֙ שֽׁוֹמֵמִ֔ין כֹּהֲנֶ֖יהָ נֶאֱנָחִ֑ים בְּתוּלֹתֶ֥יהָ נּוּג֖וֹת וְהִ֥יא מַר־לָֽהּ׃ ס
5 उसके मुख़ालिफ़ ग़ालिब आए और दुश्मन खु़शहाल हुए; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उसके गुनाहों की ज़्यादती के ज़रिए' उसे ग़म में डाला; उसकी औलाद को दुश्मन ग़ुलामी में पकड़ ले गए।
הָי֨וּ צָרֶ֤יהָ לְרֹאשׁ֙ אֹיְבֶ֣יהָ שָׁל֔וּ כִּֽי־יְהוָ֥ה הוֹגָ֖הּ עַ֣ל רֹב־פְּשָׁעֶ֑יהָ עוֹלָלֶ֛יהָ הָלְכ֥וּ שְׁבִ֖י לִפְנֵי־צָֽר׃ ס
6 सिय्यून की बेटियों की सब शान — ओ — शौकत जाती रही; उसके हाकिम उन हिरनों की तरह हो गए हैं, जिनको चरागाह नहीं मिलती, और शिकारियों के सामने बे बस हो जाते हैं।
וַיֵּצֵ֥א מן־בת־צִיּ֖וֹן כָּל־הֲדָרָ֑הּ הָי֣וּ שָׂרֶ֗יהָ כְּאַיָּלִים֙ לֹא־מָצְא֣וּ מִרְעֶ֔ה וַיֵּלְכ֥וּ בְלֹא־כֹ֖חַ לִפְנֵ֥י רוֹדֵֽף׃ ס
7 येरूशलेम को अपने ग़म — ओ — मुसीबत के दिनों में, जब उसके रहने वाले दुश्मन का शिकार हुए, और किसी ने मदद न की, अपने गुज़रे ज़माने की सब ने'मतें याद आईं, दुश्मनों ने उसे देखकर उसकी बर्बादी पर हँसी उड़ाई।
זָֽכְרָ֣ה יְרוּשָׁלִַ֗ם יְמֵ֤י עָנְיָהּ֙ וּמְרוּדֶ֔יהָ כֹּ֚ל מַחֲמֻדֶ֔יהָ אֲשֶׁ֥ר הָי֖וּ מִ֣ימֵי קֶ֑דֶם בִּנְפֹ֧ל עַמָּ֣הּ בְּיַד־צָ֗ר וְאֵ֤ין עוֹזֵר֙ לָ֔הּ רָא֣וּהָ צָרִ֔ים שָׂחֲק֖וּ עַ֥ל מִשְׁבַּתֶּֽהָ׃ ס
8 येरूशलेम सख़्त गुनाह करके नापाक हो गया; जो उसकी 'इज़्ज़त करते थे, सब उसे हक़ीर जानते हैं, हाँ, वह ख़ुद आहें भरता, और मुँह फेर लेता है।
חֵ֤טְא חָֽטְאָה֙ יְר֣וּשָׁלִַ֔ם עַל־כֵּ֖ן לְנִידָ֣ה הָיָ֑תָה כָּֽל־מְכַבְּדֶ֤יהָ הִזִּיל֙וּהָ֙ כִּי־רָא֣וּ עֶרְוָתָ֔הּ גַּם־הִ֥יא נֶאֶנְחָ֖ה וַתָּ֥שָׁב אָחֽוֹר׃ ס
9 उसकी नापाकी उसके दामन में है, उसने अपने अंजाम का ख़्याल न किया; इसलिए वह बहुत बेहाल हुआ; और उसे तसल्ली देने वाला कोई न रहा; ऐ ख़ुदावन्द, मेरी मुसीबत पर नज़र कर; क्यूँकि दुश्मन ने ग़ुरूर किया है।
טֻמְאָתָ֣הּ בְּשׁוּלֶ֗יהָ לֹ֤א זָֽכְרָה֙ אַחֲרִיתָ֔הּ וַתֵּ֣רֶד פְּלָאִ֔ים אֵ֥ין מְנַחֵ֖ם לָ֑הּ רְאֵ֤ה יְהוָה֙ אֶת־עָנְיִ֔י כִּ֥י הִגְדִּ֖יל אוֹיֵֽב׃ ס
10 दुश्मन ने उसकी तमाम 'उम्दा चीज़ों पर हाथ बढ़ाया है; उसने अपने मक़्दिस में क़ौमों को दाख़िल होते देखा है। जिनके बारे में तू ने फ़रमाया था, कि वह तेरी जमा'अत में दाख़िल न हों।
יָדוֹ֙ פָּ֣רַשׂ צָ֔ר עַ֖ל כָּל־מַחֲמַדֶּ֑יהָ כִּֽי־רָאֲתָ֤ה גוֹיִם֙ בָּ֣אוּ מִקְדָּשָׁ֔הּ אֲשֶׁ֣ר צִוִּ֔יתָה לֹא־יָבֹ֥אוּ בַקָּהָ֖ל לָֽךְ׃ ס
11 उसके सब रहने वाले कराहते और रोटी ढूंडते हैं, उन्होंने अपनी 'उम्दा चीज़े दे डालीं, ताकि रोटी से ताज़ा दम हों; ऐ ख़ुदावन्द, मुझ पर नज़र कर; क्यूँकि मैं ज़लील हो गया
כָּל־עַמָּ֤הּ נֶאֱנָחִים֙ מְבַקְּשִׁ֣ים לֶ֔חֶם נָתְנ֧וּ מחמודיהם בְּאֹ֖כֶל לְהָשִׁ֣יב נָ֑פֶשׁ רְאֵ֤ה יְהוָה֙ וְֽהַבִּ֔יטָה כִּ֥י הָיִ֖יתִי זוֹלֵלָֽה׃ ס
12 ऐ सब आने जाने वालों, क्या तुम्हारे नज़दीक ये कुछ नहीं? नज़र करो और देखो; क्या कोई ग़म मेरे ग़म की तरह है, जो मुझ पर आया है जिसे ख़ुदावन्द ने अपने बड़े ग़ज़ब के वक़्त नाज़िल किया।
ל֣וֹא אֲלֵיכֶם֮ כָּל־עֹ֣בְרֵי דֶרֶךְ֒ הַבִּ֣יטוּ וּרְא֗וּ אִם־יֵ֤שׁ מַכְאוֹב֙ כְּמַכְאֹבִ֔י אֲשֶׁ֥ר עוֹלַ֖ל לִ֑י אֲשֶׁר֙ הוֹגָ֣ה יְהוָ֔ה בְּי֖וֹם חֲר֥וֹן אַפּֽוֹ׃ ס
13 उसने 'आलम — ए — बाला से मेरी हड्डियों में आग भेजी, और वह उन पर ग़ालिब आई; उसने मेरे पैरों के लिए जाल बिछाया, उस ने मुझे पीछे लौटाया: उसने मुझे दिन भर वीरान — ओ — बेताब किया।
מִמָּר֛וֹם שָֽׁלַח־אֵ֥שׁ בְּעַצְמֹתַ֖י וַיִּרְדֶּ֑נָּה פָּרַ֨שׂ רֶ֤שֶׁת לְרַגְלַי֙ הֱשִׁיבַ֣נִי אָח֔וֹר נְתָנַ֙נִי֙ שֹֽׁמֵמָ֔ה כָּל־הַיּ֖וֹם דָּוָֽה׃ ס
14 मेरी ख़ताओं का बोझ उसी के हाथ से बाँधा गया है; वह बाहम पेचीदा मेरी गर्दन पर हैं उसने मुझे कमज़ोर कर दिया है; ख़ुदावन्द ने मुझे उनके हवाले किया है, जिनके मुक़ाबिले की मुझ में हिम्मत नहीं।
נִשְׂקַד֩ עֹ֨ל פְּשָׁעַ֜י בְּיָד֗וֹ יִשְׂתָּֽרְג֛וּ עָל֥וּ עַל־צַוָּארִ֖י הִכְשִׁ֣יל כֹּחִ֑י נְתָנַ֣נִי אֲדֹנָ֔י בִּידֵ֖י לֹא־אוּכַ֥ל קֽוּם׃ ס
15 ख़ुदावन्द ने मेरे अन्दर ही मेरे बहादुरों को नाचीज़ ठहराया; उसने मेंरे ख़िलाफ़ एक ख़ास जमा'अत को बुलाया, कि मेरे बहादुरों को कुचले; ख़ुदावन्द ने यहूदाह की कुँवारी बेटी को गोया कोल्हू में कुचल डाला।
סִלָּ֨ה כָל־אַבִּירַ֤י ׀ אֲדֹנָי֙ בְּקִרְבִּ֔י קָרָ֥א עָלַ֛י מוֹעֵ֖ד לִשְׁבֹּ֣ר בַּחוּרָ֑י גַּ֚ת דָּרַ֣ךְ אֲדֹנָ֔י לִבְתוּלַ֖ת בַּת־יְהוּדָֽה׃ ס
16 इसीलिए मैं रोती हूँ, मेरी आँखें आँसू से भरी हैं, जो मेरी रूह को ताज़ा करे, मुझ से दूर है; मेरे बाल — बच्चे बे सहारा हैं, क्यूँकि दुश्मन ग़ालिब आ गया।
עַל־אֵ֣לֶּה ׀ אֲנִ֣י בוֹכִיָּ֗ה עֵינִ֤י ׀ עֵינִי֙ יֹ֣רְדָה מַּ֔יִם כִּֽי־רָחַ֥ק מִמֶּ֛נִּי מְנַחֵ֖ם מֵשִׁ֣יב נַפְשִׁ֑י הָי֤וּ בָנַי֙ שֽׁוֹמֵמִ֔ים כִּ֥י גָבַ֖ר אוֹיֵֽב׃ ס
17 सिय्यून ने हाथ फैलाए; उसे तसल्ली देने वाला कोई नहीं; या'क़ूब के बारे में ख़ुदावन्द ने हुक्म दिया है, कि उसके इर्दगिर्द वाले उसके दुश्मन हों, येरूशलेम उनके बीच नजासत की तरह है।
פֵּֽרְשָׂ֨ה צִיּ֜וֹן בְּיָדֶ֗יהָ אֵ֤ין מְנַחֵם֙ לָ֔הּ צִוָּ֧ה יְהוָ֛ה לְיַעֲקֹ֖ב סְבִיבָ֣יו צָרָ֑יו הָיְתָ֧ה יְרוּשָׁלִַ֛ם לְנִדָּ֖ה בֵּינֵיהֶֽם׃ ס
18 ख़ुदावन्द सच्चा है, क्यूँकि मैंने उसके हुक्म से नाफ़रमानी की है; ऐ सब लोगों, मैं मिन्नत करता हूँ, सुनो, और मेरे दुख़ पर नज़र करो, मेरी कुँवारिया और जवान ग़ुलाम होकर चले गए।
צַדִּ֥יק ה֛וּא יְהוָ֖ה כִּ֣י פִ֣יהוּ מָרִ֑יתִי שִׁמְעוּ־נָ֣א כָל־עמים וּרְאוּ֙ מַכְאֹבִ֔י בְּתוּלֹתַ֥י וּבַחוּרַ֖י הָלְכ֥וּ בַשֶּֽׁבִי׃ ס
19 मैंने अपने दोस्तों को पुकारा, उन्होंने मुझे धोका दिया; मेरे काहिन और बुज़ुर्ग अपनी रूह को ताज़ा करने के लिए, शहर में खाना ढूंडते — ढूंडते हलाक हो गए।
קָרָ֤אתִי לַֽמְאַהֲבַי֙ הֵ֣מָּה רִמּ֔וּנִי כֹּהֲנַ֥י וּזְקֵנַ֖י בָּעִ֣יר גָּוָ֑עוּ כִּֽי־בִקְשׁ֥וּ אֹ֙כֶל֙ לָ֔מוֹ וְיָשִׁ֖יבוּ אֶת־נַפְשָֽׁם׃ ס
20 ऐ ख़ुदावन्द देख: मैं तबाह हाल हूँ, मेरे अन्दर पेच — ओ — ताब है; मेरा दिल मेरे अन्दर मुज़तरिब है; क्यूँकि मैंने सख़्त बग़ावत की है; बाहर तलवार बे — औलाद करती है और घर में मौत का सामना है।
רְאֵ֨ה יְהוָ֤ה כִּֽי־צַר־לִי֙ מֵעַ֣י חֳמַרְמָ֔רוּ נֶהְפַּ֤ךְ לִבִּי֙ בְּקִרְבִּ֔י כִּ֥י מָר֖וֹ מָרִ֑יתִי מִח֥וּץ שִׁכְּלָה־חֶ֖רֶב בַּבַּ֥יִת כַּמָּֽוֶת׃ ס
21 उन्होंने मेरी आहें सुनी हैं; मुझे तसल्ली देनेवाला कोई नहीं; मेरे सब दुश्मनों ने मेरी मुसीबत सुनी; वह ख़ुश हैं कि तू ने ऐसा किया; तू वह दिन लाएगा, जिसका तू ने 'ऐलान किया है, और वह मेरी तरह हो जाएँगे।
שָׁמְע֞וּ כִּ֧י נֶאֱנָחָ֣ה אָ֗נִי אֵ֤ין מְנַחֵם֙ לִ֔י כָּל־אֹ֨יְבַ֜י שָׁמְע֤וּ רָֽעָתִי֙ שָׂ֔שׂוּ כִּ֥י אַתָּ֖ה עָשִׂ֑יתָ הֵבֵ֥אתָ יוֹם־קָרָ֖אתָ וְיִֽהְי֥וּ כָמֽוֹנִי׃ ס
22 उनकी तमाम शरारत तेरे सामने आयें; उनसे वही कर जो तू ने मेरी तमाम ख़ताओं के ज़रिए' मुझसे किया है; क्यूँकि मेरी आहें बेशुमार हैं और मेरा दिल बेबस है।
תָּבֹ֨א כָל־רָעָתָ֤ם לְפָנֶ֙יךָ֙ וְעוֹלֵ֣ל לָ֔מוֹ כַּאֲשֶׁ֥ר עוֹלַ֛לְתָּ לִ֖י עַ֣ל כָּל־פְּשָׁעָ֑י כִּֽי־רַבּ֥וֹת אַנְחֹתַ֖י וְלִבִּ֥י דַוָּֽי׃ פ

< नोहा 1 >