< Salmos 40 >
1 Esperando esperé a Jehová, e inclinóse a mí, y oyó mi clamor.
मैंने सब्र से ख़ुदावन्द पर उम्मीद रख्खी उसने मेरी तरफ़ माइल होकर मेरी फ़रियाद सुनी।
2 E hízome sacar de un aljibe sonoro, de un lodo cenagoso; y puso mis pies sobre peña, enderezó mis pasos.
उसने मुझे हौलनाक गढ़े और दलदल की कीचड़ में से निकाला, और उसने मेरे पाँव चट्टान पर रख्खे और मेरी चाल चलन क़ाईम की
3 Y puso en mi boca canción nueva, alabanza a nuestro Dios. Verán muchos, y temerán, y esperarán en Jehová.
उसने हमारे ख़ुदा की सिताइश का नया हम्द मेरे मुँह में डाला। बहुत से देखेंगे और डरेंगे, और ख़ुदावन्द पर भरोसा करेंगे।
4 Bienaventurado el varón, que puso a Jehová por su confianza; y no miró a los soberbios, ni a los que declinan a la mentira.
मुबारक है वह आदमी, जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करता है, और मग़रूर और झूठे दोस्तों की तरफ़ माइल नहीं होता।
5 Aumentado has tú, o! Jehová Dios mío, tus maravillas; y tus pensamientos para con nosotros, no te los podremos contar: si yo los anunciare, y hablare, no pueden ser enarrados.
ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा! जो 'अजीब काम तूने किए, और तेरे ख़याल जो हमारी तरफ़ हैं, वह बहुत से हैं। मैं उनको तेरे सामने तरतीब नहीं दे सकता; अगर मैं उनका ज़िक्र और बयान करना चाहूँ तो वह शुमार से बाहर हैं।
6 Sacrificio y presente no te agrada: orejas me has labrado: Holocausto y expiación no has demandado.
क़ुर्बानी और नज़्र को तू पसंद नहीं करता, तूने मेरे कान खोल दिए हैं। सोख़्तनी क़ुर्बानी तूने तलब नहीं की।
7 Entonces dije: He aquí, vengo; en el envoltorio del libro está escrito de mí.
तब मैंने कहा, “देख! मैं आया हूँ। किताब के तूमार में मेरे बारे लिखा है।
8 Para hacer tu voluntad, Dios mío, ha me agradado; y tu ley está dentro de mis entrañas.
ऐ मेरे ख़ुदा, मेरी ख़ुशी तेरी मर्ज़ी पूरी करने में है; बल्कि तेरी शरी'अत मेरे दिल में है।”
9 Yo anuncié justicia en grande congregación: he aquí, no detuve mis labios, Jehová tú lo sabes.
मैंने बड़े मजमे' में सदाक़त की बशारत दी है; देख! मैं अपना मुँह बंद नहीं करूँगा, ऐ ख़ुदावन्द! तू जानता है।
10 No encubrí tu justicia en medio de mi corazón: tu verdad y tu salud dije: no negué tu misericordia y tu verdad en grande congregación.
मैंने तेरी सदाक़त अपने दिल में छिपा नहीं रखी; मैंने तेरी वफ़ादारी और नजात का इज़हार किया है; मैंने तेरी शफ़क़त और सच्चाई बड़े मजमा' से नहीं छिपाई।
11 Tú, Jehová, no detengas de mí tus misericordias: tu misericordia y tu verdad me guarden siempre.
ऐ ख़ुदावन्द! तू मुझ पर रहम करने में दरेग़ न कर; तेरी शफ़क़त और सच्चाई बराबर मेरी हिफ़ाज़त करें!
12 Porque me han cercado males hasta no haber cuento: me han comprendido mis maldades, y no puedo ver: hánse aumentado más que los cabellos de mi cabeza, y mi corazón me falta.
क्यूँकि बेशुमार बुराइयों ने मुझे घेर लिया है; मेरी बदी ने मुझे आ पकड़ा है, ऐसा कि मैं आँख नहीं उठा सकता; वह मेरे सिर के बालों से भी ज़्यादा हैं: इसलिए मेरा जी छूट गया।
13 Quieras, Jehová, librarme: Jehová apresúrate para ayudarme.
ऐ ख़ुदावन्द! मेहरबानी करके मुझे छुड़ा। ऐ ख़ुदावन्द! मेरी मदद के लिए जल्दी कर।
14 Sean avergonzados y confusos a una los que buscan mi vida para cortarla: vuelvan atrás y avergüéncense los que quieren mi mal.
जो मेरी जान को हलाक करने के दर पै हैं, वह सब शर्मिन्दा और ख़जिल हों; जो मेरे नुक्सान से ख़ुश हैं, वह पस्पा और रुस्वा हो।
15 Sean asolados en pago de su afrenta, los que me dicen: Hala, hala.
जो मुझ पर अहा हा हा करते हैं, वह अपनी रुस्वाई की वजह से तबाह हो जाएँ।
16 Regocíjense, y alégrense en ti todos los que te buscan; y digan siempre: Sea ensalzado Jehová, los que aman tu salud.
तेरे सब तालिब तुझ में ख़ुश — ओ — खुर्रम हों; तेरी नजात के आशिक हमेशा कहा करें “ख़ुदावन्द की तम्जीद हो!”
17 Y yo afligido y necesitado; y Jehová pensará de mí: mi ayudador y mi libertador eres tú; Dios mío, no te tardes.
लेकिन मैं ग़रीब और मोहताज हूँ, ख़ुदावन्द मेरी फ़िक्र करता है। मेरा मददगार और छुड़ाने वाला तू ही है; ऐ मेरे ख़ुदा! देर न कर।