< यूहन्ना 6 >
1 इन बातों के बाद 'ईसा गलील की झील या'नी तिबरियास की झील के पार गया।
ततः परं यीशु र्गालील् प्रदेशीयस्य तिविरियानाम्नः सिन्धोः पारं गतवान्।
2 और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्यूँकि जो मोजिज़े वो बीमारों पर करता था उनको वो देखते थे।
ततो व्याधिमल्लोकस्वास्थ्यकरणरूपाणि तस्याश्चर्य्याणि कर्म्माणि दृष्ट्वा बहवो जनास्तत्पश्चाद् अगच्छन्।
3 ईसा पहाड़ पर चढ़ गया और अपने शागिर्दों के साथ वहाँ बैठा।
ततो यीशुः पर्व्वतमारुह्य तत्र शिष्यैः साकम्।
4 और यहूदियों की 'ईद — ए — फ़सह नज़दीक थी।
तस्मिन् समय निस्तारोत्सवनाम्नि यिहूदीयानाम उत्सव उपस्थिते
5 पस जब 'ईसा ने अपनी आँखें उठाकर देखा कि मेरे पास बड़ी भीड़ आ रही है, तो फ़िलिप्पुस से कहा, “हम इनके खाने के लिए कहाँ से रोटियाँ ख़रीद लें?”
यीशु र्नेत्रे उत्तोल्य बहुलोकान् स्वसमीपागतान् विलोक्य फिलिपं पृष्टवान् एतेषां भोजनाय भोजद्रव्याणि वयं कुत्र क्रेतुं शक्रुमः?
6 मगर उसने उसे आज़माने के लिए ये कहा, क्यूँकि वो आप जानता था कि मैं क्या करूँगा।
वाक्यमिदं तस्य परीक्षार्थम् अवादीत् किन्तु यत् करिष्यति तत् स्वयम् अजानात्।
7 फ़िलिप्पुस ने उसे जवाब दिया, “दो सौ दिन मज़दूरी की रोटियाँ इनके लिए काफ़ी न होंगी, कि हर एक को थोड़ी सी मिल जाए।”
फिलिपः प्रत्यवोचत् एतेषाम् एकैको यद्यल्पम् अल्पं प्राप्नोति तर्हि मुद्रापादद्विशतेन क्रीतपूपा अपि न्यूना भविष्यन्ति।
8 उसके शागिर्दों में से एक ने, या'नी शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने, उससे कहा,
शिमोन् पितरस्य भ्राता आन्द्रियाख्यः शिष्याणामेको व्याहृतवान्
9 “यहाँ एक लड़का है जिसके पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, मगर ये इतने लोगों में क्या हैं?”
अत्र कस्यचिद् बालकस्य समीपे पञ्च यावपूपाः क्षुद्रमत्स्यद्वयञ्च सन्ति किन्तु लोकानां एतावातां मध्ये तैः किं भविष्यति?
10 ईसा ने कहा, “लोगों को बिठाओ।” और उस जगह बहुत घास थी। पस वो मर्द जो तक़रीबन पाँच हज़ार थे बैठ गए।
पश्चाद् यीशुरवदत् लोकानुपवेशयत तत्र बहुयवससत्त्वात् पञ्चसहस्त्रेभ्यो न्यूना अधिका वा पुरुषा भूम्याम् उपाविशन्।
11 ईसा ने वो रोटियाँ ली और शुक्र करके उन्हें जो बैठे थे बाँट दीं, और इसी तरह मछलियों में से जिस क़दर चाहते थे बाँट दिया।
ततो यीशुस्तान् पूपानादाय ईश्वरस्य गुणान् कीर्त्तयित्वा शिष्येषु समार्पयत् ततस्ते तेभ्य उपविष्टलोकेभ्यः पूपान् यथेष्टमत्स्यञ्च प्रादुः।
12 जब वो सेर हो चुके तो उसने अपने शागिर्दों से कहा, “बचे हुए बे इस्तेमाल खाने को जमा करो, ताकि कुछ ज़ाया न हो।”
तेषु तृप्तेषु स तानवोचद् एतेषां किञ्चिदपि यथा नापचीयते तथा सर्व्वाण्यवशिष्टानि संगृह्लीत।
13 चुनाँचे उन्होंने जमा किया, और जौ की पाँच रोटियों के टुकड़ों से जो खानेवालों से बच रहे थे बारह टोकरियाँ भरीं
ततः सर्व्वेषां भोजनात् परं ते तेषां पञ्चानां यावपूपानां अवशिष्टान्यखिलानि संगृह्य द्वादशडल्लकान् अपूरयन्।
14 पस जो मोजिज़ा उसने दिखाया, “वो लोग उसे देखकर कहने लगे, जो नबी दुनियाँ में आने वाला था हक़ीक़त में यही है।”
अपरं यीशोरेतादृशीम् आश्चर्य्यक्रियां दृष्ट्वा लोका मिथो वक्तुमारेभिरे जगति यस्यागमनं भविष्यति स एवायम् अवश्यं भविष्यद्वक्त्ता।
15 पस ईसा ये मा'लूम करके कि वो आकर मुझे बादशाह बनाने के लिए पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
अतएव लोका आगत्य तमाक्रम्य राजानं करिष्यन्ति यीशुस्तेषाम् ईदृशं मानसं विज्ञाय पुनश्च पर्व्वतम् एकाकी गतवान्।
16 फिर जब शाम हुई तो उसके शागिर्द झील के किनारे गए,
सायंकाल उपस्थिते शिष्या जलधितटं व्रजित्वा नावमारुह्य नगरदिशि सिन्धौ वाहयित्वागमन्।
17 और नाव में बैठकर झील के पार कफ़रनहूम को चले जाते थे। उस वक़्त अन्धेरा हो गया था, और 'ईसा अभी तक उनके पास न आया था।
तस्मिन् समये तिमिर उपातिष्ठत् किन्तु यीषुस्तेषां समीपं नागच्छत्।
18 और आँधी की वजह से झील में मौजें उठने लगीं।
तदा प्रबलपवनवहनात् सागरे महातरङ्गो भवितुम् आरेभे।
19 पस जब वो खेते — खेते तीन — चार मील के क़रीब निकल गए, तो उन्होंने 'ईसा को झील पर चलते और नाव के नज़दीक आते देखा और डर गए।
ततस्ते वाहयित्वा द्वित्रान् क्रोशान् गताः पश्चाद् यीशुं जलधेरुपरि पद्भ्यां व्रजन्तं नौकान्तिकम् आगच्छन्तं विलोक्य त्रासयुक्ता अभवन्
20 मगर उसने उनसे कहा, “मैं हूँ, डरो मत।”
किन्तु स तानुक्त्तवान् अयमहं मा भैष्ट।
21 पस वो उसे नाव में चढ़ा लेने को राज़ी हुए, और फ़ौरन वो नाव उस जगह जा पहुँची जहाँ वो जाते थे।
तदा ते तं स्वैरं नावि गृहीतवन्तः तदा तत्क्षणाद् उद्दिष्टस्थाने नौरुपास्थात्।
22 दूसरे दिन उस भीड़ ने जो झील के पार खड़ी थी, ये देखा कि यहाँ एक के सिवा और कोई छोटी नाव न थी; और 'ईसा अपने शागिर्दों के साथ नाव पर सवार न हुआ था, बल्कि सिर्फ़ उसके शागिर्द चले गए थे।
यया नावा शिष्या अगच्छन् तदन्या कापि नौका तस्मिन् स्थाने नासीत् ततो यीशुः शिष्यैः साकं नागमत् केवलाः शिष्या अगमन् एतत् पारस्था लोका ज्ञातवन्तः।
23 (लेकिन कुछ छोटी नावें तिबरियास से उस जगह के नज़दीक आईं, जहाँ उन्होंने ख़ुदावन्द के शुक्र करने के बाद रोटी खाई थी।)
किन्तु ततः परं प्रभु र्यत्र ईश्वरस्य गुणान् अनुकीर्त्त्य लोकान् पूपान् अभोजयत् तत्स्थानस्य समीपस्थतिविरियाया अपरास्तरणय आगमन्।
24 पस जब भीड़ ने देखा कि यहाँ न 'ईसा है न उसके शागिर्द, तो वो ख़ुद छोटी नावों में बैठकर 'ईसा की तलाश में कफ़रनहूम को आए।
यीशुस्तत्र नास्ति शिष्या अपि तत्र ना सन्ति लोका इति विज्ञाय यीशुं गवेषयितुं तरणिभिः कफर्नाहूम् पुरं गताः।
25 और झील के पार उससे मिलकर कहा, “ऐ रब्बी! तू यहाँ कब आया?”
ततस्ते सरित्पतेः पारे तं साक्षात् प्राप्य प्रावोचन् हे गुरो भवान् अत्र स्थाने कदागमत्?
26 ईसा ने उनके जवाब में कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँडते कि मोजिज़े देखे, बल्कि इसलिए कि तुम रोटियाँ खाकर सेर हुए।
तदा यीशुस्तान् प्रत्यवादीद् युष्मानहं यथार्थतरं वदामि आश्चर्य्यकर्म्मदर्शनाद्धेतो र्न किन्तु पूपभोजनात् तेन तृप्तत्वाञ्च मां गवेषयथ।
27 फ़ानी ख़ुराक के लिए मेहनत न करो, बल्कि उस ख़ुराक के लिए जो हमेशा की ज़िन्दगी तक बाक़ी रहती है जिसे इब्न — ए — आदम तुम्हें देगा; क्यूँकि बाप या'नी ख़ुदा ने उसी पर मुहर की है।” (aiōnios )
क्षयणीयभक्ष्यार्थं मा श्रामिष्ट किन्त्वन्तायुर्भक्ष्यार्थं श्राम्यत, तस्मात् तादृशं भक्ष्यं मनुजपुत्रो युष्माभ्यं दास्यति; तस्मिन् तात ईश्वरः प्रमाणं प्रादात्। (aiōnios )
28 पस उन्होंने उससे कहा, “हम क्या करें ताकि ख़ुदा के काम अन्जाम दें?”
तदा तेऽपृच्छन् ईश्वराभिमतं कर्म्म कर्त्तुम् अस्माभिः किं कर्त्तव्यं?
29 ईसा ने जवाब में उनसे कहा, “ख़ुदा का काम ये है कि जिसे उसने भेजा है उस पर ईमान लाओ।”
ततो यीशुरवदद् ईश्वरो यं प्रैरयत् तस्मिन् विश्वसनम् ईश्वराभिमतं कर्म्म।
30 पस उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा निशान दिखाता है, ताकि हम देखकर तेरा यक़ीन करें? तू कौन सा काम करता है?
तदा ते व्याहरन् भवता किं लक्षणं दर्शितं यद्दृष्ट्वा भवति विश्वसिष्यामः? त्वया किं कर्म्म कृतं?
31 हमारे बाप — दादा ने वीराने में मन्ना खाया, चुनाँचे लिखा है, 'उसने उन्हें खाने के लिए आसमान से रोटी दी।”
अस्माकं पूर्व्वपुरुषा महाप्रान्तरे मान्नां भोक्त्तुं प्रापुः यथा लिपिरास्ते। स्वर्गीयाणि तु भक्ष्याणि प्रददौ परमेश्वरः।
32 ईसा ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि मूसा ने तो वो रोटी आसमान से तुम्हें न दी, लेकिन मेरा बाप तुम्हें आसमान से हक़ीक़ी रोटी देता है।
तदा यीशुरवदद् अहं युष्मानतियथार्थं वदामि मूसा युष्माभ्यं स्वर्गीयं भक्ष्यं नादात् किन्तु मम पिता युष्माभ्यं स्वर्गीयं परमं भक्ष्यं ददाति।
33 क्यूँकि ख़ुदा की रोटी वो है जो आसमान से उतरकर दुनियाँ को ज़िन्दगी बख़्शती है।“
यः स्वर्गादवरुह्य जगते जीवनं ददाति स ईश्वरदत्तभक्ष्यरूपः।
34 उन्होंने उससे कहा, ऐ ख़ुदावन्द! ये रोटी हम को हमेशा दिया कर।”
तदा ते प्रावोचन् हे प्रभो भक्ष्यमिदं नित्यमस्मभ्यं ददातु।
35 ईसा ने उनसे कहा, “ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ; जो मेरे पास आए वो हरगिज़ भूखा न होगा, और जो मुझ पर ईमान लाए वो कभी प्यासा ना होगा।
यीशुरवदद् अहमेव जीवनरूपं भक्ष्यं यो जनो मम सन्निधिम् आगच्छति स जातु क्षुधार्त्तो न भविष्यति, तथा यो जनो मां प्रत्येति स जातु तृषार्त्तो न भविष्यति।
36 लेकिन मैंने तुम से कहा कि तुम ने मुझे देख लिया है फिर भी ईमान नहीं लाते।
मां दृष्ट्वापि यूयं न विश्वसिथ युष्मानहम् इत्यवोचं।
37 जो कुछ बाप मुझे देता है मेरे पास आ जाएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं हरगिज़ निकाल न दूँगा।
पिता मह्यं यावतो लोकानददात् ते सर्व्व एव ममान्तिकम् आगमिष्यन्ति यः कश्चिच्च मम सन्निधिम् आयास्यति तं केनापि प्रकारेण न दूरीकरिष्यामि।
38 क्यूँकि मैं आसमान से इसलिए नहीं उतरा हूँ कि अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ 'अमल करूँ, बल्कि इसलिए कि अपने भेजनेवाले की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ 'अमल करूँ।
निजाभिमतं साधयितुं न हि किन्तु प्रेरयितुरभिमतं साधयितुं स्वर्गाद् आगतोस्मि।
39 और मेरे भेजनेवाले की मर्ज़ी ये है, कि जो कुछ उसने मुझे दिया है मैं उसमें से कुछ खो न दूँ, बल्कि उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँ।
स यान् यान् लोकान् मह्यमददात् तेषामेकमपि न हारयित्वा शेषदिने सर्व्वानहम् उत्थापयामि इदं मत्प्रेरयितुः पितुरभिमतं।
40 क्यूँकि मेरे बाप की मर्ज़ी ये है, कि जो कोई बेटे को देखे और उस पर ईमान लाए, और हमेशा की ज़िन्दगी पाए और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँ।” (aiōnios )
यः कश्चिन् मानवसुतं विलोक्य विश्वसिति स शेषदिने मयोत्थापितः सन् अनन्तायुः प्राप्स्यति इति मत्प्रेरकस्याभिमतं। (aiōnios )
41 पस यहूदी उस पर बुदबुदाने लगे, इसलिए कि उसने कहा, था, “जो रोटी आसमान से उतरी वो मैं हूँ।”
तदा स्वर्गाद् यद् भक्ष्यम् अवारोहत् तद् भक्ष्यम् अहमेव यिहूदीयलोकास्तस्यैतद् वाक्ये विवदमाना वक्त्तुमारेभिरे
42 और उन्होंने कहा, क्या ये युसूफ़ का बेटा 'ईसा नहीं, जिसके बाप और माँ को हम जानते हैं? अब ये क्यूँकर कहता है कि “मैं आसमान से उतरा हूँ?”
यूषफः पुत्रो यीशु र्यस्य मातापितरौ वयं जानीम एष किं सएव न? तर्हि स्वर्गाद् अवारोहम् इति वाक्यं कथं वक्त्ति?
43 ईसा ने जवाब में उनसे कहा, “आपस में न बुदबदाओ।
तदा यीशुस्तान् प्रत्यवदत् परस्परं मा विवदध्वं
44 कोई मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि बाप जिसने मुझे भेजा है उसे खींच न ले, और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँगा।
मत्प्रेरकेण पित्रा नाकृष्टः कोपि जनो ममान्तिकम् आयातुं न शक्नोति किन्त्वागतं जनं चरमेऽह्नि प्रोत्थापयिष्यामि।
45 नबियों के सहीफ़ों में ये लिखा है: 'वो सब ख़ुदा से ता'लीम पाए हुए लोग होंगे।' जिस किसी ने बाप से सुना और सीखा है वो मेरे पास आता है —
ते सर्व्व ईश्वरेण शिक्षिता भविष्यन्ति भविष्यद्वादिनां ग्रन्थेषु लिपिरित्थमास्ते अतो यः कश्चित् पितुः सकाशात् श्रुत्वा शिक्षते स एव मम समीपम् आगमिष्यति।
46 ये नहीं कि किसी ने बाप को देखा है, मगर जो ख़ुदा की तरफ़ से है उसी ने बाप को देखा है।
य ईश्वराद् अजायत तं विना कोपि मनुष्यो जनकं नादर्शत् केवलः सएव तातम् अद्राक्षीत्।
47 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो ईमान लाता है हमेशा की ज़िन्दगी उसकी है। (aiōnios )
अहं युष्मान् यथार्थतरं वदामि यो जनो मयि विश्वासं करोति सोनन्तायुः प्राप्नोति। (aiōnios )
48 ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ।
अहमेव तज्जीवनभक्ष्यं।
49 तुम्हारे बाप — दादा ने वीराने मैं मन्ना खाया और मर गए।
युष्माकं पूर्व्वपुरुषा महाप्रान्तरे मन्नाभक्ष्यं भूक्त्तापि मृताः
50 ये वो रोटी है कि जो आसमान से उतरती है, ताकि आदमी उसमें से खाए और न मरे।
किन्तु यद्भक्ष्यं स्वर्गादागच्छत् तद् यदि कश्चिद् भुङ्क्त्ते तर्हि स न म्रियते।
51 मैं हूँ वो ज़िन्दगी की रोटी जो आसमान से उतरी। अगर कोई इस रोटी में से खाए तो हमेशा तक ज़िन्दा रहेगा, बल्कि जो रोटी मैं दुनियाँ की ज़िन्दगी के लिए दूँगा वो मेरा गोश्त है।” (aiōn )
यज्जीवनभक्ष्यं स्वर्गादागच्छत् सोहमेव इदं भक्ष्यं यो जनो भुङ्क्त्ते स नित्यजीवी भविष्यति। पुनश्च जगतो जीवनार्थमहं यत् स्वकीयपिशितं दास्यामि तदेव मया वितरितं भक्ष्यम्। (aiōn )
52 पस यहूदी ये कहकर आपस में झगड़ने लगे, “ये शख़्स आपना गोश्त हमें क्यूँकर खाने को दे सकता है?”
तस्माद् यिहूदीयाः परस्परं विवदमाना वक्त्तुमारेभिरे एष भोजनार्थं स्वीयं पललं कथम् अस्मभ्यं दास्यति?
53 ईसा ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक तुम इब्न — ए — आदम का गोश्त न खाओ और उसका का ख़ून न पियो, तुम में ज़िन्दगी नहीं।
तदा यीशुस्तान् आवोचद् युष्मानहं यथार्थतरं वदामि मनुष्यपुत्रस्यामिषे युष्माभि र्न भुक्त्ते तस्य रुधिरे च न पीते जीवनेन सार्द्धं युष्माकं सम्बन्धो नास्ति।
54 जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है, हमेशा की ज़िन्दगी उसकी है; और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँगा। (aiōnios )
यो ममामिषं स्वादति मम सुधिरञ्च पिवति सोनन्तायुः प्राप्नोति ततः शेषेऽह्नि तमहम् उत्थापयिष्यामि। (aiōnios )
55 क्यूँकि मेरा गोश्त हक़ीक़त में खाने की चीज़ और मेरा ख़ून हक़ीक़त में पीनी की चीज़ है।
यतो मदीयमामिषं परमं भक्ष्यं तथा मदीयं शोणितं परमं पेयं।
56 जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है, वो मुझ में क़ाईम रहता है और मैं उसमें।
यो जनो मदीयं पललं स्वादति मदीयं रुधिरञ्च पिवति स मयि वसति तस्मिन्नहञ्च वसामि।
57 जिस तरह ज़िन्दा बाप ने मुझे भेजा, और मैं बाप के ज़रिए से ज़िन्दा हूँ, इसी तरह वो भी जो मुझे खाएगा मेरे ज़रिए से ज़िन्दा रहेगा।
मत्प्रेरयित्रा जीवता तातेन यथाहं जीवामि तद्वद् यः कश्चिन् मामत्ति सोपि मया जीविष्यति।
58 जो रोटी आसमान से उतरी यही है, बाप — दादा की तरह नहीं कि खाया और मर गए; जो ये रोटी खाएगा वो हमेशा तक ज़िन्दा रहेगा।” (aiōn )
यद्भक्ष्यं स्वर्गादागच्छत् तदिदं यन्मान्नां स्वादित्वा युष्माकं पितरोऽम्रियन्त तादृशम् इदं भक्ष्यं न भवति इदं भक्ष्यं यो भक्षति स नित्यं जीविष्यति। (aiōn )
59 ये बातें उसने कफ़रनहूम के एक 'इबादतख़ाने में ता'लीम देते वक़्त कहीं।
यदा कफर्नाहूम् पुर्य्यां भजनगेहे उपादिशत् तदा कथा एता अकथयत्।
60 इसलिए उसके शागिर्दों में से बहुतों ने सुनकर कहा, “ये कलाम नागवार है, इसे कौन सुन सकता है?”
तदेत्थं श्रुत्वा तस्य शिष्याणाम् अनेके परस्परम् अकथयन् इदं गाढं वाक्यं वाक्यमीदृशं कः श्रोतुं शक्रुयात्?
61 ईसा ने अपने जी में जानकर कि मेरे शागिर्द आपस में इस बात पर बुदबुदाते हैं, उनसे कहा, “क्या तुम इस बात से ठोकर खाते हो?
किन्तु यीशुः शिष्याणाम् इत्थं विवादं स्वचित्ते विज्ञाय कथितवान् इदं वाक्यं किं युष्माकं विघ्नं जनयति?
62 अगर तुम इब्न — ए — आदम को ऊपर जाते देखोगे, जहाँ वो पहले था तो क्या होगा?
यदि मनुजसुतं पूर्व्ववासस्थानम् ऊर्द्व्वं गच्छन्तं पश्यथ तर्हि किं भविष्यति?
63 ज़िन्दा करने वाली तो रूह है, जिस्म से कुछ फ़ाइदा नहीं; जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं, वो रूह हैं और ज़िन्दगी भी हैं।
आत्मैव जीवनदायकः वपु र्निष्फलं युष्मभ्यमहं यानि वचांसि कथयामि तान्यात्मा जीवनञ्च।
64 मगर तुम में से कुछ ऐसे हैं जो ईमान नहीं लाए।” क्यूँकि ईसा शुरू' से जानता था कि जो ईमान नहीं लाते वो कौन हैं, और कौन मुझे पकड़वाएगा।
किन्तु युष्माकं मध्ये केचन अविश्वासिनः सन्ति के के न विश्वसन्ति को वा तं परकरेषु समर्पयिष्यति तान् यीशुराप्रथमाद् वेत्ति।
65 फिर उसने कहा, “इसी लिए मैंने तुम से कहा था कि मेरे पास कोई नहीं आ सकता जब तक बाप की तरफ़ से उसे ये तौफ़ीक़ न दी जाए।”
अपरमपि कथितवान् अस्मात् कारणाद् अकथयं पितुः सकाशात् शक्त्तिमप्राप्य कोपि ममान्तिकम् आगन्तुं न शक्नोति।
66 इस पर उसके शागिर्दों में से बहुत से लोग उल्टे फिर गए और इसके बाद उसके साथ न रहे।
तत्कालेऽनेके शिष्या व्याघुट्य तेन सार्द्धं पुन र्नागच्छन्।
67 पस ईसा ने उन बारह से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?”
तदा यीशु र्द्वादशशिष्यान् उक्त्तवान् यूयमपि किं यास्यथ?
68 शमौन पतरस ने उसे जवाब दिया, “ऐ ख़ुदावन्द! हम किसके पास जाएँ? हमेशा की ज़िन्दगी की बातें तो तेरे ही पास हैं? (aiōnios )
ततः शिमोन् पितरः प्रत्यवोचत् हे प्रभो कस्याभ्यर्णं गमिष्यामः? (aiōnios )
69 और हम ईमान लाए और जान गए हैं कि, ख़ुदा का क़ुद्दूस तू ही है।”
अनन्तजीवनदायिन्यो याः कथास्तास्तवैव। भवान् अमरेश्वरस्याभिषिक्त्तपुत्र इति विश्वस्य निश्चितं जानीमः।
70 ईसा ने उन्हें जवाब दिया, “क्या मैंने तुम बारह को नहीं चुन लिया? और तुम में से एक शख़्स शैतान है।”
तदा यीशुरवदत् किमहं युष्माकं द्वादशजनान् मनोनीतान् न कृतवान्? किन्तु युष्माकं मध्येपि कश्चिदेको विघ्नकारी विद्यते।
71 उसने ये शमौन इस्करियोती के बेटे यहुदाह की निस्बत कहा, क्यूँकि यही जो उन बारह में से था उसे पकड़वाने को था।
इमां कथं स शिमोनः पुत्रम् ईष्करीयोतीयं यिहूदाम् उद्दिश्य कथितवान् यतो द्वादशानां मध्ये गणितः स तं परकरेषु समर्पयिष्यति।