< Salmos 35 >
1 Oh Señor, sé de mi lado contra los que me juzgan; pelea con aquellos que hacen la guerra contra mí.
ऐ ख़ुदावन्द, जो मुझ से झगड़ते हैं तू उनसे झगड़; जो मुझ से लड़ते हैं तू उनसे लड़।
2 Toma tu escudo, y dame tu ayuda.
ढाल और सिपर लेकर मेरी मदद के लिए खड़ा हो।
3 Toma tu lanza y retén a mis atacantes; di a mi alma, yo soy tu salvación.
भाला भी निकाल और मेरा पीछा करने वालों का रास्ता बंद कर दे; मेरी जान से कह, मैं तेरी नजात हूँ।
4 Dejen que sean vencidos y avergonzados quienes intentan tomar mi alma; deja que los que me hacen daño sean rechazados y confundidos.
जो मेरी जान के तलबगार हैं, वह शर्मिन्दा और रुस्वा हों। जो मेरे नुक़्सान का मन्सूबा बाँधते हैं, वह पसपा और परेशान हों।
5 Sean como el polvo del grano delante del viento; deja que el ángel del Señor los envíe en vuelo.
वह ऐसे हो जाएँ जैसे हवा के आगे भूसा, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनको हाँकता रहे।
6 Dejen que su camino sea oscuro y peligroso y él ángel del Señor los persiga.
उनकी राह अँधेरी और फिसलनी हो जाए, और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनको दौड़ाता जाए।
7 Porque sin causa me han preparado una red secretamente, para tomar mi alma.
क्यूँकि उन्होंने बे वजह मेरे लिए गढ़े में जाल बिछाया, और नाहक़ मेरी जान के लिए गढ़ा खोदा है।
8 ¡Que la destrucción venga sobre ellos. caigan en su propia trampa! ¡Que caigan en desgracia!
उस पर अचानक तबाही आ पड़े! और जिस जाल को उसने बिछाया है उसमें आप ही फसे; और उसी हलाकत में गिरफ़्तार हो।
9 Y mi alma se gozará en el Señor; se alegrará en su salvación.
लेकिन मेरी जान ख़ुदावन्द में खु़श रहेगी, और उसकी नजात से शादमान होगी।
10 Todos mis huesos dirán: Señor, ¿quién como tú? El salvador del pobre de las manos del más fuerte que el, del pobre y necesitado del que toma sus bienes?
मेरी सब हड्डियाँ कहेंगी, “ऐ ख़ुदावन्द तुझ सा कौन है, जो ग़रीब को उसके हाथ से जो उससे ताक़तवर है, और ग़रीब — ओ — मोहताज को ग़ारतगर से छुड़ाता है?”
11 Falsos testigos se levantaron: me hicieron preguntas sobre crímenes de los que no tenía conocimiento.
झूटे गवाह उठते हैं; और जो बातें मैं नहीं जानता, वह मुझ से पूछते हैं।
12 Ellos me devolvieron el mal por bien. perturbando mi alma.
वह मुझ से नेकी के बदले बदी करते हैं, यहाँ तक कि मेरी जान बेकस हो जाती है।
13 Pero en cuanto a mí, cuando estaban enfermos, me puse la ropa áspera, de cilicio: ayunaba y estaba triste, y mi oración volvió a mi corazón.
लेकिन मैंने तो उनकी बीमारी में जब वह बीमार थे, टाट ओढ़ा और रोज़े रख कर अपनी जान को दुख दिया; और मेरी दुआ मेरे ही सीने में वापस आई।
14 Mi comportamiento fue como si hubiera sido mi amigo o mi hermano: estaba angustiado como alguien cuya madre está muerta.
मैंने तो ऐसा किया जैसे वह मेरा दोस्त या मेरा भाई था; मैंने सिर झुका कर ग़म किया जैसे कोई अपनी माँ के लिए मातम करता हो।
15 Pero ellos se complacieron en mi aflicción, y se juntaron, sí, se juntaron contra mí gentes despreciables, y yo no lo entendía; me despedazaban sin descanso.
लेकिन जब मैं लंगड़ाने लगा तो वह ख़ुश होकर इकट्ठे हो गए, कमीने मेरे ख़िलाफ़ इकट्ठा हुए और मुझे मा'लूम न था; उन्होंने मुझे फाड़ा और बाज़ न आए।
16 Como lisonjeros, escarnecedores y truhanes, crujieron contra mí sus dientes.
ज़ियाफ़तों के बदतमीज़ मसखरों की तरह, उन्होंने मुझ पर दाँत पीसे।
17 Señor, ¿cuánto tiempo estarás mirando? quita mi alma de su destrucción, mi vida de los leones.
ऐ ख़ुदावन्द, तू कब तक देखता रहेगा? मेरी जान को उनकी ग़ारतगरी से, मेरी जान को शेरों से छुड़ा।
18 Te alabaré en la gran reunión; Te daré honor entre un pueblo numeroso.
मैं बड़े मजमे' में तेरी शुक्रगुज़ारी करूँगा मैं बहुत से लोगों में तेरी सिताइश करूँगा।
19 No permitas que se alegren de mí los que sin causa son mis enemigos; no permitas que los que me aborrecen sin causa guiñen el ojo maliciosamente.
जो नाहक़ मेरे दुश्मन हैं, मुझ पर ख़ुशी न मनाएँ; और जो मुझ से बे वजह 'अदावत रखते हैं, चश्मक ज़नी न करें।
20 Porque no dicen palabras de paz; en su engaño hacen planes traicioneros contra los mansos.
क्यूँकि वह सलामती की बातें नहीं करते, बल्कि मुल्क के अमन पसंद लोगों के ख़िलाफ़, मक्र के मन्सूबे बाँधते हैं।
21 Sus bocas se abrieron ampliamente contra mí, y dijeron: ¡Ajá, ajá, nuestros ojos lo han visto!
यहाँ तक कि उन्होंने ख़ूब मुँह फाड़ा और कहा, “अहा! अहा! हम ने अपनी आँख से देख लिया है!”
22 Has visto esto, oh Señor; no calles: Oh Señor, no te alejes de mí.
ऐ ख़ुदावन्द, तूने ख़ुद यह देखा है; ख़ामोश न रह! ऐ ख़ुदावन्द, मुझ से दूर न रह!
23 ¡Despierta, oh Señor, muévete! Hazme justicia. mi Dios y mi Señor para defender mi causa.
उठ, मेरे इन्साफ़ के लिए जाग, और मेरे मु'आमिले के लिए, ऐ मेरे ख़ुदा! ऐ मेरे ख़ुदावन्द!
24 Sé mi juez, oh Señor mi Dios, en tu justicia; no dejes que se alegren de mí.
अपनी सदाक़त के मुताबिक़ मेरी'अदालत कर, ऐ ख़ुदावन्द, मेरे ख़ुदा! और उनको मुझ पर ख़ुशी न मनाने दे।
25 ¡No digan en sus corazones: lo tenemos! no digan: Acabamos con él.
वह अपने दिल में यह न कहने पाएँ, “अहा! हम तो यही चाहते थे!” वह यह न कहें, कि हम उसे निगल गए।
26 Sean avergonzados y confundidos todos los que se complacen en mis aflicciones. y vengan a la nada; los que se enaltecen contra mí sean cubiertos de vergüenza.
जो मेरे नुक़सान से ख़ुश होते हैं, वह आपस में शर्मिन्दा और परेशान हों! जो मेरे मुक़ाबले में तकब्बुर करते हैं वह शर्मिन्दगी और रुस्वाई से मुलब्बस हों।
27 Dejen que los que están de mi lado den gritos de alegría; que digan siempre: El Señor sea alabado, porque se complace en la paz de su siervo.
जो मेरे सच्चे मु'आमिले की ताईद करते हैं, वह ख़ुशी से ललकारें और ख़ुशहों; वह हमेशा यह कहें, ख़ुदावन्द की तम्जीद हो, जिसकी ख़ुशनूदी अपने बन्दे की इक़बालमन्दी में है!
28 Y mi lengua hablará de tu justicia y de tu alabanza todo el día.
तब मेरी ज़बान से तेरी सदाकत का ज़िक्र होगा, और दिन भर तेरी ता'रीफ़ होगी।