< Salmos 28 >
1 A ti clamo, oh Señor, mi Roca; no me niegues tu respuesta, para que no llegue a ser como aquellos que descienden al inframundo.
१दाऊद का भजन हे यहोवा, मैं तुझी को पुकारूँगा; हे मेरी चट्टान, मेरी पुकार अनसुनी न कर, ऐसा न हो कि तेरे चुप रहने से मैं कब्र में पड़े हुओं के समान हो जाऊँ जो पाताल में चले जाते हैं।
2 Escucha la voz de mi oración, cuando te clamo, cuando mis manos se eleven a tu lugar santo.
२जब मैं तेरी दुहाई दूँ, और तेरे पवित्रस्थान की भीतरी कोठरी की ओर अपने हाथ उठाऊँ, तब मेरी गिड़गिड़ाहट की बात सुन ले।
3 No me lleven lejos con los pecadores y los trabajadores del mal, que dicen palabras de paz a sus vecinos, pero el mal está en sus corazones.
३उन दुष्टों और अनर्थकारियों के संग मुझे न घसीट; जो अपने पड़ोसियों से बातें तो मेल की बोलते हैं, परन्तु हृदय में बुराई रखते हैं।
4 Dales la recompensa conforme a la perversidad de los sus actos y de sus maldades: dales castigo conforme a las obras de sus manos.
४उनके कामों के और उनकी करनी की बुराई के अनुसार उनसे बर्ताव कर, उनके हाथों के काम के अनुसार उन्हें बदला दे; उनके कामों का पलटा उन्हें दे।
5 Porque no tienen respeto por las obras del Señor, ni por las cosas que sus manos han hecho, serán destruidos y no los vuelva a levantar.
५क्योंकि वे यहोवा के कामों को और उसके हाथ के कामों को नहीं समझते, इसलिए वह उन्हें पछाड़ेगा और फिर न उठाएगा।
6 Que el Señor sea alabado, porque ha escuchado la voz de mi oración.
६यहोवा धन्य है; क्योंकि उसने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुना है।
7 El Señor es mi fortaleza y mi coraza, mi corazón tenía fe en él y él me ayudó; por esta causa, mi corazón está lleno de gozo, y lo alabaré en mi canción.
७यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है; उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है; इसलिए मेरा हृदय प्रफुल्लित है; और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूँगा।
8 El Señor es la fortaleza de su pueblo, y un fuerte lugar de salvación para su ungido.
८यहोवा अपने लोगों की सामर्थ्य है, वह अपने अभिषिक्त के लिये उद्धार का दृढ़ गढ़ है।
9 Sé un salvador para tu pueblo, y envía una bendición sobre tu herencia: sé su guía, y sustentalos para siempre.
९हे यहोवा अपनी प्रजा का उद्धार कर, और अपने निज भाग के लोगों को आशीष दे; और उनकी चरवाही कर और सदैव उन्हें सम्भाले रह।