< अय्यू 19 >
Und Hiob antwortete und sprach:
2 तुम कब तक मेरी जान खाते रहोगे, और बातों से मुझे चूर — चूर करोगे?
Wie lange wollt ihr meine Seele plagen und mich mit Worten zermalmen?
3 अब दस बार तुम ने मुझे मलामत ही की; तुम्हें शर्म नहीं आती की तुम मेरे साथ सख़्ती से पेश आते हो।
Schon zehnmal ist es, daß ihr mich geschmäht habt; ihr schämet euch nicht, mich zu verletzen.
4 और माना कि मुझ से ख़ता हुई; मेरी ख़ता मेरी ही है।
Und habe ich auch wirklich geirrt, so bleibt doch mein Irrtum bei mir.
5 अगर तुम मेरे सामने में अपनी बड़ाई करते हो, और मेरे नंग को मेरे ख़िलाफ़ पेश करते हो;
Wenn ihr wirklich wider mich großtun wollt, und wider mich dartun meine Schmach,
6 तो जान लो कि ख़ुदा ने मुझे पस्त किया, और अपने जाल से मुझे घेर लिया है।
so wisset denn, daß Gott mich in meinem Rechte gebeugt und mich umstellt hat mit seinem Netze.
7 देखो, मैं जु़ल्म जु़ल्म पुकारता हूँ, लेकिन मेरी सुनी नहीं जाती। मैं मदद के लिए दुहाई देता हूँ, लेकिन कोई इन्साफ़ नहीं होता।
Siehe, ich schreie über Gewalttat, und werde nicht erhört; ich rufe um Hilfe, und da ist kein Recht.
8 उसने मेरा रास्ता ऐसा शख़्त कर दिया है, कि मैं गुज़र नहीं सकता। उसने मेरी राहों पर तारीकी को बिठा दिया है।
Er hat meinen Weg verzäunt, daß ich nicht hinüber kann, und auf meine Pfade legte er Finsternis.
9 उसने मेरी हशमत मुझ से छीन ली, और मेरे सिर पर से ताज उतार लिया।
Meine Ehre hat er mir ausgezogen, und weggenommen die Krone meines Hauptes.
10 उसने मुझे हर तरफ़ से तोड़कर नीचे गिरा दिया, बस मैं तो हो लिया, और मेरी उम्मीद को उसने पेड़ की तरह उखाड़ डाला है।
Er hat mich niedergerissen ringsum, so daß ich vergehe, und hat meine Hoffnung ausgerissen wie einen Baum.
11 उसने अपने ग़ज़ब को भी मेरे ख़िलाफ़ भड़काया है, और वह मुझे अपने मुख़ालिफ़ों में शुमार करता है।
Und seinen Zorn ließ er wider mich entbrennen, und achtete mich seinen Feinden gleich.
12 उसकी फ़ौजें इकट्ठी होकर आती और मेरे ख़िलाफ़ अपनी राह तैयार करती और मेरे ख़ेमे के चारों तरफ़ ख़ेमा ज़न होती हैं।
Allzumal kamen seine Scharen und bahnten ihren Weg wider mich, und lagerten sich rings um mein Zelt.
13 उसने मेरे भाइयों को मुझ से दूर कर दिया है, और मेरे जान पहचान मुझ से बेगाना हो गए हैं।
Meine Brüder hat er von mir entfernt, und meine Bekannten sind mir ganz entfremdet.
14 मेरे रिश्तेदार काम न आए, और मेरे दिली दोस्त मुझे भूल गए हैं।
Meine Verwandten bleiben aus, und meine Vertrauten haben mich vergessen.
15 मैं अपने घर के रहनेवालों और अपनी लौंडियों की नज़र में अजनबी हूँ। मैं उनकी निगाह में परदेसी हो गया हूँ।
Meine Hausgenossen und meine Mägde achten mich für einen Fremden; ein Ausländer bin ich in ihren Augen geworden.
16 मैं अपने नौकर को बुलाता हूँ और वह मुझे जवाब नहीं देता, अगरचे मैं अपने मुँह से उसकी मिन्नत करता हूँ।
Meinem Knechte rufe ich, und er antwortet nicht; mit meinem Munde muß ich zu ihm flehen.
17 मेरी साँस मेरी बीवी के लिए मकरूह है, और मेरी मित्रत मेरी माँ की औलाद “के लिए।
Mein Atem ist meinem Weibe zuwider, und mein übler Geruch den Kindern meiner Mutter.
18 छोटे बच्चे भी मुझे हक़ीर जानते हैं; जब मैं खड़ा होता हूँ तो वह मुझ पर आवाज़ कसते हैं।
Selbst Buben verachten mich; will ich aufstehen, so reden sie über mich.
19 मेरे सब हमराज़ दोस्त मुझ से नफ़रत करते हैं और जिनसे मैं मुहब्बत करता था वह मेरे ख़िलाफ़ हो गए हैं।
Alle meine Vertrauten verabscheuen mich, und die ich liebte, haben sich gegen mich gekehrt.
20 मेरी खाल और मेरा गोश्त मेरी हड्डियों से चिमट गए हैं, और मैं बाल बाल बच निकला हूँ।
Mein Gebein klebt an meiner Haut und an meinem Fleische, und nur mit der Haut meiner Zähne bin ich entronnen.
21 ऐ मेरे दोस्तो! मुझ पर तरस खाओ, तरस खाओ, क्यूँकि ख़ुदा का हाथ मुझ पर भारी है!
Erbarmet euch meiner, erbarmet euch meiner, ihr meine Freunde! Denn die Hand Gottes hat mich angetastet.
22 तुम क्यूँ ख़ुदा की तरह मुझे सताते हो? और मेरे गोश्त पर कना'अत नहीं करते?
Warum verfolget ihr mich wie Gott, und werdet meines Fleisches nicht satt?
23 काश कि मेरी बातें अब लिख ली जातीं, काश कि वह किसी किताब में लिखी होतीं;
O daß doch meine Worte aufgeschrieben würden! O daß sie in ein Buch gezeichnet würden,
24 काश कि वह लोहे के क़लम और सीसे से, हमेशा के लिए चट्टान पर खोद दी जातीं।
mit eisernem Griffel und Blei in den Felsen eingehauen auf ewig!
25 लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरा छुड़ाने वाला ज़िन्दा है। और आ़खिर कार ज़मीन पर खड़ा होगा।
Und ich, ich weiß, daß mein Erlöser lebt, und als der Letzte wird er auf der Erde stehen;
26 और अपनी खाल के इस तरह बर्बाद हो जाने के बाद भी, मैं अपने इस जिस्म में से ख़ुदा को देखूँगा।
und ist nach meiner Haut dieses da zerstört, so werde ich aus meinem Fleische Gott anschauen,
27 जिसे मैं खुद देखूँगा, और मेरी ही आँखें देखेंगी न कि ग़ैर की; मेरे गुर्दे मेरे अंदर ही फ़ना हो गए हैं।
welchen ich selbst mir anschauen, und den meine Augen sehen werden, und kein anderer: meine Nieren verschmachten in meinem Innern. -
28 अगर तुम कहो हम उसे कैसा — कैसा सताएँगे; हालाँकि असली बात मुझ में पाई गई है।
Wenn ihr saget: Wie wollen wir ihn verfolgen? und daß die Wurzel der Sache in mir sich befinde,
29 तो तुम तलवार से डरो, क्यूँकि क़हर तलवार की सज़ाओं को लाता है ताकि तुम जान लो कि इन्साफ़ होगा।”
so fürchtet euch vor dem Schwerte! Denn das Schwert ist der Grimm über die Missetaten; auf daß ihr wisset, daß ein Gericht ist.