< 2 कुरिन्थियों 1 >

1 पौलुस की तरफ़ जो ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह ईसा का रसूल है और भाई तीमुथियुस की तरफ़ से ख़ुदा की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस शहर में है और तमाम अख़िया के सब मुक़द्दसों के नाम पौलुस का ख़त।
IzvarasyecchayA yIzukhrISTasya preritaH paulastimathirbhrAtA ca dvAvetau karinthanagarasthAyai IzvarIyasamitaya AkhAyAdezasthebhyaH sarvvebhyaH pavitralokebhyazca patraM likhataH|
2 हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मीनान हासिल होता रहे; आमीन।
asmAkaM tAtasyezvarasya prabhoryIzukhrISTasya cAnugrahaH zAntizca yuSmAsu varttatAM|
3 हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो जो रहमतों का बाप और हर तरह की तसल्ली का ख़ुदा है।
kRpAluH pitA sarvvasAntvanAkArIzvarazca yo'smatprabhoryIzukhrISTasya tAta IzvaraH sa dhanyo bhavatu|
4 वो हमारी सब मुसीबतों में हम को तसल्ली देता है; ताकि हम उस तसल्ली की वजह से जो ख़ुदा हमें बख़्शता है उनको भी तसल्ली दे सकें जो किसी तरह की मुसीबत में हैं।
yato vayam IzvarAt sAntvanAM prApya tayA sAntvanayA yat sarvvavidhakliSTAn lokAn sAntvayituM zaknuyAma tadarthaM so'smAkaM sarvvaklezasamaye'smAn sAntvayati|
5 क्यूँकि जिस तरह मसीह के दु: ख हम को ज़्यादा पहुँचते हैं; उसी तरह हमारी तसल्ली भी मसीह के वसीले से ज़्यादा होती है।
yataH khrISTasya klezA yadvad bAhulyenAsmAsu varttante tadvad vayaM khrISTena bahusAntvanADhyA api bhavAmaH|
6 अगर हम मुसीबत उठाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली और नजात के वास्ते और अगर तसल्ली पाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली के वास्ते; जिसकी तासीर से तुम सब के साथ उन दुखों को बर्दाश्त कर लेते हो; जो हम भी सहते हैं।
vayaM yadi klizyAmahe tarhi yuSmAkaM sAntvanAparitrANayoH kRte klizyAmahe yato'smAbhi ryAdRzAni duHkhAni sahyante yuSmAkaM tAdRzaduHkhAnAM sahanena tau sAdhayiSyete ityasmin yuSmAnadhi mama dRDhA pratyAzA bhavati|
7 और हमारी उम्मीद तुम्हारे बारे में मज़बूत है; क्यूँकि हम जानते हैं कि जिस तरह तुम दु: खों में शरीक हो उसी तरह तसल्ली में भी हो।
yadi vA vayaM sAntvanAM labhAmahe tarhi yuSmAkaM sAntvanAparitrANayoH kRte tAmapi labhAmahe| yato yUyaM yAdRg duHkhAnAM bhAgino'bhavata tAdRk sAntvanAyA api bhAgino bhaviSyatheti vayaM jAnImaH|
8 ऐ, भाइयों! हम नहीं चाहते कि तुम उस मुसीबत से ना वाक़िफ़ रहो जो आसिया में हम पर पड़ी कि हम हद से ज़्यादा और ताक़त से बाहर पस्त हो गए; यहाँ तक कि हम ने ज़िन्दगी से भी हाथ धो लिए।
he bhrAtaraH, AziyAdeze yaH klezo'smAn AkrAmyat taM yUyaM yad anavagatAstiSThata tanmayA bhadraM na manyate| tenAtizaktiklezena vayamatIva pIDitAstasmAt jIvanarakSaNe nirupAyA jAtAzca,
9 बल्कि अपने ऊपर मौत के हुक्म का यक़ीन कर चुके थे ताकि अपना भरोसा न रख्खें बल्कि ख़ुदा का जो मुर्दों को जिलाता है।
ato vayaM sveSu na vizvasya mRtalokAnAm utthApayitarIzvare yad vizvAsaM kurmmastadartham asmAbhiH prANadaNDo bhoktavya iti svamanasi nizcitaM|
10 चुनाँचे उसी ने हम को ऐसी बड़ी हलाकत से छुड़ाया और छुड़ाएगा; और हम को उसी से ये उम्मीद है कि आगे को भी छुड़ाता रहेगा।
etAdRzabhayaGkarAt mRtyo ryo 'smAn atrAyatedAnImapi trAyate sa itaH paramapyasmAn trAsyate 'smAkam etAdRzI pratyAzA vidyate|
11 अगर तुम भी मिलकर दुआ से हमारी मदद करोगे ताकि जो नेअ'मत हम को बहुत लोगों के वसीले से मिली उसका शुक्र भी बहुत से लोग हमारी तरफ़ से करें।
etadarthamasmatkRte prArthanayA vayaM yuSmAbhirupakarttavyAstathA kRte bahubhi ryAcito yo'nugraho'smAsu varttiSyate tatkRte bahubhirIzvarasya dhanyavAdo'pi kAriSyate|
12 क्यूँकि हम को अपने दिल की इस गवाही पर फ़ख़्र है कि हमारा चाल चलन दुनिया में और ख़ासकर तुम में जिस्मानी हिक्मत के साथ नहीं बल्कि ख़ुदा के फ़ज़ल के साथ ऐसी पाकीज़गी और सफ़ाई के साथ रहा जो ख़ुदा के लायक़ है।
aparaJca saMsAramadhye vizeSato yuSmanmadhye vayaM sAMsArikyA dhiyA nahi kintvIzvarasyAnugraheNAkuTilatAm IzvarIyasAralyaJcAcaritavanto'trAsmAkaM mano yat pramANaM dadAti tena vayaM zlAghAmahe|
13 हम और बातें तुम्हें नहीं लिखते सिवा उन के जिन्हें तुम पढ़ते या मानते हो, और मुझे उम्मीद है कि आख़िर तक मानते रहोगे।
yuSmAbhi ryad yat paThyate gRhyate ca tadanyat kimapi yuSmabhyam asmAbhi rna likhyate taccAntaM yAvad yuSmAbhi rgrahISyata ityasmAkam AzA|
14 चुनाँचे तुम में से कितनों ही ने मान भी लिया है कि हम तुम्हारा फ़ख़्र हैं; जिस तरह हमारे ख़ुदावन्द ईसा के दिन तुम भी हमारा फ़ख़्र रहोगे।
yUyamitaH pUrvvamapyasmAn aMzato gRhItavantaH, yataH prabho ryIzukhrISTasya dine yadvad yuSmAsvasmAkaM zlAghA tadvad asmAsu yuSmAkamapi zlAghA bhaviSyati|
15 और इसी भरोसे पर मैंने ये इरादा किया था, कि पहले तुम्हारे पास आऊँ; ताकि तुम्हें एक और नेअ'मत मिले।
aparaM yUyaM yad dvitIyaM varaM labhadhve tadarthamitaH pUrvvaM tayA pratyAzayA yuSmatsamIpaM gamiSyAmi
16 और तुम्हारे शहर से होता हुआ मकिदुनिया सूबे को जाऊँ और मकिदुनिया से फिर तुम्हारे पास आऊँ, और तुम मुझे यहूदिया की तरफ़ रवाना कर दो।
yuSmaddezena mAkidaniyAdezaM vrajitvA punastasmAt mAkidaniyAdezAt yuSmatsamIpam etya yuSmAbhi ryihUdAdezaM preSayiSye ceti mama vAJchAsIt|
17 पस मैंने जो इरादा किया था शोखमिज़ाजी से किया था? या जिन बातों का इरादा करता हूँ क्या जिस्मानी तौर पर करता हूँ कि हाँ हाँ भी करूँ और नहीं नहीं भी करूँ?
etAdRzI mantraNA mayA kiM cAJcalyena kRtA? yad yad ahaM mantraye tat kiM viSayilokaiva mantrayANa Adau svIkRtya pazcAd asvIkurvve?
18 ख़ुदा की सच्चाई की क़सम कि हमारे उस कलाम में जो तुम से किया जाता है हाँ और नहीं दोनों पाई नहीं जाती।
yuSmAn prati mayA kathitAni vAkyAnyagre svIkRtAni zeSe'svIkRtAni nAbhavan etenezvarasya vizvastatA prakAzate|
19 क्यूँकि ख़ुदा का बेटा ईसा मसीह जिसकी मनादी हम ने या'नी मैंने और सिलवानुस और तीमुथियुस ने तुम में की उस में हाँ और नहीं दोनों न थीं बल्कि उस में हाँ ही हाँ हुई।
mayA silvAnena timathinA cezvarasya putro yo yIzukhrISTo yuSmanmadhye ghoSitaH sa tena svIkRtaH punarasvIkRtazca tannahi kintu sa tasya svIkArasvarUpaeva|
20 क्यूँकि ख़ुदा के जितने वा'दे हैं वो सब उस में हाँ के साथ हैं। इसी लिए उसके ज़रिए से आमीन भी हुई; ताकि हमारे वसीले से ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो।
Izvarasya mahimA yad asmAbhiH prakAzeta tadartham IzvareNa yad yat pratijJAtaM tatsarvvaM khrISTena svIkRtaM satyIbhUtaJca|
21 और जो हम को तुम्हारे साथ मसीह में क़ाईम करता है और जिस ने हम को मसह किया वो ख़ुदा है।
yuSmAn asmAMzcAbhiSicya yaH khrISTe sthAsnUn karoti sa Izvara eva|
22 जिसने हम पर मुहर भी की और पेशगी में रूह को हमारे दिलों में दिया।
sa cAsmAn mudrAGkitAn akArSIt satyAGkArasya paNakharUpam AtmAnaM asmAkam antaHkaraNeSu nirakSipacca|
23 मैं ख़ुदा को गवाह करता हूँ कि मैं अब तक कुरिन्थुस में इस वास्ते नहीं आया कि मुझे तुम पर रहम आता है।
aparaM yuSmAsu karuNAM kurvvan aham etAvatkAlaM yAvat karinthanagaraM na gatavAn iti satyametasmin IzvaraM sAkSiNaM kRtvA mayA svaprANAnAM zapathaH kriyate|
24 ये नहीं कि हम ईमान के बारे में तुम पर हुकूमत जताते हैं बल्कि ख़ुशी में तुम्हारे मददगार हैं क्यूँकि तुम ईमान ही से क़ाईम रहते हो।
vayaM yuSmAkaM vizvAsasya niyantAro na bhavAmaH kintu yuSmAkam Anandasya sahAyA bhavAmaH, yasmAd vizvAse yuSmAkaM sthiti rbhavati|

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