< 1 सला 18 >

1 और बहुत दिनों के बाद ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का यह कलाम तीसरे साल एलियाह पर नाज़िल हुआ, कि “जाकर अख़ीअब से मिल, और मैं ज़मीन पर मेंह बरसाऊँगा।”
وَبَعْدَ ثَلاثِ سَنَوَاتٍ قَالَ الرَّبُّ لإِيلِيَّا: «اذْهَبْ وَامْثُلْ أَمَامَ آخْابَ، وَقُلْ لَهُ إِنَّنِي سَأَسْكُبُ مَطَراً عَلَى الأَرْضِ».١
2 इसलिए एलियाह अख़ीअब से मिलने को चला; और सामरिया में सख़्त काल था।
فَمَضَى إِيلِيَّا لِيُبَلِّغَ آخْابَ الرِّسَالَةَ، وَكَانَتِ الْمَجَاعَةُ الشَّدِيدَةُ قَدْ عَمَّتِ السَّامِرَةَ.٢
3 और अख़ीअब ने 'अबदियाह को, जो उसके घर का दीवान था, तलब किया और अबदियाह ख़ुदावन्द से बहुत डरता था,
فَاسْتَدْعَى آخْابُ عُوبَدْيَا مُدِيرَ شُؤُونِ الْقَصْرِ، وَكَانَ عُوبَدْيَا يَتَّقِي الرَّبَّ جِدّاً.٣
4 क्यूँकि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया तो 'अबदियाह ने सौ नबियों को लेकर, पचास पचास करके उनको एक ग़ार में छिपा दिया, और रोटी और पानी से उनको पालता रहा —
فَحِينَ شَرَعَتْ إِيزَابِلُ فِي قَتْلِ أَنْبِيَاءِ الرَّبِّ، أَخَذَ عُوبَدْيَا مِئَةَ نَبِيٍّ وَخَبَّأَهُمْ خَمْسِينَ خَمْسِينَ فِي مُغَارَتَيْنِ، وَتَكَفَّلَ بِإِعَالَتِهِمْ بِالطَّعَامِ وَالْمَاءِ.٤
5 इसलिए अख़ीअब ने 'अबदियाह से कहा, “मुल्क में गश्त करता हुआ पानी के सब चश्मों और सब नालों पर जा, शायद हम को कहीं घास मिल जाए, जिससे हम घोड़ों और खच्चरों को ज़िन्दा बचा लें ताकि हमारे सब चौपाए जाया' न हों।”
وَكَانَ آخْابُ قَدْ قَالَ لِعُوبَدْيَا: «طُفْ فِي الْبِلادِ وَابْحَثْ عَنْ جَمِيعِ عُيُونِ الْمَاءِ وَفِي الأَوْدِيَةِ، لَعَلَّنَا نَجِدُ عُشْباً فَنُحْيِيَ الْخَيْلَ وَالْبِغَالَ، فَلا تَهْلِكَ كُلُّ الْبَهَائِمِ».٥
6 तब उन्होंने उस पूरे मुल्क में गश्त करने के लिए, उसे आपस में तक़सीम कर लिया; अख़ीअब अकेला एक तरफ़ चलाऔर 'अबदियाह अकेला दूसरी तरफ़ गया।
فَقَسَمَا الْبِلادَ بَيْنَهُمَا لِيَطُوفَا بِها، فَذَهَبَ آخْابُ فِي طَرِيقٍ وَحْدَهُ، وَذَهَبَ عُوبَدْيَا فِي طَرِيقٍ آخَرَ وَحْدَهُ.٦
7 और 'अबदियाह रास्ते ही में था कि एलियाह उसे मिला, वह उसे पहचान कर मुँह के बल गिरा और कहने लगा, “ऐ मेरे मालिक एलियाह, क्या तू है?”
وَفِيمَا كَانَ عُوبَدْيَا فِي الطَّرِيقِ الْتَقَاهُ إِيلِيَّا، فَعَرَفَهُ، فَارْتَمَى عَلَى وَجْهِهِ قَائِلاً: «هَلْ أَنْتَ هُوَ سَيِّدِي إِيلِيَّا؟»٧
8 उसने उसे जवाब दिया, मैं ही हूँ जा अपने मालिक को बता दे कि एलियाह हाज़िर है।
فَأَجَابَهُ: «أَنَا هُوَ، فَاذْهَبْ وَقُلْ لِسَيِّدِكَ إِنِّي هُنَا».٨
9 उसने कहा, “मुझ से क्या गुनाह हुआ है, जो तू अपने ख़ादिम को अख़ीअब के हाथ में हवाले करना चाहता है, ताकि वह मुझे क़त्ल करे।
فَقَالَ: «أَيَّةُ خَطِيئَةٍ ارْتَكَبْتُ حَتَّى تُسَلِّمَ عَبْدَكَ لِيَدِ آخْابَ لِيُمِيتَنِي؟٩
10 ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की हयात की क़सम, कि ऐसी कोई क़ौम या हुकूमत नहीं जहाँ मेरे मालिक ने तेरी तलाश के लिए न भेजा हो; और जब उन्होंने कहा कि वह यहाँ नहीं, तो उसने उस हुकूमत और क़ौम से क़सम ली कि तू उनको नहीं मिला है।
حَيٌّ هُوَ الرَّبُّ إِلَهُكَ إِنَّهُ لَمْ تَبْقَ أُمَّةٌ وَلا مَمْلَكَةٌ لَمْ يُرْسِلْ إِلَيْهَا سَيِّدِي مَنْ يَبْحَثُ عَنْكَ، فَكَانُوا يَقُولُونَ: إِنَّنَا لَمْ نَعْثُرْ عَلَيْهِ، فَكَانَ آخْابُ يَسْتَحْلِفُ الْمَمْلَكَةَ وَالأُمَّةَ لِتُقْسِمَ أَنَّهَا حَقّاً لَمْ تَجِدْكَ.١٠
11 और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर कर दे कि एलियाह हाज़िर है।
وَالآنَ تَطْلُبُ إِلَيَّ أَنْ أَذْهَبَ وَأَقُولَ لِلْمَلِكِ إِنَّكَ هُنَا،١١
12 और ऐसा होगा कि जब मैं तेरे पास से चला जाऊँगा, तो ख़ुदावन्द की रूह तुझ को न जाने कहाँ ले जाए; और मैं जाकर अख़ीअब को ख़बर दूँ और तू उसको कहीं मिल न सके, तो वह मुझको क़त्ल कर देगा। लेकिन मैं तेरा ख़ादिम लड़कपन से ख़ुदावन्द से डरता रहा हूँ।
وَمَا إِنْ أَنْطَلِقُ مِنْ عِنْدِكَ لأُخْبِرَهُ حَتَّى يَحْمِلَكَ رُوحُ الرَّبِّ إِلَى حَيْثُ لَا أَدْرِي، فَيَأْتِي آخْابُ وَلا يَجِدُكَ فَيَقْتُلُنِي، وَأَنَا عَبْدُكَ أَتَّقِي الرَّبَّ مُنْذُ صِبَايَ.١٢
13 क्या मेरे मालिक को जो कुछ मैंने किया है नहीं बताया गया, कि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया, तो मैंने ख़ुदावन्द के नबियों में से सौ आदमियों को लेकर, पचास — पचास करके उनको एक ग़ार में छिपाया और उनको रोटी और पानी से पालता रहा?
أَلَمْ يَطَّلِعْ سَيِّدِي عَمَّا فَعَلْتُهُ حِينَ شَرَعَتْ إِيزَابِلُ تَقْتُلُ أَنْبِيَاءَ الرَّبِّ، كَيْفَ خَبَّأْتُ مِئَةَ رَجُلٍ، خَمْسِينَ خَمْسِينَ فِي مُغَارَتَيْنِ، وَتَكَفَّلْتُ بِإِعَالَتِهِمْ بِالطَّعَامِ وَالْمَاءِ؟١٣
14 और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर दे कि एलियाह हाज़िर है; तब वह मुझे मार डालेगा।”
وَأَنْتَ الآنَ تُطَالِبُنِي أَنْ أَذْهَبَ وَأَقُولَ لِلْمَلِكِ إِنَّكَ هُنَا، فَيَقْتُلَنِي!»١٤
15 तब एलियाह ने कहा, “रब्ब — उल — अफ़वाज की हयात की क़सम जिसके सामने मैं खड़ा हूँ, मैं आज उससे ज़रूर मिलूँगा।”
فَقَالَ إِيلِيَّا: «حَيٌّ هُوَ الرَّبُّ الْقَدِيرُ الَّذِي أَنَا وَاقِفٌ أَمَامَهُ، إِنَّنِي الْيَوْمَ أَحْضُرُ لِمُوَاجَهَةِ آخْابَ».١٥
16 तब 'अबदियाह अख़ीअब से मिलने को गया और उसे ख़बर दी; और अख़ीअब एलियाह की मुलाक़ात को चला।
فَانْطَلَقَ عُوبَدْيَا لِلِقَاءِ آخْابَ وَأَخْبَرَهُ، فَجَاءَ آخْابُ لِلِقَاءِ إِيلِيَّا.١٦
17 और जब अख़ीअब ने एलियाह को देखा, तो उसने उससे कहा, “ऐ इस्राईल के सताने वाले, क्या तू ही है?”
وَمَا إِنْ رَأَى آخْابُ إِيلِيَّا حَتَّى قَالَ لَهُ: «أَهَذَا أَنْتَ يَامُكَدِّرَ إِسْرَائِيلَ؟»١٧
18 उसने जवाब दिया, “मैंने इस्राईल को नहीं सताया, बल्कि तू और तेरे बाप के घराने ने, क्यूँकि तुमने ख़ुदावन्द के हुक्मों को छोड़ दिया, और तू बा'लीम का पैरोकार हो गया।
فَأَجَابَهُ إِيلِيَّا: «أَنَا لَسْتُ مُكَدِّرَ إِسْرَائِيلَ، بَلْ أَنْتَ وَبَيْتُ أَبِيكَ، بِعِصْيَانِكُمْ وَصَايَا الرَّبِّ وَضَلالِكُمْ وَرَاءَ الْبَعْلِيمِ.١٨
19 इसलिए अब तू क़ासिद भेज; और सारे इस्राईल को और बा'ल के साढ़े चार सौ नबियों को, और यसीरत के चार सौ नबियों को जो ईज़बिल के दस्तरख़्वान पर खाते हैं कर्मिल की पहाड़ी पर मेरे पास इकट्ठा कर दे।”
فَالآنَ أَرْسِلْ وَاسْتَدْعِ لِي كُلَّ بَنِي إِسْرَائِيلَ إِلَى جَبَلِ الْكَرْمَلِ، وَكَذَلِكَ أَنْبِيَاءَ الْبَعْلِ الأَرْبَعَ مِئَةٍ وَالْخَمْسِينَ، وَأَنْبِيَاءَ عَشْتَارُوثَ الأَرْبَعَ مِئَةِ الآكِلِينَ عَلَى مَائِدَةِ إِيزَابِلَ».١٩
20 तब अख़ीअब ने सब बनी — इस्राईल को बुला भेजा, और नबियों को कर्मिल की पहाड़ी पर इकट्ठा किया।
فَاسْتَدْعَى آخْابُ جَمِيعَ بَنِي إِسْرَائِيَلَ، وَجَمَعَ الأَنْبِيَاءَ إِلَى جَبَلِ الْكَرْمَلِ،٢٠
21 और एलियाह सब लोगों के नज़दीक आकर कहने लगा, “तुम कब तक दो ख़्यालों में डाँवाडोल रहोगे? अगर ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है, तो उसकी पैरवी करो; और अगर बा'ल है, तो उसकी पैरवी करो।” लेकिन उन लोगों ने उसे एक हर्फ़ जवाब न दिया।
فَخَاطَبَ إِيلِيَّا الشَّعْبَ: «حَتَّى مَتَى تَظَلُّونَ تَعْرُجُونَ بَيْنَ الْفِرْقَتَيْنِ؟ إِنْ كَانَ الرَّبُّ هُوَ اللهُ فَاتْبَعُوهُ، وَإِنْ كَانَ الْبَعْلُ هُوَ اللهُ فَاتْبَعُوهُ». فَلَمْ يُجِبْهُ الشَّعْبُ بِكَلِمَةٍ.٢١
22 तब एलियाह ने उन लोगों से कहा, “एक मैं ही अकेला ख़ुदावन्द का नबी बच रहा हूँ, लेकिन बा'ल के नबी चार सौ पचास आदमी हैं।
ثُمَّ قَالَ إِيلِيَّا لِلشَّعْبِ: «أَنَا بَقِيتُ وَحْدِي نَبِيًّا لِلرَّبِّ، وَأَنْبِيَاءُ الْبَعْلِ أَرْبَعُ مِئَةٍ وَخَمْسُونَ.٢٢
23 इसलिए हम को दो बैल दिए जाएँ, और वह अपने लिए एक बैल को चुन लें और उसे टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धरें और नीचे आग न दें; और मैं दूसरा बैल तैयार करके उसे लकड़ियों पर धरूँगा, और नीचे आग नहीं दूँगा।
فَأَعْطُونَا ثَوْرَيْنِ، وَلْيَخْتَرْ أَنْبِيَاءُ الْبَعْلِ أَحَدَهُمَا، وَيُقَطِّعُوهُ وَيَضَعُوهُ عَلَى الْحَطَبِ مِنْ غَيْرِ أَنْ يُشْعِلُوا نَاراً، وَأَنَا أُقَرِّبُ الثَّوْرَ الآخَرَ وَأَضَعُهُ عَلَى الْحَطَبِ مِنْ غَيْرِ أَنْ أُشْعِلَ نَاراً.٢٣
24 तब तुम अपने मा'बूद से दुआ करना, और मैं ख़ुदावन्द से दुआ करूँगा; और वह ख़ुदा जो आग से जवाब दे, वही ख़ुदा ठहरे।” और सब लोग बोल उठे, “ख़ूब कहा!”
ثُمَّ تَتَضَرَّعُونَ بِاسْمِ آلِهَتِكُمْ، وَأَنَا أَدْعُو بِاسْمِ الرَّبِّ إِلَهِي. وَالإِلَهُ الَّذِي يَسْتَجِيبُ وَيُنْزِلُ نَاراً يَكُونُ هُوَ اللهُ الْحَقُّ». فَأَجَابَ جَمِيعُ بَنِي إِسْرَائِيلَ: «هَذَا قَوْلٌ صَائِبٌ».٢٤
25 तब एलियाह ने बा'ल के नबियों से कहा कि “तुम अपने लिए एक बैल चुनलो और पहले उसे तैयार करो क्यूँकि तुम बहुत से हो; और अपने मा'बूद से दुआ करो, लेकिन आग नीचे न देना।”
فَقَالَ إِيلِيَّا عِنْدَئِذٍ لأَنْبِيَاءِ الْبَعْلِ: «اخْتَارُوا لأَنْفُسِكُمْ ثَوْراً وَاحِداً، وَقَرِّبُوا أَوَّلاً لأَنَّكُمُ الأَكْثَرُ عَدَداً وَادْعُوا بِاسْمِ آلِهَتِكُمْ، وَلَكِنْ إِيَّاكُمْ أَنْ تُشْعِلُوا نَاراً».٢٥
26 इसलिए उन्होंने उस बैल को लेकर जो उनको दिया गया उसे तैयार किया; और सुबह से दोपहर तक बा'ल से दुआ करते और कहते रहे, ऐ बा'ल, हमारी सुन! “लेकिन न कुछ आवाज़ हुई और न कोई जवाब देने वाला था। और वह उस मज़बह के पास जो बनाया गया था कूदते रहे।
فَأَحْضَرُوا الثَّوْرَ الَّذِي أُعْطِيَ لَهُمْ وَوَضَعُوهُ عَلَى الْمَذْبَحِ، وَظَلُّوا يَدْعُونَ بِاسْمِ الْبَعْلِ مِنَ الصَّبَاحِ إِلَى الظُّهْرِ قَائِلِينَ: «يَابَعْلُ اسْتَجِبْ لَنَا». فَلَمْ يَكُنْ هُنَاكَ صَوْتٌ أَوْ مُجِيبٌ. فَرَاحُوا يَرْقُصُونَ حَوْلَ الْمَذْبَحِ الْمُشَيَّدِ.٢٦
27 और दोपहर को ऐसा हुआ कि एलियाह ने उनको चिढ़ाकर कहा, बुलन्द आवाज़ से पुकारो; क्यूँकि वह तो मा'बूद है, वह किसी सोच में होगा, या वह तनहाई में है, या कहीं सफ़र में होगा, या शायद वह सोता है, इसलिए ज़रूर है कि वह जगाया जाए।”
وَعِنْدَ الظُّهْرِ سَخِرَ بِهِمْ إِيلِيَّا وَقَالَ: «ادْعُوا بِصَوْتٍ أَعْلَى فَهُوَ حَقّاً إِلَهٌ! لَعَلَّهُ مُسْتَغْرِقٌ فِي التَّأَمُّلِ أَوْ فِي خَلْوَةٍ أَوْ فِي سَفَرٍ! أَوْ لَعَلَّهُ نَائِمٌ فَيَسْتَيْقِظَ».٢٧
28 तब वह बुलन्द आवाज़ से पुकारने लगे, और अपने दस्तूर के मुताबिक़ अपने आप को छुरियों और नश्तरों से घायल कर लिया, यहाँ तक कि लहू लुहान हो गए।
فَشَرَعُوا يَهْتِفُونَ بِصَوْتٍ أَعْلَى، وَيُمَزِّقُونَ أَجْسَادَهُمْ بِالسُّيُوفِ وَالرِّمَاحِ كَعَادَتِهِمْ، حَتَّى سَالَ مِنْهُمُ الدَّمُ.٢٨
29 वह दोपहर ढले पर भी शाम की क़ुर्बानी चढ़ाकर नबुव्वत करते रहे; लेकिन न कुछ आवाज़ हुई, न कोई जवाब देने वाला, न ध्यान करने वाला था।
وَانْقَضَتْ سَاعَاتُ الظُّهْرِ، وَظَلَّوا يَهْذُونَ صَارِخِينَ حَتَّى حَلَّ وَقْتُ إِصْعَادِ التَّقْدِمَةِ الْمَسَائِيَّةِ، مِنْ غَيْرِ أَنْ يَكُونَ هُنَاكَ صَوْتٌ أَوْ مُجِيبٌ.٢٩
30 तब एलियाह ने सब लोगों से कहा कि “मेरे नज़दीक आ जाओ।” चुनाँचे सब लोग उसके नज़दीक आ गए। तब उसने ख़ुदावन्द के उस मज़बह को, जो ढा दिया गया था, मरम्मत किया।
عِنْدَئِذٍ قَالَ إِيلِيَّا لِلشَّعْبِ كُلِّهِ: «تَقَدَّمُوا إِلَيَّ». فَدَنَا جَمِيعُ الشَّعْبِ مِنْهُ، فَرَمَّمَ مَذْبَحَ الرَّبِّ الْمُنْهَدِمَ،٣٠
31 और एलियाह ने या'क़ूब के बेटों के क़बीलों के गिनती के मुताबिक़, जिस पर ख़ुदावन्द का यह कलाम नाज़िल हुआ था कि “तेरा नाम इस्राईल होगा,” बारह पत्थर लिए,
ثُمَّ أَخَذَ اثْنَيْ عَشَرَ حَجَراً حَسَبَ عَدَدِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ، ذُرِّيَّةِ يَعْقُوبَ الَّذِي دَعَاهُ اللهُ إِسْرَائِيلَ٣١
32 और उसने उन पत्थरों से ख़ुदावन्द के नाम का एक मज़बह बनाया; और मज़बह के आस पास उसने ऐसी बड़ी खाई खोदी, जिसमें दो पैमाने बीज की समाई थी,
وَبَنَى بِهَذِهِ الْحِجَارَةِ مَذْبَحاً بِاسْمِ الرَّبِّ، وَحَفَرَ حَوْلَهُ قَنَاةً تَسَعُ نَحْوَ كَيْلَتَيْنِ مِنَ الحَبِّ.٣٢
33 और लकड़ियों को तरतीब से चुना और बैल भी टुकड़े — टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धर दिया, और कहा, चार मटके पानी से भरकर उस सोख़्तनी क़ुर्बानी पर और लकड़ियों पर उँडेल दो।”
ثُمَّ رَتَّبَ الْحَطَبَ وَقَطَّعَ الثَّوْرَ، وَوَضَعَ أَجْزَاءَهُ عَلَى الْحَطَبِ وَأَمَرَ أَنْ يَمْلأُوا أَرْبَعَ جَرَّاتٍ مَاءً وَيَصُبُّوهَا عَلَى الْمُحْرَقَةِ وَعَلَى الْحَطَبِ.٣٣
34 फिर उसने कहा, “दोबारा करो।” उन्होंने दोबारा किया; फिर उसने कहा, “तिबारा करो।” तब उन्होंने तिबारा भी किया।
ثُمَّ قَالَ «ثَنُّوا»، فَثَنَّوْا، وَعَادَ يَأْمُرُ: «ثَلِّثُوا»، فَثَلَّثُوا.٣٤
35 और पानी मज़बह के चारों तरफ़ बहने लगा, और उसने खाई भी पानी से भरवा दी।
حَتَّى جَرَى الْمَاءُ حَوْلَ الْمَذْبَحِ وَامْتَلأَتِ الْقَنَاةُ أَيْضاً بِالْمَاءِ.٣٥
36 और शाम की क़ुर्बानी पेश करने के वक़्त एलियाह नबी नज़दीक आया और उसने कहा “ऐ ख़ुदावन्द अब्रहाम और इज़्हाक़ और इस्राईल के ख़ुदा! आज मा'लूम हो जाए कि इस्राईल में तू ही ख़ुदा है, और मैं तेरा बन्दा हूँ, और मैंने इन सब बातों को तेरे ही हुक्म से किया है।
وَفِي مِيعَادِ ذَبِيحَةِ الْمَسَاءِ صَلَّى إِيلِيَّا: «أَيُّهَا الرَّبُّ إِلَهُ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَإِسْرَائِيلَ، لِيُعْلَمِ الْيَوْمَ أَنَّكَ أَنْتَ اللهُ فِي إِسْرَائِيلَ، وَأَنِّي أَنَا عَبْدُكَ، وَبِأَمْرِكَ قَدْ أَقْدَمْتُ عَلَى هَذِهِ الأُمُورِ.٣٦
37 मेरी सुन, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी सुन! ताकि यह लोग जान जाएँ कि ऐ ख़ुदावन्द, तू ही ख़ुदा है; और तू ने फिर उनके दिलों को फेर दिया है।”
اسْتَجِبْنِي يَا رَبُّ، اسْتَجِبْنِي، لِيُدْرِكَ هَذَا الشَّعْبُ أَنَّكَ أَنْتَ الرَّبُّ الإِلَهُ، وَأَنَّكَ أَنْتَ تَرُدُّ قُلُوبَهُمْ إِلَيْكَ».٣٧
38 तब ख़ुदावन्द की आग नाज़िल हुई और उसने उस सोख़्तनी क़ुर्बानी को लकड़ियों और पत्थरों और मिट्टी समेत भसम कर दिया, और उस पानी को जो खाई में था चाट लिया।
فَنَزَلَتْ نَارٌ مِنَ السَّمَاءِ الْتَهَمَتِ الْمُحْرَقَةَ وَالْحَطَبَ وَالْحِجَارَةَ وَالتُّرَابَ وَلَحَسَتْ مَاءَ الْقَنَاةِ.٣٨
39 जब सब लोगों ने यह देखा, तो मुँह के बल गिरे और कहने लगे, “ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है, ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है।”
فَلَمَّا شَاهَدَ جَمِيعُ بَنِي إِسْرَائِيلَ ذَلِكَ خَرُّوا سَاجِدِينَ عَلَى وُجُوهِهِمْ إِلَى الأَرْضِ هَاتِفِينَ: «الرَّبُّ هُوَ اللهُ! الرَّبُّ هُوَ اللهُ!»٣٩
40 एलियाह ने उनसे कहा, “बा'ल के नबियों को पकड़ लो, उनमें से एक भी जाने न पाए।” इसलिए उन्होंने उनको पकड़ लिया, और एलियाह उनको नीचे कोसोन के नाले पर ले आया और वहाँ उनको क़त्ल कर दिया।
فَقَالَ إِيلِيَّا: «اقْبِضُوا عَلَى أَنْبِيَاءِ الْبَعْلِ وَلا تَدَعُوا رَجُلاً مِنْهُمْ يُفْلِتُ» فَقَبَضُوا عَلَيْهِمْ، فَسَاقَهُمْ إِيلِيَّا إِلَى نَهْرِ قِيشُونَ وَذَبَحَهُمْ هُنَاكَ.٤٠
41 फिर एलियाह ने अख़ीअब से कहा, “ऊपर चढ़ जा, खा और पी, क्यूँकि कसरत की बारिश की आवाज़ है।”
وَقَالَ إِيلِيَّا لأَخْآبَ: «اصْعَدْ كُلْ وَاشْرَبْ لأَنَّنِي أَسْمَعُ صَوْتَ دَوِيِّ مَطَرٍ».٤١
42 इसलिए अख़ीअब खाने पीने को ऊपर चला गया। और एलियाह कर्मिल की चोटी पर चढ़ गया, और ज़मीन पर सरनगू होकर अपना मुँह अपने घुटनों के बीच कर लिया,
فَمَضَى آخْابُ لِيَأْكُلَ وَيَشْرَبَ، وَأَمَّا إِيلِيَّا فَارْتَقَى إِلَى قِمَّةِ جَبَلِ الْكَرْمَلِ وَجَلَسَ عَلَى الأَرْضِ وَخَبَّأَ رَأْسَهُ بَيْنَ رُكْبَتَيْهِ.٤٢
43 और अपने ख़ादिम से कहा, “ज़रा ऊपर जाकर समुन्दर की तरफ़ तो नज़र कर।” इसलिए उसने ऊपर जाकर नज़र की और कहा, “वहाँ कुछ भी नहीं है।” उसने कहा, “फिर सात बार जा।”
وَقَالَ لِغُلامِهِ: «اذْهَبْ وَتَطَلَّعْ نَحْوَ الْبَحْرِ». فَمَضَى الْغُلامُ وَتَطَلَّعَ نَحْوَ الْبَحْرِ وَقَالَ: «لا أَرَى شَيْئاً». فَأَمَرَ إِيلِيَّا: «اذْهَبْ وَتَطَلَّعْ» سَبْعَ مَرَّاتٍ٤٣
44 और सातवें मर्तबा उसने कहा, “देख, एक छोटा सा बादल आदमी के हाथ के बराबर समुन्दर में से उठा है।” तब उसने कहा, “जा और अख़ीअब से कह कि अपना रथ तैयार कराके नीचे उतर जा, ताकि बारिश तुझे रोक न ले।”
وَفِي الْمَرَّةِ السَّابِعَةِ قَالَ الْغُلامُ: «أَرَى غَيْمَةً صَغِيرَةً فِي حَجْمِ كَفِّ إِنْسَانٍ صَاعِدَةً مِنَ الْبَحْرِ». فَقَالَ إِيلِيَّا: «انْطَلِقْ وَقُلْ لأَخْآبَ أَعِدَّ مَرْكَبَتَكَ وانْزِلْ مِنَ الْجَبَلِ لِئَلّا يُعِيقَكَ الْمَطَرُ عَنِ السَّفَرِ».٤٤
45 और थोड़ी ही देर में आसमान घटा और आँधी से सियाह हो गया और बड़ी बारिश हुई; और अख़ीअब सवार होकर यज़र'एल को चला।
وَسَرْعَانَ مَا تَلَبَّدَتِ السَّمَاءُ بِالْغُيُومِ، وَهَبَّتْ رِيحٌ عَاصِفَةٌ، وَهَطَلَ مَطَرٌ غَزِيرٌ، فَانْدَفَعَ آخْابَ بِمَرْكَبَتِهِ نَحْوَ يِزْرَعِيلَ.٤٥
46 और ख़ुदावन्द का हाथ एलियाह पर था; और उसने अपनी कमर कस ली और अख़ीअब के आगे — आगे यज़र'एल के मदख़ल तक दौड़ा चला गया।
وَحَلَّتْ قُوَّةُ الرَّبِّ فِي إِيلِيَّا، فَلَفَّ عَبَاءَتَهُ حَوْلَ حَقْوَيْهِ وَرَكَضَ لِيَسْبِقَ آخْابَ إِلَى مَدْخَلِ يِزْرَعِيلَ.٤٦

< 1 सला 18 >