< Salmos 132 >
1 Cántico gradual. ACUÉRDATE, oh Jehová, de David, [y] de toda su aflicción;
ऐ ख़ुदावन्द! दाऊद कि ख़ातिर उसकी सब मुसीबतों को याद कर;
2 Que juró él á Jehová, prometió al Fuerte de Jacob:
कि उसने किस तरह ख़ुदावन्द से क़सम खाई, और या'क़ूब के क़ादिर के सामने मन्नत मानी,
3 No entraré en la morada de mi casa, ni subiré sobre el lecho de mi estrado;
“यक़ीनन मैं न अपने घर में दाख़िल हूँगा, न अपने पलंग पर जाऊँगा;
4 No daré sueño á mis ojos, ni á mis párpados adormecimiento,
और न अपनी आँखों में नींद, न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा;
5 Hasta que halle lugar para Jehová, moradas para el Fuerte de Jacob.
जब तक ख़ुदावन्द के लिए कोई जगह, और या'क़ूब के क़ादिर के लिए घर न हो।”
6 He aquí, en Ephrata oímos de ella: hallámosla en los campos del bosque.
देखो, हम ने उसकी ख़बर इफ़्राता में सुनी; हमें यह जंगल के मैदान में मिली।
7 Entraremos en sus tiendas; encorvarnos hemos al estrado de sus pies.
हम उसके घरों में दाखि़ल होंगे, हम उसके पाँव की चौकी के सामने सिजदा करेंगे!
8 Levántate, oh Jehová, á tu reposo; tú y el arca de tu fortaleza.
उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो! तू और तेरी कु़दरत का संदूक़।
9 Tus sacerdotes se vistan de justicia, y regocíjense tus santos.
तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों, और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें।
10 Por amor de David tu siervo no vuelvas de tu ungido el rostro.
अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, अपने मम्सूह की दुआ ना — मन्जूर न कर।
11 En verdad juró Jehová á David, no se apartará de ellos: Del fruto de tu vientre pondré sobre tu trono.
ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है; वह उससे फिरने का नहीं: कि “मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।
12 Si tus hijos guardaren mi alianza, y mi testimonio que yo les enseñaré, sus hijos también se sentarán sobre tu trono para siempre.
अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर, जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें; तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।”
13 Porque Jehová ha elegido á Sión; deseóla por habitación para sí.
क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है, उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है:
14 Este es mi reposo para siempre: aquí habitaré, porque la he deseado.
“यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है; मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है।
15 A su mantenimiento daré bendición: sus pobres saciaré de pan.
मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा; मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा
16 Asimismo vestiré á sus sacerdotes de salud, y sus santos darán voces de júbilo.
इसके काहिनों को भी मैं नजात से मुलव्वस करूँगा और उसके पाक बुलन्द आवाज़ से ख़ुशी के नारे मारेंगे।
17 Allí haré reverdecer el cuerno de David: he prevenido lámpara á mi ungido.
वहीं मैं दाऊद के लिए एक सींग निकालूँगा मैंने अपने मम्सूह के लिए चराग़ तैयार किया है।
18 A sus enemigos vestiré de confusión: mas sobre él florecerá su corona.
मैं उसके दुश्मनों को शर्मिन्दगी का लिबास पहनाऊँगा, लेकिन उस पर उसी का ताज रोनक अफ़रोज़ होगा।”