< Job 14 >

1 EL HOMBRE nacido de mujer, corto de días, y harto de sinsabores:
इंसान जो 'औरत से पैदा होता है थोड़े दिनों का है, और दुख से भरा है।
2 Que sale como una flor y es cortado; y huye como la sombra, y no permanece.
वह फूल की तरह निकलता, और काट डाला जाता है। वह साए की तरह उड़ जाता है और ठहरता नहीं।
3 ¿Y sobre éste abres tus ojos, y me traes á juicio contigo?
इसलिए क्या तू ऐसे पर अपनी आँखें खोलता है; और मुझे अपने साथ 'अदालत में घसीटता है?
4 ¿Quién hará limpio de inmundo? Nadie.
नापाक चीज़ में से पाक चीज़ कौन निकाल सकता है? कोई नहीं।
5 Ciertamente sus días están determinados, y el número de sus meses está cerca de ti: tú le pusiste términos, de los cuales no pasará.
उसके दिन तो ठहरे हुए हैं, और उसके महीनों की ता'दाद तेरे पास है; और तू ने उसकी हदों को मुक़र्रर कर दिया है, जिन्हें वह पार नहीं कर सकता।
6 Si tú lo dejares, él dejará [de ser]: entre tanto deseará, como el jornalero, su día.
इसलिए उसकी तरफ़ से नज़र हटा ले ताकि वह आराम करे, जब तक वह मज़दूर की तरह अपना दिन पूरा न कर ले।
7 Porque si el árbol fuere cortado, aun queda de él esperanza; retoñecerá aún, y sus renuevos no faltarán.
“क्यूँकि दरख़्त की तो उम्मीद रहती है कि अगर वह काटा जाए तो फिर फूट निकलेगा, और उसकी नर्म नर्म डालियाँ ख़त्म न होंगी।
8 Si se envejeciere en la tierra su raíz, y su tronco fuere muerto en el polvo,
अगरचे उसकी जड़ ज़मीन में पुरानी हो जाए, और उसका तना मिट्टी में गल जाए,
9 Al percibir el agua reverdecerá, y hará copa como planta.
तोभी पानी की बू पाते ही वह नए अखुवे लाएगा, और पौदे की तरह शाख़ें निकालेगा।
10 Mas el hombre morirá, y será cortado; y perecerá el hombre, ¿y dónde estará él?
लेकिन इंसान मर कर पड़ा रहता है, बल्कि इंसान जान छोड़ देता है, और फिर वह कहाँ रहा?
11 Las aguas de la mar se fueron, y agotóse el río, secóse.
जैसे झील का पानी ख़त्म हो जाता, और दरिया उतरता और सूख जाता है,
12 Así el hombre yace, y no se tornará á levantar: hasta que no haya cielo no despertarán, ni se levantarán de su sueño.
वैसे आदमी लेट जाता है और उठता नहीं; जब तक आसमान टल न जाए, वह बेदार न होंगे; और न अपनी नींद से जगाए जाएँगे।
13 ¡Oh quién me diera que me escondieses en el sepulcro, que me encubrieras hasta apaciguarse tu ira, que me pusieses plazo, y de mí te acordaras! (Sheol h7585)
काश कि तू मुझे पाताल में छिपा दे, और जब तक तेरा क़हर टल न जाए, मुझे पोशीदा रख्खे; और कोई मुक़र्ररा वक़्त मेरे लिए ठहराए और मुझे याद करे। (Sheol h7585)
14 Si el hombre muriere, ¿[volverá] á vivir? Todos los días de mi edad esperaré, hasta que venga mi mutación.
अगर आदमी मर जाए तो क्या वह फिर जिएगा? मैं अपनी जंग के सारे दिनों में मुन्तज़िर रहता जब तक मेरा छुटकारा न होता।
15 Aficionado á la obra de tus manos, llamarás, y yo te responderé.
तू मुझे पुकारता और मैं तुझे जवाब देता; तुझे अपने हाथों की सन'अत की तरफ़ ख्वाहिश होती।
16 Pues ahora me cuentas los pasos, y no das tregua á mi pecado.
लेकिन अब तो तू मेरे क़दम गिनता है; क्या तू मेरे गुनाह की ताक में लगा नहीं रहता?
17 Tienes sellada en saco mi prevaricación, y coacervas mi iniquidad.
मेरी ख़ता थैली में सरब — मुहर है, तू ने मेरे गुनाह को सी रख्खा है।
18 Y ciertamente el monte que cae se deshace, y las peñas son traspasadas de su lugar;
यक़ीनन पहाड़ गिरते गिरते ख़त्म हो जाता है, और चट्टान अपनी जगह से हटा दी जाती है।
19 Las piedras son desgastadas con el agua impetuosa, que se lleva el polvo de la tierra: de tal manera haces tú perecer la esperanza del hombre.
पानी पत्थरों को घिसा डालता है, उसकी बाढ़ ज़मीन की ख़ाक को बहाले जाती है; इसी तरह तू इंसान की उम्मीद को मिटा देता है।
20 Para siempre serás más fuerte que él, y él se va; demudarás su rostro, y enviaráslo.
तू हमेशा उस पर ग़ालिब होता है, इसलिए वह गुज़र जाता है। तू उसका चेहरा बदल डालता और उसे ख़ारिज कर देता है।
21 Sus hijos serán honrados, y él no lo sabrá; ó serán humillados, y no entenderá de ellos.
उसके बेटों की 'इज़्ज़त होती है, लेकिन उसे ख़बर नहीं। वह ज़लील होते हैं लेकिन वह उनका हाल‘नहीं जानता।
22 Mas su carne sobre él se dolerá, y entristecerse ha en él su alma.
बल्कि उसका गोश्त जो उसके ऊपर है, दुखी रहता; और उसकी जान उसके अन्दर ही अन्दर ग़म खाती रहती है।”

< Job 14 >