< Ezequiel 20 >
1 Y ACONTECIÓ en el año séptimo, en el [mes] quinto, á los diez del mes, [que] vinieron algunos de los ancianos de Israel á consultar á Jehová, y sentáronse delante de mí.
और सातवें बरस के पाँचवें महीने की दसवीं तारीख को यूँ हुआ कि इस्राईल के चन्द बुजु़र्ग ख़ुदावन्द से कुछ दरियाफ़्त करने को आए और मेरे सामने बैठ गए।
2 Y fué á mí palabra de Jehová, diciendo:
तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ
3 Hijo del hombre, habla á los ancianos de Israel, y diles: Así ha dicho el Señor Jehová: ¿A consultarme venís vosotros? Vivo yo, que yo no os responderé, dice el Señor Jehová.
कि 'ऐ आदमज़ाद! इस्राईल के बुजु़र्गों से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि क्या तुम मुझ से दरियाफ़्त करने आए हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि मुझे अपनी हयात की क़सम, तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।
4 ¿Quieres tú juzgarlos? ¿los quieres juzgar tú, hijo del hombre? Notifícales las abominaciones de sus padres;
क्या तू उन पर हुज्जत क़ाईम करेगा? ऐ आदमज़ाद, क्या तू उन पर हुज्जत क़ायम करेगा? उनके बाप दादा के नफ़रती कामों से उनको आगाह कर।
5 Y diles: Así ha dicho el Señor Jehová: El día que escogí á Israel, y que alcé mi mano por la simiente de la casa de Jacob, y que fuí conocido de ellos en la tierra de Egipto, cuando alcé mi mano á ellos, diciendo: Yo soy Jehová vuestro Dios;
उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि जिस दिन मैंने इस्राईल को बरगुज़ीदा किया, और बनी या'कू़ब से क़सम खाई और मुल्क — ए — मिस्र में अपने आपको उन पर ज़ाहिर किया; मैंने उनसे क़सम खा कर कहा, मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
6 Aquel día que les alcé mi mano, que los sacaría de la tierra de Egipto á la tierra que les había proveído, que fluye leche y miel, la cual es la más hermosa de todas las tierras;
जिस दिन मैंने उनसे क़सम खाई, ताकि उनको मुल्क — ए — मिस्र से उस मुल्क में लाऊँ जो मैंने उनके लिए देख कर ठहराया था, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।
7 Entonces les dije: Cada uno eche de sí las abominaciones de sus ojos, y no os contaminéis en los ídolos de Egipto. Yo soy Jehová vuestro Dios.
और मैंने उनसे कहा, तुम में से हर एक शख़्स उन नफ़रती चीज़ों को जो उसकी मन्जू़र — ए — नज़र हैं, दूर करे और तुम अपने आपको मिस्र के बुतों से नापाक न करो; मैं ख़ुदावन्द, तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
8 Mas ellos se rebelaron contra mí, y no quisieron obedecerme: no echó de sí cada uno las abominaciones de sus ojos, ni dejaron los ídolos de Egipto; y dije que derramaría mi ira sobre ellos, para cumplir mi enojo en ellos en medio de la tierra de Egipto.
लेकिन वह मुझ से बाग़ी हुए और न चाहा कि मेरी सुनें। उनमें से किसी ने उन नफ़रती चीज़ों को, जो उसकी मंजू़र — ए — नज़र थीं, छोड़ न दिया और मिस्र के बुतों को न छोड़ा। तब मैंने कहा, कि मैं अपना क़हर उन पर उण्डेल दूँगा, ताकि अपने ग़ज़ब को मुल्क — ए — मिस्र में उन पर पूरा करूँ।
9 Con todo, á causa de mi nombre, porque no se infamase en los ojos de las gentes en medio de las cuales estaban, en cuyos ojos fuí conocido de ellos, hice para sacarlos de tierra de Egipto.
लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया ताकि मेरा नाम उन क़ौमों की नज़र में, जिनके बीच वह रहते थे और जिनकी निगाहों में मैं उन पर ज़ाहिर हुआ जब उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, नापाक न किया जाए।
10 Saquélos pues de la tierra de Egipto, y trájelos al desierto;
इसलिए मैं उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकालकर वीरान में लाया।
11 Y díles mis ordenanzas, y declaréles mis derechos, los cuales el hombre que los hiciere, vivirá en ellos.
और मैंने अपने क़ानून उनको दिए और अपने हुक्मों को उनको सिखाए कि इंसान उन पर 'अमल करने से ज़िन्दा रहे।
12 Y díles también mis sábados, que fuesen por señal entre mí y ellos, para que supiesen que yo soy Jehová que los santifico.
और मैंने अपने सबत भी उनको दिए, ताकि वह मेरे और उनके बीच निशान हों; ताकि वह जानें कि मैं ख़ुदावन्द उनका पाक करने वाला हूँ।
13 Mas rebeláronse contra mí la casa de Israel en el desierto; no anduvieron en mis ordenanzas, y desecharon mis derechos, los cuales el hombre que los hiciere, vivirá en ellos; y mis sábados profanaron en gran manera; dije, por tanto, que había de derramar sobre ellos mi ira en el desierto para consumirlos.
लेकिन बनी — इस्राईल वीरान में मुझ से बाग़ी हुए, वह मेरे क़ानून पर न चले और मेरे हुक्मों को रद्द किया, जिन पर अगर इंसान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे, और उन्होंने मेरे सबतों को बहुत ही नापाक किया। तब मैंने कहा, कि मैं वीरान में अपना क़हर उन पर नाज़िल कर के उनको फ़ना करूँगा।
14 Pero en atención á mi nombre hice porque no se infamase á la vista de las gentes, delante de cuyos ojos los saqué.
लेकिन मैंने अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनकी आँखों के सामने मैं उनको निकाल लाया नापाक न किया जाए।
15 Y también yo les alcé mi mano en el desierto, que no los metería en la tierra que les dí, que fluye leche y miel, la cual es la más hermosa de todas las tierras;
और मैंने वीरान में भी उनसे क़सम खाई कि मैं उनको उस मुल्क में न लाऊँगा जो मैंने उनको दिया, जिसमें दूध और शहद बहता है और जो तमाम मुल्कों की शौकत है।
16 Porque desecharon mis derechos, y no anduvieron en mis ordenanzas, y mis sábados profanaron: porque tras sus ídolos iba su corazón.
क्यूँकि उन्होंने मेरे हुक्मों को रद्द किया और मेरे क़ानून पर न चले और मेरे सबतों को नापाक किया, इसलिए कि उनके दिल उनके बुतों के मुश्ताक़ थे।
17 Con todo los perdonó mi ojo, no matándolos, ni los consumí en el desierto;
तोभी मेरी आँखों ने उनकी रि'आयत की और मैंने उनको हलाक न किया, और मैंने वीरान में उनको बिल्कुल बर्बाद — ओ — हलाक न किया।
18 Antes dije en el desierto á sus hijos: No andéis en las ordenanzas de vuestros padres, ni guardéis sus leyes, ni os contaminéis en sus ídolos.
और मैंने वीरान में उनके फ़र्ज़न्दों से कहा, तुम अपने बाप — दादा के क़ानून — ओ — हुक्मों पर न चलो और उनके बुतों से अपने आपको नापाक न करो।
19 Yo soy Jehová vuestro Dios; andad en mis ordenanzas, y guardad mis derechos, y ponedlos por obra:
मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ, मेरे क़ानून पर चलो और मेरे हुक्मों को मानो और उन पर 'अमल करो।
20 Y santificad mis sábados, y sean por señal entre mí y vosotros, para que sepáis que yo soy Jehová vuestro Dios.
और मेरे सबतों को पाक जानो कि वह मेरे और तुम्हारे बीच निशान हों, ताकि तुम जानो कि मैं ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
21 Y los hijos se rebelaron contra mí: no anduvieron en mis ordenanzas, ni guardaron mis derechos para ponerlos por obra, los cuales el hombre que los cumpliere, vivirá en ellos; profanaron mis sábados. Dije entonces que derramaría mi ira sobre ellos, para cumplir mi enojo en ellos en el desierto.
लेकिन फ़र्ज़न्दों ने भी मुझ से बग़ावत की; वह मेरे क़ानून पर न चले, न मेरे हुक्मों को मानकर उन पर 'अमल किया जिन पर अगर इंसान 'अमल करे तो उनकी वजह से ज़िन्दा रहे; उन्होंने मेरे सबतों को नापाक किया। तब मैंने कहा कि मैं अपना क़हर उन पर नाज़िल करूँगा और वीरान में अपने ग़ज़ब को उन पर पूरा करूँगा।
22 Mas retraje mi mano, y en atención á mi nombre hice porque no se infamase á vista de las gentes, delante de cuyos ojos los saqué.
तोभी मैंने अपना हाथ खींचा और अपने नाम की ख़ातिर ऐसा किया, ताकि वह उन क़ौमों की नज़र में जिनके देखते हुए मैं उनको निकाल लाया, नापाक न किया जाए।
23 Y también les alcé yo mi mano en el desierto, que los esparciría entre las gentes, y que los aventaría por las tierras;
फिर मैंने वीराने में उनसे क़सम खाई कि मैं उनको क़ौमों में आवारा और मुल्कों में तितर बितर करूँगा।
24 Porque no pusieron por obra mis derechos, y desecharon mis ordenanzas, y profanaron mis sábados, y tras los ídolos de sus padres se les fueron sus ojos.
इसलिए कि वह मेरे हुक्मों पर 'अमल न करते थे, बल्कि मेरे क़ानून को रद्द करते थे और मेरे सबतों को नापाक करते थे, और उनकी आँखें उनके बाप — दादा के बुतों पर थीं।
25 Por eso yo también les dí ordenanzas no buenas, y derechos por los cuales no viviesen;
इसलिए मैंने उनको बुरे क़ानून और ऐसे अहकाम दिए जिनसे वह ज़िन्दा न रहें;
26 Y contaminélos en sus ofrendas cuando hacían pasar [por el fuego] todo primogénito, para que los desolase, á fin de que supiesen que yo soy Jehová.
और मैंने उनको उन्हीं के हदियों से या'नी सब पहलौठों को आग पर से गुज़ार कर, नापाक किया ताकि मैं उनको वीरान करूँ और वह जानें कि ख़ुदावन्द मैं हूँ।
27 Por tanto, hijo del hombre, habla á la casa de Israel, y diles: Así ha dicho el Señor Jehová: Aun en esto me afrentaron vuestros padres cuando cometieron contra mí rebelión.
इसलिए, ऐ आदमज़ाद, तू बनी इस्राईल से कलाम कर और उनसे कह, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: कि इसके 'अलावा तुम्हारे बाप — दादा ने ऐसे काम करके मेरी बुराई की और मेरा गुनाह करके ख़ताकार हुए;
28 Porque yo los metí en la tierra sobre la cual había alzado mi mano que les había de dar, y miraron á todo collado alto, y á todo árbol espeso, y allí sacrificaron sus víctimas, y allí presentaron la irritación de sus ofrendas, allí pusieron también el olor de su suavidad, y allí derramaron sus libaciones.
कि जब मैं उनको उस मुल्क में लाया जिसे उनको देने की मैंने क़सम खाई थी, तो उन्होंने जिस ऊँचे पहाड़ और जिस घने दरख़्त को देखा वहीं अपने ज़बीहों को ज़बह किया, और वहीं अपनी ग़ज़ब अंगेज़ नज़र को गुज़राना, और वहीं अपनी ख़ुशबू जलाई और अपने तपावन तपाए।
29 Y yo les dije: ¿Qué es ese alto adonde vosotros vais? Y fué llamado su nombre Bamah hasta el día de hoy.
तब मैंने उनसे कहा, यह कैसा ऊँचा मक़ाम है जहाँ तुम जाते हो? और उन्होंने उसका नाम बामाह रख्खा जो आज के दिन तक है।
30 Di, pues, á la casa de Israel: Así ha dicho el Señor Jehová: ¿No os contamináis vosotros á la manera de vuestros padres, y fornicáis tras sus abominaciones?
'इसलिए, तू बनी — इस्राईल से कह, कि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: क्या तुम भी अपने बाप — दादा की तरह नापाक होते हो? और उनके नफ़रत अंगेज़ कामों की तरह तुम भी बदकारी करते हो?
31 Porque ofreciendo vuestras ofrendas, haciendo pasar vuestros hijos por el fuego, os habéis contaminado con todos vuestros ídolos hasta hoy: ¿y he de responderos yo, casa de Israel? Vivo yo, dice el Señor Jehová, que no os responderé.
और जब अपने हदिए चढ़ाते और अपने बेटों को आग पर से गुज़ार कर अपने सब बुतों से अपने आपको आज के दिन तक नापाक करते हो, तो ऐ बनी — इस्राईल क्या तुम मुझ से कुछ दरियाफ़्त कर सकते हो? ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मुझ से कुछ दरियाफ़्त न कर सकोगे।
32 Y no ha de ser lo que habéis pensado. Porque vosotros decís: Seamos como las gentes, como las familias de las naciones, sirviendo á la madera y á la piedra.
और वह जो तुम्हारे जी में आता है हरगिज़ वजूद में न आएगा, क्यूँकि तुम सोचते हो, 'तुम भी दीगर क़ौम — ओ — क़बाइल — ए — 'आलम की तरह लकड़ी और पत्थर की इबादत करोगे। ख़ुदावन्द सज़ा देता और मु'आफ़ भी करता है
33 Vivo yo, dice el Señor Jehová, que con mano fuerte, y brazo extendido, y enojo derramado, tengo de reinar sobre vosotros:
ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, मैं ताक़तवर हाथ से और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' कर के तुम पर सल्तनत करूँगा।
34 Y os sacaré de entre los pueblos, y os juntaré de las tierras en que estáis esparcidos, con mano fuerte, y brazo extendido, y enojo derramado:
और मैं ताक़तवर हाथ और बुलन्द बाज़ू से क़हर नाज़िल' करके तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा, और उन मुल्कों में से जिनमें तुम तितर बितर हुए हो जमा' करूँगा।
35 Y os he de traer al desierto de pueblos, y allí litigaré con vosotros cara á cara.
और मैं तुम को क़ौमों के वीराने में लाऊँगा और वहाँ आमने सामने तुम से हुज्जत करूँगा।
36 Como litigué con vuestros padres en el desierto de la tierra de Egipto, así litigaré con vosotros, dice el Señor Jehová.
जिस तरह मैंने तुम्हारे बाप — दादा के साथ मिस्र के वीरान में हुज्जत की, ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, उसी तरह मैं तुम से भी हुज्जत करूँगा।
37 Y os haré pasar bajo de vara y os traeré en vínculo de concierto;
और मैं तुम को छड़ी के नीचे से गुज़ारूँगा और 'अहद के बन्द में लाऊँगा।
38 Y apartaré de entre vosotros los rebeldes, y los que se rebelaron contra mí: de la tierra de sus destierros los sacaré, y á la tierra de Israel no vendrán; y sabréis que yo soy Jehová.
और मैं तुम में से उन लोगों को जो सरकश और मुझ से बाग़ी हैं, जुदाकरूँगा; मैं उनको उस मुल्क से जिसमें उन्होंने क़याम किया, निकाल लाऊँगा पर वह इस्राईल के मुल्क में दाख़िल न होंगे और तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
39 Y vosotros, oh casa de Israel, así ha dicho el Señor Jehová: Andad cada uno tras sus ídolos, y servidles, pues que á mí no me obedecéis; y no profanéis más mi santo nombre con vuestras ofrendas, y con vuestros ídolos.
और “तुम से ऐ बनी — इस्राईल, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि जाओ और अपने अपने बुत की इबादत करो, और आगे को भी, अगर तुम मेरी न सुनोगे; लेकिन अपनी कु़र्बानियों और अपने बुतों से मेरे पाक नाम की बुराई न करोगे।
40 Empero en mi santo monte, en el alto monte de Israel, dice el Señor Jehová, allí me servirá toda la casa de Israel, toda ella en la tierra: allí los querré, y allí demandaré vuestras ofrendas, y las primicias de vuestros dones, con todas vuestras cosas consagradas.
'क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मेरे पाक पहाड़ या'नी इस्राईल के ऊँचे पहाड़ पर तमाम बनी — इस्राईल, सब के सब मुल्क में मेरी इबादत करेंगे; वहाँ मैं उनको कु़बूल करूँगा, और तुम्हारी कु़र्बानियाँ और तुम्हारी नज़रों के पहले फल और तुम्हारी सब मुक़द्दस चीज़ें तलब करूँगा।
41 En olor de suavidad os aceptaré, cuando os hubiere sacado de entre los pueblos, y os hubiere juntado de las tierras en que estáis esparcidos; y seré santificado en vosotros á los ojos de las gentes.
जब मैं तुम को क़ौमों में से निकाल लाऊँगा और उन मुल्कों में से जिनमें मैंने तुम को तितर बितर किया जमा' करूँगा, तब मैं तुम को ख़ुशबू के साथ कु़बूल करूँगा और क़ौमों के सामने तुम मेरी तक़्दीस करोगे।
42 Y sabréis que yo soy Jehová, cuando os hubiere metido en la tierra de Israel, en la tierra por la cual alcé mi mano que la daría á vuestros padres.
और जब मैं तुम को इस्राईल के मुल्क में या'नी उस सरज़मीन में जिसके लिए मैंने क़सम खाई कि तुम्हारे बाप — दादा को दूँ, ले आऊँगा तब तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।
43 Y allí os acordaréis de vuestros caminos, y de todos vuestros hechos en que os contaminasteis; y seréis confusos en vuestra misma presencia por todos vuestros pecados que cometisteis.
और वहाँ तुम अपने चाल चलन और अपने सब कामों को, जिनसे तुम नापाक हुए हो, याद करोगे और तुम अपनी तमाम बुराई की वजह से जो तुम ने की है, अपनी ही नज़र में घिनौने होगे।
44 Y sabréis que yo soy Jehová cuando hiciere con vosotros por amor de mi nombre, no según vuestros caminos malos, ni según vuestras perversas obras, oh casa de Israel, dice el Señor Jehová.
ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, ऐ बनी — इस्राईल जब मैं तुम्हारे बुरे चाल चलन और बद — आ'माली के मुताबिक़ नहीं बल्कि अपने नाम के ख़ातिर तुम से सुलूक करूँगा, तो तुम जानोगे कि मैं ख़ुदावन्द हूँ।”
45 Y fué á mí palabra de Jehová, diciendo:
और ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
46 Hijo del hombre, pon tu rostro hacia el mediodía, y derrama [tu palabra] hacia la parte austral, y profetiza contra el bosque del campo del mediodía.
कि 'ऐ आदमज़ाद, दक्खिन का रुख़ कर और दक्खिन ही से मुख़ातिब हो कर उसके मैदान के जंगल के ख़िलाफ़ नबुव्वत कर;
47 Y dirás al bosque del mediodía: Oye palabra de Jehová: Así ha dicho el Señor Jehová: He aquí que yo enciendo en ti fuego, el cual consumirá en ti todo árbol verde, y todo árbol seco: no se apagará la llama del fuego; y serán quemados en ella todos rostros, desde el mediodía hasta el norte.
और दक्खिन के जंगल से कह, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, मैं तुझ में आग भड़काऊँगा और वह हर एक हरा दरख़्त और हर एक सूखा दरख़्त जो तुझ में है, खा जाएगी; भड़कता हुआ शो'ला न बुझेगा और दक्खिन से उत्तर तक सबके मुँह उससे झुलस जाएँगे।
48 Y verá toda carne que yo Jehová lo encendí; no se apagará.
और हर इंसान देखेगा कि मैं ख़ुदावन्द ने उसे भड़काया है, वह न बुझेगी।
49 Y dije: ¡Ah, Señor Jehová! ellos dicen de mí: ¿No profiere éste parábolas?
तब मैंने कहा, 'हाय ख़ुदावन्द ख़ुदा! वह तो मेरे बारे में कहते हैं, क्या वह मिसालें नहीं कहता?