< पैदाइश 27 >
1 जब इस्हाक़ ज़ईफ़ हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुन्धला गई कि उसे दिखाई न देता था तो उसने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ को बुलाया और कहा, ऐ मेरे बेटे! “उसने कहा, मैं हाज़िर हूँ।”
Als aber Isaak alt geworden und sein Augenlicht erloschen war, so daß er nicht mehr sehen konnte, berief er seinen älteren Sohn Esau und sagte zu ihm: »Mein Sohn!« Er antwortete ihm: »Hier bin ich!«
2 तब उसने कहा, देख! मैं तो ज़ईफ़ हो गया और मुझे अपनी मौत का दिन मा'लूम नहीं।
Jener fuhr fort: »Du siehst, ich bin alt geworden und weiß nicht, wie bald ich sterben werde.
3 इसलिए अब तू ज़रा अपना हथियार, अपना तरकश और अपनी कमान लेकर जंगल को निकल जा और मेरे लिए शिकार मार ला।
So nimm nun doch deine Jagdgeräte, deinen Köcher und Bogen, und gehe aufs Feld hinaus und erjage ein Stück Wild für mich;
4 और मेरी हस्ब — ए पसन्द लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार करके मेरे आगे ले आ, ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले दिल से तुझे दुआ दूँ।
dann bereite mir ein schmackhaftes Gericht, wie ich es liebe, und bringe es mir herein, damit ich esse und dich dann segne, bevor ich sterbe.«
5 और जब इस्हाक़ अपने बेटे 'ऐसौ से बातें कर रहा था तो रिब्क़ा सुन रही थी, और 'ऐसौ जंगल को निकल गया कि शिकार मार कर लाए।
Rebekka hatte aber zugehört, als Isaak so zu seinem Sohne Esau redete. Während nun Esau aufs Feld hinausging, um ein Stück Wild zu erjagen und heimzubringen,
6 तब रिब्क़ा ने अपने बेटे या'क़ूब से कहा, कि देख, मैंने तेरे बाप को तेरे भाई 'ऐसौ से यह कहते सुना कि।
sagte Rebekka zu ihrem Sohne Jakob: »Ich habe soeben gehört, wie dein Vater mit deinem Bruder Esau geredet hat und zu ihm sagte:
7 'मेरे लिए शिकार मार कर लज़ीज़ खाना मेरे लिए तैयार कर ताकि मैं खाऊँ और अपने मरने से पहले ख़ुदावन्द के आगे तुझे दुआ दूँ।
›Bringe mir doch ein Stück Wild und bereite mir ein schmackhaftes Gericht, damit ich esse und dich dann vor dem Angesicht des HERRN segne, bevor ich sterbe.‹
8 इसलिए ऐ मेरे बेटे, इस हुक़्म के मुताबिक़ जो मैं तुझे देती हूँ मेरी बात को मान।
So höre nun, mein Sohn, auf den Rat, den ich dir jetzt gebe!
9 और जाकर रेवड़ में से बकरी के दो अच्छे — अच्छे बच्चे मुझे ला दे, और मैं उनको लेकर तेरे बाप के लिए उसकी हस्ब — ए — पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार कर दूँगी।
Gehe hin zur Herde und hole mir von dort zwei gute Ziegenböckchen; die will ich dann für deinen Vater zu einem schmackhaften Gericht zubereiten, wie er es liebt;
10 और तू उसे अपने बाप के आगे ले जाना, ताकि वह खाए और अपने मरने से पहले तुझे दुआ दे।
das bringst du dann deinem Vater hinein, damit er es ißt und dich dann noch vor seinem Tode segnet.«
11 तब या'क़ूब ने अपनी माँ रिब्क़ा से कहा, “देख, मेरे भाई 'ऐसौ के जिस्म पर बाल हैं और मेरा जिस्म साफ़ है।
Da erwiderte Jakob seiner Mutter Rebekka: »Ja, aber mein Bruder Esau ist stark behaart, während ich eine glatte Haut habe.
12 शायद मेरा बाप मुझे टटोले, तो मैं उसकी नज़र में दग़ाबाज़ ठहरूंगा; और बरकत नहीं बल्कि ला'नत कमाऊँगा।”
Vielleicht wird mein Vater mich betasten: dann würde ich als Betrüger vor ihm dastehen und einen Fluch statt des Segens über mich bringen.«
13 उसकी माँ ने उसे कहा, “ऐ मेरे बेटे! तेरी ला'नत मुझ पर आए; तू सिर्फ़ मेरी बात मान और जाकर वह बच्चे मुझे ला दे।”
Aber seine Mutter antwortete ihm: »Den Fluch, der dich treffen könnte, nehme ich auf mich, mein Sohn! Folge du nur meinem Rat: geh hin und hole mir die Böckchen!«
14 तब वह गया और उनको लाकर अपनी माँ को दिया, और उसकी माँ ने उसके बाप की हस्ब — ए — पसन्द लज़ीज़ खाना तैयार किया।
Da ging er hin, holte die Böckchen und brachte sie seiner Mutter; und diese bereitete davon ein schmackhaftes Gericht, wie sein Vater es liebte.
15 और रिब्क़ा ने अपने बड़े बेटे 'ऐसौ के नफ़ीस लिबास, जो उसके पास घर में थे लेकर उनकी अपने छोटे बेटे या'क़ूब को पहनाया।
Hierauf holte Rebekka die Festtagskleider ihres älteren Sohnes Esau, die sich bei ihr in der Wohnung befanden, und gab sie ihrem jüngeren Sohne Jakob zum Anziehen;
16 और बकरी के बच्चों की खालें उसके हाथो और उसकी गर्दन पर जहाँ बाल न थे लपेट दीं।
die Felle der Ziegenböckchen aber legte sie ihm um die Arme und um die glatten Stellen seines Halses;
17 और वह लज़ीज़ खाना और रोटी जो उसने तैयार की थी, अपने बेटे या'क़ूब के हाथ में दे दी।
dann gab sie das schmackhafte Essen nebst dem Brot, das sie gebacken hatte, ihrem Sohne Jakob in die Hand.
18 तब उसने बाप के पास आ कर कहा, ऐ मेरे बाप! “उसने कहा, मैं हाज़िर हूँ, तू कौन है मेरे बेटे?”
So ging er denn zu seinem Vater hinein und sagte: »Mein Vater!« Dieser antwortete: »Hier bin ich! Wer bist du, mein Sohn?«
19 या'क़ूब ने अपने बाप से कहा, “मैं तेरा पहलौठा बेटा 'ऐसौ हूँ। मैंने तेरे कहने के मुताबिक़ किया है; इसलिए ज़रा उठ और बैठ कर मेरे शिकार का गोश्त खा, ताकि तू दिल से मुझे दुआ दे।”
Jakob erwiderte seinem Vater: »Ich bin Esau, dein erstgeborener Sohn; ich habe getan, wie du mir aufgetragen hast. Richte dich nun auf, setze dich und iß von meinem Wildbret, damit du mich dann segnest.«
20 तब इस्हाक़ ने अपने बेटे से कहा, “बेटा! तुझे यह इस क़दर जल्द कैसे मिल गया?” उसने कहा, “इसलिए कि ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने मेरा काम बना दिया।”
Da fragte Isaak seinen Sohn: »Wie hast du denn so schnell etwas gefunden, mein Sohn?« Er antwortete: »Ja, der HERR, dein Gott, hat es mir entgegenlaufen lassen.«
21 तब इस्हाक़ ने या'क़ूब से कहा, “ऐ मेरे बेटे, ज़रा नज़दीक आ कि मैं तुझे टटोलूँ कि तू मेरा ही बेटा 'ऐसौ है या नहीं।”
Da sagte Isaak zu Jakob: »Tritt doch näher heran, mein Sohn, damit ich dich betaste, ob du wirklich mein Sohn Esau bist oder nicht!«
22 और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के नज़दीक गया; और उसने उसे टटोलकर कहा, “आवाज़ तो या'क़ूब की है लेकिन हाथ 'ऐसौ के हैं।”
Da trat Jakob nahe an seinen Vater Isaak heran, und als dieser ihn betastet hatte, sagte er: »Die Stimme ist Jakobs Stimme, aber die Arme sind Esaus Arme«;
23 और उसने उसे न पहचाना, इसलिए कि उसके हाथों पर उसके भाई 'ऐसौ के हाथों की तरह बाल थे; इसलिए उसने उसे दुआ दी।
und er erkannte ihn nicht, weil seine Arme behaart waren wie die Arme seines Bruders Esau; so segnete er ihn denn.
24 और उसने पूछा कि क्या तू मेरा बेटा “ऐसौ ही है?” उसने कहा, “मैं वही हूँ।”
Er fragte nämlich: »Du bist doch wirklich mein Sohn Esau?« Jener antwortete: »Ja, ich bin’s.«
25 तब उसने कहा, “खाना मेरे आगे ले आ, और मैं अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाऊँगा, ताकि दिल से तुझे दुआ दूँ।” तब वह उसे उसके नज़दीक ले आया, और उसने खाया; और वह उसके लिए मय लाया और उसने पी।
Da fuhr er fort: »So reiche es mir her, damit ich von dem Wildbret meines Sohnes esse und ich dich dann segne.« Da reichte er es ihm hin, und er aß; er brachte ihm auch Wein, den er trank.
26 फिर उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, “ऐ मेरे बेटे! अब पास आकर मुझे चूम।”
Hierauf sagte sein Vater Isaak zu ihm: »Tritt nun nahe heran, mein Sohn, und küsse mich!«
27 उसने पास जाकर उसे चूमा। तब उसने उसके लिबास की ख़शबू पाई और उसे दुआ दे कर कहा, “देखो! मेरे बेटे की महक उस खेत की महक की तरह है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत दी हो।
Da trat er heran und küßte ihn; dabei roch jener den Geruch seiner Kleider und segnete ihn mit den Worten: »Ja, der Geruch meines Sohnes ist wie der Geruch eines Feldes, das der HERR gesegnet hat.
28 ख़ुदा आसमान की ओस और ज़मीन की फ़र्बही, और बहुत सा अनाज और मय तुझे बख़्शे।
So gebe Gott dir denn vom Tau des Himmels und von den Fruchtgefilden der Erde Überfluß sowohl an Korn als auch an Wein!
29 कौमें तेरी खिदमत करें, और क़बीले तेरे सामने झुकें। तू अपने भाइयों का सरदार हो, और तेरी माँ के बेटे तेरे आगे झुकें, जो तुझ पर ला'नत करे वह खुद ला'नती हो, और जो तुझे दुआ दे वह बरकत पाए।”
Völker sollen dir dienen und Völkerschaften sich vor dir beugen! Sei ein Herr über deine Brüder, und bücken sollen sich vor dir die Söhne deiner Mutter! Wer dir flucht, der sei verflucht, und wer dich segnet, der soll gesegnet sein!«
30 जब इस्हाक़ या'क़ूब को दुआ दे चुका, और या'क़ूब अपने बाप इस्हाक़ के पास से निकला ही था कि उसका भाई 'ऐसौ अपने शिकार से लौटा।
Als nun Isaak mit der Segnung Jakobs eben zu Ende war und Jakob kaum von seinem Vater Isaak hinausgegangen war, da kam sein Bruder Esau von seiner Jagd zurück.
31 वह भी लज़ीज़ खाना पका कर अपने बाप के पास लाया, और उसने अपने बाप से कहा, मेरा बाप उठ कर अपने बेटे के शिकार का गोश्त खाए, ताकि दिल से मुझे दुआ दे।
Er bereitete gleichfalls ein schmackhaftes Gericht, brachte es seinem Vater hinein und sagte zu ihm: »Richte dich auf, mein Vater, und iß vom Wildbret deines Sohnes, damit du mich dann segnest!«
32 उसके बाप इस्हाक़ ने उससे पूछा कि तू कौन है? उसने कहा, मैं तेरा पहलौठा बेटा “ऐसौ हूँ।”
Da fragte ihn sein Vater Isaak: »Wer bist du?« Er antwortete: »Ich bin dein erstgeborener Sohn Esau.«
33 तब तो इस्हाक़ शिद्दत से काँपने लगा और उसने कहा, “फिर वह कौन था जो शिकार मार कर मेरे पास ले आया, और मैंने तेरे आने से पहले सबमें से थोड़ा — थोड़ा खाया और उसे दुआ दी? और मुबारक भी वही होगा।”
Da erbebte Isaak über alle Maßen und sagte: »Wer ist denn der gewesen, der ein Stück Wild erjagt und es mir gebracht hat? Ich habe von allem gegessen, ehe du kamst, und habe ihn gesegnet; so wird er nun auch gesegnet bleiben.«
34 ऐसौ अपने बाप की बातें सुनते ही बड़ी बुलन्दी और हसरतनाक आवाज़ से चिल्ला उठा, और अपने बाप से कहा, “मुझ को भी दुआ दे, ऐ मेरे बाप! मुझ को भी।”
Sobald Esau diese Worte seines Vaters vernahm, erhob er ein überaus lautes und klägliches Geschrei und bat seinen Vater: »Segne auch mich, mein Vater!«
35 उसने कहा, “तेरा भाई दग़ा से आया, और तेरी बरकत ले गया।”
Isaak aber antwortete: »Dein Bruder ist mit List gekommen und hat den dir gebührenden Segen vorweggenommen.«
36 तब उसने कहा, “क्या उसका नाम या'क़ूब ठीक नहीं रख्खा गया? क्यूँकि उसने दोबारा मुझे धोखा दिया। उसने मेरा पहलौठे का हक़ तो ले ही लिया था, और देख, अब वह मेरी बरकत भी ले गया।” फिर उसने कहा, “क्या तूने मेरे लिए कोई बरकत नहीं रख छोड़ी है?”
Da sagte Esau: »Ja, er heißt mit Recht Jakob; denn er hat mich nun schon zweimal überlistet: mein Erstgeburtsrecht hat er mir genommen, und jetzt hat er mich auch um meinen Segen gebracht!« Dann fragte er: »Hast du denn für mich keinen Segen zurückbehalten?«
37 इस्हाक़ ने 'ऐसौ को जवाब दिया, कि देख, मैंने उसे तेरा सरदार ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके सुपर्द किया कि ख़ादिम हों, और अनाज और मय उसकी परवरिश के लिए बताई। अब ऐ मेरे बेटे, तेरे लिए मैं क्या करूँ?
Da antwortete Isaak dem Esau mit den Worten: »Ich habe ihn nun einmal zum Herrn über dich gesetzt und alle seine Brüder ihm zu Knechten gegeben; mit Korn und Wein habe ich ihn versorgt! Was könnte ich also nun noch für dich tun, mein Sohn?«
38 तब 'ऐसौ ने अपने बाप से कहा, “क्या तेरे पास एक ही बरकत है, ऐ मेरे बाप? मुझे भी दुआ दे, ऐ मेरे बाप, मुझे भी।” और 'ऐसौ ज़ोर — ज़ोर से रोया।
Da sagte Esau zu seinem Vater: »Hast du denn nur den einen Segen, mein Vater? Segne auch mich, mein Vater!« Und Esau begann laut zu weinen.
39 तब उसके बाप इस्हाक़ ने उससे कहा, “देख ज़रख्खेज़ ज़मीन में तेरा घर हो, और ऊपर से आसमान की शबनम उस पर पड़े।
Da antwortete ihm sein Vater Isaak mit den Worten: »Ach, ohne fetten Erdboden wird dein Wohnsitz sein und ohne Tau vom Himmel droben!
40 तेरी औकात — बसरी तेरी तलवार से हो, और तू अपने भाई की ख़िदमत करे, और जब तू आज़ाद हो; तो अपने भाई का जुआ अपनी गर्दन पर से उतार फेंके।”
Mittels deines Schwertes mußt du leben, und deinem Bruder sollst du dienstbar sein. Wenn du aber rüttelst, wirst du sein Joch dir vom Nacken abschütteln.«
41 और 'ऐसौ ने या'क़ूब से, उस बरकत की वजह से जो उसके बाप ने उसे बख्शी, कीना रख्खा; और 'ऐसौ ने अपने दिल में कहा, कि “मेरे बाप के मातम के दिन नज़दीक हैं, फिर मैं अपने भाई या'क़ूब को मार डालूँगा।”
So wurde denn Esau dem Jakob feind wegen des Segens, den sein Vater ihm erteilt hatte; und Esau dachte bei sich: »Bald werden die Tage der Trauer um meinen Vater kommen, dann will ich meinen Bruder Jakob totschlagen!«
42 और रिब्क़ा को उसके बड़े बेटे 'ऐसौ की यह बातें बताई गई; तब उसने अपने छोटे बेटे या'क़ूब को बुलवा कर उससे कहा, “देख, तेरा भाई 'ऐसौ तुझे मार डालने पर है, और यही सोच — सोचकर अपने को तसल्ली दे रहा है।
Als nun der Rebekka diese Äußerungen ihres älteren Sohnes Esau hinterbracht wurden, ließ sie ihren jüngeren Sohn Jakob rufen und sagte zu ihm: »Wisse: dein Bruder Esau sinnt auf Rache gegen dich und will dich totschlagen!
43 इसलिए ऐ मेरे बेटे, तू मेरी बात मान, और उठकर हारान को मेरे भाई लाबन के पास भाग जा;
Darum höre nun, was ich dir rate, mein Sohn! Mache dich auf, fliehe zu meinem Bruder Laban nach Haran
44 और थोड़े दिन उसके साथ रह, जब तक तेरे भाई की नाराज़गी उतर न जाए।
und bleibe einige Zeit bei ihm, bis der Groll deines Bruders sich gelegt hat!
45 या'नी जब तक तेरे भाई का क़हर तेरी तरफ़ से ठंडा न हो, और वह उस बात को जो तूने उससे की है भूल न जाए; तब मैं तुझे वहाँ से बुलवा भेजूँगी। मैं एक ही दिन में तुम दोनों को क्यूँ खो बैठूँ?”
Wenn dann sein Zorn gegen dich geschwunden ist und er vergessen hat, was du ihm angetan hast, dann will ich hinsenden und dich von dort zurückholen lassen. Warum soll ich euch beide an einem Tage verlieren?«
46 और रिब्क़ा ने इस्हाक़ से कहा, 'मैं हिती लड़कियों की वजह से अपनी ज़िन्दगी से तंग हूँ, इसलिए अगर या'क़ूब हिती लड़कियों में से, जैसी इस मुल्क की लड़कियाँ हैं, किसी से ब्याह कर ले तो मेरी ज़िन्दगी में क्या लुत्फ़ रहेगा?'
Hierauf sagte Rebekka zu Isaak: »Das Leben wird mir verleidet durch diese Hethiterinnen! Wenn auch Jakob sich solch eine Hethiterin zur Frau nähme, eine von den Töchtern des Landes, was hätte ich da noch vom Leben?«