< क़ुजा 18 >
1 उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह न था, और उन ही दिनों में दान का क़बीला अपने रहने के लिए मीरास ढूँडता था, क्यूँकि उनको उस दिन तक इस्राईल के क़बीलों में मीरास नहीं मिली थी।
১সেই দিনের ইস্রায়েলের মধ্যে (কোনো) রাজা ছিল না; আর সেই দিনের দানীয় বংশ নিজেদের বসবাসের জন্য অধিকারের চেষ্টা করছিল, কারণ সেই দিন পর্যন্ত ইস্রায়েল-বংশগুলোর মধ্যে তারা অধিকার প্রাপ্ত হয়নি।
2 इसलिए बनी दान ने अपने सारे शुमार में से पाँच सूर्माओं को सुर'आ और इस्ताल से रवाना किया, ताकि मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें और उसे देखें भालें और उनसे कह दिया कि जाकर उस मुल्क को देखो भालो। इसलिए वह इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में मीकाह के घर आए और वहीं उतरे।
২তখন দান-সন্তানরা নিজেদের পূর্ণ সংখ্যা থেকে নিজেদের গোষ্ঠীর পাঁচ জন বীর পুরুষকে দেশ নিরীক্ষণ ও অনুসন্ধান করবার জন্য সরা ও ইষ্টায়োল থেকে পাঠাল; তাদেরকে বলল, “তোমরা যাও, দেশ অনুসন্ধান কর;” তাতে তারা ইফ্রয়িমের পাহাড়ি অঞ্চলে মীখার বাড়ি পর্যন্ত গিয়ে সেই জায়গায় রাত কাটাল।
3 जब वह मीकाह के घर के पास पहुँचे, तो उस लावी जवान की आवाज़ पहचानी, पस वह उधर को मुड़ गए और उससे कहने लगे, “तुझ को यहाँ कौन लाया? तू यहाँ क्या करता है और यहाँ तेरा क्या है?”
৩তারা যখন মীখার বাড়িতে ছিল, তখন সেই লেবীয় যুবকের স্বর চিনে কাছে গিয়ে তাকে জিজ্ঞাসা করল, “এখানে তোমাকে কে এনেছে? এবং এ জায়গায় তুমি কি করছ? আর এখানে তোমার কি আছে?”
4 उसने उनसे कहा, “मीकाह ने मुझ से ऐसा ऐसा सुलूक किया, और मुझे नौकर रख लिया है और मैं उसका काहिन बना हूँ।”
৪সে তাদেরকে বলল, “মীখা আমার প্রতি এই এই ধরনের ব্যবহার করেছেন, তিনি আমাকে বেতন দিচ্ছেন, আর আমি তার পুরোহিত হয়েছি।”
5 उन्होंने उससे कहा कि ख़ुदा से ज़रा सलाह ले, ताकि हम को मा'लूम हो जाए कि हमारा यह सफ़र मुबारक होगा या नहीं।
৫তখন তারা বলল, “অনুরোধ করি, ঈশ্বরের কাছে জিজ্ঞাসা কর, যেন আমাদের গন্তব্য পথে মঙ্গল হবে কি না, তা আমরা জানতে পারি।”
6 उस काहिन ने उनसे कहा, “सलामती से चले जाओ, क्यूँकि तुम्हारा यह सफ़र ख़ुदावन्द के हुज़ूर है।”
৬পুরোহিত তাদেরকে বলল, “ভালোভাবে যাও, তোমরা যেখানে যাবে, তোমাদের পথ সদাপ্রভুর সামনে।”
7 इसलिए वह पाँचों शख़्स चल निकले और लैस में आए। उन्होंने वहाँ के लोगों को देखा कि सैदानियों की तरह कैसे इत्मिनान और अम्न और चैन से रहते हैं; क्यूँकि उस मुल्क में कोई हाकिम नहीं था जो उनको किसी बात में ज़लील करता। वह सैदानियों से बहुत दूर थे, और किसी से उनको कुछ सरोकार न था।
৭পরে সেই পাঁচ জন যাত্রা করে লয়িশে আসল। তারা দেখল, সেখানকার লোকেরা সীদোনীয়দের রীতি অনুসারে সুস্থির ও নিশ্চিন্ত হয়ে নির্বিঘ্নে বাস করছে এবং সে দেশে কোন বিষয়ে (কোনো অভাব নেই যা) তাদেরকে অপ্রস্তুত করতে পারে, কর্তৃত্ববিশিষ্ট এমন কেউ নেই (আরামের কোনো লোকের সঙ্গে) আর সীদোনীয়দের থেকে তারা অনেক দূরে এবং অন্য কারোর সঙ্গে তাদের সম্বন্ধ নেই।
8 इसलिए वह सुर'आ और इस्ताल को अपने भाइयों के पास लौटे, और उनके भाइयों ने उनसे पूछा कि तुम क्या कहते हो?
৮পরে ওরা সরা ও ইষ্টায়োলে নিজের ভাইদের কাছে আসল; তাদের ভাইয়েরা জিজ্ঞাসা করল, “তোমরা কি বল?”
9 उन्होंने कहा, “चलो, हम उन पर चढ़ जाएँ; क्यूँकि हम ने उस मुल्क को देखा कि वह बहुत अच्छा है; और तुम क्या चुप चाप ही रहे? अब चलकर उस मुल्क पर क़ाबिज़ होने में सुस्ती न करो।
৯তারা বলল, “ওঠ, আমরা সেই লোকদের বিরুদ্ধে যাই; আমরা সে দেশ দেখেছি; আর দেখ, তা অতি উত্তম, তোমরা কেন চুপ করে আছ? সেই দেশ অধিকার করবার জন্য সেখানে যেতে দেরী কর না।
10 अगर तुम चले तो एक मुतम'इन क़ौम के पास पहुँचोगे, और वह मुल्क वसी' है; क्यूँकि ख़ुदा ने उसे तुम्हारे हाथ में कर दिया है। वह ऐसी जगह है जिसमें दुनिया की किसी चीज़ की कमी नहीं।”
১০তোমরা গেলেই নির্বিঘ্ন এক লোক-সমাজের কাছে পৌছাবে, আর দেশ বিস্তীর্ণ; ঈশ্বর তোমাদের হাতে সেই দেশ সমর্পণ করেছেন; আর সেখানে পৃথিবীর কোন বস্তুর অভাব নেই।”
11 तब बनी दान के घराने के छ: सौ शख़्स जंग के हथियार बाँधे हुए सुर'आ और इस्ताल से रवाना हुए।
১১তখন দানীয় গোষ্ঠীর ছয়শো লোক যুদ্ধাস্ত্রে সুসজ্জ হয়ে সেখান থেকে অর্থাৎ সরা ও ইষ্টায়োল থেকে যাত্রা করল।
12 और जाकर यहूदाह के क़रयत या'रीम में ख़ैमाज़न हुए। इसीलिए आज के दिन तक उस जगह को महने दान कहते हैं, और यह क़रयत या'रीम के पीछे है।
১২তারা যিহূদার কিরিয়ৎ-যিয়ারীমে উঠে গিয়ে সেখানে শিবির তৈরী করল। এই কারণ আজ পর্যন্ত সেই জায়গাকে মহনে-দান [দানের শিবির] বলে; দেখ, তা কিরিয়ৎ-যিয়ারীমের পিছনে আছে।
13 और वहाँ से चलकर इफ़्राईम के पहाड़ी मुल्क में पहुँचे और मीकाह के घर आए।
১৩পরে তারা সেখান থেকে পর্বতময় ইফ্রয়িমের পাহাড়ি অঞ্চলে গেল, ও মীখার বাড়ি পর্যন্ত এল।
14 तब वह पाँचों शख़्स जो लैस के मुल्क का हाल दरियाफ़्त करने गए थे, अपने भाइयों से कहने लगे, “क्या तुम को ख़बर है, कि इन घरों में एक अफ़ूद और तराफ़ीम और एक तराशा हुआ बुत और एक ढाला हुआ बुत है? इसलिए अब सोच लो कि तुम को क्या करना है।”
১৪তখন, যে পাঁচ জন লয়িশ প্রদেশ অনুসন্ধান করতে এসেছিল, তারা নিজের ভাইদেরকে বলল, “তোমরা কি জান যে, এই বাড়িতে এক এফোদ, কয়েকটা ঠাকুর, এক ক্ষোদিত প্রতিমা ও ছাঁচে ঢালা এক প্রতিমা আছে? এখন তোমাদের যা কর্তব্য, তা বিবেচনা কর।”
15 तब वह उस तरफ़ मुड़ गए और उस लावी जवान के मकान में या'नी मीकाह के घर में दाख़िल हुए, और उससे ख़ैर — ओ — सलामती पूछी।
১৫পরে তারা সেই দিকে ফিরে মীখার বাড়িতে ঐ লেবীয় যুবকের ঘরে এসে তার মঙ্গল জিজ্ঞাসা করল।
16 और वह छ: सौ आदमी जो बनी दान में से थे, जंग के हथियार बाँधे फाटक पर खड़े रहे।
১৬আর দান-সন্তানদের মধ্যে যুদ্ধাস্ত্রে সুসজ্জ সেই ছয়শো পুরুষ প্রবেশদ্বারে দাঁড়িয়ে থাকল।
17 और उन पाँचों शख़्सों ने जो ज़मीन का हाल दरियाफ़्त करने को निकले थे, वहाँ आकर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत सब कुछ ले लिया, और वह काहिन फाटक पर उन छ: सौ आदमियों के साथ जो जंग के हथियार बाँधे थे खड़ा था।
১৭আর দেশ নিরীক্ষণের জন্য যারা গিয়েছিল, সেই পাঁচ জন উঠে গেল; তারা সেখানে প্রবেশ করে ঐ ক্ষোদিত প্রতিমা, এফোদ, ঠাকুরগুলি ও ছাঁচে ঢালা প্রতিমা তুলে নিল; এবং ঐ পুরোহিত যুদ্ধাস্ত্রে সুসজ্জ ঐ ছয়শো পুরুষের সঙ্গে দ্বার-প্রবেশ-স্থানে দাঁড়িয়ে ছিল।
18 जब वह मीकाह के घर में घुस कर तराशा हुआ बुत और अफ़ूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत ले आए, तो उस काहिन ने उनसे कहा, “तुम यह क्या करते हो?”
১৮যখন ওরা মীখার বাড়িতে প্রবেশ করে সেই ক্ষোদিত প্রতিমা, এফোদ, ঠাকুরগুলো ও ছাঁচে ঢালা প্রতিমা তুলে নিল, তখন পুরোহিত তাদেরকে বলল, “তোমরা কি করছ?”
19 तब उन्होंने उसे कहा, “चुप रह, मुँह पर हाथ रख ले; और हमारे साथ चल और हमारा बाप और काहिन बन। क्या तेरे लिए एक शख़्स के घर का काहिन होना अच्छा है, या यह कि तू बनी — इस्राईल के एक क़बीले और घराने का काहिन हो?”
১৯তারা বলল, “চুপ কর, মুখে হাত দিয়ে আমাদের সঙ্গে সঙ্গে চল এবং আমাদের বাবা ও পুরোহিত হও। তোমার পক্ষে কোন্টা ভাল, এক জনের কুলের পুরোহিত হওয়া, না ইস্রায়েলের এক বংশের ও গোষ্ঠীর পুরোহিত হওয়া?”
20 तब काहिन का दिल ख़ुश हो गया और वह अफ़ूद और तराफ़ीम और तराशे हुए बुत को लेकर लोगों के बीच चला गया।
২০তাতে পুরোহিতের মন আনন্দিত হল, সে ঐ এফোদ, ঠাকুরগুলো ও ক্ষোদিত প্রতিমা নিয়ে সে লোকদের মধ্যবর্ত্তী হল।
21 फिर वह मुड़े और रवाना हुए, और बाल बच्चों और चौपायों और सामन को अपने आगे कर लिया।
২১আর তারা মুখ ফিরিয়ে চলে গেল এবং ছোট ছেলে-মেয়ে, পশু ও দ্রব্য সামগ্রী নিজেদের সামনে রাখল।
22 जब वह मीकाह के घर से दूर निकल गए, तो जो लोग मीकाह के घर के पास के मकानों में रहते थे वह जमा' हुए और चलकर बनी दान को जा लिया।
২২তারা মীখার বাড়ি থেকে কিছুটা দূরে যাওয়ার পর মীখার বাড়ির কাছের বাড়িগুলির লোকেরা জড়ো হয়ে দান-সন্তানদের কাছে গিয়ে উপস্থিত হল এবং দান-সন্তানদেরকে ডাকতে লাগল।
23 और उन्होंने बनी दान को पुकारा, तब उन्होंने उधर मुँह करके मीकाह से कहा, “तुझ को क्या हुआ जो तू इतने लोगों की जमिय'त को साथ लिए आ रहा है?”
২৩তাতে তারা মুখ ফিরিয়ে মীখাকে বলল, “তোমার কি হয়েছে, যে, তুমি এত লোক সঙ্গে করে নিয়ে আসছ?”
24 उसने कहा, “तुम मेरे मा'बूदों को जिनको मैंने बनवाया, और मेरे काहिन को साथ लेकर चले आए, अब मेरे पास और क्या बाक़ी रहा? इसलिए तुम मुझ से यह क्यूँकर कहते हो कि तुझ को क्या हुआ?”
২৪সে বলল, “তোমরা আমার তৈরী দেবতা ও পুরোহিতকে চুরি করে নিয়ে যাচ্ছ, এখন আমার আর কি আছে?” অতএব “তোমার কি হয়েছে? এটা আমাকে কেন জিজ্ঞাসা করছ?”
25 बनी दान ने उससे कहा कि तेरी आवाज़ हम लोगों में सुनाई न दे, ऐसा न हो कि झल्ले मिज़ाज के आदमी तुझ पर हमला कर बैठें और तू अपनी जान अपने घर के लोगों की जान के साथ खो बैठे।
২৫দান-সন্তানরা তাকে বলল, “আমাদের মধ্যে যেন তোমার রব শোনা না যায়; পাছে (অত্যন্ত) রাগী লোকেরা তোমাদের উপর পড়ে এবং তুমি সপরিবারে প্রাণ হারাও।”
26 इसलिए बनी दान तो अपने रास्ते ही चले गए: और जब मीकाह ने देखा, कि वह उसके मुक़ाबले में बड़े ज़बरदस्त हैं, तो वह मुड़ा और अपने घर को लौटा।
২৬পরে দান-সন্তানরা নিজের পথে গেল এবং মীখা তাদেরকে নিজের থেকে বেশি বলবান দেখে ফিরল, নিজের বাড়িতে ফিরে এল।
27 यूँ वह मीकाह की बनवाई हुई चीज़ों को और उस काहिन को जो उसके यहाँ था, लेकर लैस में ऐसे लोगों के पास पहुँचे जो अम्न और चैन से रहते थे; और उनको बर्बाद किया और शहर जला दिया।
২৭পরে তারা মীখার তৈরী সমস্ত বস্তু ও তার পুরোহিতকে সঙ্গে নিয়ে লয়িশে সেই সুস্থির ও নিশ্চিন্ত লোক-সমাজের কাছে উপস্থিত হল এবং তরোয়াল দিয়ে তাদেরকে হত্যা করল, আর নগর-আগুনে পুড়িয়ে দিল।
28 और बचाने वाला कोई न था, क्यूँकि वह सैदा से दूर था और यह लोग किसी आदमी से सरोकार नहीं रखते थे। और वह शहर बैत रहोब के पास की वादी में था। फिर उन्होंने वह शहर बनाया और उसमें रहने लगे।
২৮উদ্ধারকর্তা কেউ ছিল না, কারণ সে নগর সীদোন থেকে দূরে ছিল এবং অন্য কারও সঙ্গে তাদের সম্বন্ধে ছিল না। আর তা বৈৎ-রহোবের কাছাকাছি উপত্যকা ছিল। পরে তারা ঐ নগর নির্মাণ করে সেখানে বাস করল।
29 और उस शहर का नाम अपने बाप दान के नाम पर जो इस्राईल की औलाद था दान ही रख्खा, लेकिन पहले उस शहर का नाम लैस था।
২৯আর তাদের পূর্বপুরুষ (পিতা) যে দান ইস্রায়েলের পুত্র, তার নাম অনুসারে সেই নগরের নাম দান রাখল; কিন্তু আগে সেই নগরের নাম লয়িশ ছিল।
30 और बनी दान ने वह तराशा हुआ बुत अपने लिए खड़ा कर लिया; और यूनतन बिन जैरसोम बिन मूसा और उसके बेटे उस मुल्क की असीरी के दिन तक बनी दान के क़बीले के काहिन बने रहे।
৩০আর দান-সন্তানরা নিজেদের জন্য সেই ক্ষোদিত প্রতিমা স্থাপন করল এবং সেই দেশের লোকদের বন্দিত্বের দিন পর্যন্ত মোশির পুত্র গের্শোমের সন্তান যোনাথন এবং তার সন্তানরা দানীয় বংশের পুরোহিত হল।
31 और सारे वक़्त जब तक ख़ुदा का घर शीलोह में रहा, वह मीकाह के तराशे हुए बुत को जो उसने बनवाया था अपने लिए खड़े किए रहे।
৩১আর যত দিন শীলোতে ঈশ্বরের গৃহ (তাঁবু) থাকল, তারা নিজেদের জন্য মীখার তৈরী ঐ ক্ষোদিত প্রতিমা স্থাপন করে রাখল।