< Job 4 >

1 Entonces Elifaz, el temanita, le respondió a Job
तब तेमानी इलिफ़ज़ कहने लगा,
2 “¿Podría decir una palabra? No quiero molestarte, pero ¿quién podría callar y no responder?
अगर कोई तुझ से बात चीत करने की कोशिश करे तो क्या तू अफ़सोस करेगा?, लेकिन बोले बगै़र कौन रह सकता है?
3 Ciertamente has alentado a mucha gente y has apoyado a los que son débiles.
देख, तू ने बहुतों को सिखाया, और कमज़ोर हाथों को मज़बूत किया।
4 Tus consejos han ayudado a los que tropiezan para no caer, y has fortalecido a los que tienen las rodillas débiles.
तेरी बातों ने गिरते हुए को संभाला, और तू ने लड़खड़ाते घुटनों को मज़बूत किया।
5 Pero ahora eres tú el que sufre y estás molesto.
लेकिन अब तो तुझी पर आ पड़ी और तू कमज़ोर हुआ जाता है। उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।
6 ¿No fue tu reverencia a Dios lo que te dio confianza y tu integridad lo que te dio esperanza?
क्या तेरे ख़ुदा का डर ही तेरा भरोसा नहीं? क्या तेरी राहों की रास्ती तेरी उम्मीद नहीं?
7 Piénsalo: ¿desde cuándo mueren los inocentes? ¿Desde cuándo se destruye a la gente buena?
क्या तुझे याद है कि कभी कोई मा'सूम भी हलाक हुआ है? या कहीं रास्तबाज़ भी काट डाले गए?
8 ¡Por lo que he visto, los mismos que plantan el mal y siembran problemas son quienes cosechan tales frutos!
मेरे देखने में तो जो गुनाह को जोतते और दुख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।
9 Un soplo de Dios los destruye; una ráfaga de su cólera los aniquila.
वह ख़ुदा के दम से हलाक होते, और उसके ग़ुस्से के झोंके से भस्म होते हैं।
10 Los leones pueden rugir y gruñir, pero sus dientes se rompen.
बबर की ग़रज़ और खू़ँख़्वार बबर की दहाड़, और बबर के बच्चों के दाँत, यह सब तोड़े जाते हैं।
11 Hasta un león muere por falta de alimento, y las crías de la leona se dispersan.
शिकार न पाने से बूढ़ा बबर हलाक होता, और शेरनी के बच्चे तितर — बितर हो जाते हैं।
12 “Una palabra se acercó sigilosamente a mí; un susurro llegó a mi oído.
एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, उसकी भनक मेरे कान में पड़ी।
13 Pensamientos inquietantes vinieron a mí en pesadillas, como cuando caes en un sueño profundo.
रात के ख़्वाबों के ख़्यालों के बीच, जब लोगों को गहरी नींद आती है।
14 Me aterroricé y temblé; todos mis huesos se estremecieron.
मुझे ख़ौफ़ और कपकपी ने ऐसा पकड़ा, कि मेरी सब हड्डियों को हिला डाला।
15 Entonces un soplo me rozó la cara y me puso la piel de gallina.
तब एक रूह मेरे सामने से गुज़री, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
16 Algo se detuvo, pero no pude ver su rostro. Mis ojos sólo podían distinguir una forma. Estaba totalmente silencioso, y entonces oí una voz:
वह चुपचाप खड़ी हो गई लेकिन मैं उसकी शक्ल पहचान न सका; एक सूरत मेरी आँखों के सामने थी और सन्नाटा था। फिर मैंने एक आवाज़ सुनी:
17 ‘¿Puede alguien ser justo ante Dios? ¿Puede alguien ser puro ante su Creador?
कि क्या फ़ानी इंसान ख़ुदा से ज़्यादा होगा? क्या आदमी अपने ख़ालिक़ से ज़्यादा पाक ठहरेगा?
18 Si ni siquiera se fía de sus siervos y dice que sus ángeles se equivocan,
देख, उसे अपने ख़ादिमों का 'ऐतबार नहीं, और वह अपने फ़रिश्तों पर हिमाक़त को 'आइद करता है।
19 ¿cuánto más los que viven en estas casas de barro, cuyos cimientos se basan en el polvo, que se deshacen como la ropa por causa de la polilla?
फिर भला उनकी क्या हक़ीक़त है, जो मिट्टी के मकानों में रहते हैं। जिनकी बुन्नियाद ख़ाक में है, और जो पतंगे से भी जल्दी पिस जाते हैं।
20 Vivos por la mañana, muertos al anochecer. Mueren sin que nadie lo note.
वह सुबह से शाम तक हलाक होते हैं, वह हमेशा के लिए फ़ना हो जाते हैं, और कोई उनका ख़याल भी नहीं करता।
21 Son como las cuerdas de una tienda de campaña, que se levantan y se derrumban con la muerte. Mueren sin sabiduría’”.
क्या उनके ख़ेमे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर तोड़ी नहीं जाती? वह मरते हैं और यह भी बगै़र दानाई के।

< Job 4 >