< ۱ تِیمَتھِیَح 6 >
یاوَنْتو لوکا یُگَدھارِنو داساح سَنْتِ تے سْوَسْوَسْوامِنَں پُورْنَسَمادَرَیوگْیَں مَنْیَنْتاں نو چیدْ اِیشْوَرَسْیَ نامْنَ اُپَدیشَسْیَ چَ نِنْدا سَمْبھَوِشْیَتِ۔ | 1 |
यावन्तो लोका युगधारिणो दासाः सन्ति ते स्वस्वस्वामिनं पूर्णसमादरयोग्यं मन्यन्तां नो चेद् ईश्वरस्य नाम्न उपदेशस्य च निन्दा सम्भविष्यति।
ییشانْچَ سْوامِنو وِشْواسِنَح بھَوَنْتِ تَیسْتے بھْراترِتْواتْ ناوَجْنییاح کِنْتُ تے کَرْمَّپھَلَبھوگِنو وِشْواسِنَح پْرِیاشْچَ بھَوَنْتِیتِ ہیتوح سیوَنِییا ایوَ، تْوَمْ ایتانِ شِکْشَیَ سَمُپَدِشَ چَ۔ | 2 |
येषाञ्च स्वामिनो विश्वासिनः भवन्ति तैस्ते भ्रातृत्वात् नावज्ञेयाः किन्तु ते कर्म्मफलभोगिनो विश्वासिनः प्रियाश्च भवन्तीति हेतोः सेवनीया एव, त्वम् एतानि शिक्षय समुपदिश च।
یَح کَشْچِدْ اِتَرَشِکْشاں کَروتِ، اَسْماکَں پْرَبھو رْیِیشُکھْرِیشْٹَسْیَ ہِتَواکْیانِیشْوَرَبھَکْتے رْیوگْیاں شِکْشانْچَ نَ سْوِیکَروتِ | 3 |
यः कश्चिद् इतरशिक्षां करोति, अस्माकं प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्य हितवाक्यानीश्वरभक्ते र्योग्यां शिक्षाञ्च न स्वीकरोति
سَ دَرْپَدھْماتَح سَرْوَّتھا جْنانَہِینَشْچَ وِوادَے رْواگْیُدّھَیشْچَ روگَیُکْتَشْچَ بھَوَتِ۔ | 4 |
स दर्पध्मातः सर्व्वथा ज्ञानहीनश्च विवादै र्वाग्युद्धैश्च रोगयुक्तश्च भवति।
تادرِشادْ بھاوادْ اِیرْشْیاوِرودھاپَوادَدُشْٹاسُویا بھْرَشْٹَمَنَساں سَتْیَجْنانَہِینانامْ اِیشْوَرَبھَکْتِں لابھوپایَمْ اِوَ مَنْیَماناناں لوکاناں وِواداشْچَ جایَنْتے تادرِشیبھْیو لوکیبھْیَسْتْوَں پرِتھَکْ تِشْٹھَ۔ | 5 |
तादृशाद् भावाद् ईर्ष्याविरोधापवाददुष्टासूया भ्रष्टमनसां सत्यज्ञानहीनानाम् ईश्वरभक्तिं लाभोपायम् इव मन्यमानानां लोकानां विवादाश्च जायन्ते तादृशेभ्यो लोकेभ्यस्त्वं पृथक् तिष्ठ।
سَںیَتیچّھَیا یُکْتا ییشْوَرَبھَکْتِح سا مَہالابھوپایو بھَوَتِیتِ سَتْیَں۔ | 6 |
संयतेच्छया युक्ता येश्वरभक्तिः सा महालाभोपायो भवतीति सत्यं।
ایتَجَّگَتْپْرَویشَنَکالےسْمابھِح کِمَپِ نانایِ تَتَّیَجَنَکالےپِ کِمَپِ نیتُں نَ شَکْشْیَتَ اِتِ نِشْچِتَں۔ | 7 |
एतज्जगत्प्रवेशनकालेऽस्माभिः किमपि नानायि तत्तयजनकालेऽपि किमपि नेतुं न शक्ष्यत इति निश्चितं।
اَتَایوَ کھادْیانْیاچّھادَنانِ چَ پْراپْیاسْمابھِح سَنْتُشْٹَے رْبھَوِتَوْیَں۔ | 8 |
अतएव खाद्यान्याच्छादनानि च प्राप्यास्माभिः सन्तुष्टै र्भवितव्यं।
یے تُ دھَنِنو بھَوِتُں چیشْٹَنْتے تے پَرِیکْشایامْ اُنْماتھے پَتَنْتِ یے چابھِلاشا مانَوانْ وِناشے نَرَکے چَ مَجَّیَنْتِ تادرِشیشْوَجْناناہِتابھِلاشیشْوَپِ پَتَنْتِ۔ | 9 |
ये तु धनिनो भवितुं चेष्टन्ते ते परीक्षायाम् उन्माथे पतन्ति ये चाभिलाषा मानवान् विनाशे नरके च मज्जयन्ति तादृशेष्वज्ञानाहिताभिलाषेष्वपि पतन्ति।
یَتورْتھَسْپرِہا سَرْوّیشاں دُرِتاناں مُولَں بھَوَتِ تامَوَلَمْبْیَ کیچِدْ وِشْواسادْ اَبھْرَںشَنْتَ ناناکْلیشَیشْچَ سْوانْ اَوِدھْیَنْ۔ | 10 |
यतोऽर्थस्पृहा सर्व्वेषां दुरितानां मूलं भवति तामवलम्ब्य केचिद् विश्वासाद् अभ्रंशन्त नानाक्लेशैश्च स्वान् अविध्यन्।
ہے اِیشْوَرَسْیَ لوکَ تْوَمْ ایتیبھْیَح پَلایَّ دھَرْمَّ اِیشْوَرَبھَکْتِ رْوِشْواسَح پْریمَ سَہِشْنُتا کْشانْتِشْچَیتانْیاچَرَ۔ | 11 |
हे ईश्वरस्य लोक त्वम् एतेभ्यः पलाय्य धर्म्म ईश्वरभक्ति र्विश्वासः प्रेम सहिष्णुता क्षान्तिश्चैतान्याचर।
وِشْواسَرُوپَمْ اُتَّمَیُدّھَں کُرُ، اَنَنْتَجِیوَنَمْ آلَمْبَسْوَ یَتَسْتَدَرْتھَں تْوَمْ آہُوتو بھَوَح، بَہُساکْشِناں سَمَکْشَنْچوتَّماں پْرَتِجْناں سْوِیکرِتَوانْ۔ (aiōnios ) | 12 |
विश्वासरूपम् उत्तमयुद्धं कुरु, अनन्तजीवनम् आलम्बस्व यतस्तदर्थं त्वम् आहूतो ऽभवः, बहुसाक्षिणां समक्षञ्चोत्तमां प्रतिज्ञां स्वीकृतवान्। (aiōnios )
اَپَرَں سَرْوّیشاں جِیوَیِتُرِیشْوَرَسْیَ ساکْشادْ یَشْچَ کھْرِیشْٹو یِیشُح پَنْتِییَپِیلاتَسْیَ سَمَکْشَمْ اُتَّماں پْرَتِجْناں سْوِیکرِتَوانْ تَسْیَ ساکْشادْ اَہَں تْوامْ اِدَمْ آجْناپَیامِ۔ | 13 |
अपरं सर्व्वेषां जीवयितुरीश्वरस्य साक्षाद् यश्च ख्रीष्टो यीशुः पन्तीयपीलातस्य समक्षम् उत्तमां प्रतिज्ञां स्वीकृतवान् तस्य साक्षाद् अहं त्वाम् इदम् आज्ञापयामि।
اِیشْوَرینَ سْوَسَمَیے پْرَکاشِتَوْیَمْ اَسْماکَں پْرَبھو رْیِیشُکھْرِیشْٹَسْیاگَمَنَں یاوَتْ تْوَیا نِشْکَلَنْکَتْوینَ نِرْدّوشَتْوینَ چَ وِدھِی رَکْشْیَتاں۔ | 14 |
ईश्वरेण स्वसमये प्रकाशितव्यम् अस्माकं प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्यागमनं यावत् त्वया निष्कलङ्कत्वेन निर्द्दोषत्वेन च विधी रक्ष्यतां।
سَ اِیشْوَرَح سَچِّدانَنْدَح، اَدْوِتِییَسَمْراٹْ، راجْناں راجا، پْرَبھُوناں پْرَبھُح، | 15 |
स ईश्वरः सच्चिदानन्दः, अद्वितीयसम्राट्, राज्ञां राजा, प्रभूनां प्रभुः,
اَمَرَتایا اَدْوِتِییَ آکَرَح، اَگَمْیَتیجونِواسِی، مَرْتّیاناں کیناپِ نَ درِشْٹَح کیناپِ نَ درِشْیَشْچَ۔ تَسْیَ گَورَوَپَراکْرَمَو سَداتَنَو بھُویاسْتاں۔ آمینْ۔ (aiōnios ) | 16 |
अमरताया अद्वितीय आकरः, अगम्यतेजोनिवासी, मर्त्त्यानां केनापि न दृष्टः केनापि न दृश्यश्च। तस्य गौरवपराक्रमौ सदातनौ भूयास्तां। आमेन्। (aiōnios )
اِہَلوکے یے دھَنِنَسْتے چِتَّسَمُنَّتِں چَپَلے دھَنے وِشْواسَنْچَ نَ کُرْوَّتاں کِنْتُ بھوگارْتھَمْ اَسْمَبھْیَں پْرَچُرَتْوینَ سَرْوَّداتا (aiōn ) | 17 |
इहलोके ये धनिनस्ते चित्तसमुन्नतिं चपले धने विश्वासञ्च न कुर्व्वतां किन्तु भोगार्थम् अस्मभ्यं प्रचुरत्वेन सर्व्वदाता (aiōn )
یومَرَ اِیشْوَرَسْتَسْمِنْ وِشْوَسَنْتُ سَداچارَں کُرْوَّنْتُ سَتْکَرْمَّدھَنینَ دھَنِنو سُکَلا داتارَشْچَ بھَوَنْتُ، | 18 |
योऽमर ईश्वरस्तस्मिन् विश्वसन्तु सदाचारं कुर्व्वन्तु सत्कर्म्मधनेन धनिनो सुकला दातारश्च भवन्तु,
یَتھا چَ سَتْیَں جِیوَنَں پاپْنُیُسْتَتھا پارَتْرِکامْ اُتَّمَسَمْپَدَں سَنْچِنْوَنْتْویتِ تْوَیادِشْیَنْتاں۔ | 19 |
यथा च सत्यं जीवनं पाप्नुयुस्तथा पारत्रिकाम् उत्तमसम्पदं सञ्चिन्वन्त्वेति त्वयादिश्यन्तां।
ہے تِیمَتھِیَ، تْوَمْ اُپَنِدھِں گوپَیَ کالْپَنِکَوِدْیایا اَپَوِتْرَں پْرَلاپَں وِرودھوکْتِنْچَ تْیَجَ چَ، | 20 |
हे तीमथिय, त्वम् उपनिधिं गोपय काल्पनिकविद्याया अपवित्रं प्रलापं विरोधोक्तिञ्च त्यज च,
یَتَح کَتِپَیا لوکاسْتاں وِدْیامَوَلَمْبْیَ وِشْواسادْ بھْرَشْٹا اَبھَوَنَ۔ پْرَسادَسْتَوَ سَہایو بھُویاتْ۔ آمینْ۔ | 21 |
यतः कतिपया लोकास्तां विद्यामवलम्ब्य विश्वासाद् भ्रष्टा अभवन। प्रसादस्तव सहायो भूयात्। आमेन्।