< अय्यू 2 >
1 फिर एक दिन ख़ुदा के बेटे आए कि ख़ुदावन्द के सामने हाज़िर हों, और शैतान भी उनके बीच आया कि ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर हो।
factum est autem cum quadam die venissent filii Dei et starent coram Domino venisset quoque Satan inter eos et staret in conspectu eius
2 और ख़ुदावन्द ने शैतान से पूछा, कि “तू कहाँ से आता है?” शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, कि “ज़मीन पर इधर — उधर घूमता फिरता और उसमें सैर करता हुआ आया हूँ।”
ut diceret Dominus ad Satan unde venis qui respondens ait circuivi terram et perambulavi eam
3 ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, “क्या तू ने मेरे बन्दे अय्यूब के हाल पर भी कुछ ग़ौर किया; क्यूँकि ज़मीन पर उसकी तरह कामिल और रास्तबाज़ आदमी जो ख़ुदा से डरता और गुनाह से दूर रहता हो, कोई नहीं और गो तू ने मुझको उभारा कि बे वजह उसे हलाक करूँ, तोभी वह अपनी रास्तबाज़ी पर क़ाईम है?”
et dixit Dominus ad Satan numquid considerasti servum meum Iob quod non sit ei similis in terra vir simplex et rectus timens Deum ac recedens a malo et adhuc retinens innocentiam tu autem commovisti me adversus eum ut adfligerem illum frustra
4 शैतान ने ख़ुदावन्द को जवाब दिया, “कि 'खाल के बदले खाल, बल्कि इंसान अपना सारा माल अपनी जान के लिए दे डालेगा।
cui respondens Satan ait pellem pro pelle et cuncta quae habet homo dabit pro anima sua
5 अब सिर्फ़ अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डी और उसके गोश्त को छू दे, तो वह तेरे मुँह पर तेरी बुराई करेगा।”
alioquin mitte manum tuam et tange os eius et carnem et tunc videbis quod in facie benedicat tibi
6 ख़ुदावन्द ने शैतान से कहा, कि “देख, वह तेरे इख़्तियार में है, सिर्फ़ उसकी जान महफ़ूज़ रहे।”
dixit ergo Dominus ad Satan ecce in manu tua est verumtamen animam illius serva
7 तब शैतान ख़ुदावन्द के सामने से चला गया और अय्यूब को तलवे से चाँद तक दर्दनाक फोड़ों से दुख दिया।
egressus igitur Satan a facie Domini percussit Iob ulcere pessimo a planta pedis usque ad verticem eius
8 और वहअपने को खुजलाने के लिए एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया।
qui testa saniem deradebat sedens in sterquilinio
9 तब उसकी बीवी उससे कहने लगी, कि “क्या तू अब भी अपनी रास्ती पर क़ाईम रहेगा? ख़ुदा की बुराई कर और मर जा।”
dixit autem illi uxor sua adhuc tu permanes in simplicitate tua benedic Deo et morere
10 लेकिन उसने उससे कहा, कि “तू नादान 'औरतों की जैसी बातें करती है; क्या हम ख़ुदा के हाथ से सुख पाएँ और दुख न पाएँ?” इन सब बातों में अय्यूब ने अपने लबों से ख़ता न की।
qui ait ad illam quasi una de stultis locuta es si bona suscepimus de manu Domini quare mala non suscipiamus in omnibus his non peccavit Iob labiis suis
11 जब अय्यूब के तीन दोस्तों, तेमानी इलिफ़ज़ और सूखी बिलदद और नामाती जूफ़र, ने उस सारी आफ़त का हाल जो उस पर आई थीं सुना, तो वह अपनी — अपनी जगह से चले और उन्होंने आपस में 'अहद किया कि जाकर उसके साथ रोएँ और उसे तसल्ली दें।
igitur audientes tres amici Iob omne malum quod accidisset ei venerunt singuli de loco suo Eliphaz Themanites et Baldad Suites et Sophar Naamathites condixerant enim ut pariter venientes visitarent eum et consolarentur
12 और जब उन्होंने दूर से निगाह की और उसे न पहचाना, तो वह चिल्ला — चिल्ला कर रोने लगे और हर एक ने अपना लिबास चाक किया और अपने सिर के ऊपर आसमान की तरफ़ धूल उड़ाई।
cumque levassent procul oculos suos non cognoverunt eum et exclamantes ploraverunt scissisque vestibus sparserunt pulverem super caput suum in caelum
13 और वह सात दिन और सात रात उसके साथ ज़मीन पर बेठे रहे और किसी ने उससे एक बात न कही क्यूँकि उन्होंने देखा कि उसका ग़म बहुत बड़ा।
et sederunt cum eo in terram septem diebus et septem noctibus et nemo loquebatur ei verbum videbant enim dolorem esse vehementem