< 2 सला 4 >

1 और अम्बियाज़ादों की बीवियों में से एक 'औरत ने इलीशा' से फ़रियाद की और कहने लगी, “तेरा ख़ादिम मेरा शौहर मर गया है, और तू जानता है कि तेरा ख़ादिम ख़ुदावन्द से डरता था; इसलिए अब क़र्ज़ देने वाला आया है कि मेरे दोनों बेटों को ले जाए ताकि वह ग़ुलाम बनें।”
וְאִשָּׁ֣ה אַחַ֣ת מִנְּשֵׁ֣י בְנֵֽי־הַ֠נְּבִיאִים צָעֲקָ֨ה אֶל־אֱלִישָׁ֜ע לֵאמֹ֗ר עַבְדְּךָ֤ אִישִׁי֙ מֵ֔ת וְאַתָּ֣ה יָדַ֔עְתָּ כִּ֣י עַבְדְּךָ֔ הָיָ֥ה יָרֵ֖א אֶת־יְהוָ֑ה וְהַ֨נֹּשֶׁ֔ה בָּ֗א לָקַ֜חַת אֶת־שְׁנֵ֧י יְלָדַ֛י ל֖וֹ לַעֲבָדִֽים׃
2 इलीशा' ने उससे कहा, “मैं तेरे लिए क्या करूँ? मुझे बता, तेरे पास घर में क्या है?” उसने कहा, “तेरी ख़ादिमा के पास घर में एक प्याला तेल के 'अलावा कुछ भी नहीं।”
וַיֹּ֨אמֶר אֵלֶ֤יהָ אֱלִישָׁע֙ מָ֣ה אֶֽעֱשֶׂה־לָּ֔ךְ הַגִּ֣ידִי לִ֔י מַה־יֶּשׁ־לָ֖ךְ בַּבָּ֑יִת וַתֹּ֗אמֶר אֵ֣ין לְשִׁפְחָתְךָ֥ כֹל֙ בַּבַּ֔יִת כִּ֖י אִם־אָס֥וּךְ שָֽׁמֶן׃
3 तब उसने कहा, “तू जा, और बाहर से अपने सब पड़ोसियों से बर्तन उजरत पर ले, वह बर्तन ख़ाली हों, और थोड़े बर्तन न लेना।
וַיֹּ֗אמֶר לְכִ֨י שַׁאֲלִי־לָ֤ךְ כֵּלִים֙ מִן־הַח֔וּץ מֵאֵ֖ת כָּל־שְׁכֵנָ֑יִךְ כֵּלִ֥ים רֵקִ֖ים אַל־תַּמְעִֽיטִי׃
4 फिर तू अपने बेटों को साथ लेकर अन्दर जाना और पीछे से दरवाज़ा बन्द कर लेना, और उन सब बर्तनों में तेल उँडेलना, और जो भर जाए उसे उठा कर अलग रखना।”
וּבָ֗את וְסָגַ֤רְתְּ הַדֶּ֙לֶת֙ בַּעֲדֵ֣ךְ וּבְעַד־בָּנַ֔יִךְ וְיָצַ֕קְתְּ עַ֥ל כָּל־הַכֵּלִ֖ים הָאֵ֑לֶּה וְהַמָּלֵ֖א תַּסִּֽיעִי׃
5 तब वह उसके पास से गई, और उसने अपने बेटों को अन्दर साथ लेकर दरवाज़ा बन्द कर लिया; और वह उसके पास लाते जाते थे और वह उँडेलती जाती थी।
וַתֵּ֙לֶךְ֙ מֵֽאִתּ֔וֹ וַתִּסְגֹּ֣ר הַדֶּ֔לֶת בַּעֲדָ֖הּ וּבְעַ֣ד בָּנֶ֑יהָ הֵ֛ם מַגִּשִׁ֥ים אֵלֶ֖יהָ וְהִ֥יא מוֹצָֽקֶת׃
6 जब वह बर्तन भर गए तो उसने अपने बेटे से कहा, “मेरे पास एक और बर्तन ला।” उसने उससे कहा, “और तो कोई बर्तन रहा नहीं।” तब तेल बन्द हो गया।
וַיְהִ֣י ׀ כִּמְלֹ֣את הַכֵּלִ֗ים וַתֹּ֤אמֶר אֶל־בְּנָהּ֙ הַגִּ֨ישָׁה אֵלַ֥י עוֹד֙ כֶּ֔לִי וַיֹּ֣אמֶר אֵלֶ֔יהָ אֵ֥ין ע֖וֹד כֶּ֑לִי וַֽיַּעֲמֹ֖ד הַשָּֽׁמֶן׃
7 तब उसने आकर मर्द — ए — ख़ुदा को बताया। उसने कहा, “जा, तेल बेच, और क़र्ज़ अदा कर, और जो बाक़ी रहे उससे तू और तेरे बेटे गुज़ारा करें।”
וַתָּבֹ֗א וַתַּגֵּד֙ לְאִ֣ישׁ הָאֱלֹהִ֔ים וַיֹּ֗אמֶר לְכִי֙ מִכְרִ֣י אֶת־הַשֶּׁ֔מֶן וְשַׁלְּמִ֖י אֶת־נִשְׁיֵ֑ךְ וְאַ֣תְּ וּבָנַ֔יִךְ תִֽחְיִ֖י בַּנּוֹתָֽר׃ פ
8 एक रोज़ ऐसा हुआ कि इलीशा' शूनीम को गया, वहाँ एक दौलतमन्द 'औरत थी; और उसने उसे रोटी खाने पर मजबूर किया। फिर तो जब कभी वह उधर से गुज़रता, रोटी खाने के लिए वहीं चला जाता था।
וַיְהִ֨י הַיּ֜וֹם וַיַּעֲבֹ֧ר אֱלִישָׁ֣ע אֶל־שׁוּנֵ֗ם וְשָׁם֙ אִשָּׁ֣ה גְדוֹלָ֔ה וַתַּחֲזֶק־בּ֖וֹ לֶאֱכָל־לָ֑חֶם וַֽיְהִי֙ מִדֵּ֣י עָבְר֔וֹ יָסֻ֥ר שָׁ֖מָּה לֶאֱכָל־לָֽחֶם׃
9 इसलिए उसने अपने शौहर से कहा, “देख, मुझे मा'लूम होता है कि ये मर्द — ए — ख़ुदा, जो अकसर हमारी तरफ़ आता है, मुक़द्दस है।
וַתֹּ֙אמֶר֙ אֶל־אִישָׁ֔הּ הִנֵּה־נָ֣א יָדַ֔עְתִּי כִּ֛י אִ֥ישׁ אֱלֹהִ֖ים קָד֣וֹשׁ ה֑וּא עֹבֵ֥ר עָלֵ֖ינוּ תָּמִֽיד׃
10 हम उसके लिए एक छोटी सी कोठरी दीवार पर बना दें, और उसके लिए एक पलंग और मेज़ और चौकी और चराग़दान लगा दें, फिर जब कभी वह हमारे पास आए तो वहीं ठहरेगा।”
נַֽעֲשֶׂה־נָּ֤א עֲלִיַּת־קִיר֙ קְטַנָּ֔ה וְנָשִׂ֨ים ל֥וֹ שָׁ֛ם מִטָּ֥ה וְשֻׁלְחָ֖ן וְכִסֵּ֣א וּמְנוֹרָ֑ה וְהָיָ֛ה בְּבֹא֥וֹ אֵלֵ֖ינוּ יָס֥וּר שָֽׁמָּה׃
11 फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वह उधर गया और उस कोठरी में जाकर वहीं सोया।
וַיְהִ֥י הַיּ֖וֹם וַיָּ֣בֹא שָׁ֑מָּה וַיָּ֥סַר אֶל־הָעֲלִיָּ֖ה וַיִּשְׁכַּב־שָֽׁמָּה׃
12 फिर उसने अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, “इस शूनीमी 'औरत को बुला ले।” उसने उसे बुला लिया और वह उसके सामने खड़ी हुई।
וַיֹּ֙אמֶר֙ אֶל־גֵּחֲזִ֣י נַעֲר֔וֹ קְרָ֖א לַשּׁוּנַמִּ֣ית הַזֹּ֑את וַיִּקְרָא־לָ֔הּ וַֽתַּעֲמֹ֖ד לְפָנָֽיו׃
13 फिर उसने अपने ख़ादिम से कहा, “तू उससे पूछ कि तूने जो हमारे लिए इस क़दर फ़िक्रें कीं, तो तेरे लिए क्या किया जाए? क्या तू चाहती है कि बादशाह से, या फ़ौज के सरदार से तेरी सिफ़ारिश की जाए?” उसने जवाब दिया, “मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ।”
וַיֹּ֣אמֶר ל֗וֹ אֱמָר־נָ֣א אֵלֶיהָ֮ הִנֵּ֣ה חָרַ֣דְתְּ ׀ אֵלֵינוּ֮ אֶת־כָּל־הַחֲרָדָ֣ה הַזֹּאת֒ מֶ֚ה לַעֲשׂ֣וֹת לָ֔ךְ הֲיֵ֤שׁ לְדַבֶּר־לָךְ֙ אֶל־הַמֶּ֔לֶךְ א֖וֹ אֶל־שַׂ֣ר הַצָּבָ֑א וַתֹּ֕אמֶר בְּת֥וֹךְ עַמִּ֖י אָנֹכִ֥י יֹשָֽׁבֶת׃
14 फिर उसने कहा, “उसके लिए क्या किया जाए?” तब जेहाज़ी ने जवाब दिया, “सच उसके कोई बेटा नहीं, और उसका शौहर बुड्ढा है।”
וַיֹּ֕אמֶר וּמֶ֖ה לַעֲשׂ֣וֹת לָ֑הּ וַיֹּ֣אמֶר גֵּיחֲזִ֗י אֲבָ֛ל בֵּ֥ן אֵֽין־לָ֖הּ וְאִישָׁ֥הּ זָקֵֽן׃
15 तब उसने कहा, “उसे बुला ले।” और जब उसने उसे बुलाया, तो वह दरवाज़े पर खड़ी हुई।
וַיֹּ֖אמֶר קְרָא־לָ֑הּ וַיִּקְרָא־לָ֔הּ וַֽתַּעֲמֹ֖ד בַּפָּֽתַח׃
16 तब उसने कहा, “मौसम — ए — बहार में, वक़्त पूरा होने पर तेरी गोद में बेटा होगा।” उसने कहा, “नहीं, ऐ मेरे मालिक! ऐ मर्द — ए — ख़ुदा, अपनी ख़ादिमा से झूठ न कह।”
וַיֹּ֗אמֶר לַמּוֹעֵ֤ד הַזֶּה֙ כָּעֵ֣ת חַיָּ֔ה אַ֖תְּ חֹבֶ֣קֶת בֵּ֑ן וַתֹּ֗אמֶר אַל־אֲדֹנִי֙ אִ֣ישׁ הָאֱלֹהִ֔ים אַל־תְּכַזֵּ֖ב בְּשִׁפְחָתֶֽךָ׃
17 फिर वह 'औरत हामिला हुई और जैसा इलीशा' ने उससे कहा था, मौसम — ए — बहार में वक़्त पूरा होने पर उसके बेटा हुआ।
וַתַּ֥הַר הָאִשָּׁ֖ה וַתֵּ֣לֶד בֵּ֑ן לַמּוֹעֵ֤ד הַזֶּה֙ כָּעֵ֣ת חַיָּ֔ה אֲשֶׁר־דִּבֶּ֥ר אֵלֶ֖יהָ אֱלִישָֽׁע׃
18 जब वह लड़का बढ़ा, तो एक दिन ऐसा हुआ कि वह अपने बाप के पास खेत काटनेवालों में चला गया।
וַיִּגְדַּ֖ל הַיָּ֑לֶד וַיְהִ֣י הַיּ֔וֹם וַיֵּצֵ֥א אֶל־אָבִ֖יו אֶל־הַקֹּצְרִֽים׃
19 और उसने अपने बाप से कहा, हाय मेरा सिर, हाय मेरा सिर! “उसने अपने ख़ादिम से कहा, 'उसे उसकी माँ के पास ले जा।”
וַיֹּ֥אמֶר אֶל־אָבִ֖יו רֹאשִׁ֣י ׀ רֹאשִׁ֑י וַיֹּ֙אמֶר֙ אֶל־הַנַּ֔עַר שָׂאֵ֖הוּ אֶל־אִמּֽוֹ׃
20 जब उसने उसे लेकर उसकी माँ के पास पहुँचा दिया, तो वह उसके घुटनों पर दोपहर तक बैठा रहा, इसके बाद मर गया।
וַיִּשָּׂאֵ֔הוּ וַיְבִיאֵ֖הוּ אֶל־אִמּ֑וֹ וַיֵּ֧שֶׁב עַל־בִּרְכֶּ֛יהָ עַד־הַֽצָּהֳרַ֖יִם וַיָּמֹֽת׃
21 तब उसकी माँ ने ऊपर जाकर उसे मर्द — ए — ख़ुदा के पलंग पर लिटा दिया, और दरवाज़ा बन्द करके बाहर गई।
וַתַּ֙עַל֙ וַתַּשְׁכִּבֵ֔הוּ עַל־מִטַּ֖ת אִ֣ישׁ הָאֱלֹהִ֑ים וַתִּסְגֹּ֥ר בַּעֲד֖וֹ וַתֵּצֵֽא׃
22 और उसने अपने शौहर से पुकार कर कहा, “जल्द जवानों में से एक को, और गधों में से एक को मेरे लिए भेज दे, ताकि मैं मर्द — ए — ख़ुदा के पास दौड़ जाऊँ और फिर लौट आऊँ।”
וַתִּקְרָא֮ אֶל־אִישָׁהּ֒ וַתֹּ֗אמֶר שִׁלְחָ֨ה נָ֥א לִי֙ אֶחָ֣ד מִן־הַנְּעָרִ֔ים וְאַחַ֖ת הָאֲתֹנ֑וֹת וְאָר֛וּצָה עַד־אִ֥ישׁ הָאֱלֹהִ֖ים וְאָשֽׁוּבָה׃
23 उसने कहा, “आज तू उसके पास क्यूँ जाना चाहती है? आज न तो नया चाँद है न सब्त।” उसने जवाब दिया, “अच्छा ही होगा।”
וַיֹּ֗אמֶר מַ֠דּוּעַ אַ֣תְּ הֹלֶ֤כֶת אֵלָיו֙ הַיּ֔וֹם לֹֽא־חֹ֖דֶשׁ וְלֹ֣א שַׁבָּ֑ת וַתֹּ֖אמֶר שָׁלֽוֹם׃
24 और उसने गधे पर ज़ीन कसकर अपने ख़ादिम से कहा, “चल, आगे बढ़; और सवारी चलाने में सुस्ती न कर, जब तक मैं तुझ से न कहूँ।”
וַֽתַּחֲבֹשׁ֙ הָֽאָת֔וֹן וַתֹּ֥אמֶר אֶֽל־נַעֲרָ֖הּ נְהַ֣ג וָלֵ֑ךְ אַל־תַּעֲצָר־לִ֣י לִרְכֹּ֔ב כִּ֖י אִם־אָמַ֥רְתִּי לָֽךְ׃
25 तब वह चली और वह कर्मिल पहाड़ को मर्द — ए — ख़ुदा के पास गई। उस मर्द — ए — ख़ुदा ने दूर से उसे देखकर अपने ख़ादिम जेहाज़ी से कहा, देख, उधर वह शूनीमी 'औरत है।
וַתֵּ֗לֶךְ וַתָּב֛וֹא אֶל־אִ֥ישׁ הָאֱלֹהִ֖ים אֶל־הַ֣ר הַכַּרְמֶ֑ל וַ֠יְהִי כִּרְא֨וֹת אִישׁ־הָאֱלֹהִ֤ים אֹתָהּ֙ מִנֶּ֔גֶד וַיֹּ֙אמֶר֙ אֶל־גֵּיחֲזִ֣י נַעֲר֔וֹ הִנֵּ֖ה הַשּׁוּנַמִּ֥ית הַלָּֽז׃
26 अब ज़रा उसके इस्तक़बाल को दौड़ जा, और उससे पूछ, 'क्या तू खै़रियत से है? तेरा शौहर खै़रियत से, बच्चा ख़ैरियत से है?' “उसने जवाब दिया, ठीक नहीं है।”
עַתָּה֮ רֽוּץ־נָ֣א לִקְרָאתָהּ֒ וֶאֱמָר־לָ֗הּ הֲשָׁל֥וֹם לָ֛ךְ הֲשָׁל֥וֹם לְאִישֵׁ֖ךְ הֲשָׁל֣וֹם לַיָּ֑לֶד וַתֹּ֖אמֶר שָׁלֽוֹם׃
27 और जब वह उस पहाड़ पर मर्द — ए — ख़ुदा के पास आई, तो उसके पैर पकड़ लिए, और जेहाज़ी उसे हटाने के लिए नज़दीक आया, पर मर्द — ए — ख़ुदा ने कहा, “उसे छोड़ दे, क्यूँकि उसका दिल परेशान है, और ख़ुदावन्द ने ये बात मुझ से छिपाई और मुझे न बताई।”
וַתָּבֹ֞א אֶל־אִ֤ישׁ הָֽאֱלֹהִים֙ אֶל־הָהָ֔ר וַֽתַּחֲזֵ֖ק בְּרַגְלָ֑יו וַיִּגַּ֨שׁ גֵּֽיחֲזִ֜י לְהָדְפָ֗הּ וַיֹּאמֶר֩ אִ֨ישׁ הָאֱלֹהִ֤ים הַרְפֵּֽה־לָהּ֙ כִּֽי־נַפְשָׁ֣הּ מָֽרָה־לָ֔הּ וַֽיהוָה֙ הֶעְלִ֣ים מִמֶּ֔נִּי וְלֹ֥א הִגִּ֖יד לִֽי׃
28 और वह कहने लगी, क्या मैंने अपने मालिक से बेटे का सवाल किया था? क्या मैंने न कहा था, “मुझे धोका न दे'?”
וַתֹּ֕אמֶר הֲשָׁאַ֥לְתִּי בֵ֖ן מֵאֵ֣ת אֲדֹנִ֑י הֲלֹ֣א אָמַ֔רְתִּי לֹ֥א תַשְׁלֶ֖ה אֹתִֽי׃
29 तब उसने जेहाज़ी से कहा, “कमर बाँध, और मेरी लाठी हाथ में लेकर अपना रास्ता ले; अगर कोई तुझे रास्ते में मिले तो उसे सलाम न करना, और अगर कोई तुझे सलाम करे तो जवाब न देना; और मेरी लाठी उस लड़के के मुँह पर रख देना।”
וַיֹּ֨אמֶר לְגֵיחֲזִ֜י חֲגֹ֣ר מָתְנֶ֗יךָ וְקַ֨ח מִשְׁעַנְתִּ֣י בְיָדְךָ֮ וָלֵךְ֒ כִּֽי־תִמְצָ֥א אִישׁ֙ לֹ֣א תְבָרְכֶ֔נּוּ וְכִֽי־יְבָרֶכְךָ֥ אִ֖ישׁ לֹ֣א תַעֲנֶנּ֑וּ וְשַׂמְתָּ֥ מִשְׁעַנְתִּ֖י עַל־פְּנֵ֥י הַנָּֽעַר׃
30 उस लड़के की माँ ने कहा, “ख़ुदावन्द की हयात की क़सम और तेरी जान की क़सम, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगी।” तब वह उठ कर उसके पीछे — पीछे चला।
וַתֹּ֙אמֶר֙ אֵ֣ם הַנַּ֔עַר חַי־יְהוָ֥ה וְחֵֽי־נַפְשְׁךָ֖ אִם־אֶעֶזְבֶ֑ךָּ וַיָּ֖קָם וַיֵּ֥לֶךְ אַחֲרֶֽיהָ׃
31 और जेहाज़ी ने उनसे पहले आकर लाठी को उस लड़के के मुँह पर रखा; पर न तो कुछ आवाज़ हुई, न सुना। इसलिए वह उससे मिलने को लौटा, और उसे बताया, “लड़का नहीं जागा।”
וְגֵחֲזִ֞י עָבַ֣ר לִפְנֵיהֶ֗ם וַיָּ֤שֶׂם אֶת־הַמִּשְׁעֶ֙נֶת֙ עַל־פְּנֵ֣י הַנַּ֔עַר וְאֵ֥ין ק֖וֹל וְאֵ֣ין קָ֑שֶׁב וַיָּ֤שָׁב לִקְרָאתוֹ֙ וַיַּגֶּד־ל֣וֹ לֵאמֹ֔ר לֹ֥א הֵקִ֖יץ הַנָּֽעַר׃
32 जब इलीशा' उस घर में आया, तो देखो, वह लड़का मरा हुआ उसके पलंग पर पड़ा था।
וַיָּבֹ֥א אֱלִישָׁ֖ע הַבָּ֑יְתָה וְהִנֵּ֤ה הַנַּ֙עַר֙ מֵ֔ת מֻשְׁכָּ֖ב עַל־מִטָּתֽוֹ׃
33 तब वह अकेला अन्दर गया, और दरवाज़ा बन्द करके ख़ुदावन्द से दुआ की।
וַיָּבֹ֕א וַיִּסְגֹּ֥ר הַדֶּ֖לֶת בְּעַ֣ד שְׁנֵיהֶ֑ם וַיִּתְפַּלֵּ֖ל אֶל־יְהוָֽה׃
34 और ऊपर चढ़कर उस बच्चे पर लेट गया; और उसके मुँह पर अपना मुँह, और उसकी आँखों पर अपनी ऑखें, और उसके हाथों पर अपने हाथ रख लिए, और उसके ऊपर लेट गया; तब उस बच्चे का जिस्म गर्म होने लगा।
וַיַּ֜עַל וַיִּשְׁכַּ֣ב עַל־הַיֶּ֗לֶד וַיָּשֶׂם֩ פִּ֨יו עַל־פִּ֜יו וְעֵינָ֤יו עַל־עֵינָיו֙ וְכַפָּ֣יו עַל־כַּפָּ֔יו וַיִּגְהַ֖ר עָלָ֑יו וַיָּ֖חָם בְּשַׂ֥ר הַיָּֽלֶד׃
35 फिर वह उठकर उस घर में एक बार टहला, और ऊपर चढ़कर उस बच्चे के ऊपर लेट गया; और वह बच्चा सात बार छींका और बच्चे ने ऑखें खोल दीं।
וַיָּ֜שָׁב וַיֵּ֣לֶךְ בַּבַּ֗יִת אַחַ֥ת הֵ֙נָּה֙ וְאַחַ֣ת הֵ֔נָּה וַיַּ֖עַל וַיִּגְהַ֣ר עָלָ֑יו וַיְזוֹרֵ֤ר הַנַּ֙עַר֙ עַד־שֶׁ֣בַע פְּעָמִ֔ים וַיִּפְקַ֥ח הַנַּ֖עַר אֶת־עֵינָֽיו׃
36 तब उसने जेहाज़ी को बुला कर कहा, “उस शूनीमी 'औरत को बुला ले।” तब उसने उसे बुलाया, और जब वह उसके पास आई, तो उसने उससे कहा, “अपने बेटे को उठा ले।”
וַיִּקְרָ֣א אֶל־גֵּיחֲזִ֗י וַיֹּ֙אמֶר֙ קְרָא֙ אֶל־הַשֻּׁנַמִּ֣ית הַזֹּ֔את וַיִּקְרָאֶ֖הָ וַתָּב֣וֹא אֵלָ֑יו וַיֹּ֖אמֶר שְׂאִ֥י בְנֵֽךְ׃
37 तब वह अन्दर जाकर उसके क़दमों पर गिरी और ज़मीन पर सिज्दे में हो गई; फिर अपने बेटे को उठा कर बाहर चली गई।
וַתָּבֹא֙ וַתִּפֹּ֣ל עַל־רַגְלָ֔יו וַתִּשְׁתַּ֖חוּ אָ֑רְצָה וַתִּשָּׂ֥א אֶת־בְּנָ֖הּ וַתֵּצֵֽא׃ פ
38 और इलीशा' फिर जिलजाल में आया, और मुल्क में काल था, और अम्बियाज़ादे उसके सामने बैठे हुए थे। और उसने अपने ख़ादिम से कहा, “बड़ी देग चढ़ा दे, और इन अम्बियाज़ादों के लिए लप्सी पका।”
וֶאֱלִישָׁ֞ע שָׁ֤ב הַגִּלְגָּ֙לָה֙ וְהָרָעָ֣ב בָּאָ֔רֶץ וּבְנֵי֙ הַנְּבִיאִ֔ים יֹשְׁבִ֖ים לְפָנָ֑יו וַיֹּ֣אמֶר לְנַעֲר֗וֹ שְׁפֹת֙ הַסִּ֣יר הַגְּדוֹלָ֔ה וּבַשֵּׁ֥ל נָזִ֖יד לִבְנֵ֥י הַנְּבִיאִֽים׃
39 और उनमें से एक खेत में गया कि कुछ सब्ज़ी चुन लाए। तब उसे कोई जंगली लता मिल गई। उसने उसमें से इन्द्रायन तोड़कर दामन भर लिया और लौटा, और उनको काटकर लप्सी की देग में डाल दिया, क्यूँकि वह उनको पहचानते न थे।
וַיֵּצֵ֨א אֶחָ֣ד אֶל־הַשָּׂדֶה֮ לְלַקֵּ֣ט אֹרֹת֒ וַיִּמְצָא֙ גֶּ֣פֶן שָׂדֶ֔ה וַיְלַקֵּ֥ט מִמֶּ֛נּוּ פַּקֻּעֹ֥ת שָׂדֶ֖ה מְלֹ֣א בִגְד֑וֹ וַיָּבֹ֗א וַיְפַלַּ֛ח אֶל־סִ֥יר הַנָּזִ֖יד כִּֽי־לֹ֥א יָדָֽעוּ׃
40 चुनाँचे उन्होंने उन मर्दों के खाने के लिए उसमें से ऊँडेला। और ऐसा हुआ कि जब वह उस लप्सी में से खाने लगे, तो चिल्ला उठे और कहा, “ऐ मर्द — ए — ख़ुदा, देग में मौत है!” और वह उसमें से खा न सके।
וַיִּֽצְק֥וּ לַאֲנָשִׁ֖ים לֶאֱכ֑וֹל וַ֠יְהִי כְּאָכְלָ֨ם מֵהַנָּזִ֜יד וְהֵ֣מָּה צָעָ֗קוּ וַיֹּֽאמְרוּ֙ מָ֤וֶת בַּסִּיר֙ אִ֣ישׁ הָאֱלֹהִ֔ים וְלֹ֥א יָכְל֖וּ לֶאֱכֹֽל׃
41 लेकिन उसने कहा, “आटा लाओ।” और उसने उस देग में डाल दिया और कहा, “उन लोगों के लिए उंडेलो, ताकि वह खाएँ।” फ़िर देग में कोई मुज़िर चीज़ बाक़ी न रही।
וַיֹּ֙אמֶר֙ וּקְחוּ־קֶ֔מַח וַיַּשְׁלֵ֖ךְ אֶל־הַסִּ֑יר וַיֹּ֗אמֶר צַ֤ק לָעָם֙ וְיֹאכֵ֔לוּ וְלֹ֥א הָיָ֛ה דָּבָ֥ר רָ֖ע בַּסִּֽיר׃ ס
42 बाल सलीसा से एक शख़्स आया, और पहले फ़सल की रोटियाँ, या'नी जौ के बीस गिर्दे और अनाज की हरी — हरी बाले मर्द ए — ख़ुदा के पास लाया, उसने कहा, “इन लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ।”
וְאִ֨ישׁ בָּ֜א מִבַּ֣עַל שָׁלִ֗שָׁה וַיָּבֵא֩ לְאִ֨ישׁ הָאֱלֹהִ֜ים לֶ֤חֶם בִּכּוּרִים֙ עֶשְׂרִֽים־לֶ֣חֶם שְׂעֹרִ֔ים וְכַרְמֶ֖ל בְּצִקְלֹנ֑וֹ וַיֹּ֕אמֶר תֵּ֥ן לָעָ֖ם וְיֹאכֵֽלוּ׃
43 उसके ख़ादिम ने कहा, “क्या मैं इतने ही को सौ आदमियों के सामने रख दूँ?” फिर उसने फिर कहा, लोगों को दे दे, ताकि वह खाएँ; क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, “वह खाएँगे और उसमें से कुछ छोड़ भी देंगे।”
וַיֹּ֙אמֶר֙ מְשָׁ֣רְת֔וֹ מָ֚ה אֶתֵּ֣ן זֶ֔ה לִפְנֵ֖י מֵ֣אָה אִ֑ישׁ וַיֹּ֗אמֶר תֵּ֤ן לָעָם֙ וְיֹאכֵ֔לוּ כִּ֣י כֹ֥ה אָמַ֛ר יְהוָ֖ה אָכֹ֥ל וְהוֹתֵֽר׃
44 तब उसने उसे उनके आगे रख्खा और उन्होंने खाया; और जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, उसमें से कुछ छोड़ भी दिया।
וַיִּתֵּ֧ן לִפְנֵיהֶ֛ם וַיֹּאכְל֥וּ וַיּוֹתִ֖רוּ כִּדְבַ֥ר יְהוָֽה׃ פ

< 2 सला 4 >