< दानि 4 >

1 नबूकदनज़र बादशाह की तरफ़ से तमाम लोगों, उम्मतों और अहल — ए — ज़ुबान के लिए जो तमाम इस ज़मीन पर रहते हैं: तुम्हारी सलामती होती रहे।
مِنْ نَبُوخَذْنَصَّرَ ٱلْمَلِكِ إِلَى كُلِّ ٱلشُّعُوبِ وَٱلْأُمَمِ وَٱلْأَلْسِنَةِ ٱلسَّاكِنِينَ فِي ٱلْأَرْضِ كُلِّهَا: لِيَكْثُرْ سَلَامُكُمْ.١
2 मैने मुनासिब जाना कि उन निशानों और 'अजायब को ज़ाहिर करूँ जो ख़ुदा — त'आला ने मुझ पर ज़ाहिर किए हैं।
اَلْآيَاتُ وَٱلْعَجَائِبُ ٱلَّتِي صَنَعَهَا مَعِي ٱللهُ ٱلْعَلِيُّ، حَسُنَ عِنْدِي أَنْ أُخْبِرَ بِهَا.٢
3 उसके निशान कैसे 'अज़ीम, और उसके 'अजायब कैसे पसंदीदा हैं! उसकी ममलुकत हमेशा की ममलुकत है, और उसकी सल्तनत नसल — दर — नसल।
آيَاتُهُ مَا أَعْظَمَهَا، وَعَجَائِبُهُ مَا أَقْوَاهَا! مَلَكُوتُهُ مَلَكُوتٌ أَبَدِيٌّ وَسُلْطَانُهُ إِلَى دَوْرٍ فَدَوْرٍ.٣
4 मैं, नबूकदनज़र, अपने घर में मुतम'इन और अपने महल में कामयाब था।
أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرُ قَدْ كُنْتُ مُطْمَئِنًّا فِي بَيْتِي وَنَاضِرًا فِي قَصْرِي.٤
5 मैने एक ख़्वाब देखा, जिससे मैं परेशान हो गया और उन ख़्यालात से जो मैने पलंग पर किए और उन ख़्यालों से जो मेरे दिमाग़ में आए, मुझे परेशानी हुई।
رَأَيْتُ حُلْمًا فَرَوَّعَنِي، وَٱلْأَفْكَارُ عَلَى فِرَاشِي وَرُؤَى رَأْسِي أَفْزَعَتْنِي.٥
6 इसलिए मैने फ़रमान जारी किया कि बाबुल के तमाम हकीम मेरे सामने हाज़िर किए जाएँ, ताकि मुझसे उस ख़्वाब की ता'बीर बयान करें।
فَصَدَرَ مِنِّي أَمْرٌ بِإِحْضَارِ جَمِيعِ حُكَمَاءِ بَابِلَ قُدَّامِي لِيُعَرِّفُونِي بِتَعْبِيرِ ٱلْحُلْمِ.٦
7 चुनाँचे जादूगर और नजूमी और कसदी और फ़ालगीर हाज़िर हुए, और मैने उनसे अपने ख़्वाब का बयान किया, पर उन्होंने उसकी ता'बीर मुझ से बयान न की।
حِينَئِذٍ حَضَرَ ٱلْمَجُوسُ وَٱلسَّحَرَةُ وَٱلْكَلْدَانِيُّونَ وَٱلْمُنَجِّمُونَ، وَقَصَصْتُ ٱلْحُلْمَ عَلَيْهِمْ، فَلَمْ يُعَرِّفُونِي بِتَعْبِيرِهِ.٧
8 आख़िरकार दानीएल मेरे सामने आया, जिसका नाम बेल्तशज़र है, जो मेरे मा'बूद का भी नाम है, उसमें मुक़द्दस इलाहों की रूह है; इसलिए मैने उसके आमने — सामने ख़्वाब का बयान किया और कहा:
أَخِيرًا دَخَلَ قُدَّامِي دَانِيآلُ ٱلَّذِي ٱسْمُهُ بَلْطَشَاصَّرُ كَٱسْمِ إِلَهِي، وَٱلَّذِي فِيهِ رُوحُ ٱلْآلِهَةِ ٱلْقُدُّوسِينَ، فَقَصَصْتُ ٱلْحُلْمَ قُدَّامَهُ:٨
9 ऐ बेल्तशज़र, जादूगरों के सरदार, चूँकि मैं जानता हूँ कि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमे है, और कि कोई राज़ की बात तेरे लिए मुश्किल नहीं; इसलिए जो ख़्वाब मैने देखा उसकी कैफ़ियत और ता'बीर बयान कर।
«يَا بَلْطَشَاصَّرُ، كَبِيرُ ٱلْمَجُوسِ، مِنْ حَيْثُ إِنِّي أَعْلَمُ أَنَّ فِيكَ رُوحَ ٱلْآلِهَةِ ٱلْقُدُّوسِينَ، وَلَا يَعْسُرُ عَلَيْكَ سِرٌّ، فَأَخْبِرْنِي بِرُؤَى حُلْمِي ٱلَّذِي رَأَيْتُهُ وَبِتَعْبِيرِهِ.٩
10 पलंग पर मेरे दिमाग़ की रोया ये थी: मैने निगाह की और क्या देखता हूँ कि ज़मीन के तह में एक निहायत ऊँचा दरख़्त है।
فَرُؤَى رَأْسِي عَلَى فِرَاشِي هِيَ: أَنِّي كُنْتُ أَرَى فَإِذَا بِشَجَرَةٍ فِي وَسَطِ ٱلْأَرْضِ وَطُولُهَا عَظِيمٌ.١٠
11 वह दरख़्त बढ़ा और मज़बूत हुआ और उसकी चोटी आसमान तक पहुँची, और वह ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देने लगा।
فَكَبُرَتِ ٱلشَّجَرَةُ وَقَوِيَتْ، فَبَلَغَ عُلُوُّهَا إِلَى ٱلسَّمَاءِ وَمَنْظَرُهَا إِلَى أَقْصَى كُلِّ ٱلْأَرْضِ.١١
12 उसके पत्ते खु़शनुमा थे और मेवा फ़िरावान था, और उसमें सबके लिए ख़ुराक थी; मैदान के जानवर उसके साये में और हवा के परिन्दे उसकी शाखों पर बसेरा करते थे, और तमाम बशर ने उस से परवरिश पाई।
أَوْرَاقُهَا جَمِيلَةٌ وَثَمَرُهَا كَثِيرٌ وَفِيهَا طَعَامٌ لِلْجَمِيعِ، وَتَحْتَهَا ٱسْتَظَلَّ حَيَوَانُ ٱلْبَرِّ، وَفِي أَغْصَانِهَا سَكَنَتْ طُيُورُ ٱلسَّمَاءِ، وَطَعِمَ مِنْهَا كُلُّ ٱلْبَشَرِ.١٢
13 “मैने अपने पलंग पर अपनी दिमाग़ी रोया पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि एक निगहबान, हाँ एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा।
كُنْتُ أَرَى فِي رُؤَى رَأْسِي عَلَى فِرَاشِي وَإِذَا بِسَاهِرٍ وَقُدُّوسٍ نَزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ،١٣
14 उसने बलन्द आवाज़ से पुकार कर यूँ कहा कि 'दरख़्त को काटो, उसकी शाखें तराशो, और उसके पत्ते झाड़ो, और उसका फल बिखेर दो; जानवर उसके नीचे से चले जाएँ और परिन्दे उसकी शाखों पर से उड़ जाएँ।
فَصَرَخَ بِشِدَّةٍ وَقَالَ هَكَذَا: ٱقْطَعُوا ٱلشَّجَرَةَ، وَٱقْضِبُوا أَغْصَانَهَا، وَٱنْثُرُوا أَوْرَاقَهَا، وَٱبْذُرُوا ثَمَرَهَا، لِيَهْرُبَ ٱلْحَيَوَانُ مِنْ تَحْتِهَا وَٱلطُّيُورُ مِنْ أَغْصَانِهَا.١٤
15 लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो, हाँ, लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ मैदान की हरी घास में रहने दो, और वह आसमान की शबनम से तर हो, और उसका हिस्सा ज़मीन की घास में हैवानों के साथ हो।
وَلَكِنِ ٱتْرُكُوا سَاقَ أَصْلِهَا فِي ٱلْأَرْضِ، وَبِقَيْدٍ مِنْ حَدِيدٍ وَنُحَاسٍ فِي عُشْبِ ٱلْحَقْلِ، وَلْيَبْتَلَّ بِنَدَى ٱلسَّمَاءِ، وَلْيَكُنْ نَصِيبُهُ مَعَ ٱلْحَيَوَانِ فِي عُشْبِ ٱلْحَقْلِ.١٥
16 उसका दिल इंसान का दिल न रहे, बल्कि उसको हैवान का दिल दिया जाए; और उस पर सात दौर गुज़र जाएँ।
لِيَتَغَيَّرْ قَلْبُهُ عَنِ ٱلْإِنْسَانِيَّةِ، وَلْيُعْطَ قَلْبَ حَيَوَانٍ، وَلْتَمْضِ عَلَيْهِ سَبْعَةُ أَزْمِنَةٍ.١٦
17 यह हुक्म निगहबानों के फ़ैसले से है, और यह हुक्म फ़रिश्तों के कहने के मुताबिक़ है, ताकि सब जानदार पहचान लें कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और जिसको चाहता है उसे देता है, बल्कि आदमियों में से अदना आदमी को उस पर क़ायम करता है।
هَذَا ٱلْأَمْرُ بِقَضَاءِ ٱلسَّاهِرِينَ، وَٱلْحُكْمُ بِكَلِمَةِ ٱلْقُدُّوسِينَ، لِكَىْ تَعْلَمَ ٱلْأَحْيَاءُ أَنَّ ٱلْعَلِيَّ مُتَسَلِّطٌ فِي مَمْلَكَةِ ٱلنَّاسِ، فَيُعْطِيهَا مَنْ يَشَاءُ، وَيُنَصِّبَ عَلَيْهَا أَدْنَى ٱلنَّاسِ.١٧
18 मैं नबूकदनज़र बादशाह ने यह ख़्वाब देखा है। ऐ बेल्तशज़र, तू इसकी ता'बीर बयान कर, क्यूँकि मेरी ममलुकत के तमाम हकीम मुझसे उसकी ता'बीर बयान नहीं कर सकते, लेकिन तू कर सकता है; क्यूँकि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमें मौजूद है।”
هَذَا ٱلْحُلْمُ رَأَيْتُهُ أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرَ ٱلْمَلِكَ. أَمَّا أَنْتَ يَا بَلْطَشَاصَّرُ فَبَيِّنْ تَعْبِيرَهُ، لِأَنَّ كُلَّ حُكَمَاءِ مَمْلَكَتِي لَا يَسْتَطِيعُونَ أَنْ يُعَرِّفُونِي بِٱلتَّعْبِيرِ. أَمَّا أَنْتَ فَتَسْتَطِيعُ، لِأَنَّ فِيكَ رُوحَ ٱلْآلِهَةِ ٱلْقُدُّوسِينَ».١٨
19 तब दानीएल जिसका नाम बेल्तशज़र है, एक वक़्त तक ख़ामोश रहा, और अपने ख़्यालात में परेशान हुआ। बादशाह ने उससे कहा, ऐ बेल्तशज़र, ख़्वाब और उसकी ता'बीर से तू परेशान न हो। बेल्तशज़र ने जवाब दिया, ऐ मेरे ख़ुदावन्द, ये ख़्वाब तुझसे कीना रखने वालों के लिए और उसकी ता'बीर तेरे दुश्मनों के लिए हो!
حِينَئِذٍ تَحَيَّرَ دَانِيآلُ ٱلَّذِي ٱسْمُهُ بَلْطَشَاصَّرُ سَاعَةً وَاحِدَةً وَأَفْزَعَتْهُ أَفْكَارُهُ. أَجَابَ ٱلْمَلِكُ وَقَالَ: «يَا بَلْطَشَاصَّرُ، لَا يُفْزِعُكَ ٱلْحُلْمُ وَلَا تَعْبِيرُهُ». فَأَجَابَ بَلْطَشَاصَّرُ وَقَالَ: «يَا سَيِّدِي، ٱلْحُلْمُ لِمُبْغِضِيكَ وَتَعْبِيرُهُ لِأَعَادِيكَ.١٩
20 वह दरख़्त जो तूने देखा कि बढ़ा और मज़बूत हुआ, जिसकी चोटी आसमान तक पहुँची और ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देता था;
اَلشَّجَرَةُ ٱلَّتِي رَأَيْتَهَا، ٱلَّتِي كَبُرَتْ وَقَوِيَتْ وَبَلَغَ عُلُوُّهَا إِلَى ٱلسَّمَاءِ، وَمَنْظَرُهَا إِلَى كُلِّ ٱلْأَرْضِ،٢٠
21 जिसके पत्ते ख़ुशनुमा थे और मेवा फ़रावान था, जिसमें सबके लिए ख़ुराक थी। जिसके साये में मैदान के जानवर और शाखों पर हवा के परिन्दे बसेरा करते थे।
وَأَوْرَاقُهَا جَمِيلَةٌ وَثَمَرُهَا كَثِيرٌ وَفِيهَا طَعَامٌ لِلْجَمِيعِ، وَتَحْتَهَا سَكَنَ حَيَوَانُ ٱلْبَرِّ، وَفِي أَغْصَانِهَا سَكَنَتْ طُيُورُ ٱلسَّمَاءِ،٢١
22 ऐ बादशाह, वह तू ही है जो बढ़ा और मज़बूत हुआ, क्यूँकि तेरी बुज़ुर्गी बढ़ी और आसमान तक पहुँची और तेरी सल्तनत ज़मीन की इन्तिहा तक।
إِنَّمَا هِيَ أَنْتَ يَاأَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، ٱلَّذِي كَبُرْتَ وَتَقَوَّيْتَ، وَعَظَمَتُكَ قَدْ زَادَتْ وَبَلَغَتْ إِلَى ٱلسَّمَاءِ، وَسُلْطَانُكَ إِلَى أَقْصَى ٱلْأَرْضِ.٢٢
23 और जो बादशाह ने देखा कि एक निगहबान, यहाँ, एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा और कहने लगा, 'दरख़्त को काट डालों और उसे बर्बाद करो, लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो; बल्कि उसे लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ, मैदान की हरी घास में रहने दो कि वह आसमान की शबनम से तर हो, और जब तक उस पर सात दौर न गुज़र जाएँ उसका हिस्सा ज़मीन के हैवानों के साथ हो।
وَحَيْثُ رَأَى ٱلْمَلِكُ سَاهِرًا وَقُدُّوسًا نَزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ وَقَالَ: ٱقْطَعُوا ٱلشَّجَرَةَ وَأَهْلِكُوهَا، وَلَكِنِ ٱتْرُكُوا سَاقَ أَصْلِهَا فِي ٱلْأَرْضِ، وَبِقَيْدٍ مِنْ حَدِيدٍ وَنُحَاسٍ فِي عُشْبِ ٱلْحَقْلِ، وَلْيَبْتَلَّ بِنَدَى ٱلسَّمَاءِ، وَلْيَكُنْ نَصِيبُهُ مَعَ حَيَوَانِ ٱلْبَرِّ، حَتَّى تَمْضِيَ عَلَيْهِ سَبْعَةُ أَزْمِنَةٍ.٢٣
24 ऐ बादशाह, इसकी ता'बीर और हक़ — त'आला का वह हुक्म, जो बदशाह मेरे ख़ुदावन्द के हक़ में हुआ है यही है,
فَهَذَا هُوَ ٱلتَّعْبِيرُ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، وَهَذَا هُوَ قَضَاءُ ٱلْعَلِيِّ ٱلَّذِي يَأْتِي عَلَى سَيِّدِي ٱلْمَلِكِ:٢٤
25 कि तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा, और तू बैल की तरह घास खाएगा और आसमान की शबनम से तर होगा, और तुझ पर सात दौर गुज़र जाएँगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला इंसान की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और उसे जिसको चाहता है देता है।
يَطْرُدُونَكَ مِنْ بَيْنِ ٱلنَّاسِ، وَتَكُونُ سُكْنَاكَ مَعَ حَيَوَانِ ٱلْبَرِّ وَيُطْعِمُونَكَ ٱلْعُشْبَ كَٱلثِّيرَانِ، وَيَبُلُّونَكَ بِنَدَى ٱلسَّمَاءِ، فَتَمْضِي عَلَيْكَ سَبْعَةُ أَزْمِنَةٍ حَتَّى تَعْلَمَ أَنَّ ٱلْعَلِيَّ مُتَسَلِّطٌ فِي مَمْلَكَةِ ٱلنَّاسِ وَيُعْطِيهَا مَنْ يَشَاءُ.٢٥
26 और यह जो उन्होंने हुक्म किया कि दरख़्त की जड़ों के हिस्से को बाक़ी रहने दो, उसका मतलब ये है कि जब तू मा'लूम कर चुकेगा कि बादशाही का इख़्तियार आसमान की तरफ़ से है, तो तू अपनी सल्तनत पर फिर क़ायम हो जाएगा।
وَحَيْثُ أَمَرُوا بِتَرْكِ سَاقِ أُصُولِ ٱلشَّجَرَةِ، فَإِنَّ مَمْلَكَتَكَ تَثْبُتُ لَكَ عِنْدَمَا تَعْلَمُ أَنَّ ٱلسَّمَاءَ سُلْطَانٌ.٢٦
27 इसलिए ऐ बादशाह, तेरे सामने मेरी सलाह क़ुबूल हो और तू अपनी ख़ताओं को सदाक़त से और अपनी बदकिरदारी को मिस्कीनों पर रहम करने से दूर कर, मुम्किन है इससे तेरा इत्मिनान ज़्यादा हो।
لِذَلِكَ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ، فَلْتَكُنْ مَشُورَتِي مَقْبُولَةً لَدَيْكَ، وَفَارِقْ خَطَايَاكَ بِٱلْبِرِّ وَآثَامَكَ بِٱلرَّحْمَةِ لِلْمَسَاكِينِ، لَعَلَّهُ يُطَالُ ٱطْمِئْنَانُكَ».٢٧
28 यह सब कुछ नबूकदनज़र बादशाह पर गुज़रा।
كُلُّ هَذَا جَاءَ عَلَى نَبُوخَذْنَصَّرَ ٱلْمَلِكِ.٢٨
29 एक साल बाद वह बाबुल के शाही महल में टहल रहा था।
عِنْدَ نِهَايَةِ ٱثْنَيْ عَشَرَ شَهْرًا كَانَ يَتَمَشَّى عَلَى قَصْرِ مَمْلَكَةِ بَابِلَ.٢٩
30 बादशाह ने फ़रमाया, “क्या यह बाबुल — ए — आज़म नहीं, जिसको मैने अपनी तवानाई की कु़दरत से ता'मीर किया है कि दार — उस — सल्तनत और मेरे जाह — ओ — जलाल का नमूना हो?”
وَأَجَابَ ٱلْمَلِكُ فَقَالَ: «أَلَيْسَتْ هَذِهِ بَابِلَ ٱلْعَظِيمَةَ ٱلَّتِي بَنَيْتُهَا لِبَيْتِ ٱلْمُلْكِ بِقُوَّةِ ٱقْتِدَارِي، وَلِجَلَالِ مَجْدِي؟»٣٠
31 बादशाह यह बात कह ही रहा था कि आसमान से आवाज़ आई, ऐ नबूकदनज़र बादशाह, तेरे हक़ में यह फ़तवा है कि सल्तनत तुझ से जाती रही।
وَٱلْكَلِمَةُ بَعْدُ بِفَمِ ٱلْمَلِكِ، وَقَعَ صَوْتٌ مِنَ ٱلسَّمَاءِ قَائِلًا: «لَكَ يَقُولُونَ يَا نَبُوخَذْنَصَّرُ ٱلْمَلِكُ: إِنَّ ٱلْمُلْكَ قَدْ زَالَ عَنْكَ.٣١
32 और तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा और बैल की तरह घास खाएगा, और सात दौर तुझ पर गुज़ेरेंगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है, और उसे जिसको चाहता है, देता है।
وَيَطْرُدُونَكَ مِنْ بَيْنِ ٱلنَّاسِ، وَتَكُونُ سُكْنَاكَ مَعَ حَيَوَانِ ٱلْبَرِّ، وَيُطْعِمُونَكَ ٱلْعُشْبَ كَٱلثِّيرَانِ، فَتَمْضِي عَلَيْكَ سَبْعَةُ أَزْمِنَةٍ حَتَّى تَعْلَمَ أَنَّ ٱلْعَلِيَّ مُتَسَلِّطٌ فِي مَمْلَكَةِ ٱلنَّاسِ وَأَنَّهُ يُعْطِيهَا مَنْ يَشَاءُ».٣٢
33 उसी वक़्त नबूकदनज़र बादशाह पर यह बात पूरी हुई, और वह आदमियों में से निकाला गया और बैलों की तरह घास खाता रहा और उसका बदन आसमान की शबनम से तर हुआ, यहाँ तक कि उसके बाल उक़ाब के परों की तरह और उसके नाख़ून परिन्दों के चँगुल की तरह बढ़ गए।
فِي تِلْكَ ٱلسَّاعَةِ تَمَّ ٱلْأَمْرُ عَلَى نَبُوخَذْنَصَّرَ، فَطُرِدَ مِنْ بَيْنِ ٱلنَّاسِ، وَأَكَلَ ٱلْعُشْبَ كَٱلثِّيرَانِ، وَٱبْتَلَّ جِسْمُهُ بِنَدَى ٱلسَّمَاءِ حَتَّى طَالَ شَعْرُهُ مِثْلَ ٱلنُّسُورِ، وَأَظْفَارُهُ مِثْلَ ٱلطُّيُورِ.٣٣
34 और इन दिनों के गुज़रने के बा'द, मैं नबूकदनज़र ने आसमान की तरफ़ आँखें उठाई और मेरी 'अक़्ल मुझमे फिर आई और मैने हक़ — त'आला का शुक्र किया, और उस हय्युल — क़य्यूम की बड़ाई — ओ — सना की, जिसकी सल्तनत हमेशा और जिसकी ममलुकत नसल — दर — नसल है।
وَعِنْدَ ٱنْتِهَاءِ ٱلْأَيَّامِ، أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرُ، رَفَعْتُ عَيْنَيَّ إِلَى ٱلسَّمَاءِ، فَرَجَعَ إِلَيَّ عَقْلِي، وَبَارَكْتُ ٱلْعَلِيَّ وَسَبَّحْتُ وَحَمَدْتُ ٱلْحَيَّ إِلَى ٱلْأَبَدِ، ٱلَّذِي سُلْطَانُهُ سُلْطَانٌ أَبَدِيٌّ، وَمَلَكُوتُهُ إِلَى دَوْرٍ فَدَوْرٍ.٣٤
35 और ज़मीन के तमाम बाशिन्दे नाचीज़ गिने जाते हैं और वह आसमानी लश्कर और ज़मीन के रहने वालों के साथ जो कुछ चाहता है करता है; और कोई नहीं जो उसका हाथ रोक सके। या उससे कहे कि “तू क्या करता है?”
وَحُسِبَتْ جَمِيعُ سُكَّانِ ٱلْأَرْضِ كَلَا شَيْءَ، وَهُوَ يَفْعَلُ كَمَا يَشَاءُ فِي جُنْدِ ٱلسَّمَاءِ وَسُكَّانِ ٱلْأَرْضِ، وَلَا يُوجَدُ مَنْ يَمْنَعُ يَدَهُ أَوْ يَقُولُ لَهُ: «مَاذَا تَفْعَلُ؟».٣٥
36 उसी वक़्त मेरी 'अक़्ल मुझ में फिर आई, और मेरी सल्तनत की शौकत के लिए मेरा रौ'ब और दबदबा फिर मुझमे बहाल हो गया, और मेरे सलाहकारों और अमीरों ने मुझे फिर ढूँडा और मैं अपनी ममलुकत में क़ाईम हुआ और मेरी 'अज़मत में अफ़ज़ूनी हुई।
فِي ذَلِكَ ٱلْوَقْتِ رَجَعَ إِلَيَّ عَقْلِي، وَعَادَ إِلَيَّ جَلَالُ مَمْلَكَتِي وَمَجْدِي وَبَهَائِي، وَطَلَبَنِي مُشِيرِيَّ وَعُظَمَائِي، وَتَثَبَّتُّ عَلَى مَمْلَكَتِي وَٱزْدَادَتْ لِي عَظَمَةٌ كَثِيرَةٌ.٣٦
37 अब मैं नबूकदनज़र, आसमान के बादशाह की बड़ाई और 'इज़्ज़त — ओ — ता'ज़ीम करता हूँ, क्यूँकि वह अपने सब कामों में रास्त और अपनी सब राहों में 'इन्साफ़ करता है; और जो मग़रूरी में चलते हैं उनको ज़लील कर सकता है।
فَٱلْآنَ، أَنَا نَبُوخَذْنَصَّرُ، أُسَبِّحُ وَأُعَظِّمُ وَأَحْمَدُ مَلِكَ ٱلسَّمَاءِ، ٱلَّذِي كُلُّ أَعْمَالِهِ حَقٌّ وَطُرُقِهِ عَدْلٌ، وَمَنْ يَسْلُكُ بِٱلْكِبْرِيَاءِ فَهُوَ قَادِرٌ عَلَى أَنْ يُذِلَّهُ.٣٧

< दानि 4 >