< 2 पतरस 3 >
1 ऐ 'अज़ीज़ो! अब मैं तुम्हें ये दूसरा ख़त लिखता हूँ, और याद दिलाने के तौर पर दोनों ख़तों से तुम्हारे साफ़ दिलों को उभारता हूँ,
Hanc ecce vobis, carissimi, secundam scribo epistolam, in quibus vestram excito in commonitione sinceram mentem:
2 कि तुम उन बातों को जो पाक नबियों ने पहले कहीं, और ख़ुदावन्द और मुन्जी के उस हुक्म को याद रख्खो जो तुम्हारे रसूलों की ज़रिए आया था।
ut memores sitis eorum, quæ prædixi, verborum, a sanctis prophetis et apostolorum vestrorum, præceptorum Domini et Salvatoris.
3 और पहले जान लो कि आख़िरी दिनों में ऐसी हँसी ठठ्ठा करनेवाले आएँगे जो अपनी ख़्वाहिशों के मुवाफ़िक़ चलेंगे,
Hoc primum scientes, quod venient in novissimis diebus in deceptione illusores, juxta proprias concupiscentias ambulantes,
4 और कहेंगे, “उसके आने का वा'दा कहाँ गया? क्यूँकि जब से बाप — दादा सोए हैं, उस वक़्त से अब तक सब कुछ वैसा ही है जैसा दुनिया के शुरू' से था।”
dicentes: Ubi est promissio, aut adventus ejus? ex quo enim patres dormierunt, omnia sic perseverant ab initio creaturæ.
5 वो तो जानबूझ कर ये भूल गए कि ख़ुदा के कलाम के ज़रिए से आसमान पहले से मौजूद है, और ज़मीन पानी में से बनी और पानी में क़ाईम है;
Latet enim eos hoc volentes, quod cæli erant prius, et terra de aqua, et per aquam consistens Dei verbo:
6 इन ही के ज़रिए से उस ज़माने की दुनिया डूब कर हलाक हुई।
per quæ, ille tunc mundus aqua inundatus, periit.
7 मगर इस वक़्त के आसमान और ज़मीन उसी कलाम के ज़रिए से इसलिए रख्खे हैं कि जलाए जाएँ; और वो बेदीन आदमियों की 'अदालत और हलाकत के दिन तक महफ़ूज़ रहेंगे
Cæli autem, qui nunc sunt, et terra eodem verbo repositi sunt, igni reservati in diem judicii, et perditionis impiorum hominum.
8 ऐ 'अज़ीज़ो! ये ख़ास बात तुम पर पोशीदा न रहे कि ख़ुदावन्द के नज़दीक एक दिन हज़ार बरस के बराबर है, और हज़ार बरस एक दिन के बराबर।
Unum vero hoc non lateat vos, carissimi, quia unus dies apud Dominum sicut mille anni, et mille anni sicut dies unus.
9 ख़ुदावन्द अपने वा'दे में देर नहीं करता, जैसी देर कुछ लोग समझते है; बल्कि तुम्हारे बारे में हलाकत नहीं चाहता बल्कि ये चाहता है कि सबकी तौबा तक नौबत पहुँचे।
Non tardat Dominus promissionem suam, sicut quidam existimant: sed patienter agit propter vos, nolens aliquos perire, sed omnes ad pœnitentiam reverti.
10 लेकिन ख़ुदावन्द का दिन चोर की तरह आ जाएगा, उस दिन आसमान बड़े शोर — ओ — ग़ुल के साथ बरबाद हो जाएँगे, और अजराम — ए — फ़लक हरारत की शिद्दत से पिघल जाएँगे, और ज़मीन और उस पर के काम जल जाएँगे।
Adveniet autem dies Domini ut fur: in quo cæli magno impetu transient, elementa vero calore solventur, terra autem et quæ in ipsa sunt opera, exurentur.
11 जब ये सब चीज़ें इस तरह पिघलने वाली हैं, तो तुम्हें पाक चाल — चलन और दीनदारी में कैसे कुछ होना चाहिए,
Cum igitur hæc omnia dissolvenda sunt, quales oportet vos esse in sanctis conversationibus, et pietatibus,
12 और ख़ुदा की 'अदालत के दिन के आने का कैसा कुछ मुन्तज़िर और मुश्ताक़ रहना चाहिए, जिसके ज़रिए आसमान आग से पिघल जाएँगे, और अजराम — ए — फ़लक हरारत की शिद्दत से गल जाएँगे।
exspectantes, et properantes in adventum diei Domini, per quem cæli ardentes solventur, et elementa ignis ardore tabescent?
13 लेकिन उसके वादे के मुवाफ़िक़ हम नए आसमान और नई ज़मीन का इन्तज़ार करते हैं, जिनमें रास्तबाज़ी बसी रहेगी।
Novos vero cælos, et novam terram secundum promissa ipsius exspectamus, in quibus justitia habitat.
14 पस ऐ 'अज़ीज़ो! चूँकि तुम इन बातों के मुन्तज़िर हो, इसलिए उसके सामने इत्मीनान की हालत में बेदाग़ और बे — ऐब निकलने की कोशिश करो,
Propter quod, carissimi, hæc exspectantes, satagite immaculati, et inviolati ei inveniri in pace:
15 और हमारे ख़ुदावन्द के तहम्मील को नजात समझो, चुनाँचे हमारे प्यारे भाई पौलुस ने भी उस हिक्मत के मुवाफ़िक़ जो उसे 'इनायत हुई, तुम्हें यही लिखा है
et Domini nostri longanimitatem, salutem arbitremini: sicut et carissimus frater noster Paulus secundum datam sibi sapientiam scripsit vobis,
16 और अपने सब ख़तों में इन बातों का ज़िक्र किया है, जिनमें कुछ बातें ऐसी हैं जिनका समझना मुश्किल है, और जाहिल और बे — क़याम लोग उनके मा'नों को और सहीफ़ों की तरह खींच तान कर अपने लिए हलाकत पैदा करते हैं।
sicut et omnibus epistolis, loquens in eis de his in quibus sunt quædam difficilia intellectu, quæ indocti et instabiles depravant, sicut et ceteras Scripturas, ad suam ipsorum perditionem.
17 पस ऐ 'अज़ीज़ो! चूँकि तुम पहले से आगाह हो, इसलिए होशियार रहो, ताकि बे — दीनों की गुमराही की तरफ़ खिंच कर अपनी मज़बूती को छोड़ न दो।
Vos igitur fratres, præscientes custodite, ne insipientium errore traducti excidatis a propria firmitate:
18 बल्कि हमारे ख़ुदावन्द और मुन्जी ईसा मसीह के फ़ज़ल और 'इरफ़ान में बढ़ते जाओ। उसी की बड़ाई अब भी हो, और हमेशा तक होती रहे। आमीन। (aiōn )
crescite vero in gratia, et in cognitione Domini nostri, et Salvatoris Jesu Christi. Ipsi gloria et nunc, et in diem æternitatis. Amen. (aiōn )