< अय्यू 4 >
1 तब तेमानी इलिफ़ज़ कहने लगा,
Y RESPONDIÓ Eliphaz el Temanita, y dijo:
2 अगर कोई तुझ से बात चीत करने की कोशिश करे तो क्या तू अफ़सोस करेगा?, लेकिन बोले बगै़र कौन रह सकता है?
Si probáremos á hablarte, serte ha molesto; mas ¿quién podrá detener las palabras?
3 देख, तू ने बहुतों को सिखाया, और कमज़ोर हाथों को मज़बूत किया।
He aquí, tú enseñabas á muchos, y las manos flacas corroborabas;
4 तेरी बातों ने गिरते हुए को संभाला, और तू ने लड़खड़ाते घुटनों को मज़बूत किया।
Al que vacilaba, enderezaban tus palabras, y esforzabas las rodillas que decaían.
5 लेकिन अब तो तुझी पर आ पड़ी और तू कमज़ोर हुआ जाता है। उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।
Mas ahora que [el mal] sobre ti ha venido, te es duro; y cuando ha llegado hasta ti, te turbas.
6 क्या तेरे ख़ुदा का डर ही तेरा भरोसा नहीं? क्या तेरी राहों की रास्ती तेरी उम्मीद नहीं?
¿Es este tu temor, tu confianza, tu esperanza, y la perfección de tus caminos?
7 क्या तुझे याद है कि कभी कोई मा'सूम भी हलाक हुआ है? या कहीं रास्तबाज़ भी काट डाले गए?
Recapacita ahora, ¿quién que fuera inocente se perdiera? y ¿en dónde los rectos fueron cortados?
8 मेरे देखने में तो जो गुनाह को जोतते और दुख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।
Como yo he visto, los que aran iniquidad y siembran injuria, la siegan.
9 वह ख़ुदा के दम से हलाक होते, और उसके ग़ुस्से के झोंके से भस्म होते हैं।
Perecen por el aliento de Dios, y por el espíritu de su furor son consumidos.
10 बबर की ग़रज़ और खू़ँख़्वार बबर की दहाड़, और बबर के बच्चों के दाँत, यह सब तोड़े जाते हैं।
El bramido del león, y la voz del león, y los dientes de los leoncillos son quebrantados.
11 शिकार न पाने से बूढ़ा बबर हलाक होता, और शेरनी के बच्चे तितर — बितर हो जाते हैं।
El león viejo perece por falta de presa, y los hijos del león son esparcidos.
12 एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, उसकी भनक मेरे कान में पड़ी।
El negocio también me era á mí oculto; mas mi oído ha percibido algo de ello.
13 रात के ख़्वाबों के ख़्यालों के बीच, जब लोगों को गहरी नींद आती है।
En imaginaciones de visiones nocturnas, cuando el sueño cae sobre los hombres,
14 मुझे ख़ौफ़ और कपकपी ने ऐसा पकड़ा, कि मेरी सब हड्डियों को हिला डाला।
Sobrevínome un espanto y un temblor, que estremeció todos mis huesos:
15 तब एक रूह मेरे सामने से गुज़री, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
Y un espíritu pasó por delante de mí, que hizo se erizara el pelo de mi carne.
16 वह चुपचाप खड़ी हो गई लेकिन मैं उसकी शक्ल पहचान न सका; एक सूरत मेरी आँखों के सामने थी और सन्नाटा था। फिर मैंने एक आवाज़ सुनी:
Paróse un fantasma delante de mis ojos, cuyo rostro yo no conocí, y quedo, oí que decía:
17 कि क्या फ़ानी इंसान ख़ुदा से ज़्यादा होगा? क्या आदमी अपने ख़ालिक़ से ज़्यादा पाक ठहरेगा?
¿Si será el hombre más justo que Dios? ¿si será el varón más limpio que el que lo hizo?
18 देख, उसे अपने ख़ादिमों का 'ऐतबार नहीं, और वह अपने फ़रिश्तों पर हिमाक़त को 'आइद करता है।
He aquí que en sus siervos no confía, y notó necedad en sus ángeles;
19 फिर भला उनकी क्या हक़ीक़त है, जो मिट्टी के मकानों में रहते हैं। जिनकी बुन्नियाद ख़ाक में है, और जो पतंगे से भी जल्दी पिस जाते हैं।
¡Cuánto más en los que habitan en casas de lodo, cuyo fundamento está en el polvo, y que serán quebrantados de la polilla!
20 वह सुबह से शाम तक हलाक होते हैं, वह हमेशा के लिए फ़ना हो जाते हैं, और कोई उनका ख़याल भी नहीं करता।
De la mañana á la tarde son quebrantados, y se pierden para siempre, sin haber quien lo considere.
21 क्या उनके ख़ेमे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर तोड़ी नहीं जाती? वह मरते हैं और यह भी बगै़र दानाई के।
¿Su hermosura, no se pierde con ellos mismos? Mueren, y sin sabiduría.