< Deuteronomio 32 >

1 Escuchad, oh cielos, que yo hablaré; oiga la tierra las palabras de mi boca.
“हे आकाश कान लगा, कि मैं बोलूँ; और हे पृथ्वी, मेरे मुँह की बातें सुन।
2 Descienda, como lluvia, mi doctrina; destile mi palabra cual rocío, cual llovizna sobre la hierba, como gotas de agua sobre el césped.
मेरा उपदेश मेंह के समान बरसेगा और मेरी बातें ओस के समान टपकेंगी, जैसे कि हरी घास पर झींसी, और पौधों पर झड़ियाँ।
3 Pues celebraré el nombre de Yahvé; ¡dad gloria a nuestro Dios!
मैं तो यहोवा के नाम का प्रचार करूँगा। तुम अपने परमेश्वर की महिमा को मानो!
4 Él es la Roca, perfecta es su obra, justos son todos sus caminos; es un Dios fiel y sin iniquidad; justo y recto es Él.
“वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा परमेश्वर है, उसमें कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।
5 Prevaricaron contra Él los que por sus inmundicias ya no son hijos suyos, una generación depravada y perversa.
परन्तु इसी जाति के लोग टेढ़े और तिरछे हैं; ये बिगड़ गए, ये उसके पुत्र नहीं; यह उनका कलंक है।
6 ¡Así retribuís a Yahvé, oh pueblo necio e insensato! ¿No es Él tu padre que te adquirió tu creador, tu fundador?
हे मूर्ख और निर्बुद्धि लोगों, क्या तुम यहोवा को यह बदला देते हो? क्या वह तेरा पिता नहीं है, जिसने तुम को मोल लिया है? उसने तुझको बनाया और स्थिर भी किया है।
7 Acuérdate de los tiempos antiguos; considerad los años, generación tras generación; pregunta a tu padre, y él te lo anunciará; a tus ancianos y ellos te lo dirán.
प्राचीनकाल के दिनों को स्मरण करो, पीढ़ी-पीढ़ी के वर्षों को विचारों; अपने बाप से पूछो, और वह तुम को बताएगा; अपने वृद्ध लोगों से प्रश्न करो, और वे तुझ से कह देंगे।
8 Cuando el que mora en lo alto dio a cada nación su posesión, cuando dividió a los hijos de los hombres, fijó los límites de los pueblos según el número de los hijos de Israel.
जब परमप्रधान ने एक-एक जाति को निज-निज भाग बाँट दिया, और आदमियों को अलग-अलग बसाया, तब उसने देश-देश के लोगों की सीमाएँ इस्राएलियों की गिनती के अनुसार ठहराई।
9 Pues la porción de Yahvé es su pueblo, Jacob la herencia peculiar suya.
क्योंकि यहोवा का अंश उसकी प्रजा है; याकूब उसका नपा हुआ निज भाग है।
10 Lo halló en una tierra desierta, en la soledad, entre aullidos salvajes; y rodeándolo por todas partes lo cuidó, y lo guardó como a la niña de sus ojos.
१०“उसने उसको जंगल में, और सुनसान और गरजनेवालों से भरी हुई मरूभूमि में पाया; उसने उसके चारों ओर रहकर उसकी रक्षा की, और अपनी आँख की पुतली के समान उसकी सुधि रखी।
11 Como el águila vigila sobre su nido cuando revolotea sobre sus polluelos, extiende sus alas, los toma, y los lleva sobre sus alas;
११जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला-हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर-ऊपर मण्डराता है, वैसे ही उसने अपने पंख फैलाकर उसको अपने परों पर उठा लिया।
12 así Yahvé solo lo conducía no estaba con él dios ajeno.
१२यहोवा अकेला ही उसकी अगुआई करता रहा, और उसके संग कोई पराया देवता न था।
13 Le hizo escalar las alturas de la tierra, para que comiera los frutos del campo; le dio a sorber miel de la peña, y aceite de la durísima roca,
१३उसने उसको पृथ्वी के ऊँचे-ऊँचे स्थानों पर सवार कराया, और उसको खेतों की उपज खिलाई; उसने उसे चट्टान में से मधु और चकमक की चट्टान में से तेल चुसाया।
14 manteca de vacas y leche de ovejas, con pingües corderos, carneros de Basan y machos cabríos, con lo más escogido del trigo; y bebiste la sangre espumante de la uva.
१४गायों का दही, और भेड़-बकरियों का दूध, मेम्नों की चर्बी, बकरे और बाशान की जाति के मेढ़े, और गेहूँ का उत्तम से उत्तम आटा भी खाया; और तू दाखरस का मधु पिया करता था।
15 Mas engordó Yeschurún, y dio coces; — ¡engordaste, engrosaste, te hinchaste!— y abandonó a Dios su Hacedor, despreciando la Roca de su salvación.
१५“परन्तु यशूरून मोटा होकर लात मारने लगा; तू मोटा और हष्ट-पुष्ट हो गया, और चर्बी से छा गया है; तब उसने अपने सृजनहार परमेश्वर को तज दिया, और अपने उद्धार चट्टान को तुच्छ जाना।
16 Le provocaron con dioses extraños; con abominaciones incitaron su ira.
१६उन्होंने पराए देवताओं को मानकर उसमें जलन उपजाई; और घृणित कर्म करके उसको रिस दिलाई।
17 Ofrecían sacrificios a los demonios, que no son Dios, a dioses que no habían conocido, a nuevos y recién venidos, que no adoraron vuestros padres.
१७उन्होंने पिशाचों के लिये जो परमेश्वर न थे बलि चढ़ाए, और उनके लिये वे अनजाने देवता थे, वे तो नये-नये देवता थे जो थोड़े ही दिन से प्रगट हुए थे, और जिनसे उनके पुरखा कभी डरे नहीं।
18 Abandonaste la Roca que te engendró, diste al olvido a Dios que te dio el ser.
१८जिस चट्टान से तू उत्पन्न हुआ उसको तू भूल गया, और परमेश्वर जिससे तेरी उत्पत्ति हुई उसको भी तू भूल गया है।
19 Lo vio Yahvé y sintió asco, pues sus hijos y sus hijas le provocaron.
१९“इन बातों को देखकर यहोवा ने उन्हें तुच्छ जाना, क्योंकि उसके बेटे-बेटियों ने उसे रिस दिलाई थी।
20 Y dijo: “Les esconderé mi rostro, veré cuál será su fin; es una raza perversa, hijos desleales.
२०तब उसने कहा, ‘मैं उनसे अपना मुख छिपा लूँगा, और देखूँगा कि उनका अन्त कैसा होगा, क्योंकि इस जाति के लोग बहुत टेढ़े हैं और धोखा देनेवाले पुत्र हैं।
21 Han provocado mis celos con no-dioses, me han irritado con sus ídolos. Por eso provocaré sus celos con aquellos que no son pueblo; con una nación necia los irritaré.
२१उन्होंने ऐसी वस्तु को जो परमेश्वर नहीं है मानकर, मुझ में जलन उत्पन्न की; और अपनी व्यर्थ वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई। इसलिए मैं भी उनके द्वारा जो मेरी प्रजा नहीं हैं उनके मन में जलन उत्पन्न करूँगा; और एक मूर्ख जाति के द्वारा उन्हें रिस दिलाऊँगा।
22 Se ha encendido el fuego de mi ira, que arderá hasta lo más hondo del infierno, devorando la tierra con sus productos, y abrasando los cimientos de los montes. (Sheol h7585)
२२क्योंकि मेरे कोप की आग भड़क उठी है, जो पाताल की तह तक जलती जाएगी, और पृथ्वी अपनी उपज समेत भस्म हो जाएगी, और पहाड़ों की नींवों में भी आग लगा देगी। (Sheol h7585)
23 Males quiero amontonar sobre ellos, agotar contra ellos mis flechas.
२३“मैं उन पर विपत्ति पर विपत्ति भेजूँगा; और उन पर मैं अपने सब तीरों को छोड़ूँगा।
24 Los consumirá el hambre, y los devorará la ardiente fiebre, la amarga pestilencia. Enviaré contra ellos dientes de fieras y el veneno de las (serpientes) que se arrastran por el polvo.
२४वे भूख से दुबले हो जाएँगे, और अंगारों से और कठिन महारोगों से ग्रसित हो जाएँगे; और मैं उन पर पशुओं के दाँत लगवाऊँगा, और धूलि पर रेंगनेवाले सर्पों का विष छोड़ दूँगा।
25 Por fuera los destruirá la espada, y dentro de la casa el espanto, lo mismo al joven como a la doncella, al niño de pecho como al anciano.
२५बाहर वे तलवार से मरेंगे, और कोठरियों के भीतर भय से; क्या कुँवारे और कुँवारियाँ, क्या दूध पीता हुआ बच्चा क्या पक्के बाल वाले, सब इसी प्रकार बर्बाद होंगे।
26 Quisiera decir: “Los aniquilaré; haré cesar de entre los hombres su memoria”,
२६मैंने कहा था, कि मैं उनको दूर-दूर तक तितर-बितर करूँगा, और मनुष्यों में से उनका स्मरण तक मिटा डालूँगा;
27 si no temiera la arrogancia del enemigo; pues lo verían sus adversarios; y dirían: “Nuestra mano ha prevalecido, no es Yahvé quien ha hecho todo esto.”
२७परन्तु मुझे शत्रुओं की छेड़-छाड़ का डर था, ऐसा न हो कि द्रोही इसको उलटा समझकर यह कहने लगें, ‘हम अपने ही बाहुबल से प्रबल हुए, और यह सब यहोवा से नहीं हुआ।’
28 Pues es gente sin inteligencia, y no hay en ellos entendimiento.
२८“क्योंकि इस्राएल जाति युक्तिहीन है, और इनमें समझ है ही नहीं।
29 ¡Oh si fueran sabios para entenderlo y comprender lo que les espera!
२९भला होता कि ये बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते, और अपने अन्त का विचार करते!
30 ¿Cómo puede perseguir uno a mil, y dos espantar a diez mil, si no porque su Roca los ha vendido, y Yahvé los ha entregado?
३०यदि उनकी चट्टान ही उनको न बेच देती, और यहोवा उनको दूसरों के हाथ में न कर देता; तो यह कैसे हो सकता कि उनके हजार का पीछा एक मनुष्य करता, और उनके दस हजार को दो मनुष्य भगा देते?
31 Pues no es la Roca nuestra como la suya; los mismos enemigos lo testifican.
३१क्योंकि जैसी हमारी चट्टान है वैसी उनकी चट्टान नहीं है, चाहे हमारे शत्रु ही क्यों न न्यायी हों।
32 Porque su vid es de la vid de Sodoma y de las campiñas de Gomorra; sus uvas son uvas venenosas, y llenos de amargura sus racimos.
३२क्योंकि उनकी दाखलता सदोम की दाखलता से निकली, और गमोरा की दाख की बारियों में की है; उनकी दाख विषभरी और उनके गुच्छे कड़वे हैं;
33 Veneno de dragones es su vino, ponzoña terrible de áspides.
३३उनका दाखमधु साँपों का सा विष और काले नागों का सा हलाहल है।
34 ¿No tengo Yo esto guardado conmigo, sellado entre mis tesoros?
३४“क्या यह बात मेरे मन में संचित, और मेरे भण्डारों में मुहरबन्द नहीं है?
35 Mía es la venganza y la retribución; a su tiempo resbalará su pie; pues el día de su ruina está cerca, su destino viene volando.
३५पलटा लेना और बदला देना मेरा ही काम है, यह उनके पाँव फिसलने के समय प्रगट होगा; क्योंकि उनकी विपत्ति का दिन निकट है, और जो दुःख उन पर पड़नेवाले हैं वे शीघ्र आ रहे हैं।
36 Pues Yahvé juzga a su pueblo, y se compadecerá de sus siervos, cuando vea que ya no tienen fuerza y no les queda ni esclavo ni libre.
३६क्योंकि जब यहोवा देखेगा कि मेरी प्रजा की शक्ति जाती रही, और क्या बन्धुआ और क्या स्वाधीन, उनमें कोई बचा नहीं रहा, तब यहोवा अपने लोगों का न्याय करेगा, और अपने दासों के विषय में तरस खाएगा।
37 Entonces dirá: ¿Dónde están sus dioses, la Roca en que se refugiaron?
३७तब वह कहेगा, उनके देवता कहाँ हैं, अर्थात् वह चट्टान कहाँ जिस पर उनका भरोसा था,
38 (¿Dónde están esos dioses), que comían la grosura de sus sacrificios, y bebían el vino de sus libaciones? ¡Levántense y vengan a socorreros, y sean ellos vuestro amparo!
३८जो उनके बलिदानों की चर्बी खाते, और उनके तपावनों का दाखमधु पीते थे? वे ही उठकर तुम्हारी सहायता करें, और तुम्हारी आड़ हों!
39 Ved ahora que soy Yo, y solo Yo, y no hay dioses junto a Mí; Yo soy quien doy la muerte y doy la vida; Yo hiero y Yo sano, y no hay quien se libre de mi mano.
३९“इसलिए अब तुम देख लो कि मैं ही वह हूँ, और मेरे संग कोई देवता नहीं; मैं ही मार डालता, और मैं जिलाता भी हूँ; मैं ही घायल करता, और मैं ही चंगा भी करता हूँ; और मेरे हाथ से कोई नहीं छुड़ा सकता।
40 Porque alzando al cielo mi mano, digo: “Por mi vida eterna:
४०क्योंकि मैं अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर कहता हूँ, क्योंकि मैं अनन्तकाल के लिये जीवित हूँ,
41 Cuando afile el rayo de mi espada, y mi mano empuñe el juicio, tomaré venganza de mis enemigos, y daré el pago a los que me odian.
४१इसलिए यदि मैं बिजली की तलवार पर सान धरकर झलकाऊँ, और न्याय अपने हाथ में ले लूँ, तो अपने द्रोहियों से बदला लूँगा, और अपने बैरियों को बदला दूँगा।
42 Embriagaré de sangre mis saetas, y mi espada comerá carne, la sangre de muertos y de cautivos, y las cabezas de los caudillos enemigos.”
४२मैं अपने तीरों को लहू से मतवाला करूँगा, और मेरी तलवार माँस खाएगी—वह लहू, मारे हुओं और बन्दियों का, और वह माँस, शत्रुओं के लम्बे बाल वाले प्रधानों का होगा।
43 Ensalzad, oh naciones, a su pueblo, porque Él vengará la sangre de sus siervos; tomará venganza de sus enemigos, y espulgará a su tierra, a su pueblo.
४३“हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द मनाओ; क्योंकि वह अपने दासों के लहू का पलटा लेगा, और अपने द्रोहियों को बदला देगा, और अपने देश और अपनी प्रजा के पाप के लिये प्रायश्चित देगा।”
44 Fue, pues, Moisés, y dijo todas las palabras de este cántico a oídos del pueblo él con Josué, hijo de Nun.
४४इस गीत के सब वचन मूसा ने नून के पुत्र यहोशू समेत आकर लोगों को सुनाए।
45 Y cuando Moisés hubo acabado de comunicar todas estas palabras a todo Israel,
४५जब मूसा ये सब वचन सब इस्राएलियों से कह चुका,
46 les dijo: “Fijad vuestro corazón en todas estas palabras que hoy os he proclamado, Los prescribiréis a vuestros hijos, a fin de que cuiden de poner por obra todas las palabras de esta Ley.
४६तब उसने उनसे कहा, “जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूँ उन सब पर अपना-अपना मन लगाओ, और उनके अर्थात् इस व्यवस्था की सारी बातों के मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपने बच्चों को दो।
47 Porque no es cosa inútil para vosotros, es vuestra vida; por medio de esta palabra prolongaréis vuestros días sobre la tierra en cuya posesión vais a entrar, pasando el Jordán.”
४७क्योंकि यह तुम्हारे लिये व्यर्थ काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है, और ऐसा करने से उस देश में तुम्हारी आयु के दिन बहुत होंगे, जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।”
48 En aquel día habló Yahvé a Moisés, diciendo:
४८फिर उसी दिन यहोवा ने मूसा से कहा,
49 “Sube a esta montaña de Abarim, al monte Nebo, que está en el país de Moab, frente a Jericó; y mira la tierra de Canaán, que voy a dar en posesión a los hijos de Israel.
४९“उस अबारीम पहाड़ की नबो नामक चोटी पर, जो मोआब देश में यरीहो के सामने है, चढ़कर कनान देश, जिसे मैं इस्राएलियों की निज भूमि कर देता हूँ, उसको देख ले।
50 En el monte al que has de subir morirás y serás reunido con tu pueblo; así como murió Aarón, tu hermano, en el monte Hor, y fue reunido con su pueblo.
५०तब जैसा तेरा भाई हारून होर पहाड़ पर मरकर अपने लोगों में मिल गया, वैसा ही तू इस पहाड़ पर चढ़कर मर जाएगा, और अपने लोगों में मिल जाएगा।
51 Porque habéis pecado contra Mí en medio de los hijos de Israel, junto a las aguas de Meribá, en Cades, en el desierto de Sin y porque no me glorificasteis en medio de los hijos de Israel.
५१इसका कारण यह है, कि सीन जंगल में, कादेश के मरीबा नाम सोते पर, तुम दोनों ने मेरा अपराध किया, क्योंकि तुम ने इस्राएलियों के मध्य में मुझे पवित्र न ठहराया।
52 Verás delante de ti la tierra que Yo voy a dar a los hijos de Israel, pero no entrarás en ella.”
५२इसलिए वह देश जो मैं इस्राएलियों को देता हूँ, तू अपने सामने देख लेगा, परन्तु वहाँ जाने न पाएगा।”

< Deuteronomio 32 >