< 1 कुरिन्थियों 16 >
1 अब उस चन्दे के बारे में जो मुक़द्दसों के लिए किया जाता है; जैसा मैं ने ग़लतिया की कलीसियाओं को हुक्म दिया वैसे ही तुम भी करो।
पवित्रलोकानां कृते योऽर्थसंग्रहस्तमधि गालातीयदेशस्य समाजा मया यद् आदिष्टास्तद् युष्माभिरपि क्रियतां।
2 हफ़्ते के पहले दिन तुम में से हर शख़्स अपनी आमदनी के मुवाफ़िक़ कुछ अपने पास रख छोड़ा करे ताकि मेरे आने पर चन्दा न करना पड़े।
ममागमनकाले यद् अर्थसंग्रहो न भवेत् तन्निमित्तं युष्माकमेकैकेन स्वसम्पदानुसारात् सञ्चयं कृत्वा सप्ताहस्य प्रथमदिवसे स्वसमीपे किञ्चित् निक्षिप्यतां।
3 और जब मैं आऊँगा तो जिन्हें तुम मंज़ूर करोगे उनको मैं ख़त देकर भेज दूँगा कि तुम्हारी ख़ैरात येरूशलेम को पहुँचा दें।
ततो ममागमनसमये यूयं यानेव विश्वास्या इति वेदिष्यथ तेभ्योऽहं पत्राणि दत्त्वा युष्माकं तद्दानस्य यिरूशालमं नयनार्थं तान् प्रेषयिष्यामि।
4 अगर मेरा भी जाना मुनासिब हुआ तो वो मेरे साथ जाएँगे।
किन्तु यदि तत्र ममापि गमनम् उचितं भवेत् तर्हि ते मया सह यास्यन्ति।
5 मैं मकिदुनिया होकर तुम्हारे पास आऊँगा; क्यूँकि मुझे मकिदुनिया हो कर जाना तो है ही।
साम्प्रतं माकिदनियादेशमहं पर्य्यटामि तं पर्य्यट्य युष्मत्समीपम् आगमिष्यामि।
6 मगर रहूँगा शायद तुम्हारे पास और जाड़ा भी तुम्हारे पास ही काटूँ ताकि जिस तरफ़ मैं जाना चाहूँ तुम मुझे उस तरफ़ रवाना कर दो।
अनन्तरं किं जानामि युष्मत्सन्निधिम् अवस्थास्ये शीतकालमपि यापयिष्यामि च पश्चात् मम यत् स्थानं गन्तव्यं तत्रैव युष्माभिरहं प्रेरयितव्यः।
7 क्यूँकि मैं अब राह में तुम से मुलाक़ात करना नहीं चाहता बल्कि मुझे उम्मीद है कि ख़ुदावन्द ने चाहा तो कुछ अरसे तुम्हारे पास रहूँगा।
यतोऽहं यात्राकाले क्षणमात्रं युष्मान् द्रष्टुं नेच्छामि किन्तु प्रभु र्यद्यनुजानीयात् तर्हि किञ्चिद् दीर्घकालं युष्मत्समीपे प्रवस्तुम् इच्छामि।
8 लेकिन मैं ईद'ए पिन्तेकुस्त तक इफ़िसुस में रहूँगा।
तथापि निस्तारोत्सवात् परं पञ्चाशत्तमदिनं यावद् इफिषपुर्य्यां स्थास्यामि।
9 क्यूँकि मेरे लिए एक वसी' और कार आमद दरवाज़ा खुला है और मुख़ालिफ़ बहुत से हैं।
यस्माद् अत्र कार्य्यसाधनार्थं ममान्तिके बृहद् द्वारं मुक्तं बहवो विपक्षा अपि विद्यन्ते।
10 अगर तीमुथियुस आ जाए तो ख्याल रखना कि वो तुम्हारे पास बेख़ौफ़ रहे क्यूँकि वो मेरी तरह ख़ुदावन्द का काम करता है।
तिमथि र्यदि युष्माकं समीपम् आगच्छेत् तर्हि येन निर्भयं युष्मन्मध्ये वर्त्तेत तत्र युष्माभि र्मनो निधीयतां यस्माद् अहं यादृक् सोऽपि तादृक् प्रभोः कर्म्मणे यतते।
11 पस कोई उसे हक़ीर न जाने बल्कि उसको सही सलामत इस तरफ़ रवाना करना कि मेरे पास आजाए क्यूँकि मैं मुन्तज़िर हूँ कि वो भाइयों समेत आए।
कोऽपि तं प्रत्यनादरं न करोतु किन्तु स ममान्तिकं यद् आगन्तुं शक्नुयात् तदर्थं युष्माभिः सकुशलं प्रेष्यतां। भ्रातृभिः सार्द्धमहं तं प्रतीक्षे।
12 और भाई अपुल्लोस से मैंने बहुत इल्तिमास किया कि तुम्हारे पास भाइयों के साथ जाए; मगर इस वक़्त जाने पर वो अभी राज़ी न हुआ लेकिन जब उस को मौक़ा मिलेगा तो जाएगा।
आपल्लुं भ्रातरमध्यहं निवेदयामि भ्रातृभिः साकं सोऽपि यद् युष्माकं समीपं व्रजेत् तदर्थं मया स पुनः पुनर्याचितः किन्त्विदानीं गमनं सर्व्वथा तस्मै नारोचत, इतःपरं सुसमयं प्राप्य स गमिष्यति।
13 जागते रहो ईमान में क़ाईम रहो मर्दानगी करो मज़बूत हो।
यूयं जागृत विश्वासे सुस्थिरा भवत पौरुषं प्रकाशयत बलवन्तो भवत।
14 जो कुछ करते हो मुहब्बत से करो।
युष्माभिः सर्व्वाणि कर्म्माणि प्रेम्ना निष्पाद्यन्तां।
15 ऐ भाइयों! तुम स्तिफ़नास के ख़ानदान को जानते हो कि वो अख़िया के पहले फल हैं और मुक़द्दसों की ख़िदमत के लिए तैयार रहते हैं।
हे भ्रातरः, अहं युष्मान् इदम् अभियाचे स्तिफानस्य परिजना आखायादेशस्य प्रथमजातफलस्वरूपाः, पवित्रलोकानां परिचर्य्यायै च त आत्मनो न्यवेदयन् इति युष्माभि र्ज्ञायते।
16 पस मैं तुम से इल्तिमास करता हूँ कि ऐसे लोगों के ताबे रहो बल्कि हर एक के जो इस काम और मेहनत में शरीक हैं।
अतो यूयमपि तादृशलोकानाम् अस्मत्सहायानां श्रमकारिणाञ्च सर्व्वेषां वश्या भवत।
17 और मैं स्तिफ़नास और फ़रतूनातूस और अख़ीकुस के आने से ख़ुश हूँ क्यूँकि जो तुम में से रह गया था उन्होंने पूरा कर दिया।
स्तिफानः फर्त्तूनात आखायिकश्च यद् अत्रागमन् तेनाहम् आनन्दामि यतो युष्माभिर्यत् न्यूनितं तत् तैः सम्पूरितं।
18 और उन्होंने मेरी और तुम्हारी रूह को ताज़ा किया पस ऐसों को मानो।
तै र्युष्माकं मम च मनांस्याप्यायितानि। तस्मात् तादृशा लोका युष्माभिः सम्मन्तव्याः।
19 आसिया की कलीसिया तुम को सलाम कहती है अक्विला और प्रिस्का उस कलीसिया समेत जो उन के घर में हैं, तुम्हें ख़ुदावन्द में बहुत बहुत सलाम कहते हैं।
युष्मभ्यम् आशियादेशस्थसमाजानां नमस्कृतिम् आक्किलप्रिस्किल्लयोस्तन्मण्डपस्थसमितेश्च बहुनमस्कृतिं प्रजानीत।
20 सब भाई तुम्हें सलाम कहते हैं पाक बोसा लेकर आपस में सलाम करो।
सर्व्वे भ्रातरो युष्मान् नमस्कुर्व्वन्ते। यूयं पवित्रचुम्बनेन मिथो नमत।
21 मैं पौलुस अपने हाथ से सलाम लिखता हूँ।
पौलोऽहं स्वकरलिखितं नमस्कृतिं युष्मान् वेदये।
22 जो कोई ख़ुदावन्द को अज़ीज़ नहीं रखता मला'ऊन हो हमारा ख़ुदावन्द आने वाला है।
यदि कश्चिद् यीशुख्रीष्टे न प्रीयते तर्हि स शापग्रस्तो भवेत् प्रभुरायाति।
23 ख़ुदावन्द ईसा मसीह का फ़ज़ल तुम पर होता रहे।
अस्माकं प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्यानुग्रहो युष्मान् प्रति भूयात्।
24 मेरी मुहब्बत ईसा मसीह में तुम सब से रहे। आमीन।
ख्रीष्टं यीशुम् आश्रितान् युष्मान् प्रति मम प्रेम तिष्ठतु। इति॥