< Jonás 1 >

1 Llegó a Jonás, hijo de Amitai, la palabra de Yahvé en estos términos:
याहवेह का यह वचन अमितै के पुत्र योनाह के पास पहुंचा:
2 “Levántate y ve a Nínive, la ciudad grande, y predica contra ella, porque su maldad ha subido hasta mi presencia.”
“उठो और उस महानगर नीनवेह को जाओ और उसके निवासियों के विरुद्ध घोषणा करो, क्योंकि उनकी दुष्टता मेरी दृष्टि में आ गई है.”
3 Pero Jonás se levantó para huir de la presencia de Yahvé, tomando el camino de Tarsis. Descendió a Jope, donde encontró una nave que se dirigía a Tarsis; pagó el pasaje, y se embarcó en ella para ir con los demás a Tarsis, lejos de la presencia de Yahvé.
पर योनाह याहवेह की उपस्थिति से भागने के उद्देश्य से तरशीश जाने के लिए योप्पा जा पहुंचा. वहां उसे एक पानी जहाज़ मिला, जो तरशीश जाने पर था. किराया देने के बाद, वह पानी जहाज़ में चढ़ गया कि वह याहवेह की उपस्थिति से भागकर वह दूसरे यात्रियों के साथ तर्शीश पहुंच सके.
4 Pero Yahvé hizo soplar sobre el mar un viento recio, y se desencadenó en el mar una gran tempestad, de suerte que la nave estaba en peligro de ser deshecha.
तब याहवेह ने समुद्र पर एक प्रचंड आंधी चलाई, और सतह पर ऐसा भयंकर तूफान उठा कि पानी जहाज़ के टूटने की स्थिति उत्पन्‍न हो गई.
5 Por lo cual los marineros, llenos de miedo, clamaron cada cual a su dios; y echaron al mar el cargamento de la nave, a fin de aligerarla. Jonás, entretanto, había descendido al fondo de la nave. Allí se había acostado y dormía profundamente.
सब नाविक भयभीत हो गए और हर एक अपने-अपने देवता को पुकारने लगा. और वे पानी जहाज़ में लदी हुई सामग्री को समुद्र में फेंकने लगे ताकि जहाज़ का बोझ कम हो जाए. किंतु इस समय योनाह जहाज़ के निचले भाग में जाकर गहरी नींद में पड़ा हुआ था.
6 Se le acercó el capitán de la nave y le dijo: “¿Qué te pasa, dormilón? Levántate e invoca a tu Dios. Quizás Dios piense en nosotros para que no perezcamos.”
जहाज़ का कप्‍तान उसके पास गया और उसे जगाकर कहा, “तुम ऐसी स्थिति में कैसे सो सकते हो? उठो और अपने ईश्वर को पुकारो! संभव है कि तुम्हारा ईश्वर हम पर कृपा करे और हम नाश होने से बच जाएं.”
7 Entonces unos a otros se dijeron: “Vamos y echemos suertes, para que sepamos quién tiene la culpa de este mal que (ha venido) sobre nosotros.” Echaron suertes, y la suerte cayó sobre Jonás.
तब नाविकों ने एक दूसरे को कहा, “ऐसा करें, हम चिट्ठी डालकर यह पता करें कि किसके कारण हम पर यह विपत्ति आई है.” तब उन्होंने चिट्ठी डाली और चिट्ठी योनाह के नाम पर निकली.
8 Le dijeron: “Dinos, ¿por quién (ha venido) sobre nosotros este desastre? ¿Cuál es tu profesión? ¿De dónde vienes? ¿Cuál es tu tierra? ¿De qué pueblo eres?”
इस पर उन्होंने योनाह से पूछा, “हमें बता कि हम पर यह विपत्ति किसके कारण आई है? तू क्या काम करता है? तू कहां से आ रहा है? तू किस देश और किस जाति का है?”
9 Les respondió: “Soy hebreo, y temo a Yahvé, el Dios del cielo, el cual hizo el mar y la tierra.”
योनाह ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं एक इब्री हूं और मैं उस याहवेह, स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करता हूं, जिन्होंने समुद्र तथा भूमि की सृष्टि की है.”
10 Entonces aquellos hombres quedaron sumamente atemorizados; y le dijeron: “¿Qué es lo que has hecho?” Pues comprendían los hombres que huía de la presencia de Yahvé, ya que él mismo se lo había declarado.
यह सुनकर वे भयभीत हो गए और उन्होंने योनाह से कहा, “तुमने यह क्या कर डाला?” (क्योंकि योनाह उन्हें यह बता चुका था कि वह याहवेह की उपस्थिति से भाग रहा था.)
11 Y le dijeron: “¿Qué haremos contigo, para que se nos calme el mar?” Porque el mar iba embraveciéndose cada vez más.
इस पर उन्होंने योनाह से पूछा, “अब हम तुम्हारे साथ क्या करें कि हमारे लिये समुद्र शांत हो जाए?” क्योंकि समुद्र की लहरें और भी उग्र होती जा रही थी.
12 Él les contestó: “Tomadme y echadme al mar, y el mar se os calmará, pues bien sé que por mi culpa ha venido sobre vosotros esta grande tempestad.”
योनाह ने कहा, “मुझे उठाकर समुद्र में फेंक दें. तब समुद्र शांत हो जाएगा. क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम्हारे ऊपर यह बड़ा तूफान मेरे ही कारण आया है.”
13 Entretanto los hombres remaban, para ganar tierra, mas no podían; porque el mar se embravecía cada vez más contra ellos.
फिर भी, नाविकों ने जहाज़ को तट तक ले जाने की बहुत कोशिश की. पर वे सफल न हुए, क्योंकि समुद्र पहले से और उग्र होता जा रहा था.
14 Entonces invocaron a Yahvé, diciendo: “¡Oh Yahvé, no nos hagas perecer por la vida de este hombre y no nos imputes sangre inocente! Pues Tú, oh Yahvé, has hecho como te plugo.”
तब उन्होंने ऊंचे स्वर में याहवेह को यह कहकर पुकारा, “हे याहवेह, इस व्यक्ति का प्राण लेने के कारण, कृपया हमें नाश न होने दें. हमें एक निर्दोष को मारने का दोषी न ठहराएं, क्योंकि आपने वही किया है, जो आपको अच्छा लगा.”
15 Y tomaron a Jonás y le echaron al mar; y el mar cesó de embravecerse.
तब उन्होंने योनाह को उठाकर समुद्र में फेंक दिया और उग्र समुद्र शांत हो गया.
16 Se apoderó de aquellos hombres un gran temor de Yahvé, y ofrecieron sacrificios a Yahvé e hicieron votos.
इससे उन व्यक्तियों ने याहवेह का बहुत भय माना, और उन्होंने याहवेह के लिए एक बलि चढ़ाई और मन्‍नतें मानीं.
17 Entonces Yahvé hizo venir un pez grande para que se tragara a Jonás; y estuvo Jonás en las entrañas del pez tres días y tres noches.
याहवेह ने एक विशाल मछली ठहरायी थी, जिसने योनाह को निगल लिया, और योनाह उस मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात रहा.

< Jonás 1 >