< वाइज़ 1 >
1 शाह — ए — येरूशलेम दाऊद के बेटे वा'इज़ की बातें।
The words of the Preacher, the son of David, king in Jerusalem.
2 “बेकार ही बेकार, वा'इज़ कहता है, बेकार ही बेकार! सब कुछ बेकार है।”
Vanity of vanities, saith the Preacher, vanity of vanities! all is vanity.
3 इंसान को उस सारी मेहनत से जो वह दुनिया' में करता है, क्या हासिल है?
What profit hath man of all his labour wherewith he laboureth under the sun?
4 एक नसल जाती है और दूसरी नसल आती है, लेकिन ज़मीन हमेशा क़ायम रहती है।
[One] generation passeth away, and [another] generation cometh, but the earth standeth for ever.
5 सूरज निकलता है और सूरज ढलता भी है, और अपने तुलू' की जगह को जल्द चला जाता है।
The sun also riseth, and the sun goeth down, and hasteth to its place where it ariseth.
6 हवा दख्खिन की तरफ़ चली जाती है और चक्कर खाकर उत्तर की तरफ़ फिरती है; ये हमेशा चक्कर मारती है, और अपनी गश्त के मुताबिक़ दौरा करती है।
The wind goeth towards the south, and turneth about towards the north: it turneth about continually, and the wind returneth again to its circuits.
7 सब नदियाँ समन्दर में गिरती हैं, लेकिन समन्दर भर नहीं जाता; नदियाँ जहाँ से निकलती हैं उधर ही को फिर जाती हैं।
All the rivers run into the sea, yet the sea is not full: unto the place whither the rivers go, thither they go again.
8 सब चीजें मान्दगी से भरी हैं, आदमी इसका बयान नहीं कर सकता। आँख देखने से आसूदा नहीं होती, और कान सुनने से नहीं भरता।
All things are full of toil; none can express it. The eye is not satisfied with seeing, nor the ear filled with hearing.
9 जो हुआ वही फिर होगा, और जो चीज़ बन चुकी है वही है जो बनाई जाएगी, और दुनिया में कोई चीज़ नई नहीं।
That which hath been is that which shall be; and that which hath been done is that which will be done: and there is nothing new under the sun.
10 क्या कोई चीज़ ऐसी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि देखो ये तो नई है? वह तो साबिक़ में हम से पहले के ज़मानों में मौजूद थी।
Is there a thing whereof it may be said, See, this is new? It hath been already in the ages which were before us.
11 अगलों की कोई यादगार नहीं, और आनेवालों की अपने बाद के लोगों के बीच कोई याद न होगी।
There is no remembrance of former things; neither shall there be remembrance of things that are to come with those who shall live afterwards.
12 मैं वा'इज़ येरूशलेम में बनी — इस्राईल का बा'दशाह था।
I, the Preacher, was king over Israel in Jerusalem.
13 और मैंने अपना दिल लगाया कि जो कुछ आसमान के नीचे किया जाता है, उस सब की तफ़्तीश — ओ — तहक़ीक़ करूँ। ख़ुदा ने बनी आदम को ये सख़्त दुख दिया है कि वह दुख़ दर्द में मुब्तिला रहें।
And I applied my heart to seek and search out by wisdom concerning all that is done under the heavens: this grievous occupation hath God given to the children of men to weary themselves therewith.
14 मैंने सब कामों पर जो दुनिया में किए जाते हैं नज़र की; और देखो, ये सब कुछ बेकार और हवा की चरान है।
I have seen all the works that are done under the sun, and behold, all is vanity and pursuit of the wind.
15 वह जो टेढ़ा है सीधा नहीं हो सकता, और नाक़िस का शुमार नहीं हो सकता।
That which is crooked cannot be made straight; and that which is wanting cannot be numbered.
16 मैंने ये बात अपने दिल में कही, “देख, मैंने बड़ी तरक़्क़ी की बल्कि उन सभों से जो मुझ से पहले येरूशलेम में थे, ज़्यादा हिकमत हासिल की; हाँ, मेरा दिल हिकमत और दानिश में बड़ा कारदान हुआ।”
I communed with mine own heart, saying, Lo, I have become great and have acquired wisdom more than all they that have been before me over Jerusalem; and my heart hath seen much of wisdom and knowledge.
17 लेकिन जब मैंने हिकमत के जानने और हिमाक़त — ओ — जहालत के समझने पर दिल लगाया, तो मा'लूम किया कि ये भी हवा की चरान है।
And I applied my heart to the knowledge of wisdom, and to the knowledge of madness and folly: I perceived that this also is a striving after the wind.
18 क्यूँकि बहुत हिकमत में बहुत ग़म है, और 'इल्म में तरक़्क़ी दुख की ज़्यादती है।
For in much wisdom is much vexation, and he that increaseth knowledge increaseth sorrow.