< इस्त 12 >

1 “जब तक तुम दुनिया में ज़िन्दा रहो तुम एहतियात करके इन ही आईन और अहकाम पर उस मुल्क में 'अमल करना जिसे ख़ुदावन्द तेरे बाप — दादा के ख़ुदा ने तुझको दिया है, ताकि तू उस पर क़ब्ज़ा करे।
אֵ֠לֶּה הֽ͏ַחֻקִּ֣ים וְהַמִּשְׁפָּטִים֮ אֲשֶׁ֣ר תִּשְׁמְר֣וּן לַעֲשֹׂות֒ בָּאָ֕רֶץ אֲשֶׁר֩ נָתַ֨ן יְהוָ֜ה אֱלֹהֵ֧י אֲבֹתֶ֛יךָ לְךָ֖ לְרִשְׁתָּ֑הּ כָּל־הַיָּמִ֔ים אֲשֶׁר־אַתֶּ֥ם חַיִּ֖ים עַל־הָאֲדָמָֽה׃
2 वहाँ तुम ज़रूर उन सब जगहों को बर्बाद कर देना जहाँ — जहाँ वह क़ौमें जिनके तुम वारिस होगे, ऊँचे ऊँचे पहाड़ों पर और टीलों पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे अपने मा'बूदों की पूजा करती थीं।
אַבֵּ֣ד תְּ֠אַבְּדוּן אֶֽת־כָּל־הַמְּקֹמֹ֞ות אֲשֶׁ֧ר עָֽבְדוּ־שָׁ֣ם הַגֹּויִ֗ם אֲשֶׁ֥ר אַתֶּ֛ם יֹרְשִׁ֥ים אֹתָ֖ם אֶת־אֱלֹהֵיהֶ֑ם עַל־הֶהָרִ֤ים הָֽרָמִים֙ וְעַל־הַגְּבָעֹ֔ות וְתַ֖חַת כָּל־עֵ֥ץ רַעֲנָן׃
3 तुम उनके मज़बहों को ढा देना, और उनके सुतूनों को तोड़ डालना, और उनकी यसीरतों को आग लगा देना, और उनके मा'बूदों की खुदी हुई मूरतों को काट कर गिरा देना, और उस जगह से उनके नाम तक को मिटा डालना।
וְנִתַּצְתֶּ֣ם אֶת־מִזְבּחֹתָ֗ם וְשִׁבַּרְתֶּם֙ אֶת־מַצֵּ֣בֹתָ֔ם וַאֲשֵֽׁרֵיהֶם֙ תִּשְׂרְפ֣וּן בָּאֵ֔שׁ וּפְסִילֵ֥י אֱלֹֽהֵיהֶ֖ם תְּגַדֵּע֑וּן וְאִבַּדְתֶּ֣ם אֶת־שְׁמָ֔ם מִן־הַמָּקֹ֖ום הַהֽוּא׃
4 लेकिन ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से ऐसा न करना।
לֹֽא־תַעֲשׂ֣וּן כֵּ֔ן לַיהוָ֖ה אֱלֹהֵיכֶֽם׃
5 बल्कि जिस जगह को ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे सब क़बीलों में से चुन ले, ताकि वहाँ अपना नाम क़ाईम करे, तुम उसके उसी घर के तालिब होकर वहाँ जाया करना।
כִּ֠י אִֽם־אֶל־הַמָּקֹ֞ום אֲשֶׁר־יִבְחַ֨ר יְהוָ֤ה אֱלֹֽהֵיכֶם֙ מִכָּל־שִׁבְטֵיכֶ֔ם לָשׂ֥וּם אֶת־שְׁמֹ֖ו שָׁ֑ם לְשִׁכְנֹ֥ו תִדְרְשׁ֖וּ וּבָ֥אתָ שָֽׁמָּה׃
6 और वहीं तुम अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों और ज़बीहों और दहेकियों और उठाने की क़ुर्बानियों और अपनी मिन्नतों की चीज़ों और अपनी रज़ा की क़ुर्बानियों और गाय बैलों और भेड़ बकरियों के पहलौठों को पेश करना।
וַהֲבֵאתֶ֣ם שָׁ֗מָּה עֹלֹֽתֵיכֶם֙ וְזִבְחֵיכֶ֔ם וְאֵת֙ מַעְשְׂרֹ֣תֵיכֶ֔ם וְאֵ֖ת תְּרוּמַ֣ת יֶדְכֶ֑ם וְנִדְרֵיכֶם֙ וְנִדְבֹ֣תֵיכֶ֔ם וּבְכֹרֹ֥ת בְּקַרְכֶ֖ם וְצֹאנְכֶֽם׃
7 और वहीं ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने खाना और अपने घरानों समेत अपने हाथ की कमाई की ख़ुशी भी करना, जिसमें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने तुझको बरकत बख़्शी हो।
וַאֲכַלְתֶּם־שָׁ֗ם לִפְנֵי֙ יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶ֔ם וּשְׂמַחְתֶּ֗ם בְּכֹל֙ מִשְׁלַ֣ח יֶדְכֶ֔ם אַתֶּ֖ם וּבָתֵּיכֶ֑ם אֲשֶׁ֥ר בֵּֽרַכְךָ֖ יְהוָ֥ה אֱלֹהֶֽיךָ׃
8 और जैसे हम यहाँ जो काम जिसको ठीक दिखाई देता है वही करते हैं, ऐसे तुम वहाँ न करना।
לֹ֣א תַעֲשׂ֔וּן כְּ֠כֹל אֲשֶׁ֨ר אֲנַ֧חְנוּ עֹשִׂ֛ים פֹּ֖ה הַיֹּ֑ום אִ֖ישׁ כָּל־הַיָּשָׁ֥ר בְּעֵינָֽיו׃
9 क्यूँकि तुम अब तक उस आरामगाह और मीरास की जगह तक, जो ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है नहीं पहुँचे हो।
כִּ֥י לֹא־בָּאתֶ֖ם עַד־עָ֑תָּה אֶל־הַמְּנוּחָה֙ וְאֶל־הֽ͏ַנַּחֲלָ֔ה אֲשֶׁר־יְהוָ֥ה אֱלֹהֶ֖יךָ נֹתֵ֥ן לָֽךְ׃
10 लेकिन जब तुम यरदन पार जाकर उस मुल्क में जिसका मालिक ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुमको बनाता है बस जाओ, और वह तुम्हारे सब दुश्मनों की तरफ़ से जो चारों तरफ़ हैं तुमको राहत दे, और तुम अम्न से रहने लगो;
וַעֲבַרְתֶּם֮ אֶת־הַיַּרְדֵּן֒ וִֽישַׁבְתֶּ֣ם בָּאָ֔רֶץ אֲשֶׁר־יְהוָ֥ה אֱלֹהֵיכֶ֖ם מַנְחִ֣יל אֶתְכֶ֑ם וְהֵנִ֨יחַ לָכֶ֧ם מִכָּל־אֹיְבֵיכֶ֛ם מִסָּבִ֖יב וִֽישַׁבְתֶּם־בֶּֽטַח׃
11 तो वहाँ जिस जगह को ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा अपने नाम के घर के लिए चुन ले, वहीं तुम ये सब कुछ जिसका मैं तुमको हुक्म देता हूँ ले जाया करना; या'नी अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और ज़बीहे और अपनी दहेकियाँ, और अपने हाथ के उठाए हुए हदिये, और अपनी ख़ास नज़्र की चीज़ें जिनकी मन्नत तुमने ख़ुदावन्द के लिए मानी हो।
וְהָיָ֣ה הַמָּקֹ֗ום אֲשֶׁר־יִבְחַר֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהֵיכֶ֥ם בֹּו֙ לְשַׁכֵּ֤ן שְׁמֹו֙ שָׁ֔ם שָׁ֣מָּה תָבִ֔יאוּ אֵ֛ת כָּל־אֲשֶׁ֥ר אָנֹכִ֖י מְצַוֶּ֣ה אֶתְכֶ֑ם עֹולֹתֵיכֶ֣ם וְזִבְחֵיכֶ֗ם מַעְשְׂרֹֽתֵיכֶם֙ וּתְרֻמַ֣ת יֶדְכֶ֔ם וְכֹל֙ מִבְחַ֣ר נִדְרֵיכֶ֔ם אֲשֶׁ֥ר תִּדְּר֖וּ לַֽיהוָֽה׃
12 और वहीं तुम और तुम्हारे बेटे बेटियाँ और तुम्हारे नौकर चाकर और लौंडियाँ और वह लावी भी जो तुम्हारे फाटकों के अन्दर रहता हो और जिसका कोई हिस्सा या मीरास तुम्हारे साथ नहीं, सब के सब मिल कर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने ख़ुशी मनाना।
וּשְׂמַחְתֶּ֗ם לִפְנֵי֮ יְהוָ֣ה אֱלֹֽהֵיכֶם֒ אַתֶּ֗ם וּבְנֵיכֶם֙ וּבְנֹ֣תֵיכֶ֔ם וְעַבְדֵיכֶ֖ם וְאַמְהֹתֵיכֶ֑ם וְהַלֵּוִי֙ אֲשֶׁ֣ר בְּשֽׁ͏ַעֲרֵיכֶ֔ם כִּ֣י אֵ֥ין לֹ֛ו חֵ֥לֶק וְנַחֲלָ֖ה אִתְּכֶֽם׃
13 और तुम ख़बरदार रहना, कहीं ऐसा न हो कि जिस जगह को देख ले। वहीं अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी पेश करो।
הִשָּׁ֣מֶר לְךָ֔ פֶּֽן־תַּעֲלֶ֖ה עֹלֹתֶ֑יךָ בְּכָל־מָקֹ֖ום אֲשֶׁ֥ר תִּרְאֶֽה׃
14 बल्कि सिर्फ़ उसी जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरे किसी क़बीले में चुन ले, तू अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करना और वहीं सब कुछ जिसका मैं तुमको हुक्म देता हूँ करना।
כִּ֣י אִם־בַּמָּקֹ֞ום אֲשֶׁר־יִבְחַ֤ר יְהוָה֙ בְּאַחַ֣ד שְׁבָטֶ֔יךָ שָׁ֖ם תַּעֲלֶ֣ה עֹלֹתֶ֑יךָ וְשָׁ֣ם תַּעֲשֶׂ֔ה כֹּ֛ל אֲשֶׁ֥ר אָנֹכִ֖י מְצַוֶּֽךָּ׃
15 “लेकिन गोश्त को तुम अपने सब फाटकों के अन्दर अपने दिल की चाहत और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की दी हुई बरकत के मुवाफ़िक़ ज़बह कर के खा सकेगा। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी उसे खा सकेंगे, जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं।
רַק֩ בְּכָל־אַוַּ֨ת נַפְשְׁךָ֜ תִּזְבַּ֣ח ׀ וְאָכַלְתָּ֣ בָשָׂ֗ר כְּבִרְכַּ֨ת יְהוָ֧ה אֱלֹהֶ֛יךָ אֲשֶׁ֥ר נָֽתַן־לְךָ֖ בְּכָל־שְׁעָרֶ֑יךָ הַטָּמֵ֤א וְהַטָּהֹור֙ יֹאכְלֶ֔נּוּ כַּצְּבִ֖י וְכָאַיָּֽל׃
16 लेकिन तुम ख़ून को बिल्कुल न खाना, बल्कि तुम उसे पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना।
רַ֥ק הַדָּ֖ם לֹ֣א תֹאכֵ֑לוּ עַל־הָאָ֥רֶץ תִּשְׁפְּכֶ֖נּוּ כַּמָּֽיִם׃
17 और तू अपने फाटकों के अन्दर अपने ग़ल्ले और मय और तेल की दहेकियाँ, और गाय — बैलों और भेड़ — बकरियों के पहलौठे, और अपनी मन्नत मानी हुई चीज़ें और रज़ा की क़ुर्बानियाँ और अपने हाथ की उठाई हुई क़ुर्बानियाँ कभी न खाना।
לֹֽא־תוּכַ֞ל לֶאֱכֹ֣ל בִּשְׁעָרֶ֗יךָ מַעְשַׂ֤ר דְּגָֽנְךָ֙ וְתִֽירֹשְׁךָ֣ וְיִצְהָרֶ֔ךָ וּבְכֹרֹ֥ת בְּקָרְךָ֖ וְצֹאנֶ֑ךָ וְכָל־נְדָרֶ֙יךָ֙ אֲשֶׁ֣ר תִּדֹּ֔ר וְנִדְבֹתֶ֖יךָ וּתְרוּמַ֥ת יָדֶֽךָ׃
18 बल्कि तू और तेरे बेटे बेटियाँ और तेरे नौकर — चाकर और लौंडियाँ, और वह लावी भी जो तेरे फाटकों के अन्दर हो, उन चीज़ों को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने उस जगह खाना जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा चुन ले, और तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने अपने हाथ की कमाई की ख़ुशी मनाना।
כִּ֡י אִם־לִפְנֵי֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהֶ֜יךָ תֹּאכְלֶ֗נּוּ בַּמָּקֹום֙ אֲשֶׁ֨ר יִבְחַ֜ר יְהוָ֣ה אֱלֹהֶיךָ֮ בֹּו֒ אַתָּ֨ה וּבִנְךָ֤ וּבִתֶּ֙ךָ֙ וְעַבְדְּךָ֣ וַאֲמָתֶ֔ךָ וְהַלֵּוִ֖י אֲשֶׁ֣ר בִּשְׁעָרֶ֑יךָ וְשָׂמַחְתָּ֗ לִפְנֵי֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ בְּכֹ֖ל מִשְׁלַ֥ח יָדֶֽךָ׃
19 और ख़बरदार जब तक तू अपने मुल्क में ज़िन्दा रहे लावियों को छोड़ न देना।
הִשָּׁ֣מֶר לְךָ֔ פֶּֽן־תַּעֲזֹ֖ב אֶת־הַלֵּוִ֑י כָּל־יָמֶ֖יךָ עַל־אַדְמָתֶֽךָ׃ ס
20 “जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस वा'दे के मुताबिक़ जो उसने तुझ से किया है तुम्हारी सरहद को बढ़ाए, और तेरा जी गोश्त खाने को करे और तू कहने लगे कि मै तो गोश्त खाऊँगा, तो तू जैसा तेरा जी चाहे गोश्त खा सकता है।
כִּֽי־יַרְחִיב֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהֶ֥יךָ אֶֽת־גְּבֽוּלְךָ֮ כַּאֲשֶׁ֣ר דִּבֶּר־לָךְ֒ וְאָמַרְתָּ֙ אֹכְלָ֣ה בָשָׂ֔ר כִּֽי־תְאַוֶּ֥ה נַפְשְׁךָ֖ לֶאֱכֹ֣ל בָּשָׂ֑ר בְּכָל־אַוַּ֥ת נַפְשְׁךָ֖ תֹּאכַ֥ל בָּשָֽׂר׃
21 और अगर वह जगह जिसे ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने अपने नाम को वहाँ क़ाईम करने के लिए चुना है तेरे मकान से बहुत दूर हो, तो तूअपने गाय बैल और भेड़ — बकरी में से जिनको ख़ुदावन्द ने तुझको दिया है किसी को ज़बह कर लेना और जैसा मैंने तुझको हुक्म दिया है तू उसके गोश्त को अपने दिल की चाहत के मुताबिक़ अपने फाटकों के अन्दर खाना;
כִּֽי־יִרְחַ֨ק מִמְּךָ֜ הַמָּקֹ֗ום אֲשֶׁ֨ר יִבְחַ֜ר יְהוָ֣ה אֱלֹהֶיךָ֮ לָשׂ֣וּם שְׁמֹ֣ו שָׁם֒ וְזָבַחְתָּ֞ מִבְּקָרְךָ֣ וּמִצֹּֽאנְךָ֗ אֲשֶׁ֨ר נָתַ֤ן יְהוָה֙ לְךָ֔ כַּאֲשֶׁ֖ר צִוִּיתִ֑ךָ וְאָֽכַלְתָּ֙ בִּשְׁעָרֶ֔יךָ בְּכֹ֖ל אַוַּ֥ת נַפְשֶֽׁךָ׃
22 जैसे चिकारे और हिरन को खाते हैं वैसे ही तू उसे खाना। पाक और नापाक दोनों तरह के आदमी उसे एक जैसे खा सकेंगे।
אַ֗ךְ כַּאֲשֶׁ֨ר יֵאָכֵ֤ל אֶֽת־הַצְּבִי֙ וְאֶת־הָ֣אַיָּ֔ל כֵּ֖ן תֹּאכְלֶ֑נּוּ הַטָּמֵא֙ וְהַטָּהֹ֔ור יַחְדָּ֖ו יֹאכְלֶֽנּוּ׃
23 सिर्फ़ इतनी एहतियात ज़रूर रखना कि तू ख़ून को न खाना; क्यूँकि ख़ून ही तो जान है, इसलिए तू गोश्त के साथ जान को हरगिज़ न खाना।
רַ֣ק חֲזַ֗ק לְבִלְתִּי֙ אֲכֹ֣ל הַדָּ֔ם כִּ֥י הַדָּ֖ם ה֣וּא הַנָּ֑פֶשׁ וְלֹא־תֹאכַ֥ל הַנֶּ֖פֶשׁ עִם־הַבָּשָֽׂר׃
24 तू उसको खाना मत, बल्कि उसे पानी की तरह ज़मीन पर उँडेल देना;
לֹ֖א תֹּאכְלֶ֑נּוּ עַל־הָאָ֥רֶץ תִּשְׁפְּכֶ֖נּוּ כַּמָּֽיִם׃
25 तू उसे न खाना; ताकि तेरे उस काम के करने से जो ख़ुदावन्द की नज़र में ठीक है, तेरा और तेरे साथ तेरी औलाद का भी भला हो।
לֹ֖א תֹּאכְלֶ֑נּוּ לְמַ֨עַן יִיטַ֤ב לְךָ֙ וּלְבָנֶ֣יךָ אַחֲרֶ֔יךָ כִּֽי־תַעֲשֶׂ֥ה הַיָּשָׁ֖ר בְּעֵינֵ֥י יְהוָֽה׃
26 लेकिन अपनी पाक चीज़ों को जो तेरे पास हों और अपनी मन्नतो की चीज़ों को उसी जगह ले जाना जिसे ख़ुदावन्द चुन ले।
רַ֧ק קֽ͏ָדָשֶׁ֛יךָ אֲשֶׁר־יִהְי֥וּ לְךָ֖ וּנְדָרֶ֑יךָ תִּשָּׂ֣א וּבָ֔אתָ אֶל־הַמָּקֹ֖ום אֲשֶׁר־יִבְחַ֥ר יְהוָֽה׃
27 और वहीं अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियों का गोश्त और ख़ून दोनों ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के मज़बह पर पेश करना; और ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ही के मज़बह पर तेरे ज़बीहों का ख़ून उँडेला जाए, मगर उनका गोश्त तू खाना।
וְעָשִׂ֤יתָ עֹלֹתֶ֙יךָ֙ הַבָּשָׂ֣ר וְהַדָּ֔ם עַל־מִזְבַּ֖ח יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֑יךָ וְדַם־זְבָחֶ֗יךָ יִשָּׁפֵךְ֙ עַל־מִזְבַּח֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֶ֔יךָ וְהַבָּשָׂ֖ר תֹּאכֵֽל׃
28 इन सब बातों को जिनका मैं तुझको हुक्म देता हूँ ग़ौर से सुन ले, ताकि तेरे उस काम के करने से जो ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की नज़र में अच्छा और ठीक है, तेरा और तेरे बाद तेरी औलाद का भला हो।
שְׁמֹ֣ר וְשָׁמַעְתָּ֗ אֵ֚ת כָּל־הַדְּבָרִ֣ים הָאֵ֔לֶּה אֲשֶׁ֥ר אָנֹכִ֖י מְצַוֶּ֑ךָּ לְמַעַן֩ יִיטַ֨ב לְךָ֜ וּלְבָנֶ֤יךָ אַחֲרֶ֙יךָ֙ עַד־עֹולָ֔ם כִּ֤י תַעֲשֶׂה֙ הַטֹּ֣וב וְהַיָּשָׁ֔ר בְּעֵינֵ֖י יְהוָ֥ה אֱלֹהֶֽיךָ׃ ס
29 “जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तेरे सामने से उन क़ौमों को उस जगह जहाँ तू उनके वारिस होने को जा रहा है काट डाले, और तू उनका वारिस होकर उनके मुल्क में बस जाये,
כִּֽי־יַכְרִית֩ יְהוָ֨ה אֱלֹהֶ֜יךָ אֶת־הַגֹּויִ֗ם אֲשֶׁ֨ר אַתָּ֥ה בָא־שָׁ֛מָּה לָרֶ֥שֶׁת אֹותָ֖ם מִפָּנֶ֑יךָ וְיָרַשְׁתָּ֣ אֹתָ֔ם וְיָשַׁבְתָּ֖ בְּאַרְצָֽם׃
30 तो तू ख़बरदार रहना, कहीं ऐसा न हो कि जब वह तेरे आगे से ख़त्म हो जाएँ तो तू इस फंदे में फँस जाये, कि उनकी पैरवी करे और उनके मा'बूदों के बारे में ये दरियाफ़्त करे कि ये क़ौमें किस तरह से अपने मा'बूदों की पूजा करती है? मै भी वैसा ही करूँगा।
הִשָּׁ֣מֶר לְךָ֗ פֶּן־תִּנָּקֵשׁ֙ אַחֲרֵיהֶ֔ם אַחֲרֵ֖י הִשָּׁמְדָ֣ם מִפָּנֶ֑יךָ וּפֶן־תִּדְרֹ֨שׁ לֵֽאלֹהֵיהֶ֜ם לֵאמֹ֨ר אֵיכָ֨ה יַעַבְד֜וּ הַגֹּויִ֤ם הָאֵ֙לֶּה֙ אֶת־אֱלֹ֣הֵיהֶ֔ם וְאֶעֱשֶׂה־כֵּ֖ן גַּם־אָֽנִי׃
31 तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के लिए ऐसा न करना, क्यूँकि जिन जिन कामों से ख़ुदावन्द को नफ़रत और 'अदावत है वह सब उन्होंने अपने मा'बूदों के लिए किए हैं, बल्कि अपने बेटों और बेटियों को भी वह अपने मा'बूदों के नाम पर आग में डाल कर जला देते हैं।
לֹא־תַעֲשֶׂ֣ה כֵ֔ן לַיהוָ֖ה אֱלֹהֶ֑יךָ כִּי֩ כָּל־תֹּועֲבַ֨ת יְהוָ֜ה אֲשֶׁ֣ר שָׂנֵ֗א עָשׂוּ֙ לֵאלֹ֣הֵיהֶ֔ם כִּ֣י גַ֤ם אֶת־בְּנֵיהֶם֙ וְאֶת־בְּנֹ֣תֵיהֶ֔ם יִשְׂרְפ֥וּ בָאֵ֖שׁ לֵֽאלֹהֵיהֶֽם׃
32 “जिस जिस बात का मैं हुक्म करता हूँ, तुम एहतियात करके उस पर 'अमल करना और उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न उसमें से कुछ घटाना।
אֵ֣ת כָּל־הַדָּבָ֗ר אֲשֶׁ֤ר אָנֹכִי֙ מְצַוֶּ֣ה אֶתְכֶ֔ם אֹתֹ֥ו תִשְׁמְר֖וּ לַעֲשֹׂ֑ות לֹא־תֹסֵ֣ף עָלָ֔יו וְלֹ֥א תִגְרַ֖ע מִמֶּֽנּוּ׃ פ

< इस्त 12 >