< San Lucas 18 >
1 Y PROPÚSOLES también una parábola sobre que es necesario orar siempre, y no desmayar,
तब प्रभु येशु ने शिष्यों को यह समझाने के उद्देश्य से कि निराश हुए बिना निरंतर प्रार्थना करते रहना ही सही है, यह दृष्टांत प्रस्तुत किया.
2 Diciendo: Había un juez en una ciudad, el cual ni temía á Dios, ni respetaba á hombre.
“किसी नगर में एक न्यायाधीश था. वह न तो परमेश्वर से डरता था और न किसी को कुछ समझता था.
3 Había también en aquella ciudad una viuda, la cual venía á él diciendo: Hazme justicia de mi adversario.
उसी नगर में एक विधवा भी थी, जो बार-बार उस न्यायाधीश के पास ‘आकर विनती करती थी कि उसे न्याय दिलाया जाए.’
4 Pero él no quiso por algún tiempo; mas después de esto dijo dentro de sí: Aunque ni temo á Dios, ni tengo respeto á hombre,
“कुछ समय तक तो वह न्यायाधीश उसे टालता रहा किंतु फिर उसने मन में विचार किया, ‘यद्यपि मैं न तो परमेश्वर से डरता हूं और न लोगों से प्रभावित होता हूं
5 Todavía, porque esta viuda me es molesta, le haré justicia, porque al fin no venga y me muela.
फिर भी यह विधवा आ-आकर मेरी नाक में दम किए जा रही है. इसलिये उत्तम यही होगा कि मैं इसका न्याय कर ही दूं कि यह बार-बार आकर मेरी नाक में दम तो न करे.’”
6 Y dijo el Señor: Oid lo que dice el juez injusto.
प्रभु ने आगे कहा, “उस अधर्मी न्यायाधीश के शब्दों पर ध्यान दो कि उसने क्या कहा.
7 ¿Y Dios no hará justicia á sus escogidos, que claman á él día y noche, aunque sea longánime acerca de ellos?
तब क्या परमेश्वर अपने उन चुने हुओं का न्याय न करेंगे, जो दिन-रात उनके नाम की दोहाई दिया करते हैं? क्या वह उनके संबंध में देर करेंगे?
8 Os digo que los defenderá presto. Empero cuando el Hijo del hombre viniere, ¿hallará fe en la tierra?
सच मानो, परमेश्वर बिना देर किए उनके पक्ष में सक्रिय हो जाएंगे. फिर भी, क्या मनुष्य के पुत्र का पुनरागमन पर विश्वास बना रहेगा?”
9 Y dijo también á unos que confiaban de sí como justos, y menospreciaban á los otros, esta parábola:
तब प्रभु येशु ने उनके लिए, जो स्वयं को तो धर्मी मानते थे परंतु अन्यों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे, यह दृष्टांत प्रस्तुत किया.
10 Dos hombres subieron al templo á orar: el uno Fariseo, el otro publicano.
“प्रार्थना करने दो व्यक्ति मंदिर में गए, एक फ़रीसी था तथा दूसरा चुंगी लेनेवाला.
11 El Fariseo, en pie, oraba consigo de esta manera: Dios, te doy gracias, que no soy como los otros hombres, ladrones, injustos, adúlteros, ni aun como este publicano;
फ़रीसी की प्रार्थना इस प्रकार थी: ‘परमेश्वर! मैं आपका आभारी हूं कि मैं अन्य मनुष्यों जैसा नहीं हूं—छली, अन्यायी, व्यभिचारी और न इस चुंगी लेनेवाले के जैसा.
12 Ayuno dos veces á la semana, doy diezmos de todo lo que poseo.
मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूं और अपनी सारी आय का दसवां अंश दिया करता हूं.’
13 Mas el publicano estando lejos no quería ni aun alzar los ojos al cielo, sino que hería su pecho, diciendo: Dios, sé propicio á mí pecador.
“किंतु चुंगी लेनेवाला दूर ही खड़ा रहा. उसने दृष्टि तक उठाने का साहस न किया, अपने सीने पर शोक में प्रहार करते हुए उसने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर! कृपा कीजिए मुझ पापी पर!’
14 Os digo que éste descendió á su casa justificado antes que el otro; porque cualquiera que se ensalza, será humillado; y el que se humilla, será ensalzado.
“विश्वास करो वास्तव में यही चुंगी लेनेवाला (परमेश्वर से) धर्मी घोषित किया जाकर घर लौटा—न कि वह फ़रीसी. क्योंकि हर एक, जो स्वयं को बड़ा बनाता है, छोटा बना दिया जाएगा तथा जो व्यक्ति स्वयं नम्र हो जाता है, वह ऊंचा उठाया जाता है.”
15 Y traían á él los niños para que los tocase; lo cual viendo los discípulos les reñían.
लोग अपने बालकों को प्रभु येशु के पास ला रहे थे कि प्रभु येशु उन्हें स्पर्श मात्र कर दें. शिष्य यह देख उन्हें डांटने लगे.
16 Mas Jesús llamándolos, dijo: Dejad los niños venir á mí, y no los impidáis; porque de tales es el reino de Dios.
प्रभु येशु ने बालकों को अपने पास बुलाते हुए कहा, “नन्हे बालकों को मेरे पास आने दो. मत रोको उन्हें! क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है.
17 De cierto os digo, que cualquiera que no recibiere el reino de Dios como un niño, no entrará en él.
मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं; जो परमेश्वर के राज्य को एक नन्हे बालक के भाव में ग्रहण नहीं करता, वह उसमें कभी प्रवेश न कर पाएगा.”
18 Y preguntóle un príncipe, diciendo: Maestro bueno, ¿qué haré para poseer la vida eterna? (aiōnios )
एक प्रधान ने उनसे प्रश्न किया, “उत्तम गुरु! अनंत काल के जीवन को पाने के लिए मैं क्या करूं?” (aiōnios )
19 Y Jesús le dijo: ¿Por qué me llamas bueno? ninguno hay bueno sino sólo Dios.
“उत्तम मुझे क्यों कह रहे हो?” प्रभु येशु ने कहा, “परमेश्वर के अलावा उत्तम कोई भी नहीं है.
20 Los mandamientos sabes: No matarás: No adulterarás: No hurtarás: No dirás falso testimonio: Honra á tu padre y á tu madre.
आज्ञा तो तुम्हें मालूम ही हैं: व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने माता-पिता का सम्मान करना.”
21 Y él dijo: Todas estas cosas he guardado desde mi juventud.
“इन सबका पालन तो मैं बचपन से करता आ रहा हूं,” उसने उत्तर दिया.
22 Y Jesús, oído esto, le dijo: Aun te falta una cosa: vende todo lo que tienes, y da á los pobres, y tendrás tesoro en el cielo; y ven, sígueme.
यह सुन प्रभु येशु ने उससे कहा, “एक कमी फिर भी है तुममें. अपनी सारी संपत्ति बेचकर निर्धनों में बांट दो. धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्त होगा. तब आकर मेरे पीछे हो लो.”
23 Entonces él, oídas estas cosas, se puso muy triste, porque era muy rico.
यह सुन वह प्रधान बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनी था.
24 Y viendo Jesús que se había entristecido mucho, dijo: ¡Cuán dificultosamente entrarán en el reino de Dios los que tienen riquezas!
उसे देखकर प्रभु येशु ने कहा, “धनवानों का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कैसा कठिन है!
25 Porque más fácil cosa es entrar un camello por el ojo de una aguja, que un rico entrar en el reino de Dios.
एक धनी के परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने की तुलना में सुई के छेद में से ऊंट का पार हो जाना सरल है.”
26 Y los que lo oían, dijeron: ¿Y quién podrá ser salvo?
इस पर सुननेवाले पूछने लगे, “तब किसका उद्धार संभव है?”
27 Y él [les] dijo: Lo que es imposible para con los hombres, posible es para Dios.
प्रभु येशु ने उत्तर दिया, “जो मनुष्य के लिए असंभव है, वह परमेश्वर के लिए संभव है.”
28 Entonces Pedro dijo: He aquí, nosotros hemos dejado las posesiones nuestras, y te hemos seguido.
पेतरॉस ने प्रभु येशु से कहा, “हम तो अपना घरबार छोड़कर आपके पीछे चल रहे हैं.”
29 Y él les dijo: De cierto os digo, que nadie hay que haya dejado casa, padres, ó hermanos, ó mujer, ó hijos, por el reino de Dios,
प्रभु येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सच तो यह है कि ऐसा कोई भी नहीं, जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए अपनी घर-गृहस्थी, पत्नी, भाई, बहन, माता-पिता या संतान का त्याग किया हो
30 Que no haya de recibir mucho más en este tiempo, y en el siglo venidero la vida eterna. (aiōn , aiōnios )
और उसे इस समय में कई गुणा अधिक तथा आगामी युग में अनंत काल का जीवन प्राप्त न हो.” (aiōn , aiōnios )
31 Y Jesús, tomando á los doce, les dijo: He aquí subimos á Jerusalem, y serán cumplidas todas las cosas que fueron escritas por los profetas, del Hijo del hombre.
तब प्रभु येशु ने बारहों शिष्यों को अलग ले जाकर उन पर प्रकट किया, “हम येरूशलेम नगर जा रहे हैं. भविष्यद्वक्ताओं द्वारा मनुष्य के पुत्र के विषय में जो भी लिखा गया है, वह पूरा होने पर है,
32 Porque será entregado á las gentes, y será escarnecido, é injuriado, y escupido.
उसे अन्यजातियों को सौंप दिया जाएगा. उसका उपहास किया जाएगा, उसे अपमानित किया जाएगा, उस पर थूका जाएगा.
33 Y después que le hubieren azotado, le matarán: mas al tercer día resucitará.
उसे कोड़े लगाने के बाद वे उसे मार डालेंगे और वह तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित हो जाएगा.”
34 Pero ellos nada de estas cosas entendían, y esta palabra les era encubierta, y no entendían lo que se decía.
शिष्यों को कुछ भी समझ में न आया. उनसे इसका अर्थ छिपाकर रखा गया था. इस विषय में प्रभु येशु की कही बातें शिष्यों की समझ से परे थी.
35 Y aconteció que acercándose él á Jericó, un ciego estaba sentado junto al camino mendigando;
जब प्रभु येशु येरीख़ो नगर के पास पहुंचे, उन्हें एक अंधा मिला, जो मार्ग के किनारे बैठा हुआ भिक्षा मांग रहा था.
36 El cual como oyó la gente que pasaba, preguntó qué era aquello.
भीड़ का शोर सुनकर उसने जानना चाहा कि क्या हो रहा है.
37 Y dijéronle que pasaba Jesús Nazareno.
उन्होंने उसे बताया, “नाज़रेथ के येशु यहां से होकर जा निकल रहें हैं.”
38 Entonces dió voces, diciendo: Jesús, Hijo de David, ten misericordia de mí.
वह अंधा पुकार उठा, “येशु! दावीद की संतान! मुझ पर दया कीजिए!”
39 Y los que iban delante, le reñían que callase; mas él clamaba mucho más: Hijo de David, ten misericordia de mí.
उन्होंने, जो आगे-आगे चल रहे थे, उसे डांटा और उसे शांत रहने की आज्ञा दी. इस पर वह और भी ऊंचे शब्द में पुकारने लगा, “दावीद के पुत्र! मुझ पर कृपा कीजिए!”
40 Jesús entonces parándose, mandó traerle á sí: y como él llegó, le preguntó,
प्रभु येशु रुक गए और उन्हें आज्ञा दी कि वह व्यक्ति उनके पास लाया जाए. जब वह उनके पास लाया गया, प्रभु येशु ने उससे प्रश्न किया,
41 Diciendo: ¿Qué quieres que te haga? Y él dijo: Señor, que vea.
“क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूं?” “प्रभु मैं देखना चाहता हूं!” उसने उत्तर दिया.
42 Y Jesús le dijo: Ve, tu fe te ha hecho salvo.
प्रभु येशु ने कहा, “रोशनी प्राप्त करो. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है.”
43 Y luego vió, y le seguía, glorificando á Dios: y todo el pueblo como lo vió, dió á Dios alabanza.
तत्काल ही वह देखने लगा. परमेश्वर की वंदना करते हुए वह प्रभु येशु के पीछे चलने लगा. यह देख सारी भीड़ भी परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी.