< यसा 27 >

1 उस वक़्त ख़ुदावन्द अपनी सख़्त और बड़ी और मज़बूत तलवार से अज़दहा या'नी तेज़रू साँप को और अज़दह या'नी पेचीदा साँप को सज़ा देगा; और दरियाई अज़दहे को क़त्ल करेगा।
On that day will the Lord punish with his heavy and great and strong sword leviathan the flying serpent, and leviathan the crooked servant; and he will slay the crocodile that is in the sea.
2 उस वक़्त तुम ख़ुशनुमा ताकिस्तान का गीत गाना।
On that day sing ye a song of the vineyard of excellent wine.
3 मैं ख़ुदावन्द उसकी हिफ़ाज़त करता हूँ, मैं उसे हर दम सींचता रहूँगा। मैं दिन रात उसकी निगहबानी करूँगा कि उसे नुक़्सान न पहुँचे।
“I the Lord do keep it; every moment will I water it: that no one shall hurt it, night and day will I keep it.
4 मुझ में क़हर नहीं; तोभी काश के जंगगाह में झाड़ियाँ और काँटे मेरे ख़िलाफ़ होते, मैं उन पर ख़ुरूज करता और उनको बिल्कुल जला देता।
Wrath have I not: who would set the briers and thorns against me in battle? I would pass through them, and I would burn them altogether.
5 लेकिन अगर कोई मेरी ताक़त का दामन पकड़े तो मुझ से सुलह करे; हाँ वह मुझ से सुलह करे।
If he but take hold of my strength, make peace with me; make peace with me.”
6 अब आइन्दा दिनों में या'क़ूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राईल पनपेगा और फूलेगा और इस ज़मीन को मेवों से मालामाल करेगा।
In the future shall Jacob yet take root; Israel shall bud and blossom, and shall fill the face of the world with fruit.
7 क्या उसने उसे मारा, जिस तरह उसने उसके मारनेवालों को मारा है? या क्या वह क़त्ल हुआ, जिस तरह उसके क़ातिल क़त्ल हुए?
Hath he smitten him, as he smote the one that smote him? or was he slain with the same slaughter as those of him that were slain?
8 तूने इन्साफ़ के साथ उसको निकालते वक़्त उससे हुज्जत की; उसने पूरबी हवा के दिन अपने सख़्त तूफ़ान से उसको निकाल दिया।
In measure, by driving him forth, thou strivest with him: he removed him with his violent storm on the day of the east wind.
9 इसलिए इससे या'क़ूब के गुनाह का कफ़्फ़ारा होगा और उसका गुनाह दूर करने का कुल नतीजा यही है; जिस वक़्त वह मज़बह के सब पत्थरों को टूटे कंकरों की तरह टुकड़े — टुकड़े करे कि यसीरतें और सूरज के बुत फिर क़ाईम न हों।
Therefore by this [only] shall the iniquity of Jacob be atoned; and this shall be all the fruit of the taking away of his sin; when he maketh all the stones of the altar as limestones that are beaten in pieces, when there shall not arise again any groves and sun-images.
10 क्यूँकि फ़सीलदार शहर वीरान है, और वह बस्ती उजाड़ और वीरान की तरह ख़ाली है; वहाँ बछड़ा चरेगा और वहीं लेट रहेगा और उसकी डालियाँ बिलकुल काट खायेगा।
For [by this] the fortified city shall be desolate, the habitation be forsaken, and left like a wilderness; there shall the calf feed, and there shall it lie down, and consume its branches.
11 जब उसकी शाख़े मुरझा जायेंगी तो तोड़ी जायेंगी 'औरतें आयेंगी और उनको जलाएँगी; क्यूँकि लोग अक़्ल से ख़ाली हैं, इसलिए उनका ख़ालिक़ उन पर रहम नहीं करेगा और उनका बनाने वाला उन पर तरस नहीं खाएगा।
When its boughs are withered, they shall be broken off; women will come and set them on fire; for it is not a people of understanding; therefore he that made it will not have mercy on it, and he that formed it will show it no favor.
12 और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द दरया — ए — फ़रात की गुज़रगाह से रूद — ए — मिस्र तक झाड़ डालेगा; और तुम ऐ बनी इस्राईल एक एक करके जमा' किए जाओगे।
And it shall come to pass on that day, that the Lord will beat off [the fruit] from the channel of the River up to the brook of Egypt; but ye shall be gathered up one by one, ye children of Israel.
13 और उस वक़्त यूँ होगा कि बड़ा नरसिंगा फूँका जाएगा, और वह जो असूर के मुल्क में क़रीब — उल — मौत थे, और वह जो मुल्क — ए — मिस्र में जिला वतन थे आएँगें और येरूशलेम के मुक़द्दस पहाड़ पर ख़ुदावन्द की इबादत करेंगे।
And it shall come to pass on that day, that the great cornet shall be blown, and then shall come those who are lost in the land of Asshur, and those who are outcasts in the land of Egypt, and they shall prostrate themselves before the Lord on the holy mount at Jerusalem.

< यसा 27 >