< हिज़ि 1 >
1 तेइसवीं बरस के चौथे महीने की पाँचवीं तारीख़ को यूँ हुआ कि जब मैं नहर — ए — किबार के किनारे पर ग़ुलामों के बीच था तो आसमान खुल गया और मैंने ख़ुदा की रोयतें देखीं।
καὶ ἐγένετο ἐν τῷ τριακοστῷ ἔτει ἐν τῷ τετάρτῳ μηνὶ πέμπτῃ τοῦ μηνὸς καὶ ἐγὼ ἤμην ἐν μέσῳ τῆς αἰχμαλωσίας ἐπὶ τοῦ ποταμοῦ τοῦ Χοβαρ καὶ ἠνοίχθησαν οἱ οὐρανοί καὶ εἶδον ὁράσεις θεοῦ
2 उस महीने की पाँचवीं को यहूयाकीम बादशाह की ग़ुलामी के पाँचवीं बरस।
πέμπτῃ τοῦ μηνός τοῦτο τὸ ἔτος τὸ πέμπτον τῆς αἰχμαλωσίας τοῦ βασιλέως Ιωακιμ
3 ख़ुदावन्द का कलाम बूज़ी के बेटे हिज़क़िएल काहिन पर जो कसदियों के मुल्क में नहर — ए — किबार के किनारे पर था नाज़िल हुआ, और वहाँ ख़ुदावन्द का हाथ उस पर था।
καὶ ἐγένετο λόγος κυρίου πρὸς Ιεζεκιηλ υἱὸν Βουζι τὸν ἱερέα ἐν γῇ Χαλδαίων ἐπὶ τοῦ ποταμοῦ τοῦ Χοβαρ καὶ ἐγένετο ἐπ’ ἐμὲ χεὶρ κυρίου
4 और मैंने नज़र की तो क्या देखता हूँ कि उत्तर से आँधी उठी एक बड़ी घटा और लिपटती हुई आग और उसके चारों तरफ़ रोशनी चमकती थी और उसके बीच से या'नी उस आग में से सैक़ल किये हुए पीतल की तरह सूरत जलवागर हुई।
καὶ εἶδον καὶ ἰδοὺ πνεῦμα ἐξαῖρον ἤρχετο ἀπὸ βορρᾶ καὶ νεφέλη μεγάλη ἐν αὐτῷ καὶ φέγγος κύκλῳ αὐτοῦ καὶ πῦρ ἐξαστράπτον καὶ ἐν τῷ μέσῳ αὐτοῦ ὡς ὅρασις ἠλέκτρου ἐν μέσῳ τοῦ πυρὸς καὶ φέγγος ἐν αὐτῷ
5 और उसमें से चार जानदारों की एक शबीह नज़र आई और उनकी शक्ल यूँ थी कि वह इंसान से मुशाबह थे।
καὶ ἐν τῷ μέσῳ ὡς ὁμοίωμα τεσσάρων ζῴων καὶ αὕτη ἡ ὅρασις αὐτῶν ὁμοίωμα ἀνθρώπου ἐπ’ αὐτοῖς
6 और हर एक चार चेहरे और चार पर थे।
καὶ τέσσαρα πρόσωπα τῷ ἑνί καὶ τέσσαρες πτέρυγες τῷ ἑνί
7 और उनकी टाँगे सीधी थीं और उनके पाँव के तलवे बछड़े की पाँव के तलवे की तरह थे और वह मंजे हुए पीतल की तरह झलकते थे।
καὶ τὰ σκέλη αὐτῶν ὀρθά καὶ πτερωτοὶ οἱ πόδες αὐτῶν καὶ σπινθῆρες ὡς ἐξαστράπτων χαλκός καὶ ἐλαφραὶ αἱ πτέρυγες αὐτῶν
8 और उनके चारों तरफ़ परों के नीचे इंसान के हाथ थे और चारों के चेहरे और पर यूँ थे।
καὶ χεὶρ ἀνθρώπου ὑποκάτωθεν τῶν πτερύγων αὐτῶν ἐπὶ τὰ τέσσαρα μέρη αὐτῶν καὶ τὰ πρόσωπα αὐτῶν τῶν τεσσάρων
9 कि उनके पर एक दूसरे के साथ जुड़े थे और वह चलते हुए मुड़ते न थे बल्कि सब सीधे आगे बढ़े चले जाते थे।
οὐκ ἐπεστρέφοντο ἐν τῷ βαδίζειν αὐτά ἕκαστον κατέναντι τοῦ προσώπου αὐτῶν ἐπορεύοντο
10 उनके चेहरों की मुशाबिहत यूँ थी कि उन चारों का एक एक चेहरा इंसान का एक शेर बबर का उनकी दहिनी तरफ़ और उन चारों का एक एक चेहरा सांड का बाईं तरफ़ और उन चारों का एक एक चेहरा 'उक़ाब का था।
καὶ ὁμοίωσις τῶν προσώπων αὐτῶν πρόσωπον ἀνθρώπου καὶ πρόσωπον λέοντος ἐκ δεξιῶν τοῖς τέσσαρσιν καὶ πρόσωπον μόσχου ἐξ ἀριστερῶν τοῖς τέσσαρσιν καὶ πρόσωπον ἀετοῦ τοῖς τέσσαρσιν
11 उनके चेहरे यूँ थे और उनके पर ऊपर से अलग — अलग थे हर एक के ऊपर दूसरे के दो परों से मिले हुए थे और दो दो से उनका बदन छिपा हुआ था।
καὶ αἱ πτέρυγες αὐτῶν ἐκτεταμέναι ἄνωθεν τοῖς τέσσαρσιν ἑκατέρῳ δύο συνεζευγμέναι πρὸς ἀλλήλας καὶ δύο ἐπεκάλυπτον ἐπάνω τοῦ σώματος αὐτῶν
12 उनमें से हर एक सीधा आगे को चला जाता था जिधर को जाने की ख़्वाहिश होती थी वह जाते थे, वह चलते हुए मुड़ते न थे।
καὶ ἑκάτερον κατὰ πρόσωπον αὐτοῦ ἐπορεύετο οὗ ἂν ἦν τὸ πνεῦμα πορευόμενον ἐπορεύοντο καὶ οὐκ ἐπέστρεφον
13 रही उन जानदारों की सूरत तो उनकी शक्ल आग के सुलगे हुए कोयलों और मशा'लों की तरह थी, वह उन जानदारों के बीच इधर उधर आती जाती थी और वह आग नूरानी थी और उसमे से बिजली निकलती थी।
καὶ ἐν μέσῳ τῶν ζῴων ὅρασις ὡς ἀνθράκων πυρὸς καιομένων ὡς ὄψις λαμπάδων συστρεφομένων ἀνὰ μέσον τῶν ζῴων καὶ φέγγος τοῦ πυρός καὶ ἐκ τοῦ πυρὸς ἐξεπορεύετο ἀστραπή
14 और वह जानदार ऐसे हटते बढ़ते थे जैसे बिजली कौंध जाती है।
15 जब मैंने उन जानदारों की तरफ़ नज़र की तो क्या देखता हूँ कि उन चार चार चेहरों वाले जानदारों के हर चेहरे के पास ज़मीन पर एक पहिया है।
καὶ εἶδον καὶ ἰδοὺ τροχὸς εἷς ἐπὶ τῆς γῆς ἐχόμενος τῶν ζῴων τοῖς τέσσαρσιν
16 उन पहियों की सूरत और और बनावट ज़बरजद के जैसी थी और वह चारों एक ही वज़ा' के थे और उनकी शक्ल और उनकी बनावट ऐसी थी जैसे पहिया पहटे के बीच में है।
καὶ τὸ εἶδος τῶν τροχῶν ὡς εἶδος θαρσις καὶ ὁμοίωμα ἓν τοῖς τέσσαρσιν καὶ τὸ ἔργον αὐτῶν ἦν καθὼς ἂν εἴη τροχὸς ἐν τροχῷ
17 वह चलते वक़्त अपने चारों पहलुओं पर चलते थे और पीछे नहीं मुड़ते थे।
ἐπὶ τὰ τέσσαρα μέρη αὐτῶν ἐπορεύοντο οὐκ ἐπέστρεφον ἐν τῷ πορεύεσθαι αὐτὰ
18 और उनके हलक़े बहुत ऊँचे और डरावने थे और उन चारों के हलक़ों के चारों तरफ़ आँखें ही आँखें थीं।
οὐδ’ οἱ νῶτοι αὐτῶν καὶ ὕψος ἦν αὐτοῖς καὶ εἶδον αὐτά καὶ οἱ νῶτοι αὐτῶν πλήρεις ὀφθαλμῶν κυκλόθεν τοῖς τέσσαρσιν
19 जब वह जानदार चलते थे तो पहिये भी उनके साथ चलते थे और जब वह जानदार ज़मीन पर से उठाये जाते थे तो पहिये भी उठाये जाते थे।
καὶ ἐν τῷ πορεύεσθαι τὰ ζῷα ἐπορεύοντο οἱ τροχοὶ ἐχόμενοι αὐτῶν καὶ ἐν τῷ ἐξαίρειν τὰ ζῷα ἀπὸ τῆς γῆς ἐξῄροντο οἱ τροχοί
20 जहाँ कहीं जाने की ख़्वाहिश होती थी जाते थे, उनकी ख़्वाहिश उनको उधर ही ले जाती थी और पहिये उनके साथ उठाये जाते थे, क्यूँकि जानदार की रूह पहियों में थी।
οὗ ἂν ἦν ἡ νεφέλη ἐκεῖ τὸ πνεῦμα τοῦ πορεύεσθαι ἐπορεύοντο τὰ ζῷα καὶ οἱ τροχοὶ καὶ ἐξῄροντο σὺν αὐτοῖς διότι πνεῦμα ζωῆς ἦν ἐν τοῖς τροχοῖς
21 जब वह चलते थे, यह चलते थे; और जब वह ठहरते थे, यह ठरते थे; और जब वह ज़मीन पर से उठाये जाते थे तो पहिये भी उनके साथ उठाये जाते थे, क्यूँकि पहियों में जानदार की रूह थी।
ἐν τῷ πορεύεσθαι αὐτὰ ἐπορεύοντο καὶ ἐν τῷ ἑστάναι αὐτὰ εἱστήκεισαν καὶ ἐν τῷ ἐξαίρειν αὐτὰ ἀπὸ τῆς γῆς ἐξῄροντο σὺν αὐτοῖς ὅτι πνεῦμα ζωῆς ἦν ἐν τοῖς τροχοῖς
22 जानदारों के सरो के ऊपर की फ़ज़ा बिल्लोर की तरह चमक थी और उनके सरों के ऊपर फ़ैली थी।
καὶ ὁμοίωμα ὑπὲρ κεφαλῆς αὐτοῖς τῶν ζῴων ὡσεὶ στερέωμα ὡς ὅρασις κρυστάλλου ἐκτεταμένον ἐπὶ τῶν πτερύγων αὐτῶν ἐπάνωθεν
23 और उस फ़ज़ा के नीचे उनके पर एक दूसरे की सीध में थे हर एक दो परों से उनके बदनो का एक पहलू और दो परों से दूसरा हिस्सा छिपा था
καὶ ὑποκάτω τοῦ στερεώματος αἱ πτέρυγες αὐτῶν ἐκτεταμέναι πτερυσσόμεναι ἑτέρα τῇ ἑτέρᾳ ἑκάστῳ δύο συνεζευγμέναι ἐπικαλύπτουσαι τὰ σώματα αὐτῶν
24 और जब वह चले तो मैंने उनके परों की आवाज़ सुनी जैसे बड़े सैलाब की आवाज़ या'नी क़ादिर — ए — मुतलक़ की आवाज़ और ऐसी शोर की आवाज़ हुई जैसी लश्कर की आवाज़ होती है जब वह ठहरते थे तो अपने परों को लटका देते थे।
καὶ ἤκουον τὴν φωνὴν τῶν πτερύγων αὐτῶν ἐν τῷ πορεύεσθαι αὐτὰ ὡς φωνὴν ὕδατος πολλοῦ καὶ ἐν τῷ ἑστάναι αὐτὰ κατέπαυον αἱ πτέρυγες αὐτῶν
25 और उस फ़ज़ा के ऊपर से जो उनके सरो के ऊपर थी, एक आवाज़ आती थी और वह जब ठहरते थे तो अपने बाज़ुओं को लटका देते थे।
καὶ ἰδοὺ φωνὴ ὑπεράνωθεν τοῦ στερεώματος τοῦ ὄντος ὑπὲρ κεφαλῆς αὐτῶν
26 और उस फ़ज़ा से ऊपर जो उनके सरों के ऊपर थी तख़्त की सूरत थी और उसकी सूरत नीलम के पत्थर की तरह थी और उस तख़्त नुमा सूरत पर किसी इंसान की तरह शबीह उसके ऊपर नज़र आयी।
ὡς ὅρασις λίθου σαπφείρου ὁμοίωμα θρόνου ἐπ’ αὐτοῦ καὶ ἐπὶ τοῦ ὁμοιώματος τοῦ θρόνου ὁμοίωμα ὡς εἶδος ἀνθρώπου ἄνωθεν
27 और मैंने उसकी कमर से लेकर ऊपर तक सैक़ल किये हुए पीतल के जैसा रंग और शो'ला सा जलवा उसके बीच और चारों तरफ़ देखा और उसकी कमर से लेकर नीचे तक मैंने शो'ला की तरह तजल्ली देखी, और उसकी चारों तरफ़ जगमगाहट थी।
καὶ εἶδον ὡς ὄψιν ἠλέκτρου ἀπὸ ὁράσεως ὀσφύος καὶ ἐπάνω καὶ ἀπὸ ὁράσεως ὀσφύος καὶ ἕως κάτω εἶδον ὡς ὅρασιν πυρὸς καὶ τὸ φέγγος αὐτοῦ κύκλῳ
28 जैसी उस कमान की सूरत है जो बारिश के दिन बादलों में दिखाई देती है वैसी ही आस — पास की उस जगमगाहट ज़ाहिर थी यह ख़ुदावन्द के जलाल का इज़हार था, और देखते ही मैं सिज्दे में गिरा और मैंने एक आवाज़ सुनी जैसे कोई बातें करता है।
ὡς ὅρασις τόξου ὅταν ᾖ ἐν τῇ νεφέλῃ ἐν ἡμέρᾳ ὑετοῦ οὕτως ἡ στάσις τοῦ φέγγους κυκλόθεν αὕτη ἡ ὅρασις ὁμοιώματος δόξης κυρίου καὶ εἶδον καὶ πίπτω ἐπὶ πρόσωπόν μου καὶ ἤκουσα φωνὴν λαλοῦντος