< हिज़ि 20 >

1 और सातवें बरस के पाँचवें महीने की दसवीं तारीख को यूँ हुआ कि इस्राईल के चन्द बुजु़र्ग ख़ुदावन्द से कुछ दरियाफ़्त करने को आए और मेरे सामने बैठ गए।
Und es begab sich im siebenten Jahr, am zehnten Tage des fünften Monats, kamen etliche aus den Ältesten Israels, den HERRN zu fragen, und setzten sich vor mir nieder.
2 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
Da geschah des HERRN Wort zu mir und sprach:
3 कि 'ऐ आदमज़ाद! इस्राईल के बुजु़र्गों से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या तुम मुझ से दरियाफ़्त करने आए हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि मुझे अपनी हयात की क़सम, तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।
Du Menschenkind, sage den Ältesten Israels und sprich zu ihnen: So spricht der Herr HERR: Seid ihr gekommen, mich zu fragen? So wahr ich lebe, ich will von euch ungefragt sein, spricht der Herr HERR.
4 क्या तू उन पर हुज्जत क़ाईम करेगा? ऐ आदमज़ाद, क्या तू उन पर हुज्जत क़ायम करेगा? उनके बाप दादा के नफ़रती कामों से उनको आगाह कर।
Aber willst du sie strafen, du Menschenkind, so magst du sie also strafen: zeige ihnen an die Greuel ihrer Väter
5 उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जिस दिन मैंने इस्राईल को बरगुज़ीदा किया, और बनी या'कू़ब से क़सम खाई और मुल्क — ए — मिस्र में अपने आपको उन पर ज़ाहिर किया; मैंने उनसे क़सम खा कर कहा, मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
und sprich zu ihnen: So spricht der Herr HERR: Zu der Zeit, da ich Israel erwählte, erhob ich meine Hand zu dem Samen des Hauses Jakob und gab mich ihnen zu erkennen in Ägyptenland. Ja, ich erhob meine Hand zu ihnen und sprach: Ich bin der HERR, euer Gott.
6 जिस दिन मैंने उनसे क़सम खाई, ताकि उनको मुल्क — ए — मिस्र से उस मुल्क में लाऊँ जो मैंने उनके लिए देख कर ठहराया था, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।
Ich erhob aber zur selben Zeit meine Hand, daß ich sie führte aus Ägyptenland in ein Land, das ich ihnen ersehen hatte, das mit Milch und Honig fließt, ein edles Land vor allen Ländern,
7 और मैंने उनसे कहा, तुम में से हर एक शख़्स उन नफ़रती चीज़ों को जो उसकी मन्जू़र — ए — नज़र हैं, दूर करे और तुम अपने आपको मिस्र के बुतों से नापाक न करो; मैं ख़ुदावन्द, तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
und sprach zu ihnen: Ein jeglicher werfe weg die Greuel vor seinen Augen, und verunreinigt euch nicht an den Götzen Ägyptens! denn ich bin der HERR, euer Gott.
8 लेकिन वह मुझ से बाग़ी हुए और न चाहा कि मेरी सुनें। उनमें से किसी ने उन नफ़रती चीज़ों को, जो उसकी मंजू़र — ए — नज़र थीं, छोड़ न दिया और मिस्र के बुतों को न छोड़ा। तब मैंने कहा, कि मैं अपना क़हर उन पर उण्डेल दूँगा, ताकि अपने ग़ज़ब को मुल्क — ए — मिस्र में उन पर पूरा करूँ।
Sie aber waren mir ungehorsam und wollten nicht gehorchen und warf ihrer keiner weg die Greuel vor seinen Augen und verließen die Götzen Ägyptens nicht. Da dachte ich meinem Grimm über sie auszuschütten und all mein Zorn über sie gehen zu lassen noch in Ägyptenland.
9 लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया ताकि मेरा नाम उन क़ौमों की नज़र में, जिनके बीच वह रहते थे और जिनकी निगाहों में मैं उन पर ज़ाहिर हुआ जब उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, नापाक न किया जाए।
Aber ich ließ es um meines Namens willen, daß er nicht entheiligt würde vor den Heiden, unter denen sie waren und vor denen ich mich ihnen hatte zu erkennen gegeben, daß ich sie aus Ägyptenland führen wollte.
10 इसलिए मैं उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकालकर वीरान में लाया।
Und da ich sie aus Ägyptenland geführt hatte und in die Wüste gebracht,
11 और मैंने अपने क़ानून उनको दिए और अपने हुक्मों को उनको सिखाए कि इंसान उन पर 'अमल करने से ज़िन्दा रहे।
gab ich ihnen meine Gebote und lehrte sie meine Rechte, durch welche lebt der Mensch, der sie hält.
12 और मैंने अपने सबत भी उनको दिए, ताकि वह मेरे और उनके बीच निशान हों; ताकि वह जानें कि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।
Ich gab ihnen auch meine Sabbate zum Zeichen zwischen mir und ihnen, damit sie lernten, daß ich der HERR sei, der sie heiligt.
13 लेकिन बनी — इस्राईल वीरान में मुझ से बाग़ी हुए, वह मेरे क़ानून पर न चले और मेरे हुक्मों को रद्द किया, जिन पर अगर इंसान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे, और उन्होंने मेरे सबतों को बहुत ही नापाक किया। तब मैंने कहा, कि मैं वीरान में अपना क़हर उन पर नाज़िल कर के उनको फ़ना करूँगा।
Aber das Haus Israel war mir ungehorsam auch in der Wüste und lebten nicht nach meinen Geboten und verachteten meine Rechte, durch welche der Mensch lebt, der sie hält, und entheiligten meine Sabbate sehr. Da gedachte ich meinem Grimm über sie auszuschütten in der Wüste und sie ganz umzubringen.
14 लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनकी आँखों के सामने मैं उनको निकाल लाया नापाक न किया जाए।
Aber ich ließ es um meines Namens willen, auf daß er nicht entheiligt würde vor den Heiden, vor welchen ich sie hatte ausgeführt.
15 और मैंने वीरान में भी उनसे क़सम खाई कि मैं उनको उस मुल्क में न लाऊँगा जो मैंने उनको दिया, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।
Und ich hob auch meine Hand auf wider sie in der Wüste, daß ich sie nicht wollte bringen in das Land, so ich ihnen gegeben hatte, das mit Milch und Honig fließt, ein edles Land vor allen Ländern,
16 क्यूँकि उन्होंने मेरे हुक्मों को रद्द किया और मेरे क़ानून पर न चले और मेरे सबतों को नापाक किया, इसलिए कि उनके दिल उनके बुतों के मुश्ताक़ थे।
darum daß sie meine Rechte verachtet und nach meinen Geboten nicht gelebt und meine Sabbate entheiligt hatten; denn sie wandelten nach den Götzen ihres Herzens.
17 तोभी मेरी आँखों ने उनकी रि'आयत की और मैंने उनको हलाक न किया, और मैंने वीरान में उनको बिल्कुल बर्बाद — ओ — हलाक न किया।
Aber mein Auge verschonte sie, daß ich sie nicht verderbte noch ganz umbrächte in der Wüste.
18 और मैंने वीरान में उनके फ़र्ज़न्दों से कहा, तुम अपने बाप — दादा के क़ानून — ओ — हुक्मों पर न चलो और उनके बुतों से अपने आपको नापाक न करो।
Und ich sprach zu ihren Kindern in der Wüste: Ihr sollt nach eurer Väter Geboten nicht leben und ihre Rechte nicht halten und an ihren Götzen euch nicht verunreinigen.
19 मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, मेरे क़ानून पर चलो और मेरे हुक्मों को मानो और उन पर 'अमल करो।
Denn ich bin der HERR, euer Gott; nach meinen Geboten sollt ihr leben, und meine Rechte sollt ihr halten und darnach tun;
20 और मेरे सबतों को पाक जानो कि वह मेरे और तुम्हारे बीच निशान हों, ताकि तुम जानो कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
und meine Sabbate sollt ihr heiligen, daß sie seien ein Zeichen zwischen mir und euch, damit ihr wisset, das ich der HERR, euer Gott bin.
21 लेकिन फ़र्ज़न्दों ने भी मुझ से बग़ावत की; वह मेरे क़ानून पर न चले, न मेरे हुक्मों को मानकर उन पर 'अमल किया जिन पर अगर इंसान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे; उन्होंने मेरे सबतों को नापाक किया। तब मैंने कहा कि मैं अपना क़हर उन पर नाज़िल करूँगा और वीरान में अपने ग़ज़ब को उन पर पूरा करूँगा।
Aber die Kinder waren mir auch ungehorsam, lebten nach meinen Geboten nicht, hielten auch meine Rechte nicht, daß sie darnach täten, durch welche der Mensch lebt, der sie hält, und entheiligten meine Sabbate. Da gedachte ich, meinen Grimm über sie auszuschütten und allen meinen Zorn über sie gehen lassen in der Wüste.
22 तोभी मैंने अपना हाथ खींचा और अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनके देखते हुए मैं उनको निकाल लाया, नापाक न किया जाए।
Ich wandte aber meine Hand und ließ es um meines Namens willen, auf daß er nicht entheiligt würde vor den Heiden, vor welchen ich sie hatte ausgeführt.
23 फिर मैंने वीराने में उनसे क़सम खाई कि मैं उनको क़ौमों में आवारा और मुल्कों में तितर बितर करूँगा।
Ich hob auch meine Hand auf wider sie in der Wüste, daß ich sie zerstreute unter die Heiden und zerstäubte in die Länder,
24 इसलिए कि वह मेरे हुक्मों पर 'अमल न करते थे, बल्कि मेरे क़ानून को रद्द करते थे और मेरे सबतों को नापाक करते थे, और उनकी आँखें उनके बाप — दादा के बुतों पर थीं।
darum daß sie meine Geboten nicht gehalten und meine Rechte verachtet und meine Sabbate entheiligt hatten und nach den Götzen ihrer Väter sahen.
25 इसलिए मैंने उनको बुरे क़ानून और ऐसे अहकाम दिए जिनसे वह ज़िन्दा न रहें;
Darum übergab ich sie in die Lehre, die nicht gut ist, und in Rechte, darin sie kein Leben konnten haben,
26 और मैंने उनको उन्हीं के हदियों से या'नी सब पहलौठों को आग पर से गुज़ार कर, नापाक किया ताकि मैं उनको वीरान करूँ और वह जानें कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
und ließ sie unrein werden durch ihre Opfer, da sie alle Erstgeburt durchs Feuer gehen ließen, damit ich sie verstörte und sie lernen mußten, daß ich der HERR sei.
27 इसलिए, ऐ आदमज़ाद, तू बनी इस्राईल से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि इसके 'अलावा तुम्हारे बाप — दादा ने ऐसे काम करके मेरी बुराई की और मेरा गुनाह करके ख़ताकार हुए;
Darum rede, du Menschenkind, mit dem Hause Israel und sprich zu ihnen: So spricht der Herr HERR: Eure Väter haben mich noch weiter gelästert und mir getrotzt.
28 कि जब मैं उनको उस मुल्क में लाया जिसे उनको देने की मैंने क़सम खाई थी, तो उन्होंने जिस ऊँचे पहाड़ और जिस घने दरख़्त को देखा वहीं अपने ज़बीहों को ज़बह किया, और वहीं अपनी ग़ज़ब अंगेज़ नज़र को गुज़राना, और वहीं अपनी ख़ुशबू जलाई और अपने तपावन तपाए।
Denn da ich sie in das Land gebracht hatte, über welches ich meine Hand aufgehoben hatte, daß ich's ihnen gäbe: wo sie einen hohen Hügel oder dichten Baum ersahen, daselbst opferten sie ihre Opfer und brachten dahin ihre verdrießlichen Gaben und räucherten daselbst ihren süßen Geruch und gossen daselbst ihre Trankopfer.
29 तब मैंने उनसे कहा, यह कैसा ऊँचा मक़ाम है जहाँ तुम जाते हो? और उन्होंने उसका नाम बामाह रख्खा जो आज के दिन तक है।
Ich aber sprach zu ihnen: Was soll doch die Höhe, dahin ihr geht? Und also heißt sie bis auf diesen Tag “die Höhe”.
30 'इसलिए, तू बनी — इस्राईल से कह, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: क्या तुम भी अपने बाप — दादा की तरह नापाक होते हो? और उनके नफ़रत अंगेज़ कामों की तरह तुम भी बदकारी करते हो?
Darum sprich zum Hause Israel: So spricht der Herr HERR: Ihr verunreinigt euch in dem Wesen eurer Väter und treibt Abgötterei mit ihren Greueln
31 और जब अपने हदिए चढ़ाते और अपने बेटों को आग पर से गुज़ार कर अपने सब बुतों से अपने आपको आज के दिन तक नापाक करते हो, तो ऐ बनी — इस्राईल क्या तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त कर सकते हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।
und verunreinigt euch an euren Götzen, welchen ihr eure Gaben opfert und eure Söhne und Töchter durchs Feuer gehen laßt, bis auf den heutigen Tag; und ich sollte mich von euch, Haus Israel, fragen lassen? So wahr ich lebe, spricht der Herr HERR, ich will von euch ungefragt sein.
32 और वह जो तुम्हारे जी में आता है हरगिज़ वजूद में न आएगा, क्यूँकि तुम सोचते हो, 'तुम भी दीगर क़ौम — ओ — क़बाइल — ए — 'आलम की तरह लकड़ी और पत्थर की इबादत करोगे। ख़ुदावन्द सज़ा देता और मु'आफ़ भी करता है
Dazu, was ihr gedenkt: “Wir wollen tun wie die Heiden und wie andere Leute in den Ländern: Holz und Stein anbeten”, das soll euch fehlschlagen.
33 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं ताक़तवर हाथ से और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' कर के तुम पर सल्तनत करूँगा।
So wahr ich lebe, spricht der Herr HERR, ich will über euch herrschen mit starker Hand und ausgestrecktem Arm und mit ausgeschüttetem Grimm
34 और मैं ताक़तवर हाथ और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' करके तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा, और उन मुल्कों में से जिनमें तुम तितर बितर हुए हो जमा' करूँगा।
und will euch aus den Völkern führen und aus den Ländern, dahin ihr verstreut seid, sammeln mit starker Hand und mit ausgestrecktem Arm und mit ausgeschütteten Grimm,
35 और मैं तुम को क़ौमों के वीराने में लाऊँगा और वहाँ आमने सामने तुम से हुज्जत करूँगा।
und will euch bringen in die Wüste der Völker und daselbst mit euch rechten von Angesicht zu Angesicht.
36 जिस तरह मैंने तुम्हारे बाप — दादा के साथ मिस्र के वीरान में हुज्जत की, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, उसी तरह मैं तुम से भी हुज्जत करूँगा।
Wie ich mit euren Vätern in der Wüste bei Ägypten gerechtet habe, ebenso will ich auch mit euch rechten, spricht der Herr HERR.
37 और मैं तुम को छड़ी के नीचे से गुज़ारूँगा और 'अहद के बन्द में लाऊँगा।
Ich will euch wohl unter die Rute bringen und euch in die Bande des Bundes zwingen
38 और मैं तुम में से उन लोगों को जो सरकश और मुझ से बाग़ी हैं, जुदाकरूँगा; मैं उनको उस मुल्क से जिसमें उन्होंने क़याम किया, निकाल लाऊँगा पर वह इस्राईल के मुल्क में दाख़िल न होंगे और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
und will die Abtrünnigen und so wider mich übertreten, unter euch ausfegen; ja, aus dem Lande, da ihr jetzt wohnt, will ich sie führen und ins Land Israel nicht kommen lassen, daß ihr lernen sollt, ich sei der HERR.
39 और “तुम से ऐ बनी — इस्राईल, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि जाओ और अपने अपने बुत की इबादत करो, और आगे को भी, अगर तुम मेरी न सुनोगे; लेकिन अपनी कु़र्बानियों और अपने बुतों से मेरे पाक नाम की बुराई न करोगे।
Darum, ihr vom Hause Israel, so spricht der Herr HERR: Weil ihr denn mir ja nicht wollt gehorchen, so fahrt hin und diene ein jeglicher seinen Götzen; aber meinen heiligen Namen laßt hinfort ungeschändet mit euren Opfern und Götzen.
40 'क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मेरे पाक पहाड़ या'नी इस्राईल के ऊँचे पहाड़ पर तमाम बनी — इस्राईल, सब के सब मुल्क में मेरी इबादत करेंगे; वहाँ मैं उनको कु़बूल करूँगा, और तुम्हारी कु़र्बानियाँ और तुम्हारी नज़रों के पहले फल और तुम्हारी सब मुक़द्दस चीज़ें तलब करूँगा।
Denn so spricht der Herr HERR: Auf meinem heiligen Berge, auf dem hohen Berge Israel, daselbst wird mir das ganze Haus Israel, alle die im Lande sind, dienen; daselbst werden sie mir angenehm sein, und daselbst will ich eure Hebopfer und Erstlinge eurer Opfer fordern mit allem, was ihr mir heiligt.
41 जब मैं तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा और उन मुल्कों में से जिनमें मैंने तुम को तितर बितर किया जमा' करूँगा, तब मैं तुम को ख़ुशबू के साथ कु़बूल करूँगा और क़ौमों के सामने तुम मेरी तक़्दीस करोगे।
Ihr werdet mir angenehm sein mit dem süßen Geruch, wenn ich euch aus den Völkern bringen und aus den Ländern sammeln werde, dahin ihr verstreut seid, und werde in euch geheiligt werden vor den Heiden.
42 और जब मैं तुम को इस्राईल के मुल्क में या'नी उस सरज़मीन में जिसके लिए मैंने क़सम खाई कि तुम्हारे बाप — दादा को दूँ, ले आऊँगा तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
Und ihr werdet erfahren, daß ich der HERR bin, wenn ich euch ins Land Israel gebracht habe, in das Land, darüber ich meine Hand aufhob, daß ich's euren Vätern gäbe.
43 और वहाँ तुम अपने चाल चलन और अपने सब कामों को, जिनसे तुम नापाक हुए हो, याद करोगे और तुम अपनी तमाम बुराई की वजह से जो तुम ने की है, अपनी ही नज़र में घिनौने होगे।
Daselbst werdet ihr gedenken an euer Wesen und an all euer Tun, darin ihr verunreinigt seid, und werdet Mißfallen haben über eure eigene Bosheit, die ihr getan habt.
44 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, ऐ बनी — इस्राईल जब मैं तुम्हारे बुरे चाल चलन और बद — आ'माली के मुताबिक़ नहीं बल्कि अपने नाम के ख़ातिर तुम से सुलूक करूँगा, तो तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।”
Und werdet erfahren, daß ich der HERR bin, wenn ich mit euch tue um meines Namens willen und nicht nach eurem bösen Wesen und schädlichen Tun, du Haus Israel, spricht der Herr HERR.
45 और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
Und des HERRN Wort geschah zu mir und sprach:
46 कि 'ऐ आदमज़ाद, दक्खिन का रुख़ कर और दक्खिन ही से मुख़ातिब हो कर उसके मैदान के जंगल के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर;
Du Menschenkind, richte dein Angesicht gegen den Südwind zu und predige gegen den Mittag und weissage wider den Wald im Felde gegen Mittag.
47 और दक्खिन के जंगल से कह, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, मैं तुझ में आग भड़काऊँगा और वह हर एक हरा दरख़्त और हर एक सूखा दरख़्त जो तुझ में है, खा जाएगी; भड़कता हुआ शो'ला न बुझेगा और दक्खिन से उत्तर तक सबके मुँह उससे झुलस जाएँगे।
Und sprich zum Walde gegen Mittag: Höre des HERRN Wort! So spricht der Herr HERR: Siehe, ich will in dir ein Feuer anzünden, das soll beide, grüne und dürre Bäume, verzehren, daß man seine Flamme nicht wird löschen können; sondern es soll verbrannt werden alles, was vom Mittag gegen Mitternacht steht.
48 और हर इंसान देखेगा कि मैं ख़ुदावन्द ने उसे भड़काया है, वह न बुझेगी।
Und alles Fleisch soll sehen, daß ich, der HERR, es angezündet habe und niemand löschen kann.
49 तब मैंने कहा, 'हाय ख़ुदावन्द ख़ुदा! वह तो मेरे बारे में कहते हैं, क्या वह मिसालें नहीं कहता?
Und ich sprach: Ach Herr HERR, sie sagen von mir: Dieser redet eitel Rätselworte.

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