< 1 सला 8 >

1 तब सुलेमान ने इस्राईल के बुज़ुगों और क़बीलों के सब सरदारों को, जो बनी इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के रईस थे, अपने पास येरूशलेम में जमा' किया ताकि वह दाऊद के शहर से, जो सिय्यून है, ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को ले आएँ।
אָ֣ז יַקְהֵ֣ל שְׁלֹמֹ֣ה אֶת־זִקְנֵ֣י יִשְׂרָאֵ֡ל אֶת־כָּל־רָאשֵׁ֣י הַמַּטּוֹת֩ נְשִׂיאֵ֨י הָאָב֜וֹת לִבְנֵ֧י יִשְׂרָאֵ֛ל אֶל־הַמֶּ֥לֶךְ שְׁלֹמֹ֖ה יְרוּשָׁלִָ֑ם לְֽהַעֲל֞וֹת אֶת־אֲר֧וֹן בְּרִית־יְהוָ֛ה מֵעִ֥יר דָּוִ֖ד הִ֥יא צִיּֽוֹן׃
2 इसलिए उस 'ईद में इस्राईल के सब लोग माह — ए — ऐतानीम में, जो सातवाँ महीना है, सुलेमान बादशाह के पास जमा' हुए।
וַיִּקָּ֨הֲל֜וּ אֶל־הַמֶּ֤לֶךְ שְׁלֹמֹה֙ כָּל־אִ֣ישׁ יִשְׂרָאֵ֔ל בְּיֶ֥רַח הָאֵֽתָנִ֖ים בֶּחָ֑ג ה֖וּא הַחֹ֥דֶשׁ הַשְּׁבִיעִֽי׃
3 और इस्राईल के सब बुज़ुर्ग आए, और काहिनों ने सन्दूक़ उठाया।
וַיָּבֹ֕אוּ כֹּ֖ל זִקְנֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל וַיִּשְׂא֥וּ הַכֹּהֲנִ֖ים אֶת־הָאָרֽוֹן׃
4 और वह ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को, और ख़ेमा — ए — इजितमा'अ को, और उन सब मुक़द्दस बर्तनों को जो ख़ेमे के अन्दर थे ले आए; उनको काहिन और लावी लाए थे।
וַֽיַּעֲל֞וּ אֶת־אֲר֤וֹן יְהוָה֙ וְאֶת־אֹ֣הֶל מוֹעֵ֔ד וְאֶֽת־כָּל־כְּלֵ֥י הַקֹּ֖דֶשׁ אֲשֶׁ֣ר בָּאֹ֑הֶל וַיַּעֲל֣וּ אֹתָ֔ם הַכֹּהֲנִ֖ים וְהַלְוִיִּֽם׃
5 और सुलेमान बादशाह ने और उसके साथ इस्राईल की सारी जमा'अत ने, जो उसके पास जमा' थी, सन्दूक़ के सामने खड़े होकर इतनी भेड़ — बकरियाँ और बैल ज़बह किए कि उनको कसरत की वजह से उनकी गिनती या हिसाब न हो सका।
וְהַמֶּ֣לֶךְ שְׁלֹמֹ֗ה וְכָל־עֲדַ֤ת יִשְׂרָאֵל֙ הַנּוֹעָדִ֣ים עָלָ֔יו אִתּ֖וֹ לִפְנֵ֣י הָֽאָר֑וֹן מְזַבְּחִים֙ צֹ֣אן וּבָקָ֔ר אֲשֶׁ֧ר לֹֽא־יִסָּפְר֛וּ וְלֹ֥א יִמָּנ֖וּ מֵרֹֽב׃
6 और काहिन ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को उसकी जगह पर, उस घर की इल्हामगाह में, या'नी पाकतरीन मकान में 'ऐन करूबियों के बाज़ुओं के नीचे ले आए।
וַיָּבִ֣אוּ הַ֠כֹּהֲנִים אֶת־אֲר֨וֹן בְּרִית־יְהוָ֧ה אֶל־מְקוֹמ֛וֹ אֶל־דְּבִ֥יר הַבַּ֖יִת אֶל־קֹ֣דֶשׁ הַקֳּדָשִׁ֑ים אֶל־תַּ֖חַת כַּנְפֵ֥י הַכְּרוּבִֽים׃
7 क्यूँकि करूबी अपने बाज़ुओं को सन्दूक़ की जगह के ऊपर फैलाए हुए थे, और वह करूबी सन्दूक़ को और उसकी चोबों को ऊपर से ढाँके हुए थे।
כִּ֤י הַכְּרוּבִים֙ פֹּרְשִׂ֣ים כְּנָפַ֔יִם אֶל־מְק֖וֹם הָֽאָר֑וֹן וַיָּסֹ֧כּוּ הַכְּרֻבִ֛ים עַל־הָאָר֥וֹן וְעַל־בַּדָּ֖יו מִלְמָֽעְלָה׃
8 और वह चोबें ऐसी लम्बी थीं के उन चोंबों के सिरे पाक मकान से इल्हामगाह के सामने दिखाई देते थे, लेकिन बाहर से नहीं दिखाई देते थे। और वह आज तक वहीं हैं।
וַֽיַּאֲרִכוּ֮ הַבַּדִּים֒ וַיֵּרָאוּ֩ רָאשֵׁ֨י הַבַּדִּ֤ים מִן־הַקֹּ֙דֶשׁ֙ עַל־פְּנֵ֣י הַדְּבִ֔יר וְלֹ֥א יֵרָא֖וּ הַח֑וּצָה וַיִּ֣הְיוּ שָׁ֔ם עַ֖ד הַיּ֥וֹם הַזֶּֽה׃
9 उस सन्दूक़ में कुछ न था सिवा पत्थर की उन दो लौहों के जिनको वहाँ मूसा ने होरिब में रख दिया था, जिस वक़्त के ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल से जब वह मुल्क — ए — मिस्र से निकल आए, 'अहद बाँधा था।
אֵ֚ין בָּֽאָר֔וֹן רַ֗ק שְׁנֵי֙ לֻח֣וֹת הָאֲבָנִ֔ים אֲשֶׁ֨ר הִנִּ֥חַ שָׁ֛ם מֹשֶׁ֖ה בְּחֹרֵ֑ב אֲשֶׁ֨ר כָּרַ֤ת יְהוָה֙ עִם־בְּנֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל בְּצֵאתָ֖ם מֵאֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃
10 फिर ऐसा हुआ कि जब काहिन पाक मकान से बाहर निकल आए, तो ख़ुदावन्द का घर अब्र से भर गया:
וַיְהִ֕י בְּצֵ֥את הַכֹּהֲנִ֖ים מִן־הַקֹּ֑דֶשׁ וְהֶעָנָ֥ן מָלֵ֖א אֶת־בֵּ֥ית יְהוָֽה׃
11 इसलिए काहिन उस अब्र की वजह से ख़िदमत के लिए खड़े न हो सके, इसलिए कि ख़ुदावन्द का घर उसके जलाल से भर गया था।
וְלֹֽא־יָכְל֧וּ הַכֹּהֲנִ֛ים לַעֲמֹ֥ד לְשָׁרֵ֖ת מִפְּנֵ֥י הֶֽעָנָ֑ן כִּי־מָלֵ֥א כְבוֹד־יְהוָ֖ה אֶת־בֵּ֥ית יְהוָֽה׃ פ
12 तब सुलेमान ने कहा कि “ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था कि वह गहरी तारीकी में रहेगा।
אָ֖ז אָמַ֣ר שְׁלֹמֹ֑ה יְהוָ֣ה אָמַ֔ר לִשְׁכֹּ֖ן בָּעֲרָפֶֽל׃
13 मैंने हक़ीक़त में एक घर तेरे रहने के लिए, बल्कि तेरी हमेशा की सुकूनत के वास्ते एक जगह बनाई है।”
בָּנֹ֥ה בָנִ֛יתִי בֵּ֥ית זְבֻ֖ל לָ֑ךְ מָכ֥וֹן לְשִׁבְתְּךָ֖ עוֹלָמִֽים׃
14 और बादशाह ने अपना मुँह फेरा और इस्राईल की सारी जमा'अत को बरकत दी, और इस्राईल की सारी जमा'अत खड़ी रही;
וַיַּסֵּ֤ב הַמֶּ֙לֶךְ֙ אֶת־פָּנָ֔יו וַיְבָ֕רֶךְ אֵ֖ת כָּל־קְהַ֣ל יִשְׂרָאֵ֑ל וְכָל־קְהַ֥ל יִשְׂרָאֵ֖ל עֹמֵֽד׃
15 और उसने कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो! जिसने अपने मुँह से मेरे बाप दाऊद से कलाम किया, और उसे अपने हाथ से यह कह कर पूरा किया कि।
וַיֹּ֗אמֶר בָּר֤וּךְ יְהוָה֙ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל אֲשֶׁר֙ דִּבֶּ֣ר בְּפִ֔יו אֵ֖ת דָּוִ֣ד אָבִ֑י וּבְיָד֥וֹ מִלֵּ֖א לֵאמֹֽר׃
16 “जिस दिन से मैं अपनी क़ौम इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया, मैंने इस्राईल के सब क़बीलों में से भी किसी शहर को नहीं चुना कि एक घर बनाया जाए, ताकि मेरा नाम वहाँ हो; लेकिन मैंने दाऊद को चुन लिया कि वह मेरी क़ौम इस्राईल पर हाकिम हो।
מִן־הַיּ֗וֹם אֲשֶׁ֨ר הוֹצֵ֜אתִי אֶת־עַמִּ֣י אֶת־יִשְׂרָאֵל֮ מִמִּצְרַיִם֒ לֹֽא־בָחַ֣רְתִּי בְעִ֗יר מִכֹּל֙ שִׁבְטֵ֣י יִשְׂרָאֵ֔ל לִבְנ֣וֹת בַּ֔יִת לִהְי֥וֹת שְׁמִ֖י שָׁ֑ם וָאֶבְחַ֣ר בְּדָוִ֔ד לִֽהְי֖וֹת עַל־עַמִּ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃
17 और मेरे बाप दाऊद के दिल में था कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाए।
וַיְהִ֕י עִם־לְבַ֖ב דָּוִ֣ד אָבִ֑י לִבְנ֣וֹת בַּ֔יִת לְשֵׁ֥ם יְהוָ֖ה אֱלֹהֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃
18 लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा, 'चूँकि मेरे नाम के लिए एक घर बनाने का ख़्याल तेरे दिल में था, तब तू ने अच्छा किया कि अपने दिल में ऐसा ठाना;
וַיֹּ֤אמֶר יְהוָה֙ אֶל־דָּוִ֣ד אָבִ֔י יַ֗עַן אֲשֶׁ֤ר הָיָה֙ עִם־לְבָ֣בְךָ֔ לִבְנ֥וֹת בַּ֖יִת לִשְׁמִ֑י הֱטִיבֹ֔תָ כִּ֥י הָיָ֖ה עִם־לְבָבֶֽךָ׃
19 तोभी तू उस घर को न बनाना, बल्कि तेरा बेटा जो तेरे सुल्ब से निकलेगा वह मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।
רַ֣ק אַתָּ֔ה לֹ֥א תִבְנֶ֖ה הַבָּ֑יִת כִּ֤י אִם־בִּנְךָ֙ הַיֹּצֵ֣א מֵחֲלָצֶ֔יךָ הֽוּא־יִבְנֶ֥ה הַבַּ֖יִת לִשְׁמִֽי׃
20 और ख़ुदावन्द ने अपनी बात, जो उसने कही थी, क़ाईम की है; क्यूँकि मैं अपने बाप दाऊद की जगह उठा हूँ, और जैसा ख़ुदावन्द ने वा'दा किया था, मैं इस्राईल के तख़्त पर बैठा हूँ और मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए उस घर को बनाया है।
וַיָּ֣קֶם יְהוָ֔ה אֶת־דְּבָר֖וֹ אֲשֶׁ֣ר דִּבֵּ֑ר וָאָקֻ֡ם תַּחַת֩ דָּוִ֨ד אָבִ֜י וָאֵשֵׁ֣ב עַל־כִּסֵּ֣א יִשְׂרָאֵ֗ל כַּֽאֲשֶׁר֙ דִּבֶּ֣ר יְהוָ֔ה וָאֶבְנֶ֣ה הַבַּ֔יִת לְשֵׁ֥ם יְהוָ֖ה אֱלֹהֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃
21 और मैंने वहाँ एक जगह उस सन्दूक़ के लिए मुक़र्रर कर दी है, जिसमें ख़ुदावन्द का वह 'अहद है जो उसने हमारे बाप — दादा से, जब वह उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, बाँधा था।”
וָאָשִׂ֨ם שָׁ֤ם מָקוֹם֙ לָֽאָר֔וֹן אֲשֶׁר־שָׁ֖ם בְּרִ֣ית יְהוָ֑ה אֲשֶׁ֤ר כָּרַת֙ עִם־אֲבֹתֵ֔ינוּ בְּהוֹצִיא֥וֹ אֹתָ֖ם מֵאֶ֥רֶץ מִצְרָֽיִם׃ ס
22 और सुलेमान ने इस्राईल की सारी जमा'अत के सामने ख़ुदावन्द के मज़बह के आगे खड़े होकर अपने हाथ आसमान की तरफ़ फ़ैलाए
וַיַּעֲמֹ֣ד שְׁלֹמֹ֗ה לִפְנֵי֙ מִזְבַּ֣ח יְהוָ֔ה נֶ֖גֶד כָּל־קְהַ֣ל יִשְׂרָאֵ֑ל וַיִּפְרֹ֥שׂ כַּפָּ֖יו הַשָּׁמָֽיִם׃
23 और कहा, ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा! तेरी तरह न तो ऊपर आसमान में, न नीचे ज़मीन पर कोई ख़ुदा है; तू अपने उन बन्दों के लिए जो तेरे सामने अपने सारे दिल से चलते हैं, 'अहद और रहमत को निगाह रखता है।
וַיֹּאמַ֗ר יְהוָ֞ה אֱלֹהֵ֤י יִשְׂרָאֵל֙ אֵין־כָּמ֣וֹךָ אֱלֹהִ֔ים בַּשָּׁמַ֣יִם מִמַּ֔עַל וְעַל־הָאָ֖רֶץ מִתָּ֑חַת שֹׁמֵ֤ר הַבְּרִית֙ וְֽהַחֶ֔סֶד לַעֲבָדֶ֕יךָ הַהֹלְכִ֥ים לְפָנֶ֖יךָ בְּכָל־לִבָּֽם׃
24 तू ने अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के हक़ में वह बात क़ाईम रख्खी, जिसका तू ने उससे वा'दा किया था; तू ने अपने मुँह से फ़रमाया और अपने हाथ से उसे पूरा किया, जैसा आज के दिन है।
אֲשֶׁ֣ר שָׁמַ֗רְתָּ לְעַבְדְּךָ֙ דָּוִ֣ד אָבִ֔י אֵ֥ת אֲשֶׁר־דִּבַּ֖רְתָּ ל֑וֹ וַתְּדַבֵּ֥ר בְּפִ֛יךָ וּבְיָדְךָ֥ מִלֵּ֖אתָ כַּיּ֥וֹם הַזֶּֽה׃
25 इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा! तू अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के साथ उस क़ौल को भी पूरा कर जो तूने उससे किया था कि 'तेरे आदमियों से मेरे सामने इस्राईल के तख़्त पर बैठने वाले की कमी न होगी; बशर्ते कि तेरी औलाद, जैसे तू मेरे सामने चलता रहा वैसे ही मेरे सामने चलने के लिए, अपने रास्ते की एहतियात रखखे।
וְעַתָּ֞ה יְהוָ֣ה ׀ אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֗ל שְׁ֠מֹר לְעַבְדְּךָ֨ דָוִ֤ד אָבִי֙ אֵת֩ אֲשֶׁ֨ר דִּבַּ֤רְתָּ לּוֹ֙ לֵאמֹ֔ר לֹא־יִכָּרֵ֨ת לְךָ֥ אִישׁ֙ מִלְּפָנַ֔י יֹשֵׁ֖ב עַל־כִּסֵּ֣א יִשְׂרָאֵ֑ל רַ֠ק אִם־יִשְׁמְר֨וּ בָנֶ֤יךָ אֶת־דַּרְכָּם֙ לָלֶ֣כֶת לְפָנַ֔י כַּאֲשֶׁ֥ר הָלַ֖כְתָּ לְפָנָֽי׃
26 इसलिए अब ऐ इस्राईल के खुदा, तेरा वह क़ौल सच्चा साबित किया जाए, जो तू ने अपने बन्दे मेरे बाप दाऊद से किया।
וְעַתָּ֖ה אֱלֹהֵ֣י יִשְׂרָאֵ֑ל יֵאָ֤מֶן נָא֙ דבריך אֲשֶׁ֣ר דִּבַּ֔רְתָּ לְעַבְדְּךָ֖ דָּוִ֥ד אָבִֽי׃
27 लेकिन क्या ख़ुदा हक़ीक़त में ज़मीन पर सुकूनत करेगा? देख, आसमान बल्कि आसमानों के आसमान में भी तू समा नहीं सकता, तो यह घर तो कुछ भी नहीं जिसे मैंने बनाया।
כִּ֚י הַֽאֻמְנָ֔ם יֵשֵׁ֥ב אֱלֹהִ֖ים עַל־הָאָ֑רֶץ הִ֠נֵּה הַשָּׁמַ֜יִם וּשְׁמֵ֤י הַשָּׁמַ֙יִם֙ לֹ֣א יְכַלְכְּל֔וּךָ אַ֕ף כִּֽי־הַבַּ֥יִת הַזֶּ֖ה אֲשֶׁ֥ר בָּנִֽיתִי׃
28 तोभी, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, अपने बन्दा की दुआ और मुनाजात का लिहाज़ करके, उस फ़रियाद और दुआ को सुन ले जो तेरा बन्दा आज के दिन तेरे सामने करता है,
וּפָנִ֜יתָ אֶל־תְּפִלַּ֧ת עַבְדְּךָ֛ וְאֶל־תְּחִנָּת֖וֹ יְהוָ֣ה אֱלֹהָ֑י לִשְׁמֹ֤עַ אֶל־הָֽרִנָּה֙ וְאֶל־הַתְּפִלָּ֔ה אֲשֶׁ֧ר עַבְדְּךָ֛ מִתְפַּלֵּ֥ל לְפָנֶ֖יךָ הַיּֽוֹם׃
29 ताकि तेरी आँखें इस घर की तरफ़, या'नी उसी जगह की तरफ़ जिसकी ज़रिए' तू ने फ़रमाया कि 'मैं अपना नाम वहाँ रखूँगा,' दिन और रात खुली रहें; ताकि तू उस दुआ को सुने जो तेरा बन्दा इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके तुझ से करेगा।
לִהְיוֹת֩ עֵינֶ֨ךָ פְתֻח֜וֹת אֶל־הַבַּ֤יִת הַזֶּה֙ לַ֣יְלָה וָי֔וֹם אֶל־הַ֨מָּק֔וֹם אֲשֶׁ֣ר אָמַ֔רְתָּ יִהְיֶ֥ה שְׁמִ֖י שָׁ֑ם לִשְׁמֹ֙עַ֙ אֶל־הַתְּפִלָּ֔ה אֲשֶׁ֣ר יִתְפַּלֵּ֣ל עַבְדְּךָ֔ אֶל־הַמָּק֖וֹם הַזֶּֽה׃
30 और तू अपने बन्दा और अपनी क़ौम इस्राईल की मुनाजात को, जब वह इस जगह की तरफ रुख करके करें सुन लेना, बल्कि तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और सुनकर मु'आफ़ कर देना।
וְשָׁ֨מַעְתָּ֜ אֶל־תְּחִנַּ֤ת עַבְדְּךָ֙ וְעַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֔ל אֲשֶׁ֥ר יִֽתְפַּֽלְל֖וּ אֶל־הַמָּק֣וֹם הַזֶּ֑ה וְ֠אַתָּה תִּשְׁמַ֞ע אֶל־מְק֤וֹם שִׁבְתְּךָ֙ אֶל־הַשָּׁמַ֔יִם וְשָׁמַעְתָּ֖ וְסָלָֽחְתָּ׃
31 “अगर कोई शख़्स अपने पड़ौसी का गुनाह करे, और उसे क़सम खिलाने के लिए उसको हल्फ़ दिया जाए, और वह आकर इस घर में तेरे मज़बह के आगे क़सम खाए:
אֵת֩ אֲשֶׁ֨ר יֶחֱטָ֥א אִישׁ֙ לְרֵעֵ֔הוּ וְנָֽשָׁא־ב֥וֹ אָלָ֖ה לְהַֽאֲלֹת֑וֹ וּבָ֗א אָלָ֛ה לִפְנֵ֥י מִֽזְבַּחֲךָ֖ בַּבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃
32 तो तू आसमान पर से सुनकर 'अमल करना और अपने बन्दों का इन्साफ़ करना, और बदकार पर फ़तवा लगाकर उसके 'आमाल को उसी के सिर डालना, और सादिक़ को सच्चा ठहराकर उसकी सदाक़त के मुताबिक उसे बदला देना।
וְאַתָּ֣ה ׀ תִּשְׁמַ֣ע הַשָּׁמַ֗יִם וְעָשִׂ֙יתָ֙ וְשָׁפַטְתָּ֣ אֶת־עֲבָדֶ֔יךָ לְהַרְשִׁ֣יעַ רָשָׁ֔ע לָתֵ֥ת דַּרְכּ֖וֹ בְּרֹאשׁ֑וֹ וּלְהַצְדִּ֣יק צַדִּ֔יק לָ֥תֶת ל֖וֹ כְּצִדְקָתֽוֹ׃ ס
33 जब तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करने के ज़रिए' अपने दुश्मनों से शिकस्त खाए और फिर तेरी तरफ़ रुजू' लाये और तेरे नाम का इकरार करके इस घर में तुझ से दुआ और मुनाजात करे;
בְּֽהִנָּגֵ֞ף עַמְּךָ֧ יִשְׂרָאֵ֛ל לִפְנֵ֥י אוֹיֵ֖ב אֲשֶׁ֣ר יֶחֶטְאוּ־לָ֑ךְ וְשָׁ֤בוּ אֵלֶ֙יךָ֙ וְהוֹד֣וּ אֶת־שְׁמֶ֔ךָ וְהִֽתְפַּֽלְל֧וּ וְהִֽתְחַנְּנ֛וּ אֵלֶ֖יךָ בַּבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃
34 तो तू आसमान पर से सुनकर अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ करना, और उनको इस मुल्क में जो तूने उनके बाप दादा को दिया फिर ले आना।
וְאַתָּה֙ תִּשְׁמַ֣ע הַשָּׁמַ֔יִם וְסָ֣לַחְתָּ֔ לְחַטַּ֖את עַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֑ל וַהֲשֵֽׁבֹתָם֙ אֶל־הָ֣אֲדָמָ֔ה אֲשֶׁ֥ר נָתַ֖תָּ לַאֲבוֹתָֽם׃ ס
35 “जब इस वजह से कि उन्होंने तेरा गुनाह किया हो, आसमान बन्द हो जाए और बारिश न हो, और वह इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें और तेरे नाम का इक़रार करें, और अपने गुनाह से बाज़ आएँ जब तू उनको दुख दे;
בְּהֵעָצֵ֥ר שָׁמַ֛יִם וְלֹא־יִהְיֶ֥ה מָטָ֖ר כִּ֣י יֶחֶטְאוּ־לָ֑ךְ וְהִֽתְפַּֽלְל֞וּ אֶל־הַמָּק֤וֹם הַזֶּה֙ וְהוֹד֣וּ אֶת־שְׁמֶ֔ךָ וּמֵחַטָּאתָ֥ם יְשׁוּב֖וּן כִּ֥י תַעֲנֵֽם׃
36 तो तू आसमान पर से सुन कर अपने बन्दों और अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ कर देना, क्यूँकि तू उनको उस अच्छी रास्ते की ता'लीम देता है जिस पर उनको चलना फ़र्ज़ है, और अपने मुल्क पर जिसे तू ने अपनी क़ौम को मीरास के लिए दिया है, पानी बरसाना।
וְאַתָּ֣ה ׀ תִּשְׁמַ֣ע הַשָּׁמַ֗יִם וְסָ֨לַחְתָּ֜ לְחַטַּ֤את עֲבָדֶ֙יךָ֙ וְעַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֔ל כִּ֥י תוֹרֵ֛ם אֶת־הַדֶּ֥רֶךְ הַטּוֹבָ֖ה אֲשֶׁ֣ר יֵֽלְכוּ־בָ֑הּ וְנָתַתָּ֤ה מָטָר֙ עַל־אַרְצְךָ֔ אֲשֶׁר־נָתַ֥תָּה לְעַמְּךָ֖ לְנַחֲלָֽה׃ ס
37 “अगर मुल्क में काल हो, अगर वबा हो, अगर बाद — ऐ — समूम या गेरूई या टिड्डी या कमला हो, अगर उनके दुश्मन उनके शहरों के मुल्क में उनको घेर लें, ग़रज़ कैसी ही बला कैसा ही रोग हो;
רָעָ֞ב כִּֽי־יִהְיֶ֣ה בָאָ֗רֶץ דֶּ֣בֶר כִּֽי־יִ֠הְיֶה שִׁדָּפ֨וֹן יֵרָק֜וֹן אַרְבֶּ֤ה חָסִיל֙ כִּ֣י יִהְיֶ֔ה כִּ֧י יָֽצַר־ל֛וֹ אֹיְב֖וֹ בְּאֶ֣רֶץ שְׁעָרָ֑יו כָּל־נֶ֖גַע כָּֽל־מַחֲלָֽה׃
38 तो जो दुआ और मुनाजात किसी एक शख़्स या तेरी क़ौम इस्राईल की तरफ़ से ही, जिनमें से हर शख़्स अपने दिल का दुख जानकर अपने हाथ इस घर की तरफ़ फैलाए;
כָּל־תְּפִלָּ֣ה כָל־תְּחִנָּ֗ה אֲשֶׁ֤ר תִֽהְיֶה֙ לְכָל־הָ֣אָדָ֔ם לְכֹ֖ל עַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֑ל אֲשֶׁ֣ר יֵדְע֗וּן אִ֚ישׁ נֶ֣גַע לְבָב֔וֹ וּפָרַ֥שׂ כַּפָּ֖יו אֶל־הַבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃
39 तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकुनतगाह है सुनकर मु'आफ़ कर देना, और ऐसा करना कि हर आदमी को, जिसके दिल को तू जानता है, उसी की सारे चाल चलन के मुताबिक़ बदला देना; क्यूँकि सिर्फ़ तू ही सब बनी — आदम के दिलों को जानता है;
וְ֠אַתָּה תִּשְׁמַ֨ע הַשָּׁמַ֜יִם מְכ֤וֹן שִׁבְתֶּ֙ךָ֙ וְסָלַחְתָּ֣ וְעָשִׂ֔יתָ וְנָתַתָּ֤ לָאִישׁ֙ כְּכָל־דְּרָכָ֔יו אֲשֶׁ֥ר תֵּדַ֖ע אֶת־לְבָב֑וֹ כִּֽי־אַתָּ֤ה יָדַ֙עְתָּ֙ לְבַדְּךָ֔ אֶת־לְבַ֖ב כָּל־בְּנֵ֥י הָאָדָֽם׃
40 ताकि जितनी मुद्दत तक वह उस मुल्क में जिसे तू ने हमारे बाप — दादा को दिया ज़िन्दा रहें, तेरा ख़ौफ़ माने।
לְמַ֙עַן֙ יִֽרָא֔וּךָ כָּל־הַ֨יָּמִ֔ים אֲשֶׁר־הֵ֥ם חַיִּ֖ים עַל־פְּנֵ֣י הָאֲדָמָ֑ה אֲשֶׁ֥ר נָתַ֖תָּה לַאֲבֹתֵֽינוּ׃
41 'अब रहा वह परदेसी जो तेरी क़ौम इस्राईल में से नहीं है, वह जब दूर मुल्क से तेरे नाम की ख़ातिर आए,
וְגַם֙ אֶל־הַנָּכְרִ֔י אֲשֶׁ֛ר לֹא־מֵעַמְּךָ֥ יִשְׂרָאֵ֖ל ה֑וּא וּבָ֛א מֵאֶ֥רֶץ רְחוֹקָ֖ה לְמַ֥עַן שְׁמֶֽךָ׃
42 क्यूँकि वह तेरे बुज़ुर्ग नाम और क़वी हाथ और बुलन्द बाज़ू का हाल सुनेंगे इसलिए जब वह आए और इस घर की तरफ़ रुख़ करके दुआ करे,
כִּ֤י יִשְׁמְעוּן֙ אֶת־שִׁמְךָ֣ הַגָּד֔וֹל וְאֶת־יָֽדְךָ֙ הַֽחֲזָקָ֔ה וּֽזְרֹעֲךָ֖ הַנְּטוּיָ֑ה וּבָ֥א וְהִתְפַּלֵּ֖ל אֶל־הַבַּ֥יִת הַזֶּֽה׃
43 तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और जिस — जिस बात के लिए वह परदेसी तुझ से फ़रयाद करे तू उसके मुताबिक़ करना, ताकि ज़मीन की सब क़ौमें बनी इस्राईल की मानिन्द तेरे नाम को पहचाने मानें, और जान लें कि यह घर जिसे मैंने बनाया है तेरे नाम का कहलाता है।
אַתָּ֞ה תִּשְׁמַ֤ע הַשָּׁמַ֙יִם֙ מְכ֣וֹן שִׁבְתֶּ֔ךָ וְעָשִׂ֕יתָ כְּכֹ֛ל אֲשֶׁר־יִקְרָ֥א אֵלֶ֖יךָ הַנָּכְרִ֑י לְמַ֣עַן יֵדְעוּן֩ כָּל־עַמֵּ֨י הָאָ֜רֶץ אֶת־שְׁמֶ֗ךָ לְיִרְאָ֤ה אֹֽתְךָ֙ כְּעַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֔ל וְלָדַ֕עַת כִּי־שִׁמְךָ֣ נִקְרָ֔א עַל־הַבַּ֥יִת הַזֶּ֖ה אֲשֶׁ֥ר בָּנִֽיתִי׃
44 'अगर तेरे लोग चाहे किसी रास्ते से तू उनको भेजे, अपने दुश्मनों से लड़ने को निकलें, और वह ख़ुदावन्द से उस शहर की तरफ़ जिसे तू ने चुना है, और उस घर की तरफ़ जिसे मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके दुआ करें,
כִּי־יֵצֵ֨א עַמְּךָ֤ לַמִּלְחָמָה֙ עַל־אֹ֣יְב֔וֹ בַּדֶּ֖רֶךְ אֲשֶׁ֣ר תִּשְׁלָחֵ֑ם וְהִתְפַּֽלְל֣וּ אֶל־יְהוָ֗ה דֶּ֤רֶךְ הָעִיר֙ אֲשֶׁ֣ר בָּחַ֣רְתָּ בָּ֔הּ וְהַבַּ֖יִת אֲשֶׁר־בָּנִ֥תִי לִשְׁמֶֽךָ׃
45 तो तू आसमान पर से उनकी दुआ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना।
וְשָׁמַעְתָּ֙ הַשָּׁמַ֔יִם אֶת־תְּפִלָּתָ֖ם וְאֶת־תְּחִנָּתָ֑ם וְעָשִׂ֖יתָ מִשְׁפָּטָֽם׃
46 'अगर वह तेरा गुनाह करें क्यूँकि कोई ऐसा आदमी नहीं जो गुनाह न करता हो और तू उनसे नाराज़ होकर उनको दुश्मन के हवाले कर दे, ऐसा कि वह दुश्मन उनको ग़ुलाम करके अपने मुल्क में ले जाए, ख़्वाह वह दूर हो या नज़दीक,
כִּ֣י יֶֽחֶטְאוּ־לָ֗ךְ כִּ֣י אֵ֤ין אָדָם֙ אֲשֶׁ֣ר לֹא־יֶחֱטָ֔א וְאָנַפְתָּ֣ בָ֔ם וּנְתַתָּ֖ם לִפְנֵ֣י אוֹיֵ֑ב וְשָׁב֤וּם שֹֽׁבֵיהֶם֙ אֶל־אֶ֣רֶץ הָאוֹיֵ֔ב רְחוֹקָ֖ה א֥וֹ קְרוֹבָֽה׃
47 तोभी अगर वह उस मुल्क में जहाँ वह ग़ुलाम होकर पहुँचाए गए, होश में आयें और रुजू' लायें और अपने ग़ुलाम करने वालों के मुल्क में तुझसे मुनाजात करें और कहें कि हम ने गुनाह किया, हम टेढ़ी चाल चले, और हम ने शरारत की;
וְהֵשִׁ֙יבוּ֙ אֶל־לִבָּ֔ם בָּאָ֖רֶץ אֲשֶׁ֣ר נִשְׁבּוּ־שָׁ֑ם וְשָׁ֣בוּ ׀ וְהִֽתְחַנְּנ֣וּ אֵלֶ֗יךָ בְּאֶ֤רֶץ שֹֽׁבֵיהֶם֙ לֵאמֹ֔ר חָטָ֥אנוּ וְהֶעֱוִ֖ינוּ רָשָֽׁעְנוּ׃
48 इसलिए अगर वह अपने दुश्मनों के मुल्क में जो उनको क़ैद करके ले गए, अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से तेरी तरफ़ फिरें और अपने मुल्क की तरफ़, जो तू ने उनके बाप — दादा को दिया, और इस शहर की तरफ़, जिसे तू ने चुन लिया, और इस घर की तरफ़, जो मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके तुझ से दुआ करें,
וְשָׁ֣בוּ אֵלֶ֗יךָ בְּכָל־לְבָבָם֙ וּבְכָל־נַפְשָׁ֔ם בְּאֶ֥רֶץ אֹיְבֵיהֶ֖ם אֲשֶׁר־שָׁב֣וּ אֹתָ֑ם וְהִֽתְפַּֽלְל֣וּ אֵלֶ֗יךָ דֶּ֤רֶךְ אַרְצָם֙ אֲשֶׁ֣ר נָתַ֣תָּה לַאֲבוֹתָ֔ם הָעִיר֙ אֲשֶׁ֣ר בָּחַ֔רְתָּ וְהַבַּ֖יִת אֲשֶׁר־בנית לִשְׁמֶֽךָ׃
49 तो तू आसमान पर से, जो तेरी सुकूनत गाह है, उनकी दुआ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना,
וְשָׁמַעְתָּ֤ הַשָּׁמַ֙יִם֙ מְכ֣וֹן שִׁבְתְּךָ֔ אֶת־תְּפִלָּתָ֖ם וְאֶת־תְּחִנָּתָ֑ם וְעָשִׂ֖יתָ מִשְׁפָּטָֽם׃
50 और अपनी क़ौम को, जिसने तेरा गुनाह किया, और उनकी सब ख़ताओं को, जो उनसे तेरे ख़िलाफ़ सरज़द हों, मु'आफ़ कर देना, और उनके ग़ुलाम करने वालों के आगे उन पर रहम करना ताकि वह उन पर रहम करें।
וְסָלַחְתָּ֤ לְעַמְּךָ֙ אֲשֶׁ֣ר חָֽטְאוּ־לָ֔ךְ וּלְכָל־פִּשְׁעֵיהֶ֖ם אֲשֶׁ֣ר פָּשְׁעוּ־בָ֑ךְ וּנְתַתָּ֧ם לְרַחֲמִ֛ים לִפְנֵ֥י שֹׁבֵיהֶ֖ם וְרִֽחֲמֽוּם׃
51 क्यूँकि वह तेरी क़ौम और तेरी मीरास हैं, जिसे तू मिस्र से लोहे के भट्टे के बीच में से निकाल लाया।
כִּֽי־עַמְּךָ֥ וְנַחֲלָתְךָ֖ הֵ֑ם אֲשֶׁ֤ר הוֹצֵ֙אתָ֙ מִמִּצְרַ֔יִם מִתּ֖וֹךְ כּ֥וּר הַבַּרְזֶֽל׃
52 सो तेरी आँखें तेरे बन्दा की मुनाजात और तेरी क़ौम इस्राईल की मुनाजात की तरफ़ खुली रहें, ताकि जब कभी वह तुझ से फ़रियाद करें, तू उनकी सुने;
לִהְי֨וֹת עֵינֶ֤יךָ פְתֻחוֹת֙ אֶל־תְּחִנַּ֣ת עַבְדְּךָ֔ וְאֶל־תְּחִנַּ֖ת עַמְּךָ֣ יִשְׂרָאֵ֑ל לִשְׁמֹ֣עַ אֲלֵיהֶ֔ם בְּכֹ֖ל קָרְאָ֥ם אֵלֶֽיךָ׃
53 क्यूँकि तू ने ज़मीन की सब क़ौमों में से उनको अलग किया कि वह तेरी मीरास हों, जैसा ऐ मालिक ख़ुदावन्द, तू ने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' फ़रमाया, जिस वक़्त तू हमारे बाप — दादा को मिस्र से निकाल लाया।”
כִּֽי־אַתָּ֞ה הִבְדַּלְתָּ֤ם לְךָ֙ לְֽנַחֲלָ֔ה מִכֹּ֖ל עַמֵּ֣י הָאָ֑רֶץ כַּאֲשֶׁ֨ר דִּבַּ֜רְתָּ בְּיַ֣ד ׀ מֹשֶׁ֣ה עַבְדֶּ֗ךָ בְּהוֹצִיאֲךָ֧ אֶת־אֲבֹתֵ֛ינוּ מִמִּצְרַ֖יִם אֲדֹנָ֥י יְהוִֽה׃ פ
54 और ऐसा हुआ कि जब सुलेमान ख़ुदावन्द से यह सब मुनाजात कर चुका, तो वह ख़ुदावन्द के मज़बह के सामने से, जहाँ वह अपने हाथ आसमान की तरफ़ फैलाए हुए घुटने टेके था, उठा।
וַיְהִ֣י ׀ כְּכַלּ֣וֹת שְׁלֹמֹ֗ה לְהִתְפַּלֵּל֙ אֶל־יְהוָ֔ה אֵ֛ת כָּל־הַתְּפִלָּ֥ה וְהַתְּחִנָּ֖ה הַזֹּ֑את קָ֞ם מִלִּפְנֵ֨י מִזְבַּ֤ח יְהוָה֙ מִכְּרֹ֣עַ עַל־בִּרְכָּ֔יו וְכַפָּ֖יו פְּרֻשׂ֥וֹת הַשָּׁמָֽיִם׃
55 और खड़े होकर इस्राईल की सारी जमा'अत को ऊँची आवाज़ से बरकत दी और कहा,
וַֽיַּעְמֹ֕ד וַיְבָ֕רֶךְ אֵ֖ת כָּל־קְהַ֣ל יִשְׂרָאֵ֑ל ק֥וֹל גָּד֖וֹל לֵאמֹֽר׃
56 “ख़ुदावन्द, जिसने अपने सब वा'दों के मुताबिक़ अपनी क़ौम इस्राईल को आराम बख़्शा मुबारक हो; क्यूँकि जो सारा अच्छा वा'दा उसने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' किया, उसमें से एक बात भी ख़ाली न गई।
בָּר֣וּךְ יְהוָ֗ה אֲשֶׁ֨ר נָתַ֤ן מְנוּחָה֙ לְעַמּ֣וֹ יִשְׂרָאֵ֔ל כְּכֹ֖ל אֲשֶׁ֣ר דִּבֵּ֑ר לֹֽא־נָפַ֞ל דָּבָ֣ר אֶחָ֗ד מִכֹּל֙ דְּבָר֣וֹ הַטּ֔וֹב אֲשֶׁ֣ר דִּבֶּ֔ר בְּיַ֖ד מֹשֶׁ֥ה עַבְדּֽוֹ׃
57 ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमारे साथ रहे जैसे वह हमारे बाप — दादा के साथ रहा, और न हम को तर्क करे न छोड़े।
יְהִ֨י יְהוָ֤ה אֱלֹהֵ֙ינוּ֙ עִמָּ֔נוּ כַּאֲשֶׁ֥ר הָיָ֖ה עִם־אֲבֹתֵ֑ינוּ אַל־יַעַזְבֵ֖נוּ וְאַֽל־יִטְּשֵֽׁנוּ׃
58 ताकि वह हमारे दिलों को अपनी तरफ़ माइल करे कि हम उसकी सब रास्तों पर चलें, और उसके फ़रमानों और क़ानून और अहकाम को, जो उसने हमारे बाप — दादा को दिए मानें।
לְהַטּ֥וֹת לְבָבֵ֖נוּ אֵלָ֑יו לָלֶ֣כֶת בְּכָל־דְּרָכָ֗יו וְלִשְׁמֹ֨ר מִצְוֺתָ֤יו וְחֻקָּיו֙ וּמִשְׁפָּטָ֔יו אֲשֶׁ֥ר צִוָּ֖ה אֶת־אֲבֹתֵֽינוּ׃
59 और यह मेरी बातें जिनको मैंने ख़ुदावन्द के सामने मुनाजात में पेश किया है, दिन और रात ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नज़दीक रहें, ताकि वह अपने बन्दा की दाद और अपनी क़ौम इस्राईल की दाद हर दिन की ज़रूरत के मुताबिक़ दे;
וְיִֽהְי֨וּ דְבָרַ֜י אֵ֗לֶּה אֲשֶׁ֤ר הִתְחַנַּ֙נְתִּי֙ לִפְנֵ֣י יְהוָ֔ה קְרֹבִ֛ים אֶל־יְהוָ֥ה אֱלֹהֵ֖ינוּ יוֹמָ֣ם וָלָ֑יְלָה לַעֲשׂ֣וֹת ׀ מִשְׁפַּ֣ט עַבְדּ֗וֹ וּמִשְׁפַּ֛ט עַמּ֥וֹ יִשְׂרָאֵ֖ל דְּבַר־י֥וֹם בְּיוֹמֽוֹ׃
60 जिससे ज़मीन की सब क़ौमें जान लें कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके सिवा और कोई नहीं।
לְמַ֗עַן דַּ֚עַת כָּל־עַמֵּ֣י הָאָ֔רֶץ כִּ֥י יְהוָ֖ה ה֣וּא הָאֱלֹהִ֑ים אֵ֖ין עֽוֹד׃
61 इसलिए तुम्हारा दिल आज की तरह ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के साथ उसके क़ानून पर चलने, और उसके हुक्मों को मानने के लिए कामिल रहे।”
וְהָיָ֤ה לְבַבְכֶם֙ שָׁלֵ֔ם עִ֖ם יְהוָ֣ה אֱלֹהֵ֑ינוּ לָלֶ֧כֶת בְּחֻקָּ֛יו וְלִשְׁמֹ֥ר מִצְוֺתָ֖יו כַּיּ֥וֹם הַזֶּֽה׃
62 और बादशाह ने और उसके साथ सारे इस्राईल ने ख़ुदावन्द के सामने क़ुर्बानी पेश की।
וְֽהַמֶּ֔לֶךְ וְכָל־יִשְׂרָאֵ֖ל עִמּ֑וֹ זֹבְחִ֥ים זֶ֖בַח לִפְנֵ֥י יְהוָֽה׃
63 सुलेमान ने जो सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेशकीं उसमें उसने बाईस हज़ार बैल और एक लाख बीस हज़ार भेड़ें पेश कीं। ऐसे बादशाह ने और सब बनी — इस्राईल ने ख़ुदावन्द का घर मख़्सूस किया।
וַיִּזְבַּ֣ח שְׁלֹמֹ֗ה אֵ֣ת זֶ֣בַח הַשְּׁלָמִים֮ אֲשֶׁ֣ר זָבַ֣ח לַיהוָה֒ בָּקָ֗ר עֶשְׂרִ֤ים וּשְׁנַ֙יִם֙ אֶ֔לֶף וְצֹ֕אן מֵאָ֥ה וְעֶשְׂרִ֖ים אָ֑לֶף וַֽיַּחְנְכוּ֙ אֶת־בֵּ֣ית יְהוָ֔ה הַמֶּ֖לֶךְ וְכָל־בְּנֵ֥י יִשְׂרָאֵֽל׃
64 उसी दिन बादशाह ने सहन के दर्मियानी हिस्से को जो ख़ुदावन्द के घर के सामने था मुक़द्दस किया, क्यूँकि उसने वहीं सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बीहों की चर्बी पेश की, इसलिए कि पीतल का मज़बह जो ख़ुदावन्द के सामने था, इतना छोटा था कि उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बोहों की चर्बी के लिए गुन्जाइश न थी।
בַּיּ֣וֹם הַה֗וּא קִדַּ֨שׁ הַמֶּ֜לֶךְ אֶת־תּ֣וֹךְ הֶחָצֵ֗ר אֲשֶׁר֙ לִפְנֵ֣י בֵית־יְהוָ֔ה כִּי־עָ֣שָׂה שָׁ֗ם אֶת־הָֽעֹלָה֙ וְאֶת־הַמִּנְחָ֔ה וְאֵ֖ת חֶלְבֵ֣י הַשְּׁלָמִ֑ים כִּֽי־מִזְבַּ֤ח הַנְּחֹ֙שֶׁת֙ אֲשֶׁ֣ר לִפְנֵ֣י יְהוָ֔ה קָטֹ֗ן מֵֽהָכִיל֙ אֶת־הָעֹלָ֣ה וְאֶת־הַמִּנְחָ֔ה וְאֵ֖ת חֶלְבֵ֥י הַשְּׁלָמִֽים׃
65 इसलिए सुलेमान ने और उसके साथ सारे इस्राईल, या'नी एक बड़ी जमा'अत, ने जो हमात के मदख़ल से लेकर मिस्र की नहर तक की हुदूद से आई थी, ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने सात दिन और फिर सात दिन और, या'नी चौदह दिन, 'ईद मनाई।
וַיַּ֣עַשׂ שְׁלֹמֹ֣ה בָֽעֵת־הַהִ֣יא ׀ אֶת־הֶחָ֡ג וְכָל־יִשְׂרָאֵ֣ל עִמּוֹ֩ קָהָ֨ל גָּד֜וֹל מִלְּב֥וֹא חֲמָ֣ת ׀ עַד־נַ֣חַל מִצְרַ֗יִם לִפְנֵי֙ יְהוָ֣ה אֱלֹהֵ֔ינוּ שִׁבְעַ֥ת יָמִ֖ים וְשִׁבְעַ֣ת יָמִ֑ים אַרְבָּעָ֥ה עָשָׂ֖ר יֽוֹם׃
66 और आठवें दिन उसने उन लोगों को रुख़सत कर दिया। तब उन्होंने बादशाह को मुबारकबाद दी, और उस सारी नेकी के ज़रिए' जो ख़ुदावन्द ने अपने बन्दा दाऊद और अपनी क़ौम इस्राईल से की थी, अपने डेरों को दिल में ख़ुश और ख़ुश होकर लौट गए।
בַּיּ֤וֹם הַשְּׁמִינִי֙ שִׁלַּ֣ח אֶת־הָעָ֔ם וַֽיְבָרֲכ֖וּ אֶת־הַמֶּ֑לֶךְ וַיֵּלְכ֣וּ לְאָהֳלֵיהֶ֗ם שְׂמֵחִים֙ וְט֣וֹבֵי לֵ֔ב עַ֣ל כָּל־הַטּוֹבָ֗ה אֲשֶׁ֨ר עָשָׂ֤ה יְהוָה֙ לְדָוִ֣ד עַבְדּ֔וֹ וּלְיִשְׂרָאֵ֖ל עַמּֽוֹ׃

< 1 सला 8 >