< Job 24 >
1 PUESTO que no son ocultos los tiempos al Todopoderoso, ¿por qué los que le conocen no ven sus días?
“क़ादिर — ए — मुतलक़ ने वक़्त क्यूँ नहीं ठहराए, और जो उसे जानते हैं वह उसके दिनों को क्यूँ नहीं देखते?
2 Traspasan los términos, roban los ganados, y apaciéntanlos.
ऐसे लोग भी हैं जो ज़मीन की हदों को सरका देते हैं, वह रेवड़ों को ज़बरदस्ती ले जाते और उन्हें चराते हैं।
3 Llévanse el asno de los huérfanos; prenden el buey de la viuda.
वह यतीम के गधे को हाँक ले जाते हैं; वह बेवा के बैल को गिरा लेते हैं।
4 Hacen apartar del camino á los menesterosos: y todos los pobres de la tierra se esconden.
वह मोहताज को रास्ते से हटा देते हैं, ज़मीन के ग़रीब इकट्ठे छिपते हैं।
5 He aquí, como asnos monteses en el desierto, salen á su obra madrugando para robar; el desierto es mantenimiento de sus hijos.
देखो, वह वीरान के गधों की तरह अपने काम को जाते और मशक़्क़त उठाकर' ख़ुराक ढूँडते हैं। वीरान उनके बच्चों के लिए ख़ुराक बहम पहुँचाता है।
6 En el campo siegan su pasto, y los impíos vendimian la viña [ajena].
वह खेत में अपना चारा काटते हैं, और शरीरों के अंगूर की खू़शा चीनी करते हैं।
7 Al desnudo hacen dormir sin ropa, y que en el frío no tenga cobertura.
वह सारी रात बे कपड़े नंगे पड़े रहते हैं, और जाड़ों में उनके पास कोई ओढ़ना नहीं होता।
8 Con las avenidas de los montes se mojan, y abrazan las peñas sin tener abrigo.
वह पहाड़ों की बारिश से भीगे रहते हैं, और किसी आड़ के न होने से चट्टान से लिपट जाते हैं।
9 Quitan el pecho á los huérfanos, y de sobre el pobre toman la prenda.
ऐसे लोग भी हैं जो यतीम को छाती पर से हटा लेते हैं और ग़रीबों से गिरवी लेते हैं।
10 Al desnudo hacen andar sin vestido, y á los hambrientos quitan los hacecillos.
इसलिए वह बेकपड़े नंगे फिरते, और भूक के मारे पौले ढोते हैं।
11 De dentro de sus paredes exprimen el aceite, pisan los lagares, y mueren de sed.
वह इन लोगों के अहातों में तेल निकालते हैं। वह उनके कुण्डों में अंगूर रौदते और प्यासे रहते हैं।
12 De la ciudad gimen los hombres, y claman las almas de los heridos de muerte: mas Dios no puso estorbo.
आबाद शहर में से निकल कर लोग कराहते हैं, और ज़ख्मियों की जान फ़रियाद करती है। तोभी ख़ुदा इस हिमाक़त' का ख़्याल नहीं करता।
13 Ellos son los que, rebeldes á la luz, nunca conocieron sus caminos, ni estuvieron en sus veredas.
“यह उनमें से हैं जो नूर से बग़ावत करते हैं; वह उसकी राहों को नहीं जानते, न उसके रास्तों पर क़ाईम रहते हैं।
14 A la luz se levanta el matador, mata al pobre y al necesitado, y de noche es como ladrón.
खू़नी रोशनी होते ही उठता है। वह ग़रीबों और मोहताजों को मारडालता है, और रात को वह चोर की तरह है।
15 El ojo del adúltero está aguardando la noche, diciendo: No me verá nadie: y esconde su rostro.
ज़ानी की आँख भी शाम की मुन्तज़िर रहती है। वह कहता है किसी की नज़र मुझ पर न पड़ेगी, और वह अपना मुँह ढाँक लेता है।
16 En las tinieblas minan las casas, que de día para sí señalaron; no conocen la luz.
अंधेरे में वह घरों में सेंध मारते हैं, वह दिन के वक़्त छिपे रहते हैं; वह नूर को नहीं जानते।
17 Porque la mañana es á todos ellos como sombra de muerte; si son conocidos, terrores de sombra de muerte [los toman].
क्यूँकि सुबह उन लोगों के लिए ऐसी है जैसे मौत का साया इसलिए कि उन्हें मौत के साये की दहशत मा'लूम है।
18 Son instables más que la superficie de las aguas; su porción es maldita en la tierra; no andarán por el camino de las viñas.
वह पानी की सतह पर तेज़ रफ़्तार हैं, ज़मीन पर उनके ज़मीन पर उनका हिस्सा मलऊन हैं वह ताकिस्तानों की राह पर नहीं चलते।
19 La sequía y el calor arrebatan las aguas de la nieve; y el sepulcro á los pecadores. (Sheol )
ख़ुश्की और गर्मी बरफ़ानी पानी के नालों को सुखा देती हैं, ऐसा ही क़ब्र गुनहगारों के साथ करती है। (Sheol )
20 Olvidaráse de ellos el seno materno; de ellos sentirán los gusanos dulzura; nunca más habrá de ellos memoria, y como un árbol serán los impíos quebrantados.
रहम उसे भूल जाएगा, कीड़ा उसे मज़े सिखाएगा, उसकी याद फिर न होगी; नारास्ती दरख़्त की तरह तोड़ दी जाएगी।
21 A la mujer estéril que no paría, afligió; y á la viuda nunca hizo bien.
वह बाँझ को जो जनती नहीं, निगल जाता है, और बेवा के साथ भलाई नहीं करता।
22 Mas á los fuertes adelantó con su poder: levantóse, y no se da por segura la vida.
ख़ुदा अपनी कु़व्वत से बहादुरको भी खींच लेता है; वह उठता है, और किसी को ज़िन्दगी का यक़ीन नहीं रहता।
23 Le dieron á crédito, y se afirmó: sus ojos están sobre los caminos de ellos.
ख़ुदा उन्हें अम्न बख़्शता है और वह उसी में क़ाईम रहते हैं, और उसकी आँखें उनकी राहों पर लगी रहती हैं।
24 Fueron ensalzados por un poco, mas desaparecen, y son abatidos como cada cual: serán encerrados, y cortados como cabezas de espigas.
वह सरफ़राज़ तो होते हैं, लेकिन थोड़ी ही देर में जाते रहते हैं; बल्कि वह पस्त किए जाते हैं और सब दूसरों की तरह रास्ते से उठा लिए जाते, और अनाज की बालों की तरह काट डाले जाते हैं।
25 Y si no, ¿quién me desmentirá ahora, ó reducirá á nada mis palabras?
और अगर यह यूँ ही नहीं है, तो कौन मुझे झूटा साबित करेगा और मेरी तकरीर को नाचीज़ ठहराएगा?”