< Salmos 132 >
1 Un cántico de los peregrinos que van a Jerusalén. Señor, acuérdate de David, y todo por lo que él pasó.
ऐ ख़ुदावन्द! दाऊद कि ख़ातिर उसकी सब मुसीबतों को याद कर;
2 Él hizo una promesa al Señor, un pacto al Dios de Jacob:
कि उसने किस तरह ख़ुदावन्द से क़सम खाई, और या'क़ूब के क़ादिर के सामने मन्नत मानी,
3 “No iré a casa, no iré a la cama,
“यक़ीनन मैं न अपने घर में दाख़िल हूँगा, न अपने पलंग पर जाऊँगा;
4 no me iré a dormir, ni tomaré una siesta,
और न अपनी आँखों में नींद, न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा;
5 hasta que haya encontrado un lugar donde el Señor pueda vivir, un hogar para el Dios de Jacob”.
जब तक ख़ुदावन्द के लिए कोई जगह, और या'क़ूब के क़ादिर के लिए घर न हो।”
6 En Efrata, oímos hablar del arca del pacto, y la encontramos en los campos de Yagar.
देखो, हम ने उसकी ख़बर इफ़्राता में सुनी; हमें यह जंगल के मैदान में मिली।
7 Vayamos al lugar donde mora el Señor y postrémonos ante sus pies en adoración.
हम उसके घरों में दाखि़ल होंगे, हम उसके पाँव की चौकी के सामने सिजदा करेंगे!
8 Ven, Señor, y entra a tu casa, tú y tu arca poderosa.
उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो! तू और तेरी कु़दरत का संदूक़।
9 Que tus sacerdotes se revistan de bondad; que los que te son leales griten de alegría.
तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों, और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें।
10 Por el bien David, tu siervo, no le des a la espalda a tu ungido.
अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, अपने मम्सूह की दुआ ना — मन्जूर न कर।
11 El Señor le hizo una promesa solemne a David, una que él una rompería, “pondré a uno de tus descendientes en tu trono.
ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है; वह उससे फिरने का नहीं: कि “मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।
12 Si tus hijos siguen mis leyes y los acuerdos que les enseñe, también sus descendientes se sentarán en el trono para siempre”.
अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर, जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें; तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।”
13 Porque el Señor ha escogido a Sión, y quiso hacer su trono allí, diciendo:
क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है, उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है:
14 “Esta siempre será mi casa; aquí es donde he de morar.
“यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है; मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है।
15 Proveeré a las personas de la ciudad todo lo que necesiten; alimentaré al pobre.
मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा; मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा
16 Revestiré a sus sacerdotes con salvación; y los que le son leales gritarán de alegría.
इसके काहिनों को भी मैं नजात से मुलव्वस करूँगा और उसके पाक बुलन्द आवाज़ से ख़ुशी के नारे मारेंगे।
17 Haré el linaje de David aún más poderoso. He preparado una lámpara para mi ungido.
वहीं मैं दाऊद के लिए एक सींग निकालूँगा मैंने अपने मम्सूह के लिए चराग़ तैयार किया है।
18 Humillaré a sus enemigos, pero las coronas que él use brillarán fuertemente”.
मैं उसके दुश्मनों को शर्मिन्दगी का लिबास पहनाऊँगा, लेकिन उस पर उसी का ताज रोनक अफ़रोज़ होगा।”