< Псалтирь 104 >
1 Благослови, душе моя, Господа. Господи Боже мой, возвеличился еси зело: во исповедание и в велелепоту облеклся еси:
ऐ मेरी जान, तू ख़ुदावन्द को मुबारक कह, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा तू बहुत बुज़ुर्ग है, तू हश्मत और जलाल से मुलब्बस है!
2 одеяйся светом яко ризою, простираяй небо яко кожу:
तू नूर को पोशाक की तरह पहनता है, और आसमान को सायबान की तरह तानता है।
3 покрываяй водами превыспренняя Своя, полагаяй облаки на восхождение Свое, ходяй на крилу ветреню:
तू अपने बालाख़ानों के शहतीर पानी पर टिकाता है; तू बादलों को अपना रथ बनाता है; तू हवा के बाज़ुओं पर सैर करता है;
4 творяй ангелы Своя духи, и слуги Своя пламень огненный:
तू अपने फ़रिश्तों को हवाएँ और अपने ख़ादिमों की आग के शो'ले बनाता है।
5 основаяй землю на тверди ея: не преклонится в век века.
तूने ज़मीन को उसकी बुनियाद पर क़ाईम किया, ताकि वह कभी जुम्बिश न खाए।
6 Бездна яко риза одеяние ея, на горах станут воды:
तूने उसको समन्दर से छिपाया जैसे लिबास से; पानी पहाड़ों से भी बुलन्द था।
7 от запрещения Твоего побегнут, от гласа грома Твоего убоятся.
वह तेरी झिड़की से भागा वह तेरी गरज की आवाज़ से जल्दी — जल्दी चला।
8 Восходят горы, и низходят поля, в место еже основал еси им.
उस जगह पहुँच गया जो तूने उसके लिए तैयार की थी; पहाड़ उभर आए, वादियाँ बैठ गई।
9 Предел положил еси, егоже не прейдут, ниже обратятся покрыти землю.
तूने हद बाँध दी ताकि वह आगे न बढ़ सके, और फिर लौटकर ज़मीन को न छिपाए।
10 Посылаяй источники в дебрех, посреде гор пройдут воды.
वह वादियों में चश्मे जारी करता है, जो पहाड़ों में बहते हैं।
11 Напаяют вся звери селныя, ждут онагри в жажду свою.
सब जंगली जानवर उनसे पीते हैं; गोरखर अपनी प्यास बुझाते हैं।
12 На тых птицы небесныя привитают: от среды камения дадят глас.
उनके आसपास हवा के परिन्दे बसेरा करते, और डालियों में चहचहाते हैं।
13 Напаяяй горы от превыспренних Своих: от плода дел Твоих насытится земля.
वह अपने बालाख़ानों से पहाड़ों को सेराब करता है। तेरी कारीगरी के फल से ज़मीन आसूदा है।
14 Прозябаяй траву скотом, и злак на службу человеком, извести хлеб от земли:
वह चौपायों के लिए घास उगाता है, और इंसान के काम के लिए सब्ज़ा, ताकि ज़मीन से ख़ुराक पैदा करे।
15 и вино веселит сердце человека, умастити лице елеем: и хлеб сердце человека укрепит.
और मय जो इंसान के दिल कोऔर रोग़न जो उसके चेहरे को चमकाता है, और रोटी जो आदमी के दिल को तवानाई बख्शती है।
16 Насытятся древа польская, кедри Ливанстии, ихже еси насадил:
ख़ुदावन्द के दरख़्त शादाब रहते हैं, या'नी लुबनान के देवदार जो उसने लगाए।
17 тамо птицы вогнездятся, еродиево жилище предводителствует ими.
जहाँ परिन्दे अपने घोंसले बनाते हैं; सनोबर के दरख़्तों में लकलक का बसेरा है।
18 Горы высокия еленем, камень прибежище заяцем.
ऊँचे पहाड़ जंगली बकरों के लिए हैं; चट्टानें साफ़ानों की पनाह की जगह हैं।
19 Сотворил есть луну во времена: солнце позна запад свой.
उसने चाँद को ज़मानों के फ़र्क़ के लिए मुक़र्रर किया; आफ़ताब अपने ग़ुरुब की जगह जानता है।
20 Положил еси тму, и бысть нощь, в нейже пройдут вси зверие дубравнии,
तू अँधेरा कर देता है तो रात हो जाती है, जिसमें सब जंगली जानवर निकल आते हैं।
21 скимни рыкающии восхитити и взыскати от Бога пищу себе.
जवान शेर अपने शिकार की तलाश में गरजते हैं, और ख़ुदा से अपनी खू़राक माँगते हैं।
22 Возсия солнце, и собрашася, и в ложах своих лягут.
आफ़ताब निकलते ही वह चल देते हैं, और जाकर अपनी माँदों में पड़े रहते हैं।
23 Изыдет человек на дело свое и на делание свое до вечера.
इंसान अपने काम के लिए, और शाम तक अपनी मेहनत करने के लिए निकलता है।
24 Яко возвеличишася дела Твоя, Господи: вся премудростию сотворил еси: исполнися земля твари Твоея.
ऐ ख़ुदावन्द, तेरी कारीगरी कैसी बेशुमार हैं। तूने यह सब कुछ हिकमत से बनाया; ज़मीन तेरी मख़लूक़ात से मा'मूर है।
25 Сие море великое и пространное: тамо гади, ихже несть числа, животная малая с великими:
देखो, यह बड़ा और चौड़ा समन्दर, जिसमें बेशुमार रेंगने वाले जानदार हैं; या'नी छोटे और बड़े जानवर।
26 тамо корабли преплавают, змий сей, егоже создал еси ругатися ему.
जहाज़ इसी में चलते हैं; इसी में लिवियातान है, जिसे तूने इसमें खेलने को पैदा किया।
27 Вся к Тебе чают, дати пищу им во благо время.
इन सबको तेरी ही उम्मीद है, ताकि तू उनको वक़्त पर ख़ूराक दे।
28 Давшу Тебе им, соберут: отверзшу Тебе руку, всяческая исполнятся благости:
जो कुछ तू देता है, यह ले लेते हैं; तू अपनी मुट्ठी खोलता है और यह अच्छी चीज़ों से सेर होते हैं
29 отвращшу же Тебе лице, возмятутся: отимеши дух их, и изчезнут и в персть свою возвратятся:
तू अपना चेहरा छिपा लेता है, और यह परेशान हो जाते हैं; तू इनका दम रोक लेता है, और यह मर जाते हैं, और फिर मिट्टी में मिल जाते हैं।
30 послеши духа Твоего, и созиждутся, и обновиши лице земли.
तू अपनी रूह भेजता है, और यह पैदा होते हैं; और तू इस ज़मीन को नया बना देता है।
31 Буди слава Господня во веки: возвеселится Господь о делех Своих:
ख़ुदावन्द का जलाल हमेशा तक रहे, ख़ुदावन्द अपनी कारीगरी से खु़श हो।
32 призираяй на землю и творяй ю трястися: прикасаяйся горам, и дымятся.
वह ज़मीन पर निगाह करता है, और वह काँप जाती है; वह पहाड़ों को छूता है, और उनसे से धुआँ निकलने लगता है।
33 Воспою Господеви в животе моем, пою Богу моему, дондеже есмь:
मैं उम्र भर ख़ुदावन्द की ता'रीफ़ गाऊँगा; जब तक मेरा वुजूद है मैं अपने ख़ुदा की मदहसराई करूँगा।
34 да усладится Ему беседа моя, аз же возвеселюся о Господе.
मेरा ध्यान उसे पसन्द आए, मैं ख़ुदावन्द में ख़ुश रहूँगा।
35 Да изчезнут грешницы от земли, и беззаконницы, якоже не быти им. Благослови, душе моя, Господа.
गुनहगार ज़मीन पर से फ़ना हो जाएँ, और शरीर बाक़ी न रहें! ऐ मेरी जान, ख़ुदावन्द को मुबारक कह! ख़ुदावन्द की हम्द करो!