< हिज़ि 28 >

1 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ।
وَأَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً:١
2 कि 'ऐआदमज़ाद, वाली — ए — सूर से कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, इसलिए कि तेरे दिल में ग़ुरूर समाया और तूने कहा, 'मैं ख़ुदा हूँ, और समन्दर के किनारे में इलाही तख़्त पर बैठा हूँ, और तूने अपना दिल इलाह के जैसा बनाया है, अगरचे तू इलाह नहीं बल्कि इंसान है।
«يَا ابْنَ آدَمَ، قُلْ لِمَلِكِ صُورَ، هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: لأَنَّكَ تَكَبَّرْتَ وَقُلْتَ: أَنَا إِلَهٌ، وَأَتَرَبَّعُ فِي مَجْلِسِ الآلِهَةِ، فِي قَلْبِ الْبِحَارِ؛ مَعَ أَنَّكَ إِنْسَانٌ وَلَسْتَ إِلَهاً، وَإِنْ ظَنَنْتَ أَنَّ لَدَيْكَ حِكْمَةَ الآلِهَةِ!٢
3 देख, तू दानीएल से ज़्यादा 'अक़्लमन्द है, ऐसा कोई राज़ नहीं जो तुझ से छिपा हो।
هَا أَنْتَ أَحْكَمُ مِنْ دَانِيالَ وَلا يَخْفَى عَلَيْكَ سِرٌّ.٣
4 तूने अपनी हिकमत और ख़िरद से माल हासिल किया, और सोने चाँदी से अपने ख़ज़ाने भर लिए।
قَدِ اسْتَحْوَذْتَ بِحِكْمَتِكَ وَفَهْمِكَ عَلَى الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَادَّخَرْتَهَا فِي خَزَائِنِكَ،٤
5 तूने अपनी बड़ी हिकमत से और अपनी सौदागरी से अपनी दौलत बहुत बढ़ाई, और तेरा दिल तेरी दौलत के ज़रिए' फूल गया है।
وَبِمَهَارَتِكَ الْعَظِيمَةِ فِي التِّجَارَةِ ضَاعَفْتَ ثَرْوَتَكَ، فَتَكَبَّرَ قَلْبُكَ لِفَرْطِ غِنَاكَ.٥
6 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: चूँकि तूने अपना दिल इलाह के जैसा बनाया।
لِذَلِكَ يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: لأَنَّكَ ظَنَنْتَ أَنَّ لَدَيْكَ حِكْمَةَ الآلِهَةِ،٦
7 इसलिए देख, मैं तुझ पर परदेसियों को जो क़ौमों में हैबतनाक हैं, चढ़ा लाऊँगा; वह तेरी समझदारी की ख़ूबी के ख़िलाफ़ तलवार खींचेंगे और तेरे जमाल को ख़राब करेंगे।
هَا أَنَا أُثِيرُ عَلَيْكَ غُرَبَاءَ مِنْ أَعْتَى الأُمَمِ، فَيُجَرِّدُونَ سُيُوفَهُمْ عَلَى بَهَاءِ حِكْمَتِكَ، وَيُدَنِّسُونَ جَمَالَكَ.٧
8 वह तुझे पाताल में उतारेंगे और तू उनकी मौत मरेगा जो समन्दर के बीच में क़त्ल होते हैं।
يَطْرَحُونَكَ إِلَى الْهَاوِيَةِ فَتَمُوتُ مَوْتَ الْقَتْلَى فِي أَعْمَاقِ الْبِحَارِ.٨
9 क्या तू अपने क़ातिल के सामने यूँ कहेगा, कि 'मैं ख़ुदावन्द हूँ'? हालाँकि तू अपने क़ातिल के हाथ में ख़ुदा नहीं, बल्कि इंसान है।
أَتَظَلُّ تَقُولُ أَنَئِذٍ أَمَامَ قَاتِلِكَ: أَنَا إِلَهٌ؟ أَنْتَ إِنْسَانٌ لَا إِلَهٌ فِي قَبْضَةِ ذَابِحِيكَ.٩
10 तू अजनबी के हाथ से नामख़्तून की मौत मरेगा, क्यूँकि मैंने फ़रमाया है ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
فَتَلْقَى حَتْفَكَ كَالْغُلْفِ بِيَدِ الْغُرَبَاءِ، لأَنِّي أَنَا قَضَيْتُ يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ».١٠
11 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
وَأَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً:١١
12 कि 'ऐआदमज़ाद, सूर के बादशाह पर यह नोहा कर और उससे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि तू ख़ातिम — उल — कमाल 'अक़्ल से मा'मूर और हुस्न में कामिल है।
«يَا ابْنَ آدَمَ، انْدُبْ مَلِكَ صُورَ بِمَرْثَاةٍ وَقُلْ لَهُ هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: كُنْتَ خَاتِمَ الْكَمَالِ، مُفْعَماً بِالْحِكْمَةِ وَكَامِلَ الْجَمَالِ.١٢
13 तू अदन में बाग़ — ए — ख़ुदा में रहा करता था, हर एक क़ीमती पत्थर तेरी पोशिश के लिए था; मसलन याकू़त — ए — सुर्ख़ और पुखराज और इल्मास और फ़िरोज़ा और संग — ए — सुलेमानी और ज़बरजद और नीलम और जुमर्रद और गौहर — ए — शबचराग़ और सोने से, तुझ में ख़ातिमसाज़ी और नगीनाबन्दी की सन'अत तेरी पैदाइश ही के रोज़ से जारी रही।
كُنْتَ فِي جَنَّةِ اللهِ عَدْنٍ، حِجَابُكَ كُلُّ حَجَرٍ كَرِيمٍ: عَقِيقٌ أَحْمَرُ وَيَاقُوتٌ أَصْفَرُ وَعَقِيقٌ أَبْيَضُ وَزَبَرْجَدٌ وَجَزْعٌ وَيَشْبٌ وَيَاقُوتٌ أَزْرَقُ وَبَهْرَمَانُ وَزُمُرُّدٌ وَذَهَبٌ. صَاغُوا مِنْهُ بُيُوتَ حِجَارَتِكَ الْكَرِيمَةِ وَتَرْصِيعَاتِكَ يَوْمَ خُلِقْتَ.١٣
14 तू मम्सूह करूबी था जो साया। अफ़गन था, और मैंने तुझे ख़ुदा के कोह — ए — मुक़द्दस पर क़ायम किया; तू वहाँ आतिशी पत्थरों के बीच चलता फिरता था।
وَمَسَحْتُكَ لِتَكُونَ الْكَرُوبِيمَ الْمُظَلِّلَ وَأَقَمْتُكَ عَلَى جَبَلِ اللهِ الْمُقَدَّسِ، وَتَمَشَّيْتَ بَيْنَ حِجَارَةِ النَّارِ.١٤
15 तू अपनी पैदाइश ही के रोज़ से अपनी राह — ओ — रस्म में कामिल था, जब तक कि तुझ में नारास्ती न पाई गई।
كُنْتَ كَامِلاً فِي طُرُقِكَ مُنْذُ يَوْمَ خُلِقْتَ إِلَى أَنْ وُجِدَ فِيكَ إِثْمٌ.١٥
16 तेरी सौदागरी की फ़िरावानी की वजह से उन्होंने तुझ में ज़ुल्म भी भर दिया और तूने गुनाह किया; इसलिए मैंने तुझ को ख़ुदा के पहाड़ पर से गन्दगी की तरह फेंक दिया, और तुझ साया — अफ़गन करूबी को आतिशी पत्थरों के बीच से फ़ना कर दिया।
إِنَّمَا بِسَبَبِ كَثْرَةِ تِجَارَتِكَ امْتَلأَ دَاخِلُكَ ظُلْماً، فَأَخْطَأْتَ. لِهَذَا أَطْرَحُكَ مِنْ جَبَلِ اللهِ كَشَيْءٍ نَجِسٍ، وَأُبِيدُكَ أَيُّهَا الْكَرُوبُ الْمُظَلِّلُ مِنْ بَيْنِ حِجَارَةِ النَّارِ.١٦
17 तेरा दिल तेरे हुस्न पर ग़ुरूर करता था, तूने अपने जमाल की वजह से अपनी हिकमत खो दी; मैंने तुझे ज़मीन पर पटख दिया और बादशाहों के सामने रख दिया है, ताकि वह तुझे देख लें।
قَدْ تَكَبَّرَ قَلْبُكَ بِسَبَبِ بَهَائِكَ، وَأَفْسَدْتَ حِكْمَتَكَ مِنْ جَرَّاءِ جَلالِكَ. سَأُلْقِي بِكَ إِلَى الأَرْضِ أَمَامَ الْمُلُوكِ لِتَكُونَ عُرْضَةً لِعُيُونِهِمِ الْهَازِئَةِ.١٧
18 तूने अपनी बदकिरदारी की कसरत, और अपनी सौदागरी की नारास्ती से अपने हैकलों को नापाक किया है। इसलिए मैं तेरे अन्दर से आग निकालूँगा जो तुझे भसम करेगी, और मैं तेरे सब देखने वालों की आँखों के सामने तुझे ज़मीन पर राख कर दूँगा।
قَدْ نَجَّسْتَ مَقَادِسَكَ بِفَرْطِ آثَامِكَ وَتِجَارَتِكَ الظَّالِمَةِ. لِذَلِكَ أَجْعَلُ النَّارَ تَنْدَلِعُ مِنْ وَسَطِكَ فَتَلْتَهِمُكَ، وَأُحَوِّلُكَ إِلَى رَمَادٍ عَلَى الأَرْضِ أَمَامَ كُلِّ مَنْ يَرَاكَ.١٨
19 क़ौमों के बीच वह सब जो तुझ को जानते हैं, तुझे देख कर हैरान होंगे; तू जा — ए — 'इबरत होगा और बाक़ी न रहेगा।
فَيَتَحَيَّرُ لِمَا أَصَابَكَ جَمِيعُ الَّذِينَ يَعْرِفُونَكَ بَيْنَ الشُّعُوبِ، إِذْ تَحُلُّ بِكَ الأَهْوَالُ وَلا يَبْقَى مِنْكَ أَثَرٌ».١٩
20 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
وَأَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً:٢٠
21 कि 'ऐआदमज़ाद, सैदा का रुख़ करके उसके ख़िलाफ़ नबुव्वत कर।
«يَا ابْنَ آدَمَ، الْتَفِتْ بِوَجْهِكَ نَحْوَ صَيْدُونَ وَتَنَبَّأْ عَلَيْهَا.٢١
22 और कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ, ऐ सैदा; और तेरे अन्दर मेरी तम्जीद होगी, और जब मैं उसको सज़ा दूँगा तो लोग मा'लूम कर लेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ, और उसमें मेरी तक़्दीस होगी।
وَقُلْ هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: هَا أَنَا أَنْقَلِبُ عَلَيْكِ يَا صيْدُونُ وَأَتَجَلَّى بِمَجْدِي فِيكِ فَيُدْرِكُ سُكَّانُكِ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ حِينَ أُنَفِّذُ فِيكِ أَحْكَاماً وَأَتَقَدَّسُ فِي وَسَطِكِ.٢٢
23 मैं उसमें वबा भेजूँगा, और उसकी गलियों में खू़ँरेज़ी करूँगा, और मक़्तूल उसके बीच उस तलवार से जो चारों तरफ़ से उस पर चलेगी गिरेंगे, और वह मा'लूम करेंगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
أَجْعَلُ الْوَبَأَ يَتَفَشَّى فِيكِ وَتُسْفَكُ دِمَاءٌ فِي أَزِقَّتِكِ، وَيَتَسَاقَطُ فِي وَسَطِكِ جَرْحَى السَّيْفِ الَّذِي يُحْدِقُ بِكِ مِنْ كُلِّ نَاحِيَةٍ، فَيُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ.٢٣
24 तब बनी — इस्राईल के लिए उनके चारों तरफ़ के सब लोगों में से, जो उनको बेकार जानते थे, कोई चुभने वाला काँटा या दुखाने वाला ख़ार न रहेगा, और वह जानेंगे कि ख़ुदावन्द ख़ुदा मैं हूँ।
فَلا يَتَعَرَّضُ شَعْبُ إِسْرَائِيلَ إِلَى وَخَزَاتِ الْعُلَّيْقِ وَلا إلَى شَوْكَةٍ مُؤْذِيَةٍ مِنَ الأُمَمِ الْمُحِيطَةِ بِهِمْ مِمَّنْ تُبْغِضُهُمْ، فَيُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا السَّيِّدُ الرَّبُّ.٢٤
25 ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: जब मैं बनी — इस्राईल को क़ौमों में से, जिनमें वह तितर बितर हो गए जमा' करूँगा, तब मैं क़ौमों की आँखों के सामने उनसे अपनी तक़दीस कराऊँगा; और वह अपनी सरज़मीन में जो मैंने अपने बन्दे या'क़ूब को दी थी बसेंगे।
وَهَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: عِنْدَمَا أَجْمَعُ شَعْبَ إِسْرَائِيلَ مِنْ بَيْنِ الشُّعُوبِ الَّتِي تَفَرَّقُوا إِلَيْهَا، وَتَتَجَلَّى قَدَاسَتِي فِيهِمْ أَمَامَ عُيُونِ الأُمَمِ، عِنْدَمَا يَعُودُونَ وَيَسْتَوْطِنُونَ فِي أَرْضِهِمِ الَّتِي وَهَبْتُهَا لِعَبْدِي يَعْقُوبَ،٢٥
26 और वह उसमें अम्न से सकूनत करेंगे, बल्कि मकान बनाएँगे और अंगूरिस्तान लगाएँगे और अम्न से सकूनत करेंगे; जब मैं उन सब को जो चारों तरफ़ से उनकी हिक़ारत करते थे, सज़ा दूँगा तो वह जानेंगे के मैं ख़ुदावन्द उनका ख़ुदा हूँ।
وَيُقِيمُونَ فِيهَا مُطْمَئِنِّينَ وَيُشَيِّدُونَ بُيُوتاً وَيَغْرِسُونَ كُرُوماً وَيَسْكُنُونَ آمِنِينَ. وَعِنْدَمَا أُنَفِّذُ أَحْكَاماً فِي جَمِيعِ أَعْدَائِهِمِ الْمُحِيطِينَ بِهِمْ، عِنْدَئِذٍ يُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ إِلَهُهُمْ».٢٦

< हिज़ि 28 >