< यसा 16 >

1 सिला' से वीराने की राह दुख़्तर — ए — सिय्यून के पहाड़ पर मुल्क के हाकिम के पास बर्रे भेजो।
أَيُّهَا الْهَارِبُونَ مِنْ مُوآبَ إِلَى سَالِعَ فِي الصَّحْرَاءِ، أَرْسِلُوا حُمْلاناً إِلَى مَلِكِ يَهُوذَا فِي أُورُشَلِيمَ (طَلَباً لِلْحِمَايَةِ قَائِلِينَ):١
2 क्यूँकि अरनून के घाटों पर मोआब की बेटियाँ, आवारा परिन्दों और उनके तितर बितर बच्चों की तरह होंगी।
نِسَاءُ مُوآبَ عَلَى ضِفَافِ أَرْنُونَ مِثْلُ الطُّيُورِ التَّائِهَةِ أَوِ الفِرَاخِ الشَّارِدَةِ.٢
3 सलाह दो, इन्साफ़ करो, अपना साया, दोपहर को रात की तरह बनाओ; जिलावतनों को पनाह दो; फ़रारियों को हवाले न करो।
فَانْصَحْنَا، أَنْصِفْنَا، لِيَكُنْ ظِلُّكَ عَلَيْنَا فِي الظَّهِيرَةِ كَاللَّيْلِ فَتَسْتُرَ مَنْفِيِّينَا عَنْ عُيُونِ أَعْدَائِنَا وَلا تَشِي بِاللّاجِئِينَ مِنَّا.٣
4 मेरे जिलावतन तेरे साथ रहें, तू मोआब को ग़ारतगरों से छिपा ले; क्यूँकि सितमगर ख़त्म होंगे और ग़ारतगरी तमाम हो जाएगी और सब ज़ालिम मुल्क से फ़ना होंगे।
لِتَمْكُثْ مَعَكُمْ فُلُولُ الْهَارِبِينَ مِنَّا وَاعْصُمْهُمْ مِنْ مُدَمِّرِهِمْ لأَنَّ البَاغِيَ يَبِيدُ وَالدَّمَارَ يَكُفُّ وَالظَّالِمَ يَفْنَى مِنَ الأَرْضِ.٤
5 यूँ तख़्त रहमत से क़ाईम न होगा, और एक शख़्स रास्ती से दाऊद के ख़ेमे में उस पर जुलूस फ़रमा कर 'अद्ल की पैरवी करेगा, और रास्तबाज़ी पर मुस्त'इद रहेगा।
وَلا يَلْبَثُ أَنْ يَثْبُتَ بالرَّحْمَةِ عَرْشٌ فِي بَيْتِ دَاوُدَ يَجْلِسُ عَلَيْهِ بِأَمَانَةٍ مَلِكٌ يَقْضِي بِالْعَدْلِ وَالإِنْصَافِ.٥
6 हम ने मोआब के घमण्ड के ज़रिए' सुना है कि वह बड़ा घमण्डी है; उसका तकब्बुर और घमण्ड और क़हर भी सुना है, उसकी शेख़ी हेच है।
قَدْ سَمِعْنَا بِكِبْرِيَاءِ مُوآبَ، وَبِعَجْرَفَتِهَا وَغَطْرَسَتِهَا الطَّاغِيَتَيْنِ، وَبِغُرُورِهَا وَصَلَفِهَا، وَلَكِنَّ كُلَّ افْتِخَارِهَا بَاطِلٌ.٦
7 इसलिए मोआब वावैला करेगा, मोआब के लिए हर एक वावैला करेगा; क़ीर हिरासत की किशमिश की टिक्कियों पर तुम सख़्त तबाह हाली में मातम करोगे।
لِذَلِكَ يُوَلْوِلُ الْمُوآبِيُّونَ عَلَى مُوآبَ، وَيَئِنُّونَ عَلَى قِيرَ حَارِسَ الْمُدَمَّرَةِ.٧
8 क्यूँकि हस्बोन के खेत सूख गए, क़ौमों के सरदारों ने सिबमाह की ताक की बहतरीन शाख़ों को तोड़ डाला; वह या'ज़ेर तक बढ़ीं, वह जंगल में भी फैलीं; उसकी शाख़ें दूर तक फैल गईं, वह दरिया पार गुज़री।
ذَبُلَتْ حُقُولُ حَشْبُونَ وَكُرُومُ سِبْمَةَ الَّتِي أَتْلَفَ أُمَرَاءُ الأُمَمِ أَفْضَلَهَا، الَّتِي وَصَلَتْ يَوْماً إِلَى يَعْزِيرَ، وَامْتَدَّتْ إِلَى الْقَفْرِ وَبَلَغَتْ فُرُوعُهَا إِلَى الصَّحْرَاءِ.٨
9 फिर मैं या'ज़ेर के आह — ओ — नाले से सिबमाह की ताक के लिए ज़ारी करूँगा ऐ हस्बून ऐ इली'आली मैं तुझे अपने आँसुओं से तर कर दूँगा, क्यूँकि तेरे दिनों गर्मीं के मेवों और ग़ल्ले की फ़सल को ग़ोग़ा — ए — जंग ने आ लिया;
لِذَلِكَ أَبْكِي كَبُكَاءِ يَعْزِيرَ عَلَى كُرُومِ سِبْمَةَ وَأُرْوِيكُمَا بِدُمُوعِي يَا حَشْبُونُ وَيَا أَلْعَالَةُ. لأَنَّ جَلَبَةَ الدَّمَارِ قَدْ وَقَعَتْ عَلَى حَصَادِكِ وَقِطَافِكِ.٩
10 और शादमानी छीन ली गई और हरे भरे खेतों की ख़ुशी जाती रही; और ताकिस्तानों में गाना और ललकारना बन्द हो जाएगा; पामाल करनेवाले अंगूरों को फिर हौज़ों में पामाल न करेंगे; मैंने अंगूर की फ़सल के ग़ल्ले को ख़त्म कर दिया।
وَانْتُزِعَ الْفَرَحُ وَالابْتِهَاجُ مِنْ رَوْضَتِكِ، فَلَمْ يَبْقَ أَحَدٌ يُرَنِّمُ أَوْ يَهْتِفُ فِي كُرُومِكِ، وَلا يُوْجَدُ مَنْ يَدُوسُ الْخَمْرَ فِي مِعْصَرَتِكِ، لأَنِّي قَدْ أَخْرَسْتُ الْهُتَافَ.١٠
11 इसलिए मेरा अन्दरून मोआब पर और मेरा दिल कीर हारस पर बरबत की तरह फ़ुग़ा खेज़ है।
لِهَذَا تَئِنُّ رُوحِي عَلَى مُوآبَ كَعُودٍ، وَأَحْشَائِي تَتَلَوَّى عَلَى قِيرَ حَارِسَ.١١
12 और यूँ होगा कि जब मोआब हाज़िर हो और ऊँचे मक़ाम पर अपने आपको थकाए बल्कि अपने मा'बद में जाकर दुआ करे, उसे कुछ फ़ायदा न होगा।
وَعِنْدَمَا يَحْضُرُ الْمُوآبِيُّونَ إِلَى الْمُرْتَفَعَاتِ الْمُشْرِفَةِ، يَأْخُذُهُمُ الإِعْيَاءُ، وَعِنْدَمَا يَذْهَبُونَ إِلَى مَقَادِسِهِمْ لِيُصَلُّوا، يَجْنُونَ الْبَاطِلَ.١٢
13 यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द ने मोआब के हक़ में पिछले ज़माने में फ़रमाया था
هَذَا مَا تَكَلَّمَ الرَّبُّ بِهِ عَلَى مُوآبَ مُنْذُ زَمَنٍ.١٣
14 लेकिन अब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तीन बरस के अन्दर जो मज़दूरों के बरसों की तरह हों, मोआब की शौकत उसके तमाम लश्करों के साथ हक़ीर हो जाएगी; और बहुत थोड़े बाक़ी बचेंगे, और वह किसी हिसाब में न होंगे।
وَهَا هُوَ يَتَكَلَّمُ الآنَ قَائِلاً: «فِي غُضُونِ ثَلاثِ سَنَوَاتٍ، كَسَنَواتِ الأَجِيرِ، يُذَلُّ مَجْدُ مُوآبَ، وَيُحْتَقَرُ جَمِيعُ شَعْبِهَا، وَالنَّاجُونَ مِنْهُمْ يَكُونُونَ قِلَّةً ضَعِيفَةً».١٤

< यसा 16 >