< Job 31 >
1 “Hice un pacto con mis ojos; ¿cómo debería entonces mirar con lujuria a una mujer joven?
१“मैंने अपनी आँखों के विषय वाचा बाँधी है, फिर मैं किसी कुँवारी पर क्यों आँखें लगाऊँ?
2 Porque lo que es la porción de Dios en lo alto, y la herencia del Todopoderoso en las alturas?
२क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग से कौन सा अंश और सर्वशक्तिमान ऊपर से कौन सी सम्पत्ति बाँटता है?
3 ¿No es una calamidad para los injustos, y el desastre a los obreros de la iniquidad?
३क्या वह कुटिल मनुष्यों के लिये विपत्ति और अनर्थ काम करनेवालों के लिये सत्यानाश का कारण नहीं है?
4 No ve mis caminos, y contar todos mis pasos?
४क्या वह मेरी गति नहीं देखता और क्या वह मेरे पग-पग नहीं गिनता?
5 “Si he andado con falsedad, y mi pie se ha apresurado a engañar
५यदि मैं व्यर्थ चाल चलता हूँ, या कपट करने के लिये मेरे पैर दौड़े हों;
6 (que me pesen en una balanza uniforme, para que Dios conozca mi integridad);
६(तो मैं धर्म के तराजू में तौला जाऊँ, ताकि परमेश्वर मेरी खराई को जान ले)।
7 si mi paso se ha desviado del camino, si mi corazón caminara tras mis ojos, si alguna mancha se ha pegado a mis manos,
७यदि मेरे पग मार्ग से बहक गए हों, और मेरा मन मेरी आँखों की देखी चाल चला हो, या मेरे हाथों में कुछ कलंक लगा हो;
8 entonces déjame sembrar, y que otro coma. Sí, que el producto de mi campo sea desarraigado.
८तो मैं बीज बोऊँ, परन्तु दूसरा खाए; वरन् मेरे खेत की उपज उखाड़ डाली जाए।
9 “Si mi corazón ha sido seducido por una mujer, y he esperado en la puerta de mi vecino,
९“यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है, और मैं अपने पड़ोसी के द्वार पर घात में बैठा हूँ;
10 que muela para otro mi mujer, y otros se encorven sobre ella.
१०तो मेरी स्त्री दूसरे के लिये पीसे, और पराए पुरुष उसको भ्रष्ट करें।
11 Porque eso sería un crimen atroz. Sí, sería una iniquidad ser castigado por los jueces,
११क्योंकि वह तो महापाप होता; और न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता;
12 porque es un fuego que consume hasta la destrucción, y que me arrancaría de raíz todo mi aumento.
१२क्योंकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है, और वह मेरी सारी उपज को जड़ से नाश कर देती है।
13 “Si he despreciado la causa de mi siervo o de mi sirvienta, cuando contendían conmigo,
१३“जब मेरे दास व दासी ने मुझसे झगड़ा किया, तब यदि मैंने उनका हक़ मार दिया हो;
14 ¿Qué haré entonces cuando Dios se levante? Cuando me visite, ¿qué le responderé?
१४तो जब परमेश्वर उठ खड़ा होगा, तब मैं क्या करूँगा? और जब वह आएगा तब मैं क्या उत्तर दूँगा?
15 ¿Acaso no lo hizo el que me hizo en el vientre? ¿No se nos formó en el vientre materno?
१५क्या वह उसका बनानेवाला नहीं जिसने मुझे गर्भ में बनाया? क्या एक ही ने हम दोनों की सूरत गर्भ में न रची थी?
16 “Si he retenido a los pobres de su deseo, o han hecho fallar los ojos de la viuda,
१६“यदि मैंने कंगालों की इच्छा पूरी न की हो, या मेरे कारण विधवा की आँखें कभी निराश हुई हों,
17 o haber comido mi bocado solo, y el huérfano no ha comido de ella
१७या मैंने अपना टुकड़ा अकेला खाया हो, और उसमें से अनाथ न खाने पाए हों,
18 (no, desde mi juventud creció conmigo como con un padre, La he guiado desde el vientre de mi madre);
१८(परन्तु वह मेरे लड़कपन ही से मेरे साथ इस प्रकार पला जिस प्रकार पिता के साथ, और मैं जन्म ही से विधवा को पालता आया हूँ);
19 si he visto a alguno perecer por falta de ropa, o que los necesitados no tenían cobertura;
१९यदि मैंने किसी को वस्त्रहीन मरते हुए देखा, या किसी दरिद्र को जिसके पास ओढ़ने को न था
20 si su corazón no me ha bendecido, si no se ha calentado con el vellón de mi oveja;
२०और उसको अपनी भेड़ों की ऊन के कपड़े न दिए हों, और उसने गर्म होकर मुझे आशीर्वाद न दिया हो;
21 si he levantado mi mano contra los huérfanos, porque vi mi ayuda en la puerta;
२१या यदि मैंने फाटक में अपने सहायक देखकर अनाथों के मारने को अपना हाथ उठाया हो,
22 entonces dejé caer mi hombro desde el omóplato, y que mi brazo se rompa desde el hueso.
२२तो मेरी बाँह कंधे से उखड़कर गिर पड़े, और मेरी भुजा की हड्डी टूट जाए।
23 Porque la calamidad de Dios es un terror para mí. Por su majestad, no puedo hacer nada.
२३क्योंकि परमेश्वर के प्रताप के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि उसकी ओर की विपत्ति के कारण मैं भयभीत होकर थरथराता था।
24 “Si he hecho del oro mi esperanza, y han dicho al oro fino: “Tú eres mi confianza”.
२४“यदि मैंने सोने का भरोसा किया होता, या कुन्दन को अपना आसरा कहा होता,
25 Si me he alegrado porque mi riqueza era grande, y porque mi mano se había vuelto mucho;
२५या अपने बहुत से धन या अपनी बड़ी कमाई के कारण आनन्द किया होता,
26 si he visto el sol cuando brillaba, o la luna moviéndose con esplendor,
२६या सूर्य को चमकते या चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर
27 y mi corazón ha sido seducido en secreto, y mi mano lanzó un beso de mi boca;
२७मैं मन ही मन मोहित हो गया होता, और अपने मुँह से अपना हाथ चूम लिया होता;
28 esto también sería una iniquidad que sería castigada por los jueces, porque habría negado al Dios que está arriba.
२८तो यह भी न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा करके मैंने सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर का इन्कार किया होता।
29 “Si me he alegrado de la destrucción del que me odiaba, o me levanté cuando el mal lo encontró
२९“यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता, या जब उस पर विपत्ति पड़ी तब उस पर हँसा होता;
30 (Ciertamente no he permitido que mi boca peque pidiendo su vida con una maldición);
३०(परन्तु मैंने न तो उसको श्राप देते हुए, और न उसके प्राणदण्ड की प्रार्थना करते हुए अपने मुँह से पाप किया है);
31 si los hombres de mi tienda no han dicho, ¿Quién puede encontrar a alguien que no se haya saciado con su carne?
३१यदि मेरे डेरे के रहनेवालों ने यह न कहा होता, ‘ऐसा कोई कहाँ मिलेगा, जो इसके यहाँ का माँस खाकर तृप्त न हुआ हो?’
32 (el extranjero no ha acampado en la calle, pero he abierto mis puertas al viajero);
३२(परदेशी को सड़क पर टिकना न पड़ता था; मैं बटोही के लिये अपना द्वार खुला रखता था);
33 si como Adán he cubierto mis transgresiones, ocultando mi iniquidad en mi corazón,
३३यदि मैंने आदम के समान अपना अपराध छिपाकर अपने अधर्म को ढाँप लिया हो,
34 porque temía a la gran multitud, y el desprecio de las familias me aterrorizó, así que guardé silencio, y no salí de la puerta...
३४इस कारण कि मैं बड़ी भीड़ से भय खाता था, या कुलीनों से तुच्छ किए जाने से डर गया यहाँ तक कि मैं द्वार से बाहर न निकला-
35 ¡ojalá tuviera uno que me escuchara! ¡He aquí mi firma! ¡Que el Todopoderoso me responda! ¡Que el acusador escriba mi acusación!
३५भला होता कि मेरा कोई सुननेवाला होता! सर्वशक्तिमान परमेश्वर अभी मेरा न्याय चुकाए! देखो, मेरा दस्तखत यही है। भला होता कि जो शिकायतनामा मेरे मुद्दई ने लिखा है वह मेरे पास होता!
36 Seguramente lo llevaría al hombro, y lo ataría a mí como una corona.
३६निश्चय मैं उसको अपने कंधे पर उठाए फिरता; और सुन्दर पगड़ी जानकर अपने सिर में बाँधे रहता।
37 Yo le declararía el número de mis pasos. Me acercaría a él como un príncipe.
३७मैं उसको अपने पग-पग का हिसाब देता; मैं उसके निकट प्रधान के समान निडर जाता।
38 Si mi tierra grita contra mí, y sus surcos lloran juntos;
३८“यदि मेरी भूमि मेरे विरुद्ध दुहाई देती हो, और उसकी रेघारियाँ मिलकर रोती हों;
39 si he comido sus frutos sin dinero, o han hecho que sus propietarios pierdan la vida,
३९यदि मैंने अपनी भूमि की उपज बिना मजदूरी दिए खाई, या उसके मालिक का प्राण लिया हो;
40 deja que los cardoscrezcan en lugar del trigo, y stinkweed en lugar de cebada”. Las palabras de Job han terminado.
४०तो गेहूँ के बदले झड़बेरी, और जौ के बदले जंगली घास उगें!” अय्यूब के वचन पूरे हुए हैं।