< 1 कुरिन्थियों 12 >

1 ऐ भाइयों! मैं नहीं चाहता कि तुम पाक रूह की ने'मतों के बारे में बेख़बर रहो।
ⲁ̅ⲉⲧⲃⲉⲛⲉⲡⲛⲉⲩⲙⲁⲧⲓⲕⲟⲛ ⲇⲉ ⲛⲉⲥⲛⲏⲩ ⲛ̅ϯⲟⲩⲱϣ ⲁⲛ ⲉⲧⲣⲉⲧⲛ̅ⲣ̅ⲁⲧⲥⲟⲟⲩⲛ
2 तुम जानते हो कि जब तुम ग़ैर क़ौम थे, तो गूँगे बुतों के पीछे जिस तरह कोई तुम को ले जाता था; उसी तरह जाते थे।
ⲃ̅ⲧⲉⲧⲛ̅ⲥⲟⲟⲩⲛ ⲅⲁⲣ ϫⲉ ⲛⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲟ ⲛ̅ϩⲉⲑⲛⲟⲥ ⲡⲉ. ⲉⲧⲉⲧⲛ̅ⲃⲏⲕ ⲉⲣⲁⲧⲟⲩ ⲛ̅ⲛ̅ⲉⲓⲇⲱⲗⲟⲛ ⲉⲧⲉⲙⲉⲩϣⲁϫⲉ ⲛ̅ⲑⲉ ⲉⲛⲧⲁⲩⲛ̅ⲧⲏⲩⲧⲛ̅ ⲉϩⲣⲁⲓ̈ ϩⲓⲱⲱⲥ·
3 पस मैं तुम्हें बताता हूँ कि जो कोई ख़ुदा के रूह की हिदायत से बोलता है; वो नहीं कहता कि ईसा मला'ऊन है; और न कोई रूह उल — क़ुद्दूस के बग़ैर कह सकता है कि ईसा ख़ुदावन्द है।
ⲅ̅ⲉⲧⲃⲉⲡⲁⲓ̈ ϯⲧⲁⲙⲟ ⲙ̅ⲙⲱⲧⲛ̅ ϫⲉ ⲙⲉⲣⲉⲗⲁⲁⲩ ⲉϥϣⲁϫⲉ ϩⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲟⲩⲁⲛⲁⲑⲉⲙⲁ ⲡⲉ ⲓ̅ⲥ̅. ⲁⲩⲱ ⲙⲛ̅ϣϭⲟⲙ ⲛ̅ⲗⲁⲁⲩ ⲉϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲡϫⲟⲉⲓⲥ ⲡⲉ ⲓ̅ⲥ̅ ⲉⲓⲙⲏⲧⲉⲓ ϩⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲉϥⲟⲩⲁⲁⲃ.
4 नेअ'मतें तो तरह तरह की हैं मगर रूह एक ही है।
ⲇ̅ⲟⲩⲛ̅ϩⲉⲛⲡⲱⲣϫ̅ ⲇⲉ ⲛ̅ϩⲙⲟⲧ ⲉⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉ.
5 और ख़िदमतें तो तरह तरह की हैं मगर ख़ुदावन्द एक ही है।
ⲉ̅ⲁⲩⲱ ⲟⲩⲛ̅ϩⲉⲛⲡⲱⲣϫ̅ ⲛ̅ⲇⲓⲁⲕⲟⲛⲓⲁ ⲉⲡⲓϫⲟⲉⲓⲥ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉ.
6 और तासीरें भी तरह तरह की हैं मगर ख़ुदा एक ही है जो सब में हर तरह का असर पैदा करता है।
ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲟⲩⲛ̅ϩⲉⲛⲡⲱⲣϫ̅ ⲛ̅ⲉⲛⲉⲣⲅⲏⲙⲁ ⲉⲡⲓⲛⲟⲩⲧⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉⲧⲉⲛⲉⲣⲅⲓ ⲙ̅ⲡⲧⲏⲣϥ̅ ϩⲙ̅ⲡⲧⲏⲣϥ̅.
7 लेकिन हर शख़्स में पाक रूह का ज़ाहिर होना फ़ाइदा पहुँचाने के लिए होता है।
ⲍ̅ⲥⲉϯ ⲇⲉ ⲙ̅ⲡⲟⲩⲁ ⲡⲟⲩⲁ ϩⲙ̅ⲡⲟⲩⲱⲛϩ̅ ⲉⲃⲟⲗ ⲙ̅ⲡⲉⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲉⲧⲛⲟϥⲣⲉ.
8 क्यूँकि एक को रूह के वसीले से हिक्मत का कलाम इनायत होता है और दूसरे को उसी रूह की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ इल्मियत का कलाम।
ⲏ̅ⲟⲩⲁ ⲙⲉⲛ ϩⲓⲧⲙ̅ⲡⲉⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ϣⲁⲩϯ ⲛⲁϥ ⲛ̅ⲟⲩϣⲁϫⲉ ⲛ̅ⲥⲟⲫⲓⲁ. ⲕⲉⲧ ⲇⲉ ⲛ̅ⲟⲩϣⲁϫⲉ ⲛ̅ⲥⲟⲟⲩⲛ ⲕⲁⲧⲁⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ.
9 किसी को उसी रूह से ईमान और किसी को उसी रूह से शिफ़ा देने की तौफ़ीक़।
ⲑ̅ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲡⲓⲥⲧⲓⲥ ϩⲙ̅ⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲛ̅ϩⲉⲛϩⲙⲟⲧ ⲛ̅ⲧⲁⲗϭⲟ ⲕⲁⲧⲁⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ.
10 किसी को मोजिज़ों की क़ुदरत, किसी को नबुव्वत, किसी को रूहों का इम्तियाज़, किसी को तरह तरह की ज़बाने, किसी को ज़बानों का तर्जुमा करना।
ⲓ̅ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ϩⲉⲛⲉⲛⲉⲣⲅⲏⲙⲁ ⲛ̅ϭⲟⲙ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲓⲁ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲇⲓⲁⲕⲣⲓⲥⲓⲥ ⲙ̅ⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ϩⲉⲛⲅⲉⲛⲟⲥ ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ. ⲕⲉⲟⲩⲁ ⲛ̅ⲟⲩϩⲉⲣⲙⲏⲛⲓⲁ ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ.
11 लेकिन ये सब तासीरें वही एक रूह करता है; और जिस को जो चाहता है बाँटता है,
ⲓ̅ⲁ̅ⲛⲁⲓ̈ ⲇⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲡⲓⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉⲧⲉⲛⲉⲣⲅⲓ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ⲉϥⲡⲱϣ ⲉϫⲙ̅ⲡⲟⲩⲁ ⲡⲟⲩⲁ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ⲕⲁⲧⲁⲑⲉ ⲉⲧϥ̅ⲟⲩⲁϣⲥ̅.
12 क्यूँकि जिस तरह बदन एक है और उस के आ'ज़ा बहुत से हैं, और बदन के सब आ'ज़ा गरचे बहुत से हैं, मगर हमसब मिलकर एक ही बदन हैं; उसी तरह मसीह भी है।
ⲓ̅ⲃ̅ⲛ̅ⲑⲉ ⲅⲁⲣ ⲉⲟⲩⲁ ⲡⲉ ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲉⲟⲩⲛ̅ⲧϥ̅ϩⲁϩ ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ. ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲇⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ϩⲁϩ ⲛⲉ. ⲟⲩⲥⲱⲙⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲡⲉ. ⲧⲁⲓ̈ ⲧⲉ ⲑⲉ ⲙ̅ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅.
13 क्यूँकि हम सब में चाहे यहूदी हों, चाहे यूनानी, चाहे ग़ुलाम, चाहे आज़ाद, एक ही रूह के वसीले से एक बदन होने के लिए बपतिस्मा लिया और हम सब को एक ही रूह पिलाया गया।
ⲓ̅ⲅ̅ⲕⲁⲓⲅⲁⲣ ϩⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲁⲛⲟⲛ ⲧⲏⲣⲛ̅ ⲛ̅ⲧⲁⲛⲃⲁⲡⲧⲓⲍⲉ ⲉⲩⲥⲱⲙⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ. ⲉⲓⲧⲉ ⲓ̈ⲟⲩⲇⲁⲓ̈. ⲉⲓⲧⲉ ⲟⲩⲉⲓ̈ⲉⲛⲓⲛ. ⲉⲓⲧⲉ ϩⲙ̅ϩⲁⲗ. ⲉⲓⲧⲉ ⲣⲙ̅ϩⲉ. ⲁⲩⲱ ⲛ̅ⲧⲁⲩⲧⲥⲟⲛ ⲧⲏⲣⲛ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲡ̅ⲛ̅ⲁ̅ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ.
14 चुनाँचे बदन में एक ही आ'ज़ा नहीं बल्कि बहुत से हैं
ⲓ̅ⲇ̅ⲕⲁⲓⲅⲁⲣ ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲛ̅ⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲁⲛ ⲡⲉ. ⲁⲗⲗⲁ ϩⲁϩ ⲛⲉ.
15 अगर पाँव कहे चुँकि मैं हाथ नहीं इसलिए बदन का नहीं तो वो इस वजह से बदन से अलग तो नहीं।
ⲓ̅ⲉ̅ⲉⲣϣⲁⲛⲧⲟⲩⲉⲣⲏⲧⲉ ϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲁⲛⲅ̅ⲧϭⲓϫ ⲁⲛ. ⲁⲛⲅ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ. ⲟⲩⲡⲁⲣⲁⲧⲟⲩⲧⲟ ⲛ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲧⲉ.
16 और अगर कान कहे चुँकि मैं आँख नहीं इसलिए बदन का नहीं तो वो इस वजह से बदन से अलग तो नहीं।
ⲓ̅ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲉⲣϣⲁⲛⲡⲙⲁⲁϫⲉ ϫⲟⲟⲥ ϫⲉ ⲁⲛⲅ̅ⲡⲃⲁⲗ ⲁⲛ. ⲁⲛⲅ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ. ⲟⲩⲡⲁⲣⲁⲧⲟⲩⲧⲟ ⲛ̅ⲟⲩⲉⲃⲟⲗ ⲁⲛ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲡⲉ.
17 अगर सारा बदन आँख ही होता तो सुनना कहाँ होता? अगर सुनना ही सुनना होता तो सूँघना कहाँ होता?
ⲓ̅ⲍ̅ⲉϣϫⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ⲧⲏⲣϥ̅ ⲡⲉ ⲡⲃⲁⲗ ⲉϥⲧⲱⲛ ⲡⲙⲁⲁϫⲉ. ⲉϣϫⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ⲧⲏⲣϥ̅ ⲡⲉ ⲡⲙⲁⲁϫⲉ ⲉϥⲧⲱⲛ ⲡϣⲁ.
18 मगर हक़ीक़त में ख़ुदा ने हर एक 'उज़्व को बदन में अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ रख्खा है।
ⲓ̅ⲏ̅ⲧⲉⲛⲟⲩ ⲇⲉ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲥⲙⲛ̅ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲡⲟⲩⲁ ⲡⲟⲩⲁ ⲙ̅ⲙⲟⲟⲩ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲕⲁⲧⲁⲑⲉ ⲉⲧϥ̅ⲟⲩⲁϣⲥ̅.
19 अगर वो सब एक ही 'उज़्व होते तो बदन कहाँ होता?
ⲓ̅ⲑ̅ⲉϣϫⲉⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ⲇⲉ ⲛ̅ⲟⲩⲱⲧ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲛⲉ ⲉϥⲧⲱⲛ ⲡⲥⲱⲙⲁ.
20 मगर अब आ'ज़ा तो बहुत हैं लेकिन बदन एक ही है।
ⲕ̅ⲧⲉⲛⲟⲩ ⲇⲉ ϩⲁϩ ⲙⲉⲛ ⲛⲉ ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ. ⲟⲩⲁ ⲇⲉ ⲡⲉ ⲡⲥⲱⲙⲁ.
21 पस आँख हाथ से नहीं कह सकती, “मैं तेरी मोहताज नहीं,” और न सिर पाँव से कह सकता है, “मैं तेरा मोहताज नहीं।”
ⲕ̅ⲁ̅ⲙⲛ̅ϭⲟⲙ ⲇⲉ ⲙ̅ⲡⲃⲁⲗ ⲉϫⲟⲟⲥ ⲛ̅ⲧϭⲓϫ ϫⲉ ⲛ̅ϯⲣ̅ⲭⲣⲓⲁ ⲙ̅ⲙⲟ ⲁⲛ. ⲏ̅ ⲟⲛ ⲧⲁⲡⲉ ⲛ̅ⲛ̅ⲟⲩⲉⲣⲏⲧⲉ ϫⲉ ⲛ̅ϯⲣ̅ⲭⲣⲓⲁ ⲙ̅ⲙⲱⲧⲛ̅ ⲁⲛ.
22 बल्कि बदन के वो आ'ज़ा जो औरों से कमज़ोर मा'लूम होते हैं बहुत ही ज़रूरी हैं।
ⲕ̅ⲃ̅ⲁⲗⲗⲁ ⲛ̅ϩⲟⲩⲟ ⲛ̅ⲧⲟϥ ⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ⲉⲧⲉⲛⲙⲉⲉⲩⲉ ⲉⲣⲟⲟⲩ ϫⲉ ϩⲉⲛϭⲱⲃ ⲛⲉ ϩⲉⲛⲁⲛⲁⲅⲕⲁⲓⲟⲛ ⲛⲉ.
23 और बदन के वो आ'ज़ा जिन्हें हम औरों की तरह ज़लील जानते हैं उन्हीं को ज़्यादा इज़्ज़त देते हैं और हमारे नाज़ेबा आ'ज़ा बहुत ज़ेबा हो जाते हैं।
ⲕ̅ⲅ̅ⲁⲩⲱ ⲛⲉⲧⲛ̅ⲙⲉⲉⲩⲉ ⲉⲣⲟⲟⲩ ⲛ̅ⲧⲉⲡⲥⲱⲙⲁ ϫⲉ ⲥⲉⲥⲏϣ. ⲧⲛ̅ⲟⲩⲱϩ ⲛ̅ⲟⲩϩⲟⲩⲉⲧⲓⲙⲏ ⲉⲛⲁⲓ̈. ⲁⲩⲱ ⲛⲉⲛϣⲓⲡⲉ ⲟⲩⲛ̅ⲧⲁⲩ ⲙ̅ⲙⲁⲩ ⲛ̅ⲟⲩϩⲟⲩⲉⲉⲩⲥⲭⲩⲙⲟⲥⲩⲛⲏ.
24 हालाँकि हमारे ज़ेबा आ'ज़ा मोहताज नहीं मगर ख़ुदा ने बदन को इस तरह मुरक्कब किया है, कि जो 'उज़्व मोहताज है उसी को ज़्यादा 'इज़्ज़त दी जाए।
ⲕ̅ⲇ̅ⲁⲩⲱ ⲛⲉⲧⲛⲉⲥⲱⲟⲩ ⲛ̅ⲥⲉⲣ̅ⲭⲣⲓⲁ ⲁⲛ. ⲁⲗⲗⲁ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲥⲩⲛⲕⲉⲣⲁ ⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲉⲁϥϯ ⲛ̅ⲟⲩϩⲟⲩⲟ ⲙ̅ⲡⲉⲧϣⲁⲁⲧ.
25 ताकि बदन में जुदाई न पड़े, बल्कि आ'ज़ा एक दूसरे की बराबर फ़िक्र रख्खें।
ⲕ̅ⲉ̅ϫⲉⲕⲁⲁⲥ ⲉⲛⲛⲉⲡⲱⲣϫ̅ ϣⲱⲡⲉ ϩⲙ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ. ⲁⲗⲗⲁ ⲉⲣⲉⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ϥⲓⲣⲟⲟⲩϣ ϩⲁⲛⲉⲩⲉⲣⲏⲩ.
26 पस अगर एक 'उज़्व दुःख पाता है तो सब आ'ज़ा उस के साथ दुःख पाते हैं।
ⲕ̅ⲋ̅ⲁⲩⲱ ⲉϣⲱⲡⲉ ⲟⲩⲛ̅ⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ϣⲱⲛⲉ ϣⲁⲣⲉⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ ϣⲱⲛⲉ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ ⲉⲓⲧⲁ ⲟⲩⲛ̅ⲟⲩⲙⲉⲗⲟⲥ ϫⲓⲉⲟⲟⲩ ϣⲁⲣⲉⲙ̅ⲙⲉⲗⲟⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲣⲁϣⲉ ⲛⲙ̅ⲙⲁϥ·
27 इसी तरह तुम मिल कर मसीह का बदन हो और फ़र्दन आ'ज़ा हो।
ⲕ̅ⲍ̅ⲛ̅ⲧⲱⲧⲛ̅ ⲇⲉ ⲛⲧⲉⲧⲛ̅ⲡⲥⲱⲙⲁ ⲙ̅ⲡⲉⲭ̅ⲥ̅. ⲁⲩⲱ ⲛⲉϥⲙⲉⲗⲟⲥ ⲉⲕⲙⲉⲣⲟⲩⲥ·
28 और ख़ुदा ने कलीसिया में अलग अलग शख़्स मुक़र्रर किए पहले रसूल दूसरे नबी तीसरे उस्ताद फिर मोजिज़े दिखाने वाले फिर शिफ़ा देने वाले मददगार मुन्तज़िम तरह तरह की ज़बाने बोलने वाले।
ⲕ̅ⲏ̅ϩⲟⲓ̈ⲛⲉ ⲙⲉⲛ ⲁⲡⲛⲟⲩⲧⲉ ⲕⲁⲁⲩ ϩⲛ̅ⲧⲉⲕⲕⲗⲏⲥⲓⲁ. ⲛ̅ϣⲟⲣⲡ̅ ⲛ̅ⲁⲡⲟⲥⲧⲟⲗⲟⲥ. ⲡⲙⲉϩⲥⲛⲁⲩ ⲛⲉⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲏⲥ. ⲡⲙⲉϩϣⲟⲙⲛⲧ̅ ⲛ̅ⲥⲁϩ. ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲥⲱⲥ ϩⲉⲛϭⲟⲙ. ⲙⲛ̅ⲛ̅ⲥⲱⲥ ϩⲉⲛⲭⲁⲣⲓⲥⲙⲁ ⲛ̅ⲧⲁⲗϭⲟ. ⲟⲩϯⲧⲟⲟⲧⲟⲩ. ϩⲉⲛⲣ̅ϩⲙ̅ⲙⲉ. ϩⲉⲛⲅⲉⲛⲟⲥ ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ.
29 क्या सब रसूल हैं? क्या सब नबी हैं? क्या सब उस्ताद हैं? क्या सब मोजिज़े दिखानेवाले हैं?
ⲕ̅ⲑ̅ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ⲁⲡⲟⲥⲧⲟⲗⲟⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ⲡⲣⲟⲫⲏⲧⲏⲥ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ⲥⲁϩ ⲧⲏⲣⲟⲩ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁⲣ̅ϭⲟⲙ ⲧⲏⲣⲟⲩ.
30 क्या सब को शिफ़ा देने की ताक़त हासिल हुई? क्या सब तरह की ज़बाने बोलते हैं? क्या सब तर्जुमा करते हैं?
ⲗ̅ⲙⲏ ⲟⲩⲛ̅ⲧⲁⲩ ⲧⲏⲣⲟⲩ ⲛ̅ϩⲉⲛϩⲙⲟⲧ ⲛ̅ⲧⲁⲗϭⲟ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁϣⲁϫⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ ϩⲛ̅ⲛ̅ⲁⲥⲡⲉ. ⲙⲏ ⲉⲩⲛⲁϩⲉⲣⲙⲏⲛⲉⲩⲉ ⲧⲏⲣⲟⲩ.
31 तुम बड़ी से बड़ी ने'मत की आरज़ू रख्खो, लेकिन और भी सब से उम्दा तरीक़ा तुम्हें बताता हूँ।
ⲗ̅ⲁ̅ⲕⲱϩ ⲇⲉ ⲉⲛⲉⲭⲁⲣⲓⲥⲙⲁ ⲛⲟϭ ⲁⲩⲱ ⲉⲧⲉⲓ ⲡⲉϩⲟⲩⲟ ϯⲛⲁⲧⲥⲁⲃⲱⲧⲛ̅ ⲉⲧⲉϩⲓⲏ.

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