< अय्यू 13 >
1 “मेरी आँख ने तो यह सब कुछ देखा है, मेरे कान ने यह सुना और समझ भी लिया है।
ἰδοὺ ταῦτα ἑώρακέν μου ὁ ὀφθαλμὸς καὶ ἀκήκοέν μου τὸ οὖς
2 जो कुछ तुम जानते हो उसे मैं भी जानता हूँ, मैं तुम से कम नहीं।
καὶ οἶδα ὅσα καὶ ὑμεῖς ἐπίστασθε καὶ οὐκ ἀσυνετώτερός εἰμι ὑμῶν
3 मैं तो क़ादिर — ए — मुतलक़ से गुफ़्तगू करना चाहता हूँ, मेरी आरज़ू है कि ख़ुदा के साथ बहस करूँ
οὐ μὴν δὲ ἀλλ’ ἐγὼ πρὸς κύριον λαλήσω ἐλέγξω δὲ ἐναντίον αὐτοῦ ἐὰν βούληται
4 लेकिन तुम लोग तो झूटी बातों के गढ़ने वाले हो; तुम सब के सब निकम्मे हकीम हो।
ὑμεῖς δέ ἐστε ἰατροὶ ἄδικοι καὶ ἰαταὶ κακῶν πάντες
5 काश तुम बिल्कुल ख़ामोश हो जाते, यही तुम्हारी 'अक़्लमन्दी होती।
εἴη δὲ ὑμῖν κωφεῦσαι καὶ ἀποβήσεται ὑμῖν εἰς σοφίαν
6 अब मेरी दलील सुनो, और मेरे मुँह के दा'वे पर कान लगाओ।
ἀκούσατε ἔλεγχον στόματός μου κρίσιν δὲ χειλέων μου προσέχετε
7 क्या तुम ख़ुदा के हक़ में नारास्ती से बातें करोगे, और उसके हक़ में धोके से बोलोगे?
πότερον οὐκ ἔναντι κυρίου λαλεῖτε ἔναντι δὲ αὐτοῦ φθέγγεσθε δόλον
8 क्या तुम उसकी तरफ़दारी करोगे? क्या तुम ख़ुदा की तरफ़ से झगड़ोगे?
ἦ ὑποστελεῖσθε ὑμεῖς δὲ αὐτοὶ κριταὶ γένεσθε
9 क्या यह अच्छ होगा कि वह तुम्हारा जाएज़ा करें? क्या तुम उसे धोका दोगे जैसे आदमी को?
καλόν γε ἐὰν ἐξιχνιάσῃ ὑμᾶς εἰ γὰρ τὰ πάντα ποιοῦντες προστεθήσεσθε αὐτῷ
10 वह ज़रूर तुम्हें मलामत करेगा जो तुम ख़ुफ़िया तरफ़दारी करो,
οὐθὲν ἧττον ἐλέγξει ὑμᾶς εἰ δὲ καὶ κρυφῇ πρόσωπα θαυμάσετε
11 क्या उसका जलाल तुम्हें डरा न देगा, और उसका रौ'ब तुम पर छा न जाएगा?
πότερον οὐχὶ δεινὰ αὐτοῦ στροβήσει ὑμᾶς φόβος δὲ παρ’ αὐτοῦ ἐπιπεσεῖται ὑμῖν
12 तुम्हारी छुपी बातें राख की कहावतें हैं, तुम्हारी दीवारें मिटटी की दीवारें हैं।
ἀποβήσεται δὲ ὑμῶν τὸ ἀγαυρίαμα ἴσα σποδῷ τὸ δὲ σῶμα πήλινον
13 तुम चुप रहो, मुझे छोड़ो ताकि मैं बोल सकूँ, और फिर मुझ पर जो बीते सो बीते।
κωφεύσατε ἵνα λαλήσω καὶ ἀναπαύσωμαι θυμοῦ
14 मैं अपना ही गोश्त अपने दाँतों से क्यूँ चबाऊँ; और अपनी जान अपनी हथेली पर क्यूँ रख्खूँ?
ἀναλαβὼν τὰς σάρκας μου τοῖς ὀδοῦσιν ψυχὴν δέ μου θήσω ἐν χειρί
15 देखो, वह मुझे क़त्ल करेगा, मैं इन्तिज़ार नहीं करूँगा। बहर हाल मैं अपनी राहों की ता'ईद उसके सामने करूँगा।
ἐάν με χειρώσηται ὁ δυνάστης ἐπεὶ καὶ ἦρκται ἦ μὴν λαλήσω καὶ ἐλέγξω ἐναντίον αὐτοῦ
16 यह भी मेरी नजात के ज़रिए' होगा, क्यूँकि कोई बेख़ुदा उसके बराबर आ नहीं सकता।
καὶ τοῦτό μοι ἀποβήσεται εἰς σωτηρίαν οὐ γὰρ ἐναντίον αὐτοῦ δόλος εἰσελεύσεται
17 मेरी तक़रीर को ग़ौर से सुनो, और मेरा बयान तुम्हारे कानों में पड़े।
ἀκούσατε ἀκούσατε τὰ ῥήματά μου ἀναγγελῶ γὰρ ὑμῶν ἀκουόντων
18 देखो, मैंने अपना दा'वा दुरुस्त कर लिया है; मैं जानता हूँ कि मैं सच्चा हूँ।
ἰδοὺ ἐγὼ ἐγγύς εἰμι τοῦ κρίματός μου οἶδα ἐγὼ ὅτι δίκαιος ἀναφανοῦμαι
19 कौन है जो मेरे साथ झगड़ेगा? क्यूँकि फिर तो मैं चुप हो कर अपनी जान दे दूँगा।
τίς γάρ ἐστιν ὁ κριθησόμενός μοι ὅτι νῦν κωφεύσω καὶ ἐκλείψω
20 सिर्फ़ दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छि पू गा:
δυεῖν δέ μοι χρήσῃ τότε ἀπὸ τοῦ προσώπου σου οὐ κρυβήσομαι
21 अपना हाथ मुझ से दूर हटाले, और तेरी हैबत मुझे ख़ौफ़ ज़दा न करे।
τὴν χεῖρα ἀπ’ ἐμοῦ ἀπέχου καὶ ὁ φόβος σου μή με καταπλησσέτω
22 तब तेरे बुलाने पर मैं जवाब दूँगा; या मैं बोलूँ और तू मुझे जवाब दे।
εἶτα καλέσεις ἐγὼ δέ σοι ὑπακούσομαι ἢ λαλήσεις ἐγὼ δέ σοι δώσω ἀνταπόκρισιν
23 मेरी बदकारियाँ और गुनाह कितने हैं? ऐसा कर कि मैं अपनी ख़ता और गुनाह को जान लूँ।
πόσαι εἰσὶν αἱ ἁμαρτίαι μου καὶ αἱ ἀνομίαι μου δίδαξόν με τίνες εἰσίν
24 तू अपना मुँह क्यूँ छिपाता है, और मुझे अपना दुश्मन क्यूँ जानता है?
διὰ τί ἀπ’ ἐμοῦ κρύπτῃ ἥγησαι δέ με ὑπεναντίον σοι
25 क्या तू उड़ते पत्ते को परेशान करेगा? क्या तू सूखे डंठल के पीछे पड़ेगा?
ἦ ὡς φύλλον κινούμενον ὑπὸ ἀνέμου εὐλαβηθήσῃ ἢ ὡς χόρτῳ φερομένῳ ὑπὸ πνεύματος ἀντίκεισαί μοι
26 क्यूँकि तू मेरे ख़िलाफ़ तल्ख़ बातें लिखता है, और मेरी जवानी की बदकारियाँ मुझ पर वापस लाता है।”
ὅτι κατέγραψας κατ’ ἐμοῦ κακά περιέθηκας δέ μοι νεότητος ἁμαρτίας
27 तू मेरे पाँव काठ में ठोंकता, और मेरी सब राहों की निगरानी करता है; और मेरे पाँव के चारों तरफ़ बाँध खींचता है।
ἔθου δέ μου τὸν πόδα ἐν κωλύματι ἐφύλαξας δέ μου πάντα τὰ ἔργα εἰς δὲ ῥίζας τῶν ποδῶν μου ἀφίκου
28 अगरचे मैं सड़ी हुई चीज़ की तरह हूँ, जो फ़ना हो जाती है। या उस कपड़े की तरह हूँ जिसे कीड़े ने खा लिया हो।
ὃ παλαιοῦται ἴσα ἀσκῷ ἢ ὥσπερ ἱμάτιον σητόβρωτον