< आमू 8 >
1 ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ताबिस्तानी मेवों की टोकरी है।
Der HERR HERR zeigte mir ein Gesicht, und siehe, da stund ein Korb mit Obst.
2 और उसने फ़रमाया, ऐ 'आमूस, तू क्या देखता है? मैंने 'अर्ज़ की, ताबिस्तानी मेवों की टोकरी। तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि मेरी क़ौम इस्राईल का वक़्त आ पहुँचा है; अब मैं उससे दरगुज़र न करूँगा।
Und er sprach: Was siehest du, Amos? Ich aber antwortete: Einen Korb mit Obst. Da sprach der HERR zu mir: Das Ende ist kommen über mein Volk Israel; ich will ihm nichts mehr übersehen.
3 और उस वक़्त हैकल के नग़मे नौहे हो जायेंगे, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता, बहुत सी लाशें पड़ी होंगी वह चुपके — चुपके उनको हर जगह निकाल फेकेंगे।
Und die Lieder in der Kirche sollen in ein Heulen verkehret werden zur selbigen Zeit, spricht der HERR HERR; es werden viel toter Leichname liegen an allen Orten, die man heimlich wegtragen wird.
4 तुम जो चाहते हो कि मुहताजों को निगल जाओ, और ग़रीबों को मुल्क से हलाक करो,
Höret dies, die ihr den Armen unterdrücket und die Elenden im Lande verderbet
5 और ऐफ़ा को छोटा और मिस्क़ाल को बड़ा बनाते, और फ़रेब की तराजू से दग़ाबाज़ी करते, और कहते हो, कि नये चाँद का दिन कब गुज़रेगा, ताकि हम ग़ल्ला बेचें, और सबत का दिन कब ख़त्म होगा के गेहूँ के खत्ते खोलें,
und sprechet: Wann will denn der Neumond ein Ende haben, daß wir Getreide verkaufen, und der Sabbat, daß wir Korn feil haben mögen und den Epha ringern und den Sekel steigern und die Waage fälschen,
6 ताकि ग़रीब को रुपये से और मुहताज को एक जोड़ी जूतियों से ख़रीदें, और गेहूँ की फटकन बेचें, ये बात सुनो,
auf daß wir die Armen um Geld und die Dürftigen um ein Paar Schuh unter uns bringen und Spreu für Korn verkaufen?
7 ख़ुदावन्द ने या'क़ूब की हश्मत की क़सम खाकर फ़रमाया है: “मैं उनके कामों में से एक को भी हरगिज़ न भूलूँगा।
Der HERR hat geschworen wider die Hoffart Jakobs: Was gilt's, ob ich solcher ihrer Werke ewig vergessen werde?
8 क्या इस वजह से ज़मीन न थरथराएगी, और उसका हर एक बाशिंदा मातम न करेगा? हाँ, वह बिल्कुल दरिया-ए-नील की तरह उठेगी और रोद — ए — मिस्र की तरह फैल कर फिर सुकड़ जाएगी।”
Sollte nicht um solches willen das Land erbeben müssen und alle Einwohner trauern? Ja, es soll ganz, wie mit einem Wasser, überlaufen werden und weggeführet und überschwemmet werden, wie mit dem Fluß in Ägypten.
9 और ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, उस रोज़ आफ़ताब दोपहर ही को ग़ुरूब हो जाएगा और मैं रोज़ — ए — रोशन ही में ज़मीन को तारीक कर दूँगा।
Zur selbigen Zeit, spricht der HERR HERR, will ich die Sonne im Mittage untergehen lassen und das Land am hellen Tage lassen finster werden.
10 तुम्हारी 'ईदों को मातम से और तुम्हारे नामों को नौहों से बदल दुँगा, और हर एक की कमर पर टाट बँधवाऊँगा और हर एक के सिर पर चँदलापन भेजूँगा और ऐसा मातम खड़ा करूँगा जैसा इकलौते बेटे पर होता है और उसका अंजाम रोज़ — ए — तल्ख़ सा होगा।
Ich will eure Feiertage in Trauern und alle eure Lieder in Wehklagen verwandeln; ich will über alle Lenden den Sack bringen und alle Köpfe kahl machen und will ihnen ein Trauern schaffen, wie man über einen einigen Sohn hat, und sollen ein jämmerlich Ende nehmen.
11 ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, देखो, वह दिन आते हैं कि मैं इस मुल्क में क़हत डालूँगा न पानी की प्यास और न रोटी का क़हत, बल्कि ख़ुदावन्द का कलाम सुनने का।
Siehe, es kommt die Zeit, spricht der HERR HERR, daß ich einen Hunger ins Land schicken werde, nicht einen Hunger nach Brot oder Durst nach Wasser, sondern nach dem Wort des HERRN zu hören,
12 तब लोग समन्दर से समन्दर तक और उत्तर से पूरब तक भटकते फिरेंगे, और ख़ुदावन्द के कलाम की तलाश में इधर उधर दौड़ेंगे लेकिन कहीं न पाएँगे।
daß sie hin und her, von einem Meer zum andern, von Mitternacht gegen Morgen umlaufen und des HERRN Wort suchen und doch nicht finden werden.
13 और उस रोज़ हसीन कुँवारियाँ और जवान मर्द प्यास से बेताब हो जाएँगे।
Zu der Zeit werden schöne Jungfrauen und Jünglinge verschmachten vor Durst,
14 जो सामरिया के बुत की क़सम खाते हैं, और कहते हैं, 'ऐ दान, तेरे मा'बूद की क़सम' और 'बैर सबा' के तरीक़े की क़सम,' वह गिर जाएँगे और फिर हरगिज़ न उठेंगे।
die jetzt schwören bei dem Fluch Samaria und sprechen: So wahr dein Gott zu Dan lebet, so wahr die Weise zu Berseba lebet! Denn sie sollen also fallen, daß sie nicht wieder aufstehen mögen.