< दानि 12 >

1 और उस वक़्त मीकाईल मुक़र्रब फ़रिश्ता जो तेरी क़ौम के फ़रज़न्दों की हिमायत के लिए खड़ा है उठेगा और वह ऐसी तकलीफ़ का वक़्त होगा कि इब्तिदाई क़ौम से उस वक़्त तक कभी न हुआ होगा, और उस वक़्त तेरे लोगों में से हर एक, जिसका नाम किताब में लिखा होगा रिहाई पाएगा।
In tempore autem illo consurget Michaël princeps magnus, qui stat pro filiis populi tui: et veniet tempus quale non fuit ab eo ex quo gentes esse cœperunt usque ad tempus illud. Et in tempore illo salvabitur populus tuus, omnis qui inventus fuerit scriptus in libro.
2 और जो ख़ाक में सो रहे हैं उनमें से बहुत से जाग उठेगे, कुछ हमेशा की ज़िन्दगी के लिए और कुछ रुस्वाई और हमेशा की ज़िल्लत के लिए।
Et multi de his qui dormiunt in terræ pulvere evigilabunt, alii in vitam æternam, et alii in opprobrium ut videant semper.
3 और 'अक़्लमन्द नूर — ए — फ़लक की तरह चमकेंगे, और जिनकी कोशिश से बहुत से रास्तबाज़ हो गए, सितारों की तरह हमेशा से हमेशा तक रोशन होंगे।
Qui autem docti fuerint, fulgebunt quasi splendor firmamenti: et qui ad justitiam erudiunt multos, quasi stellæ in perpetuas æternitates.
4 लेकिन तू ऐ दानीएल, इन बातों को बन्द कर रख, और किताब पर आख़िरी ज़माने तक मुहर लगा दे। बहुत से इसकी तफ़्तीश — ओ — तहक़ीक़ करेंगे और 'अक़्ल बढ़ती रहेगी।
Tu autem Daniel, claude sermones, et signa librum usque ad tempus statutum: plurimi pertransibunt, et multiplex erit scientia.
5 फिर मैं दानिएल ने नज़र की, और क्या देखता हूँ कि दो शख़्स और खड़े थे; एक दरिया के इस किनारे पर और दूसरा दरिया के उस किनारे पर।
Et vidi ego Daniel, et ecce quasi duo alii stabant: unus hinc super ripam fluminis, et alius inde ex altera ripa fluminis.
6 और एक ने उस शख़्स से जो कतानी लिबास पहने था और दरिया के पानी पर खड़ा था पूछा, कि “इन 'अजायब के अन्जाम तक कितनी मुद्दत है?”
Et dixi viro qui erat indutus lineis, qui stabat super aquas fluminis: Usquequo finis horum mirabilium?
7 और मैने सुना कि उस शख़्स ने जो कतानी लिबास पहने था, जो दरिया के पानी के ऊपर खड़ा था, दोनों हाथ आसमान की तरफ़ उठा कर हय्युल क़य्यूम की क़सम खाई और कहा कि एक दौर और दौर और नीम दौर। और जब वह मुक़द्दस लोगों की ताक़त को नेस्त कर चुके तो यह सब कुछ पूरा हो जाएगा।
Et audivi virum qui indutus erat lineis, qui stabat super aquas fluminis, cum elevasset dexteram et sinistram suam in cælum, et jurasset per viventem in æternum, quia in tempus, et tempora, et dimidium temporis. Et cum completa fuerit dispersio manus populi sancti, complebuntur universa hæc.
8 और मैंने सुना लेकिन समझ न सका तब मैंने कहा ऐ मेरे ख़ुदावन्द इनका अंजाम क्या होगा।
Et ego audivi, et non intellexi. Et dixi: Domine mi, quid erit post hæc?
9 उसने कहा ऐ दानिएल तू अपनी राह ले क्यूँकि यह बातें आख़िरी वक़्त तक बन्द — ओ — सरबमुहर रहेंगी।
Et ait: Vade, Daniel, quia clausi sunt signatique sermones usque ad præfinitum tempus.
10 और बहुत लोग पाक किए जायेंगे और साफ़ — ओ — बर्राक़ होंगे लेकिन शरीर शरारत करते रहेंगे और शरीरों में से कोई न समझेगा लेकिन 'अक़्लमन्द समझेंगे।
Eligentur, et dealbabuntur, et quasi ignis probabuntur multi: et impie agent impii, neque intelligent omnes impii: porro docti intelligent.
11 और जिस वक़्त से दाइमी क़ुर्बानी ख़त्म की जायेगी और वह उजाड़ने वाली मकरूह चीज़ खड़ी की जायेगी एक हज़ार दो सौ नव्वे दिन होंगे।
Et a tempore cum ablatum fuerit juge sacrificium, et posita fuerit abominatio in desolationem, dies mille ducenti nonaginta.
12 मुबारक है वह जो एक हज़ार तीन सौ पैतीस रोज़ तक इन्तिज़ार करता है।
Beatus qui exspectat, et pervenit usque ad dies mille trecentos triginta quinque.
13 लेकिन तू अपनी राह ले जब तक कि मुद्दत पूरी न हो क्यूँकि तू आराम करेगा और दिनों के ख़ातिमे पर अपनी मीरास में उठ खड़ा होगा।
Tu autem vade ad præfinitum: et requiesces, et stabis in sorte tua in finem dierum.

< दानि 12 >