< अय्यू 30 >
1 “लेकिन अब तो वह जो मुझ से कम उम्र हैं मेरा मज़ाक़ करते हैं, जिनके बाप — दादा को अपने गल्ले के कुत्तों के साथ रखना भी मुझे नागवार था।
E ora servo di zimbello a dei più giovani di me, i cui padri non mi sarei degnato di mettere fra i cani del mio gregge!
2 बल्कि उनके हाथों की ताक़त मुझे किस बात का फ़ायदा पहुँचाएगी? वह ऐसे आदमी हैं जिनकी जवानी का ज़ोर ज़ाइल हो गया।
E a che m’avrebbe servito la forza delle lor mani? Gente incapace a raggiungere l’età matura,
3 वह ग़ुरबत और क़हत के मारे दुबले हो गए हैं, वह वीरानी और सुनसानी की तारीकी में ख़ाक चाटते हैं।
smunta dalla miseria e dalla fame, ridotta a brucare il deserto, la terra da tempo nuda e desolata,
4 वह झाड़ियों के पास लोनिये का साग तोड़ते हैं, और झाऊ की जड़ें उनकी ख़ूराक है।
strappando erba salsa presso ai cespugli, ed avendo per pane radici di ginestra.
5 वह लोगों के बीच दौड़ाये गए हैं, लोग उनके पीछे ऐसे चिल्लाते हैं जैसे चोर के पीछे।
Sono scacciati di mezzo agli uomini, grida lor dietro la gente come dietro al ladro,
6 उनको वादियों के दरख़्तों में, और ग़ारों और ज़मीन के भट्टों में रहना पड़ता है।
abitano in burroni orrendi, nelle caverne della terra e fra le rocce;
7 वह झाड़ियों के बीच रैंकते, और झंकाड़ों के नीचे इकट्ठे पड़े रहते हैं।
ragliano fra i cespugli, si sdraiano alla rinfusa sotto i rovi;
8 वह बेवक़ूफ़ों बल्कि कमीनों की औलाद हैं, वह मुल्क से मार — मार कर निकाले गए थे।
gente da nulla, razza senza nome, cacciata via dal paese a bastonate.
9 और अब मैं उनका गीत बना हूँ, बल्कि उनके लिए एक मिसाल की तरह हूँ।
E ora io sono il tema delle loro canzoni, il soggetto dei loro discorsi.
10 वह मुझ से नफ़रत करते; वह मुझ से दूर खड़े होते, और मेरे मुँह पर थूकने से बाज़ नहीं रहते हैं।
Mi aborrono, mi fuggono, non si trattengono dallo sputarmi in faccia.
11 क्यूँकि खु़दा ने मेरा चिल्ला ढीला कर दिया और मुझ पर आफ़त भेजी, इसलिए वह मेरे सामने बेलगाम हो गए हैं।
Non han più ritegno, m’umiliano, rompono ogni freno in mia presenza.
12 मेरे दहने हाथ पर लोगों का मजमा' उठता है; वह मेरे पाँव को एक तरफ़ सरका देते हैं, और मेरे ख़िलाफ़ अपनी मुहलिक राहें निकालते हैं।
Questa genia si leva alla mia destra, m’incalzano, e si appianano le vie contro di me per distruggermi.
13 ऐसे लोग भी जिनका कोई मददगार नहीं, मेरे रास्ते को बिगाड़ते, और मेरी मुसीबत को बढ़ाते हैं'।
Hanno sovvertito il mio cammino, lavorano alla mia ruina, essi che nessuno vorrebbe soccorrere!
14 वह गोया बड़े सुराख़ में से होकर आते हैं, और तबाही में मुझ पर टूट पड़ते हैं।
S’avanzano come per un’ampia breccia, si precipitano innanzi in mezzo alle ruine.
15 दहशत मुझ पर तारी हो गई'। वह हवा की तरह मेरी आबरू को उड़ाती है। मेरी 'आफ़ियत बादल की तरह जाती रही।
Terrori mi si rovesciano addosso; l’onor mio è portato via come dal vento, è passata come una nube la mia felicità.
16 “अब तो मेरी जान मेरे अंदर गुदाज़ हो गई, दुख के दिनों ने मुझे जकड़ लिया है।
E ora l’anima mia si strugge in me, m’hanno còlto i giorni dell’afflizione.
17 रात के वक़्त मेरी हड्डियाँ मेरे अंदर छिद जाती हैं और वह दर्द जो मुझे खाए जाते हैं, दम नहीं लेते।
La notte mi trafigge, mi stacca l’ossa, e i dolori che mi rodono non hanno posa.
18 मेरे मरज़ की शिद्दत से मेरी पोशाक बदनुमा हो गयी; वह मेरे पैराहन के गिरेबान की तरह मुझ से लिपटी हुई है।
Per la gran violenza del mio male la mia veste si sforma, mi si serra addosso come la tunica.
19 उसने मुझे कीचड़ में धकेल दिया है, मैं ख़ाक और राख की तरह हो गया हूँ।
Iddio m’ha gettato nel fango, e rassomiglio alla polvere e alla cenere.
20 मैं तुझ से फ़रियाद करता हूँ, और तू मुझे जवाब नहीं देता; मैं खड़ा होता हूँ, और तू मुझे घूरने लगता है।
Io grido a te, e tu non mi rispondi; ti sto dinanzi, e tu mi stai a considerare!
21 तू बदल कर मुझ पर बे रहम हो गया है; अपने बाज़ू की ताक़त से तू मुझे सताता है।
Ti sei mutato in nemico crudele verso di me; mi perseguiti con la potenza della tua mano.
22 तू मुझे ऊपर उठाकर हवा पर सवार करता है, और मुझे आँधी में घुला देता है।
Mi levi per aria, mi fai portar via dal vento, e mi annienti nella tempesta.
23 क्यूँकि मैं जानता हूँ कि तू मुझे मौत और उस घर तक जो सब ज़िन्दों के लिए मुक़र्रर है।
Giacché, lo so, tu mi meni alla morte, alla casa di convegno di tutti i viventi.
24 'तोभी क्या तबाही के वक़्त कोई अपना हाथ न बढ़ाएगा, और मुसीबत में फ़रियाद न करेगा?
Ma chi sta per perire non protende la mano? e nell’angoscia sua non grida al soccorso?
25 क्या मैं दर्दमन्द के लिए रोता न था? क्या मेरी जान मोहताज के लिए ग़मग़ीन न होती थी?
Non piangevo io forse per chi era nell’avversità? l’anima mia non era ella angustiata per il povero?
26 जब मैं भलाई का मुन्तज़िर था, तो बुराई पेश आई जब मैं रोशनी के लिए ठहरा था, तो तारीकी आई।
Speravo il bene, ed è venuto il male; aspettavo la luce, ed è venuta l’oscurità!
27 मेरी अंतड़ियाँ उबल रही हैं और आराम नहीं पातीं; मुझ पर मुसीबत के दिन आ पड़े हैं।
Le mie viscere bollono e non hanno requie, son venuti per me giorni d’afflizione.
28 मैं बगै़र धूप के काला हो गया हूँ। मैं मजमे' में खड़ा होकर मदद के लिए फ़रियाद करता हूँ।
Me ne vo tutto annerito, ma non dal sole; mi levo in mezzo alla raunanza, e grido aiuto;
29 मैं गीदड़ों का भाई, और शुतर मुर्ग़ों का साथी हूँ।
son diventato fratello degli sciacalli, compagno degli struzzi.
30 मेरी खाल काली होकर मुझ पर से गिरती जाती है और मेरी हड्डियाँ हरारत से जल गई।
La mia pelle è nera, e cade a pezzi; le mie ossa son calcinate dall’arsura.
31 इसी लिए मेरे सितार से मातम, और मेरी बाँसली से रोने की आवाज़ निकलती है।
La mia cetra non dà più che accenti di lutto, e la mia zampogna voce di pianto.