< इस्त 4 >

1 “और अब ऐ इस्राईलियो, जो आईन और अहकाम मैं तुमको सिखाता हूँ तुम उन पर 'अमल करने के लिए उनको सुन लो, ताकि तुम ज़िन्दा रहो और उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारे बाप — दादा का ख़ुदा तुमको देता है, दाख़िल हो कर उस पर क़ब्ज़ा कर लो।
وَالآنَ أَصْغُوا يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ إِلَى الشَّرَائِعِ وَالأَحْكَامِ الَّتِي أُعَلِّمُهَا لَكُمْ لِتَعْمَلُوا بِها، فَتَحْيَوْا وَتَدْخُلُوا لاِمْتِلاكِ الأَرْضِ الَّتِي يُوَرِّثُهَا لَكُمُ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ١
2 जिस बात का मैं तुमको हुक्म देता हूँ, उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न कुछ घटाना; ताकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को जो मैं तुमको बताता हूँ मान सको।
لَا تُضِيفُوا عَلَى مَا أُوصِيكُمْ بِهِ وَلا تُنَقِّصُوا مِنْهُ، بَلْ أَطِيعُوا أَوَامِرَ الرَّبِّ إِلَهِكُمُ الَّتِي أُوْصِيكُمْ بِها.٢
3 जो कुछ ख़ुदावन्द ने बा'ल फ़ग़ूर की वजह से किया, वह तुमने अपनी आँखों से देखा है; क्यूँकि उन सब आदमियों को जिन्होंने बा'ल फ़ग़ूर की पैरवी की, ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे बीच से नाबूद कर दिया।
لَقَدْ شَهِدَتْ أَعْيُنُكُمْ مَا أَنْزَلَ الرَّبُّ بِبَعْلِ فَغُورَ، إِذْ أَبَادَ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ مِنْ بَيْنِكُمْ كُلَّ مَنْ غَوَى وَرَاءَ بَعْلِ فَغُورَ.٣
4 पर तुम जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से लिपटे रहे हो, सब के सब आज तक ज़िन्दा हो।
وَأَمَّا أَنْتُمُ الَّذِينَ تَعَلَّقْتُمْ بِالرَّبِّ إِلَهِكُمْ فَجَمِيعُكُمْ أَحْيَاءُ الْيَوْمَ.٤
5 देखो, जैसा ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा ने मुझे हुक्म दिया, उसके मुताबिक़ मैंने तुमको आईन और अहकाम सिखा दिए हैं; ताकि उस मुल्क में उन पर 'अमल करो जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए जा रहे हो।
انْظُرُوا، هَا أَنَا قَدْ عَلَّمْتُكُمْ شَرَائِعَ وَأَحْكَاماً كَمَا أَمَرَنِي الرَّبُّ إِلَهِي لِتَعْمَلُوا بِمُوْجِبِهَا فِي الأَرْضِ الَّتِي أَنْتُمْ مَاضُونَ إِلَيْهَا لِتَرِثُوهَا.٥
6 इसलिए तुम इनको मानना और 'अमल में लाना, क्यूँकि और क़ौमों के सामने यही तुम्हारी 'अक़्ल और दानिश ठहरेंगे। वह इन तमाम क़वानीन को सुन कर कहेंगी, कि यक़ीनन ये बुज़ुर्ग क़ौम निहायत 'अक़्लमन्द और समझदार है।
فَاحْفَظُوهَا وَطَبِّقُوهَا، لأَنَّهَا هِيَ حِكْمَتُكُمْ وَفِطْنَتُكُمْ لَدَى الشُّعُوبِ الَّذِينَ يَسْمَعُونَ عَنْ هَذِهِ الشَّرَائِعِ، فَيَقُولُوا: إِنَّ هَذَا الشَّعْبَ الْعَظِيمَ هُوَ حَقّاً شَعْبٌ حَكِيمٌ فَطِنٌ.٦
7 क्यूँकि ऐसी बड़ी क़ौम कौन है जिसका मा'बूद इस क़द्र उसके नज़दीक हो जैसा ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा, कि जब कभी हम उससे दुआ करें हमारे नज़दीक है?
لأَنَّهُ أَيُّ شَعْبٍ، مَهْمَا عَظُمَ، لَهُ آلِهَةٌ قَرِيبَةٌ مِنْهُ مِثْلُ الرَّبِّ إِلَهِنَا فِي كُلِّ مَا نَدْعُوهُ؟٧
8 और कौन ऐसी बुज़ुर्ग क़ौम है जिसके आईन और अहकाम ऐसे रास्त हैं जैसी ये सारी शरी'अत है, जिसे मैं आज तुम्हारे सामने रखता हूँ।
وَأَيُّ شَعْبٍ، مَهْمَا عَظُمَ، لَدَيْهِ شَرَائِعُ وَأَحْكَامٌ عَادِلَةٌ نَظِيرُ هَذِهِ الشَّرَائِعِ الَّتِي أَضَعُهَا الْيَوْمَ أَمَامَكُمْ؟٨
9 “इसलिए तुम ज़रूर ही अपनी एहतियात रखना और बड़ी हिफ़ाज़त करना, ऐसा न हो कि तुम वह बातें जो तुमने अपनी आँख से देखी हैं भूल जाओ और वह ज़िन्दगी भर के लिए तुम्हारे दिल से जाती रहें; बल्कि तुम उनको अपने बेटों और पोतों को सिखाना।
إِنَّمَا احْتَرِزُوا وَاحْذَرُوا لِئَلّا تَنْسَوْا الأُمُورَ الَّتِي شَهِدَتْهَا أَعْيُنُكُمْ فَلا تَنْمَحِي مِنْ قُلُوبِكُمْ كُلَّ أَيَّامِ حَيَاتِكُمْ. وَعَلِّمُوهَا لأَوْلادِكُمْ وَلأَحْفَادِكُمْ.٩
10 ख़ासकर उस दिन की बातें, जब तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने होरिब में खड़ा हुआ; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझसे कहा था, कि क़ौम को मेरे सामने जमा' कर और मैं उनको अपनी बातें सुनाऊँगा ताकि वह ये सीखें कि ज़िन्दगी भर, जब तक ज़मीन पर ज़िन्दा रहें मेरा ख़ौफ़ मानें और अपने बाल — बच्चों को भी यही सिखाएँ।
فَفِي الْيَوْمِ الَّذِي مَثَلْتُمْ فِيهِ أَمَامَ الرَّبِّ إِلَهِكُمْ فِي جَبَلِ حُورِيبَ، حِينَ قَالَ لِي الرَّبُّ: اجْمَعْ لِيَ الشَّعْبَ حَتَّى أُسْمِعَهُمْ كَلامِي، فَيَتَعَلَّمُوا مَخَافَتِي طَوَالَ أَيَّامِ حَيَاتِهِمْ عَلَى الأَرْضِ، وَيُعَلِّمُوا أَوْلادَهُمْ أَيْضاً.١٠
11 चुनाँचे तुम नज़दीक जाकर उस पहाड़ के नीचे खड़े हुए, और वह पहाड़ आग से दहक रहा था और उसकी लौ आसमान तक पहुँचती थी और चारों तरफ़ तारीकी और घटा और ज़ुलमत थी।
فَتَقَدَّمْتُمْ وَوَقَفْتُمْ عِنْدَ سَفْحِ الْجَبَلِ الْمُشْتَعِلِ بِنَارٍ امْتَدَّتْ أَلْسِنَةُ لَهَبِهَا إِلَى كَبِدِ السَّمَاءِ، وَتَلَفَّعَتْ بِسُحُبٍ دَاكِنَةٍ وَضَبَابٍ.١١
12 और ख़ुदावन्द ने उस आग में से होकर तुमसे कलाम किया; तुमने बातें तो सुनीं लेकिन कोई सूरत न देखी, सिर्फ़ आवाज़ ही आवाज़ सुनी।
فَخَاطَبَكُمُ الرَّبُّ مِنْ وَسَطِ النَّارِ، فَسَمِعْتُمْ صَوْتَ كَلِمَاتِهِ مِنْ غَيْرِ أَنْ تُبْصِرُوا لَهُ صُورَةً.١٢
13 और उसने तुमको अपने 'अहद के दसों अहकाम बताकर उनके मानने का हुक्म दिया, और उनको पत्थर की दो तख़्तियों पर लिख भी दिया।
وَأَعْلَنَ لَكُمْ عَهْدَهُ، الْوَصَايَا الْعَشَرَ الَّتِي نَقَشَهَا عَلَى لَوْحَيْ حَجَرٍ، وَأَمَرَكُمْ أَنْ تَعْمَلُوا بِها.١٣
14 उस वक़्त ख़ुदावन्द ने मुझे हुक्म दिया, कि तुमको यह आईन और अहकाम सिखाऊँ ताकि तुम उस मुल्क में जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए जा रहे हो, उन पर 'अमल करो।
كَمَا أَمَرَنِي فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ أَنْ أُعَلِّمَكُمْ شَرَائِعَهُ وَأَحْكَامَهُ لِتُطَبِّقُوهَا فِي الأَرْضِ الَّتِي أَنْتُمْ مَاضُونَ إِلَيْهَا لِتَرِثُوهَا.١٤
15 “इसलिए तुम अपनी ख़ूब ही एहतियात रखना; क्यूँकि तुमने उस दिन जब ख़ुदावन्द ने आग में से होकर होरिब में तुमसे कलाम किया, किसी तरह की कोई सूरत नहीं देखी।
فَاحْذَرُوا لأَنْفُسِكُمْ جِدّاً، فَأَنْتُمْ لَمْ تَرَوْا صُورَةً مَا حِينَ خَاطَبَكُمُ الرَّبُّ فِي جَبَلِ حُورِيبَ مِنْ وَسَطِ النَّارِ.١٥
16 ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर किसी शक्ल या सूरत की खोदी हुई मूरत अपने लिए बना लो, जिसकी शबीह किसी मर्द या 'औरत,
لِئَلّا تَفْسَدُوا فَتَنْحَتُوا لَكُمْ تِمْثَالاً لِصُورَةٍ مَا لِمِثَالِ رَجُلٍ أَوِ امْرَأَةٍ.١٦
17 या ज़मीन के किसी हैवान या हवा में उड़ने वाले परिन्दे,
أَوْ شِبْهَ بَهِيمَةٍ مَا مِمَّا عَلَى الأَرْضِ، أَوْ شِبْهَ طَيْرٍ مَا مِنْ طُيُورِ السَّمَاءِ.١٧
18 या ज़मीन के रेंगनेवाले जानदार या मछली से, जो ज़मीन के नीचे पानी में रहती है मिलती हो;
أَوْ شِبْهَ كَائِنٍ مَا مِنْ زَوَاحِفِ الأَرْضِ، أَوْ شِبْهَ سَمَكٍ مَا مِمَّا فِي الْمَاءِ تَحْتَ الأَرْضِ.١٨
19 या जब तू आसमान की तरफ नज़र करे और तमाम अजराम — ए — फ़लक या'नी सूरज और चाँद और तारों को देखे, तो गुमराह होकर उन्हीं को सिज्दा और उनकी इबादत करने लगे जिनको ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने इस ज़मीन की सब क़ौमों के लिए रख्खा है।
أَوْ لِئَلّا تَتَطَلَّعُوا إِلَى السَّمَاءِ فَتُشَاهِدُوا الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ وَالنُّجُومَ وَالأَجْرَامَ السَّمَاوِيَّةَ الَّتِي وَزَّعَهَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ عَلَى جَمِيعِ الأُمَمِ الَّتِي تَحْتَ السَّمَاءِ، فَتَغْوُوا وَتَسْجُدُوا لَهَا وَتَعْبُدُوهَا.١٩
20 लेकिन ख़ुदावन्द ने तुमको चुना, और तुमको जैसे लोहे की भट्टी या'नी मिस्र से निकाल ले आया है ताकि तुम उसकी मीरास के लोग ठहरो, जैसा आज ज़ाहिर है।
أَمَّا أَنْتُمْ فَقَدِ اخْتَارَكُمُ الرَّبُّ وَأَخْرَجَكُمْ مِنْ أَتُونِ الْحَدِيدِ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ لِتَكُونُوا لَهُ شَعْبَ مِيرَاثِهِ، كَمَا أَنْتُمُ الْيَوْمَ.٢٠
21 और तुम्हारी ही वजह से ख़ुदावन्द ने मुझसे नाराज़ होकर क़सम खाई, कि मैं यरदन पार न जाऊँ और न उस अच्छे मुल्क में पहुँचने पाऊँ, जिसे ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा मीरास के तौर पर तुझको देता है;
وَلَكِنَّ الرَّبَّ غَضِبَ عَلَيَّ مِنْ أَجْلِكُمْ وَأَقْسَمَ أَلّا أَعْبُرَ نَهْرَ الأُرْدُنِّ وَلا أَطَأَ الأَرْضَ الْخَصِيبَةَ الَّتِي وَهَبَكُمْ إِيَّاهَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ نَصِيباً.٢١
22 बल्कि मुझे इसी मुल्क में मरना है, मैं यरदन पार नहीं जा सकता; लेकिन तुम पार जाकर उस अच्छे मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे।
كَذَلِكَ فَأَنَا أَمُوتُ فِي هَذِهِ الأَرْضِ مِنْ غَيْرِ أَنْ أَجْتَازَ نَهْرَ الأُرْدُنِّ. وَأَمَّا أَنْتُمْ فَتَعْبُرُونَهُ وَتَرِثُونَ تِلْكَ الأَرْضَ الْخَصِيبَةَ.٢٢
23 इसलिए तुम एहतियात रखो, ऐसा न हो कि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के उस 'अहद को जो उसने तुमसे बाँधा है भूल जाओ, और अपने लिए किसी चीज़ की शबीह की खोदी हुई मूरत बना लो जिसे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको मना' किया है
وَلَكِنْ إِيَّاكُمْ أَنْ تَنْسَوْا عَهْدَ الرَّبِّ إِلَهِكُمُ الَّذِي قَطَعَهُ مَعَكُمْ وَتَنْحَتُوا لأَنْفُسِكُمْ تِمْثَالاً لِصُورَةٍ مَا مِمَّا نَهَاكُمُ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ عَنْهُ.٢٣
24 क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा भसम करने वाली आग है; वह ग़य्यूर ख़ुदा है।
لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ هُوَ نَارٌ آكِلَةٌ وَإِلَهٌ غَيُورٌ.٢٤
25 और जब तुझसे बेटे और पोते पैदा हों और तुमको उस मुल्क में रहते हुए एक ज़माना हो जाए, और तुम बिगड़कर किसी चीज़ की शबीह की खोदी हुई मूरत बना लो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने शरारत करके उसे ग़ुस्सा दिलाओ;
وَإذَا أَنْجَبْتُمْ بَنِينَ وَأَحْفَاداً وَمَكَثْتُمْ طَوِيلاً فِي الأَرْضِ، ثُمَّ غَوَيْتُمْ فَنَحَتُّمْ لَكُمْ تِمْثَالاً لِصُورَةِ شَيْءٍ مَا، وَارْتَكَبْتُمُ الشَّرَّ فِي عَيْنَيِ الرَّبِّ إِلَهِكُمْ لإِثَارَةِ غَيْظِهِ،٢٥
26 तो मैं आज के दिन तुम्हारे बरख़िलाफ़ आसमान और ज़मीन को गवाह बनाता हूँ कि तुम उस मुल्क से, जिस पर क़ब्ज़ा करने को यरदन पार जाने पर हो, जल्द बिल्कुल फ़ना हो जाओगे; तुम वहाँ बहुत दिन रहने न पाओगे बल्कि बिल्कुल नाबूद कर दिए जाओगे।
فَإِنَّنِي أُشْهِدُ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ السَّمَاءَ وَالأَرْضَ، أَنَّكُمْ تَنْقَرِضُونَ سَرِيعاً مِنَ الْأَرْضِ الَّتِي أَنْتُمْ عَابِرُونَ نَهْرَ الأُرْدُنِّ إِلَيْهَا لِتَرِثُوهَا، وَلَنْ تَطُولَ بِكُمُ الأَيَّامُ عَلَيْهَا، إِذْ لابُدَّ أَنَّكُمْ حِينَئِذٍ هَالِكُونَ.٢٦
27 और ख़ुदावन्द तुमको क़ौमों में तितर बितर करेगा; और जिन क़ौमों के बीच ख़ुदावन्द तुमको पहुँचाएगा उनमें तुम थोड़े से रह जाओगे।
وَيُشَتِّتُكُمُ الرَّبُّ بَيْنَ الأُمَمِ فَتُصْبِحُونَ أَقَلِّيَّةً بَيْنَ الشُّعُوبِ الَّتِي يَسُوقُكُمْ إِلَيْهَا.٢٧
28 और वहाँ तुम आदमियों के हाथ के बने हुए लकड़ी और पत्थर के मा'बूदों की इबादत करोगे, जो न देखते न सुनते न खाते न सूँघते हैं।
وَهُنَاكَ تَعْبُدُونَ آلِهَةً مِنْ خَشَبٍ وَحَجَرٍ مِنْ صَنْعَةِ أَيْدِي النَّاسِ، مِمَّا لَا يُبْصِرُ وَلا يَسْمَعُ وَلا يَأْكُلُ وَلا يَشُمُّ.٢٨
29 लेकिन वहाँ भी अगर तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब हो तो वह तुझको मिल जाएगा, बशर्ते कि तुम अपने पूरे दिल से और अपनी सारी जान से उसे ढूँढो।
وَلَكِنْ إِنْ طَلَبْتُمْ مِنْ هُنَاكَ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ، مُلْتَمِسِينَهُ مِنْ كُلِّ قُلُوبِكُمْ وَنُفُوسِكُمْ، فَإِنَّكُمْ تَجِدُونَهُ.٢٩
30 जब तू मुसीबत में पड़ेगा और यह सब बातें तुझ पर गुज़रेंगी तो आख़िरी दिनों में तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तरफ़ फिरेगा और उसकी मानेगा;
فَعِنْدَمَا يَكْتَنِفُكُمُ الضِّيقُ وَتُصِيبُكُمْ فِي آخِرِ الأَيَّامِ جَمِيعُ هَذِهِ الأُمُورِ، عِنْدَئِذٍ تَرْجِعُونَ إِلَى الرَّبِّ إِلَهِكُمْ وَتُطِيعُونَ أَوَامِرَهُ.٣٠
31 क्यूँकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, रहीम ख़ुदा है, वह तुझको न तो छोड़ेगा और न हलाक करेगा और न उस 'अहद को भूलेगा जिसकी क़सम उसने तुम्हारे बाप — दादा से खाई।
لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ إِلَهٌ رَحِيمٌ لَا يَنْبِذُكُمْ وَلا يُفْنِيكُمْ، وَلا يَنْسَى عَهْدَ آبَائِكُمُ الَّذِي أَقْسَمَ لَهُمْ عَلَيْهِ.٣١
32 “और जब से ख़ुदा ने इंसान को ज़मीन पर पैदा किया, तब से शुरू' करके तुम उन गुज़रे दिनों का हाल जो तुमसे पहले हो चुके पूछ, और आसमान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक दरियाफ़्त कर, कि इतनी बड़ी वारदात की तरह कभी कोई बात हुई या सुनने में भी आई?
فَاسْأَلُوا عَنِ الأَيَّامِ الْغَابِرَةِ الَّتِي انْقَضَتْ قَبْلَكُمْ، مُنْذُ الْيَوْمِ الَّذِي خَلَقَ اللهُ فِيهِ الإِنْسَانَ عَلَى الأَرْضِ. اسْأَلْ مِنْ أَقْصَى السَّمَاوَاتِ إِلَى أَقْصَاهَا: هَلْ حَدَثَ قَطُّ مِثْلُ هَذَا الأَمْرِ الْعَظِيمِ؟ وَهَلْ سَمِعَ أَحَدٌ بِمِثْلِهِ؟٣٢
33 क्या कभी कोई क़ौम ख़ुदा की आवाज़ जैसे तू ने सुनी, आग में से आती हुई सुन कर ज़िन्दा बची है?
هَلْ سَمِعَتْ أُمَّةٌ صَوْتَ اللهِ يَتَكَلَّمُ مِنْ وَسَطِ النَّارِ كَمَا سَمِعْتُمْ أَنْتُمْ، وَعَاشَتْ؟٣٣
34 या कभी ख़ुदा ने एक क़ौम को किसी दूसरी क़ौम के बीच से निकालने का इरादा करके, इम्तिहानों और निशान और मो'जिज़ों और जंग और ताक़तवर हाथ और बलन्द बाज़ू और हौलनाक माजरों के वसीले से, उनको अपनी ख़ातिर बरगुज़ीदा करने के लिए वह काम किए जो ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारी आँखों के सामने मिस्र में तुम्हारे लिए किए?
وَهَلْ حَاوَلَ إِلَهٌ قَطُّ أَنْ يَأْخُذَ لِنَفْسِهِ شَعْباً مِنْ وَسَطِ شَعْبٍ آخَرَ مُجْرِياً تَجَارِبَ وَآيَاتٍ وَمُعْجِزَاتٍ وَحُرُوباً وَقُدْرَةً فَائِقَةً وَقُوَّةً شَدِيدَةً وَمَخَاوِفَ عَظِيمَةً كَمَا صَنَعَ مَعَكُمُ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ فِي مِصْرَ عَلَى مَرْأَى مِنْكُمْ؟٣٤
35 यह सब कुछ तुझको दिखाया गया, ताकि तू जाने कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके अलावा और कोई है ही नहीं।
لَقَدِ اطَّلَعْتُمْ عَلَى هَذِهِ كُلِّهَا لِتَعْلَمُوا أَنَّ الرَّبَّ هُوَ الإِلَهُ، وَلَيْسَ آخَرَ سِوَاهُ.٣٥
36 उसने अपनी आवाज़ आसमान में से तुमको सुनाई ताकि तुझको तरबियत करे, और ज़मीन पर उसने तुझको अपनी बड़ी आग दिखाई; और तुमने उसकी बातें आग के बीच में से आती हुई सुनी।
فَقَدْ أَسْمَعَكُمْ صَوْتَهُ مِنَ السَّمَاءِ لِيُنْذِرَكُمْ. وَأَرَاكُمْ نَارَهُ الْعَظِيمَةَ عَلَى الْأَرْضِ، وَسَمِعْتُمْ صَوْتَهُ مِنْ وَسَطِ النَّارِ.٣٦
37 और चूँकि उसे तेरे बाप — दादा से मुहब्बत थी, इसीलिए उसने उनके बाद उनकी नसल को चुन लिया, और तेरे साथ होकर अपनी बड़ी कुदरत से तुझको मिस्र से निकाल लाया;
وَلأَنَّهُ قَدْ أَحَبَّ آبَاءَكُمْ، وَاخْتَارَ ذُرِّيَّتَهُمْ مِنْ بَعْدِهِمْ، أَخْرَجَكُمْ بِنَفْسِهِ وَبِقُدْرَتِهِ الْعَظِيمَةِ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ،٣٧
38 ताकि तुम्हारे सामने से उन क़ौमों को जो तुझ से बड़ी और ताक़तवर हैं दफ़ा' करे, और तुझको उनके मुल्क में पहुँचाए, और उसे तुझको मीरास के तौर पर दे, जैसा आज के दिन ज़ाहिर है।
وَطَرَدَ مِنْ أَمَامِكُمْ أُمَماً أَكْبَرَ مِنْكُمْ وَأَعْظَمَ، لِيَأْتِيَ بِكُمْ إِلَى أَرْضِهِمْ وَيُوَرِّثَكُمْ إِيَّاهَا، كَمَا حَدَثَ فِي هَذَا الْيَوْمِ.٣٨
39 इसलिए आज के दिन तू जान ले और इस बात को अपने दिल में जमा ले, कि ऊपर आसमान में और नीचे ज़मीन पर ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और कोई दूसरा नहीं।
فَاعْتَرِفُوا الْيَوْمَ وَرَدِّدُوا فِي قُلُوبِكُمْ قَائِلِينَ: إِنَّ الرَّبَّ هُوَ الإِلَهُ فِي السَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ، وَعَلَى الأَرْضِ مِنْ تَحْتُ وَلَيْسَ إِلَهٌ سِوَاهُ.٣٩
40 इसलिए तू उसके आईन और अहकाम को जो मैं तुझको आज बताता हूँ मानना, ताकि तेरा और तेरे बाद तेरी औलाद का भला हो, और हमेशा उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है तेरी उम्र दराज़ हो।”
فَاحْفَظُوا الْيَوْمَ مَا أُوْصِيكُمْ بِهِ مِنْ شَرَائِعِهِ وَأَحْكَامِهِ لِيُحْسِنَ الرَّبُّ إِلَيْكُمْ وَإِلَى أَوْلادِكُمْ مِنْ بَعْدِكُمْ، فَيُطِيلَ أَيَّامَكُمْ عَلَى الأَرْضِ الَّتِي وَهَبَكُمْ إِيَّاهَا إِلَى الأَبَدِ.٤٠
41 फिर मूसा ने यरदन के पार पूरब की तरफ़ तीन शहर अलग किए,
ثُمَّ خَصَّصَ مُوسَى ثَلاثَ مُدُنٍ شَرْقِيَّ نَهْرِ الأُرْدُنِّ،٤١
42 ताकि ऐसा ख़ूनी जो अनजाने बग़ैर क़दीमी 'अदावत के अपने पड़ोसी को मार डाले, वह वहाँ भाग जाए और इन शहरों में से किसी में जाकर जीता बच रहे।
لِيَلْجَأَ إِلَيْهَا الْقَاتِلُ غَيْرُ الْمُتَعَمِّدِ، الَّذِي لَا يَضْمِرُ عَدَاءً سَابِقاً لِلْقَتِيلِ، فَيَجِدُ فِي إِحْدَى تِلْكَ الْمُدُنِ مَلْجَأً وَيَحْيَا.٤٢
43 या'नी रूबीनियों के लिए तो शहर — ए — बसर हो जो तराई में वीरान के बीच वाक़े' है, और जद्दियों के लिए शहर — ए — रामात जो जिल'आद में है, और मनस्सियों के लिए बसन का शहर — ए — जौलान।
أَمَّا هَذِهِ الْمُدُنُ فَكانَتْ: بَاصَرَ فِي الصَّحْرَاءِ فِي أَرْضِ السَّهْلِ فِي دِيَارِ الرَّأُوبَيْنِيِّينَ وَرَامُوتَ فِي جِلْعَادَ فِي بِلادِ الْجَادِيِّينَ، وَجُولانَ فِي بَاشَانَ فِي مِنْطَقَةِ الْمَنَسِّيِّينَ.٤٣
44 यह वह शरी'अत है जो मूसा ने बनी — इस्राईल के आगे पेश की।
وَهَذِهِ هِيَ الشَّرِيعَةُ الَّتِي وَضَعَهَا أَمَامَ بَنِي إِسْرَائِيلَ،٤٤
45 यही वह शहादतें और आईन और अहकाम हैं जिनको मूसा ने बनी — इस्राईल को उनके मिस्र से निकलने के बा'द,
وَهَذِهِ هِيَ الشُّرُوطُ وَالْفَرَائِضُ وَالأَحْكَامُ الَّتِي خَاطَبَ بِها مُوسَى بَنِي إِسْرَائِيلَ عِنْدَ خُرُوجِهِمْ مِنْ مِصْرَ،٤٥
46 यरदन के पार उस वादी में जो बैत फ़ग़ूर के सामने है, कह सुनाया; या'नी अमोरियों के बादशाह सीहोन के मुल्क में जो हस्बोन में रहता था, जिसे मूसा और बनी इस्राईल ने मुल्क — ए — मिस्र से निकलने के बाद मारा।
وَهُمْ مُخَيِّمُونَ شَرْقِيَّ نَهْرِ الأُرْدُنِّ، فِي الْوَادِي بِجِوَارِ بَيْتِ فَغُورَ فِي أَرْضِ سِيحُونَ مَلِكِ الأَمُورِيِّينَ الَّذِي كَانَ مُقِيماً فِي حَشْبُونَ، فَقَضَى عَلَيْهِ مُوسَى وَالإِسْرَائِيلِيُّونَ عِنْدَ خُرُوجِهِمْ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ.٤٦
47 और फिर उसके मुल्क को, और बसन के बादशाह 'ओज के मुल्क को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। अमोरियों के इन दोनों बादशाहों का यह मुल्क यरदन पार पूरब की तरफ़,
فَامْتَلَكُوا بِلادَهُ وَبِلادَ عُوجٍ مَلِكِ بَاشَانَ، مَلِكَيِ الأَمُورِيِّينَ اللَّذَيْنِ كَانَا مُقِيمَيْنِ شَرْقِيَّ نَهْرِ الأُرْدُنِّ،٤٧
48 'अरो'ईर से जो वादी — ए — अरनोन के किनारे वाक़े' है, कोह — ए — सियून तक जिसे हरमून भी कहते हैं, फैला हुआ है।
مِنْ عَرُوعِيرَ الْوَاقِعَةِ عَلَى حَافَةِ وَادِي أَرْنُونَ، إِلَى جَبَلِ سِيئُونَ الَّذِي هُوَ حَرْمُونُ،٤٨
49 इसी में यरदन पार पूरब की तरफ़ मैदान के दरिया तक जो पिसगा की ढाल के नीचे बहता है, वहाँ का सारा मैदान शामिल है।
وَكُلَّ وَادِي الْعَرَبَةِ شَرْقِيَّ نَهْرِ الأُرْدُنِّ، حَتَّى الْبَحْرِ الْمَيِّتِ عِنْدَ سُفُوحِ الْفِسْجَةِ.٤٩

< इस्त 4 >