< इब्रानियों 4 >
1 पस जब उसके आराम में दाख़िल होने का वादा बाक़ी है तो हमें डरना चाहिए ऐसा न हो कि तुम में से कोई रहा हुआ मालूम हो
Let us fear therefore, lest perhaps anyone of you should seem to have come short of a promise of entering into his rest.
2 क्यूँकि हमें भी उन ही की तरह ख़ुशख़बरी सुनाई गई, लेकिन सुने हुए कलाम ने उनको इसलिए कुछ फ़ाइदा न दिया कि सुनने वालों के दिलों में ईमान के साथ न बैठा।
For indeed we have had good news preached to us, even as they also did, but the word they heard did not profit them, because they were not united by faith with those who heard.
3 और हम जो ईमान लाए, उस आराम में दाख़िल होते है; जिस तरह उसने कहा, “मैंने अपने ग़ुस्से में क़सम खाई कि ये मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे।” अगरचे दुनिया बनाने के वक़्त उसके काम हो चुके थे।
For we who have believed do enter into that rest, even as he has said, "As I swore in my wrath, they will not enter into my rest;" although the works were finished from the foundation of the world.
4 चुनाँचे उसने सातवें दिन के बारे में कलाम में इस तरह कहा, “ख़ुदा ने अपने सब कामों को पूरा करके, सातवें दिन आराम किया।”
For he has said this somewhere about the seventh day, "And God rested on the seventh day from all his works;"
5 और फिर इस मुक़ाम पर है, “वो मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे।”
and in this place again, "They will not enter into my rest."
6 पस जब ये बात बाक़ी है कि कुछ उस आराम में दाख़िल हों, और जिनको पहले ख़ुशख़बरी सुनाई गई थी वो नाफ़रमानी की वजह से दाख़िल न हुए,
Since therefore it remains for some to enter it, and they to whom the good news was before preached failed to enter in because of disobedience,
7 तो फिर एक ख़ास दिन ठहर कर इतनी मुद्दत के बाद दा'ऊद की किताब में उसे आज का दिन कहता है। जैसा पहले कहा गया, “और आज तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपने दिलों को सख़्त न करो।”
he again appoints a certain day, "Today," saying through David so long a time afterward (just as has been said), "Today if you will hear his voice, do not harden your hearts."
8 और अगर ईसा ने उन्हें आराम में दाख़िल किया होता, तो वो उसके बाद दुसरे दिन का ज़िक्र न करता।
For if Joshua had given them rest, he would not have spoken afterward of another day.
9 पस ख़ुदा की उम्मत के लिए सबत का आराम बाक़ी है'
There remains therefore a Sabbath rest for the people of God.
10 क्यूँकि जो उसके आराम में दाख़िल हुआ, उसने भी ख़ुदा की तरह अपने कामों को पूरा करके आराम किया।
For he who has entered into his rest has himself also rested from his works, as God did from his.
11 पस आओ, हम उस आराम में दाख़िल होने की कोशिश करें, ताकि उनकी तरह नाफ़रमानी कर के कोई शख़्स गिर न पड़े।
Let us therefore give diligence to enter into that rest, lest anyone fall after the same example of disobedience.
12 क्यूँकि ख़ुदा का कलाम ज़िन्दा, और असरदार, और हर एक दोधारी तलवार से ज़्यादा तेज़ है; और जान और रूह और बन्द, बन्द और गूदे को जुदा करके गुज़र जाता है, और दिल के ख़यालों और इरादों को जाँचता है।
For the word of God is living, and active, and sharper than any two-edged sword, and piercing even to the dividing of soul and spirit, of both joints and marrow, and is able to discern the thoughts and intentions of the heart.
13 और ख़ुदा की नज़र में मख़्लूक़ात की कोई चीज़ छिपी नहीं, बल्कि जिससे हम को काम है उसकी नज़रों में सब चीज़ें खुली और बेपर्दा हैं।
There is no creature that is hidden from his sight, but all things are naked and laid open before the eyes of him with whom we have to do.
14 पस जब हमारा एक ऐसा बड़ा सरदार काहिन है जो आसमानों से गुज़र गया, या'नी ख़ुदा का बेटा ईसा, तो आओ हम अपने इक़रार पर क़ाईम रहें।
Having then a great cohen hagadol, who has passed through the heavens, Yeshua, the Son of God, let us hold tightly to our confession.
15 क्यूँकि हमारा ऐसा सरदार काहिन नहीं जो हमारी कमज़ोरियों में हमारा हमदर्द न हो सके; बल्कि वो सब बातों में हमारी तरह आज़माया गया, तोभी बेगुनाह रहा।
For we do not have a cohen hagadol who cannot be touched with the feeling of our infirmities, but one who has been in all points tempted like we are, yet without sin.
16 पस आओ, हम फ़ज़ल के तख़्त के पास दिलेरी से चलें, ताकि हम पर रहम हो और फ़ज़ल हासिल करें जो ज़रूरत के वक़्त हमारी मदद करे।
Let us therefore draw near with boldness to the throne of grace, that we may receive mercy, and may find grace for help in time of need.