< mathiḥ 26 >
1 yīśuretān prastāvān samāpya śiṣyānūce,
इस रहस्य के खुलने के बाद येशु ने शिष्यों को देखकर कहा,
2 yuṣmābhi rjñātaṁ dinadvayāt paraṁ nistāramaha upasthāsyati, tatra manujasutaḥ kruśena hantuṁ parakareṣu samarpiṣyate|
“यह तो तुम्हें मालूम ही है कि दो दिन बाद फ़सह उत्सव है. इस समय मनुष्य के पुत्र को क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया जाएगा.”
3 tataḥ paraṁ pradhānayājakādhyāpakaprāñcaḥ kiyaphānāmno mahāyājakasyāṭṭālikāyāṁ militvā
दूसरी ओर प्रधान पुरोहित और वरिष्ठ नागरिक कायाफ़स नामक महापुरोहित के घर के आंगन में इकट्ठा हुए.
4 kenopāyena yīśuṁ dhṛtvā hantuṁ śaknuyuriti mantrayāñcakruḥ|
उन्होंने मिलकर येशु को छलपूर्वक पकड़कर उनकी हत्या कर देने का विचार किया.
5 kintu tairuktaṁ mahakāle na dharttavyaḥ, dhṛte prajānāṁ kalahena bhavituṁ śakyate|
वे यह विचार भी कर रहे थे: “यह फ़सह उत्सव के अवसर पर न किया जाए—कहीं इससे लोगों में बलवा न भड़क उठे.”
6 tato baithaniyāpure śimonākhyasya kuṣṭhino veśmani yīśau tiṣṭhati
जब येशु बैथनियाह गांव में शिमओन के घर पर थे—वही शिमओन, जिसे पहले कोढ़ रोग हुआ था,
7 kācana yoṣā śvetopalabhājanena mahārghyaṁ sugandhi tailamānīya bhojanāyopaviśatastasya śirobhyaṣecat|
एक स्त्री उनके पास संगमरमर के बर्तन में कीमती इत्र लेकर आई. उसे उसने भोजन के लिए बैठे येशु के सिर पर उंडेल दिया.
8 kintu tadālokya tacchiṣyaiḥ kupitairuktaṁ, kuta itthamapavyayate?
यह देख शिष्य गुस्सा हो कहने लगे, “यह फिज़ूलखर्ची किस लिए?
9 cedidaṁ vyakreṣyata, tarhi bhūrimūlyaṁ prāpya daridrebhyo vyatāriṣyata|
यह इत्र तो ऊंचे दाम पर बिक सकता था और प्राप्त धनराशि गरीबों में बांटी जा सकती थी.”
10 yīśunā tadavagatya te samuditāḥ, yoṣāmenāṁ kuto duḥkhinīṁ kurutha, sā māṁ prati sādhu karmmākārṣīt|
इस विषय को जानकर येशु ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, “क्यों सता रहे हो इस स्त्री को? इसने मेरे हित में एक सराहनीय काम किया है.
11 yuṣmākamaṁ samīpe daridrāḥ satatamevāsate, kintu yuṣmākamantikehaṁ nāse satataṁ|
निर्धन तुम्हारे साथ हमेशा रहेंगे किंतु मैं तुम्हारे साथ हमेशा नहीं रहूंगा.
12 sā mama kāyopari sugandhitailaṁ siktvā mama śmaśānadānakarmmākārṣīt|
मुझे मेरे अंतिम संस्कार के लिए तैयार करने के लिए इसने यह इत्र मेरे शरीर पर उंडेला है.
13 atohaṁ yuṣmān tathyaṁ vadāmi sarvvasmin jagati yatra yatraiṣa susamācāraḥ pracāriṣyate, tatra tatraitasyā nāryyāḥ smaraṇārtham karmmedaṁ pracāriṣyate|
सच तो यह है कि सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, इस स्त्री के इस कार्य का वर्णन भी इसकी याद में किया जाएगा.”
14 tato dvādaśaśiṣyāṇām īṣkariyotīyayihūdānāmaka ekaḥ śiṣyaḥ pradhānayājakānāmantikaṁ gatvā kathitavān,
तब कारियोतवासी यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान पुरोहितों के पास गया
15 yadi yuṣmākaṁ kareṣu yīśuṁ samarpayāmi, tarhi kiṁ dāsyatha? tadānīṁ te tasmai triṁśanmudrā dātuṁ sthirīkṛtavantaḥ|
और उनसे विचार-विमर्श करने लगा, “यदि मैं येशु को पकड़वा दूं तो आप मुझे क्या देंगे?” उन्होंने उसे गिन कर चांदी के तीस सिक्के दे दिए.
16 sa tadārabhya taṁ parakareṣu samarpayituṁ suyogaṁ ceṣṭitavān|
उस समय से वह येशु को पकड़वाने के लिए सही अवसर की ताक में रहने लगा.
17 anantaraṁ kiṇvaśūnyapūpaparvvaṇaḥ prathamehni śiṣyā yīśum upagatya papracchuḥ bhavatkṛte kutra vayaṁ nistāramahabhojyam āyojayiṣyāmaḥ? bhavataḥ kecchā?
अखमीरी रोटी के उत्सव के पहले दिन शिष्यों ने येशु के पास आकर पूछा, “हम आपके लिए फ़सह भोज की तैयारी कहां करें? आप क्या चाहते हैं?”
18 tadā sa gaditavān, madhyenagaramamukapuṁsaḥ samīpaṁ vrajitvā vadata, guru rgaditavān, matkālaḥ savidhaḥ, saha śiṣyaistvadālaye nistāramahabhojyaṁ bhokṣye|
येशु ने उन्हें निर्देश दिया, “नगर में एक व्यक्ति विशेष के पास जाना और उससे कहना, ‘गुरुवर ने कहा है, मेरा समय पास है. मुझे अपने शिष्यों के साथ आपके घर में फ़सह उत्सव मनाना है.’”
19 tadā śiṣyā yīśostādṛśanideśānurūpakarmma vidhāya tatra nistāramahabhojyamāsādayāmāsuḥ|
शिष्यों ने वैसा ही किया, जैसा येशु ने निर्देश दिया था और उन्होंने फ़सह भोज तैयार किया.
20 tataḥ sandhyāyāṁ satyāṁ dvādaśabhiḥ śiṣyaiḥ sākaṁ sa nyaviśat|
संध्या समय येशु अपने बारह शिष्यों के साथ बैठे हुए थे.
21 aparaṁ bhuñjāna uktavān yuṣmān tathyaṁ vadāmi, yuṣmākameko māṁ parakareṣu samarpayiṣyati|
जब वे भोजन कर रहे थे येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूं: तुम्हीं में एक है, जो मेरे साथ धोखा करेगा.”
22 tadā te'tīva duḥkhitā ekaikaśo vaktumārebhire, he prabho, sa kimahaṁ?
बहुत उदास मन से हर एक शिष्य येशु से पूछने लगा, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूं?”
23 tataḥ sa jagāda, mayā sākaṁ yo jano bhojanapātre karaṁ saṁkṣipati, sa eva māṁ parakareṣu samarpayiṣyati|
येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ कटोरे में अपना कौर डुबोया था, वही है, जो मेरे साथ धोखा करेगा.
24 manujasutamadhi yādṛśaṁ likhitamāste, tadanurūpā tadgati rbhaviṣyati; kintu yena puṁsā sa parakareṣu samarpayiṣyate, hā hā cet sa nājaniṣyata, tadā tasya kṣemamabhaviṣyat|
मनुष्य के पुत्र को तो जैसा कि उसके विषय में पवित्र शास्त्र में लिखा है, जाना ही है; किंतु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो मनुष्य के पुत्र के साथ धोखा करेगा. उस व्यक्ति के लिए अच्छा तो यही होता कि उसका जन्म ही न होता.”
25 tadā yihūdānāmā yo janastaṁ parakareṣu samarpayiṣyati, sa uktavān, he guro, sa kimahaṁ? tataḥ sa pratyuktavān, tvayā satyaṁ gaditam|
यहूदाह ने, जो येशु के साथ धोखा कर रहा था, उनसे प्रश्न किया, “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूं न?” येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह तुमने स्वयं ही कह दिया है.”
26 anantaraṁ teṣāmaśanakāle yīśuḥ pūpamādāyeśvarīyaguṇānanūdya bhaṁktvā śiṣyebhyaḥ pradāya jagāda, madvapuḥsvarūpamimaṁ gṛhītvā khādata|
जब वे भोजन के लिए बैठे, येशु ने रोटी ली, उसके लिए आशीष विनती की, उसे तोड़ी और शिष्यों को देते हुए कहा, “यह लो, खाओ; यह मेरा शरीर है.”
27 paścāt sa kaṁsaṁ gṛhlan īśvarīyaguṇānanūdya tebhyaḥ pradāya kathitavān, sarvvai ryuṣmābhiranena pātavyaṁ,
तब येशु ने प्याला लिया, उसके लिए धन्यवाद दिया तथा शिष्यों को देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो.
28 yasmādanekeṣāṁ pāpamarṣaṇāya pātitaṁ yanmannūtnaniyamarūpaśoṇitaṁ tadetat|
यह वाचा का मेरा लहू है जो अनेकों की पाप क्षमा के लिए उंडेला जा रहा है.
29 aparamahaṁ nūtnagostanīrasaṁ na pāsyāmi, tāvat gostanīphalarasaṁ punaḥ kadāpi na pāsyāmi|
मैं यह बताना चाहता हूं कि मैं दाख का रस उस दिन तक नहीं पिऊंगा जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ दाखरस दोबारा नहीं पिऊं.”
30 paścāt te gītamekaṁ saṁgīya jaitunākhyagiriṁ gatavantaḥ|
एक भक्ति गीत गाने के बाद वे ज़ैतून पर्वत पर चले गए.
31 tadānīṁ yīśustānavocat, asyāṁ rajanyāmahaṁ yuṣmākaṁ sarvveṣāṁ vighnarūpo bhaviṣyāmi, yato likhitamāste, "meṣāṇāṁ rakṣako yastaṁ prahariṣyāmyahaṁ tataḥ| meṣāṇāṁ nivaho nūnaṁ pravikīrṇo bhaviṣyati"||
येशु ने शिष्यों से कहा, “आज रात तुम सभी मेरा साथ छोड़कर चले जाओगे, जैसा कि इस संबंध में पवित्र शास्त्र का लेख है: “‘मैं चरवाहे का संहार करूंगा और, झुंड की सभी भेड़ें तितर-बितर हो जाएंगी.’
32 kintu śmaśānāt samutthāya yuṣmākamagre'haṁ gālīlaṁ gamiṣyāmi|
हां, पुनर्जीवित किए जाने के बाद मैं तुमसे पहले गलील प्रदेश पहुंच जाऊंगा.”
33 pitarastaṁ provāca, bhavāṁścet sarvveṣāṁ vighnarūpo bhavati, tathāpi mama na bhaviṣyati|
किंतु पेतरॉस ने येशु से कहा, “सभी शिष्य आपका साथ छोड़कर जाएं तो जाएं किंतु मैं आपका साथ कभी न छोड़ूंगा.”
34 tato yīśunā sa uktaḥ, tubhyamahaṁ tathyaṁ kathayāmi, yāminyāmasyāṁ caraṇāyudhasya ravāt pūrvvaṁ tvaṁ māṁ tri rnāṅgīkariṣyasi|
येशु ने उनसे कहा, “सच्चाई तो यह है कि आज ही रात में, इसके पहले कि मुर्ग बांग दे, तुम मुझे तीन बार नकार चुके होंगे.”
35 tataḥ pitara uditavān, yadyapi tvayā samaṁ marttavyaṁ, tathāpi kadāpi tvāṁ na nāṅgīkariṣyāmi; tathaiva sarvve śiṣyāścocuḥ|
पेतरॉस ने दोबारा उनसे कहा, “मुझे आपके साथ यदि मृत्यु को भी गले लगाना पड़े तो भी मैं आपको नहीं नकारूंगा.” अन्य सभी शिष्यों ने यही दोहराया.
36 anantaraṁ yīśuḥ śiṣyaiḥ sākaṁ getśimānīnāmakaṁ sthānaṁ prasthāya tebhyaḥ kathitavān, adaḥ sthānaṁ gatvā yāvadahaṁ prārthayiṣye tāvad yūyamatropaviśata|
तब येशु उनके साथ गेतसेमनी नामक स्थान पर पहुंचे. उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “तुम यहीं बैठो जब तक मैं वहां जाकर प्रार्थना करता हूं.”
37 paścāt sa pitaraṁ sivadiyasutau ca saṅginaḥ kṛtvā gatavān, śokākulo'tīva vyathitaśca babhūva|
फिर वह पेतरॉस और ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्रों को अपने साथ ले आगे चले गए. वहां येशु अत्यंत उदास और व्याकुल होने लगे.
38 tānavādīcca mṛtiyātaneva matprāṇānāṁ yātanā jāyate, yūyamatra mayā sārddhaṁ jāgṛta|
उन्होंने शिष्यों से कहा, “मेरे प्राण इतने अधिक उदास हैं, मानो मेरी मृत्यु हो रही हो. मेरे साथ तुम भी जागते रहो.”
39 tataḥ sa kiñciddūraṁ gatvādhomukhaḥ patan prārthayāñcakre, he matpitaryadi bhavituṁ śaknoti, tarhi kaṁso'yaṁ matto dūraṁ yātu; kintu madicchāvat na bhavatu, tvadicchāvad bhavatu|
तब येशु उनसे थोड़ी ही दूर जा मुख के बल गिरकर प्रार्थना करने लगे. उन्होंने परमेश्वर से निवेदन किया, “मेरे पिता, यदि संभव हो तो यह प्याला मुझसे टल जाए; फिर भी मेरी नहीं परंतु आपकी इच्छा के अनुरूप हो.”
40 tataḥ sa śiṣyānupetya tān nidrato nirīkṣya pitarāya kathayāmāsa, yūyaṁ mayā sākaṁ daṇḍamekamapi jāgarituṁ nāśankuta?
जब वह अपने शिष्यों के पास लौटे तो उन्हें सोया हुआ देख उन्होंने पेतरॉस से कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ एक घंटा भी सजग न रह सके!
41 parīkṣāyāṁ na patituṁ jāgṛta prārthayadhvañca; ātmā samudyatosti, kintu vapu rdurbbalaṁ|
सजग रहो, प्रार्थना करते रहो, ऐसा न हो कि तुम परीक्षा में पड़ जाओ. हां, निःसंदेह आत्मा तो तैयार है किंतु शरीर दुर्बल.”
42 sa dvitīyavāraṁ prārthayāñcakre, he mattāta, na pīte yadi kaṁsamidaṁ matto dūraṁ yātuṁ na śaknoti, tarhi tvadicchāvad bhavatu|
तब येशु ने दूसरी बार जाकर प्रार्थना की, “मेरे पिता, यदि यह प्याला मेरे पिए बिना मुझसे टल नहीं सकता तो आप ही की इच्छा पूरी हो.”
43 sa punaretya tān nidrato dadarśa, yatasteṣāṁ netrāṇi nidrayā pūrṇānyāsan|
वह दोबारा लौटकर आए तो देखा कि शिष्य सोए हुए हैं—क्योंकि उनकी पलकें बोझिल थी.
44 paścāt sa tān vihāya vrajitvā tṛtīyavāraṁ pūrvvavat kathayan prārthitavān|
एक बार फिर वह उन्हें छोड़ आगे चले गए और तीसरी बार प्रार्थना की और उन्होंने प्रार्थना में वही सब दोहराया.
45 tataḥ śiṣyānupāgatya gaditavān, sāmprataṁ śayānāḥ kiṁ viśrāmyatha? paśyata, samaya upāsthāt, manujasutaḥ pāpināṁ kareṣu samarpyate|
तब वह शिष्यों के पास लौटे और उनसे कहा, “क्या तुम अभी भी सो रहे और आराम कर रहे हो? बहुत हो गया! देखो! आ गया है वह क्षण! मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथों पकड़वाया जा रहा है.
46 uttiṣṭhata, vayaṁ yāmaḥ, yo māṁ parakareṣu masarpayiṣyati, paśyata, sa samīpamāyāti|
उठो! यहां से चलें. देखो, जो मुझे पकड़वाने पर है, वह आ गया!”
47 etatkathākathanakāle dvādaśaśiṣyāṇāmeko yihūdānāmako mukhyayājakalokaprācīnaiḥ prahitān asidhāriyaṣṭidhāriṇo manujān gṛhītvā tatsamīpamupatasthau|
येशु अपना कथन समाप्त भी न कर पाए थे कि यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, वहां आ पहुंचा. उसके साथ एक बड़ी भीड़ थी, जो तलवारें और लाठियां लिए हुए थी. ये सब प्रधान पुरोहितों और पुरनियों की ओर से भेजे गए थे.
48 asau parakareṣvarpayitā pūrvvaṁ tān itthaṁ saṅketayāmāsa, yamahaṁ cumbiṣye, so'sau manujaḥ, saeva yuṣmābhi rdhāryyatāṁ|
येशु के विश्वासघाती ने उन्हें यह संकेत दिया था: “मैं जिसे चूमूं, वही होगा वह. उसे ही पकड़ लेना.”
49 tadā sa sapadi yīśumupāgatya he guro, praṇamāmītyuktvā taṁ cucumbe|
वहां पहुंचते ही यहूदाह सीधे मसीह येशु के पास गया और उनसे कहा, “प्रणाम, रब्बी!” और उन्हें चूम लिया.
50 tadā yīśustamuvāca, he mitraṁ kimarthamāgatosi? tadā tairāgatya yīśurākramya daghre|
येशु ने यहूदाह से कहा, “मेरे मित्र, जिस काम के लिए आए हो, उसे पूरा कर लो.” उन्होंने आकर येशु को पकड़ लिया.
51 tato yīśoḥ saṅgināmekaḥ karaṁ prasāryya koṣādasiṁ bahiṣkṛtya mahāyājakasya dāsamekamāhatya tasya karṇaṁ ciccheda|
येशु के शिष्यों में से एक ने तलवार खींची और महापुरोहित के दास पर चला दी जिससे उसका कान कट गया.
52 tato yīśustaṁ jagāda, khaḍgaṁ svasthāne nidhehi yato ye ye janā asiṁ dhārayanti, taevāsinā vinaśyanti|
येशु ने उस शिष्य से कहा, “अपनी तलवार को म्यान में रखो! जो तलवार उठाते हैं, वे तलवार से ही नाश किए जाएंगे.
53 aparaṁ pitā yathā madantikaṁ svargīyadūtānāṁ dvādaśavāhinīto'dhikaṁ prahiṇuyāt mayā tamuddiśyedānīmeva tathā prārthayituṁ na śakyate, tvayā kimitthaṁ jñāyate?
क्या तुम यह तो सोच रहे कि मैं अपने पिता से विनती नहीं कर सकता और वह मेरे लिए स्वर्गदूतों के बारह या उससे अधिक लेगिओन (बड़ी सेना) नहीं भेज सकते?
54 tathā satītthaṁ ghaṭiṣyate dharmmapustakasya yadidaṁ vākyaṁ tat kathaṁ sidhyet?
फिर भला पवित्र शास्त्र के लेख कैसे पूरे होंगे, जिनमें लिखा है कि यह सब इसी प्रकार होना अवश्य है?”
55 tadānīṁ yīśu rjananivahaṁ jagāda, yūyaṁ khaḍgayaṣṭīn ādāya māṁ kiṁ cauraṁ dharttumāyātāḥ? ahaṁ pratyahaṁ yuṣmābhiḥ sākamupaviśya samupādiśaṁ, tadā māṁ nādharata;
तब येशु ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, “क्या तुम्हें मुझे पकड़ने के लिए तलवारें और लाठियां लेकर आने की ज़रूरत थी, जैसे किसी डाकू को पकड़ने के लिए होती है? मैं तो प्रतिदिन मंदिर में बैठकर शिक्षा दिया करता था! तब तुमने मुझे नहीं पकड़ा!
56 kintu bhaviṣyadvādināṁ vākyānāṁ saṁsiddhaye sarvvametadabhūt|tadā sarvve śiṣyāstaṁ vihāya palāyanta|
यह सब इसलिये हुआ है कि भविष्यद्वक्ताओं के लेख पूरे हों.” इस समय सभी शिष्य उन्हें छोड़कर भाग चुके थे.
57 anantaraṁ te manujā yīśuṁ dhṛtvā yatrādhyāpakaprāñcaḥ pariṣadaṁ kurvvanta upāviśan tatra kiyaphānāmakamahāyājakasyāntikaṁ ninyuḥ|
जिन्होंने येशु को पकड़ा था वे उन्हें महापुरोहित कायाफ़स के यहां ले गए, जहां शास्त्री तथा पुरनिये इकट्ठा थे.
58 kintu śeṣe kiṁ bhaviṣyatīti vettuṁ pitaro dūre tatpaścād vrajitvā mahāyājakasyāṭṭālikāṁ praviśya dāsaiḥ sahita upāviśat|
पेतरॉस कुछ दूरी पर येशु के पीछे-पीछे चलते हुए महापुरोहित के आंगन में आ पहुंचे और वहां वह प्रहरियों के साथ बैठ गए कि देखें आगे क्या-क्या होता है.
59 tadānīṁ pradhānayājakaprācīnamantriṇaḥ sarvve yīśuṁ hantuṁ mṛṣāsākṣyam alipsanta,
मसीह येशु को मृत्यु दंड देने की इच्छा लिए हुए प्रधान पुरोहित तथा पूरी महासभा मसीह येशु के विरुद्ध झूठे गवाह खोजने का यत्न कर रही थी,
60 kintu na lebhire| anekeṣu mṛṣāsākṣiṣvāgateṣvapi tanna prāpuḥ|
किंतु इसमें वे विफल ही रहे. यद्यपि अनेक झूठे गवाह सामने आए, किंतु मृत्यु दंड के लिए आवश्यक दो सहमत गवाह उन्हें फिर भी न मिले. आखिर दो गवाह सामने आए
61 śeṣe dvau mṛṣāsākṣiṇāvāgatya jagadatuḥ, pumānayamakathayat, ahamīśvaramandiraṁ bhaṁktvā dinatrayamadhye tannirmmātuṁ śaknomi|
जिन्होंने कहा, “यह व्यक्ति कहता था, ‘मैं परमेश्वर के मंदिर को नाश करके उसे तीन दिन में दोबारा खड़ा करने में समर्थ हूं.’”
62 tadā mahāyājaka utthāya yīśum avādīt| tvaṁ kimapi na prativadasi? tvāmadhi kimete sākṣyaṁ vadanti?
तब महापुरोहित खड़े हुए तथा मसीह येशु से पूछा, “क्या तुम्हें अपने बचाव में कुछ नहीं कहना है? ये सब तुम्हारे विरुद्ध क्या-क्या गवाही दे रहे हैं!”
63 kintu yīśu rmaunībhūya tasyau| tato mahāyājaka uktavān, tvām amareśvaranāmnā śapayāmi, tvamīśvarasya putro'bhiṣikto bhavasi naveti vada|
येशु मौन ही रहे. तब महापुरोहित ने येशु से कहा, “मैं तुम्हें जीवित परमेश्वर की शपथ देता हूं कि तुम हमें बताओ, क्या तुम ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हो?”
64 yīśuḥ pratyavadat, tvaṁ satyamuktavān; ahaṁ yuṣmān tathyaṁ vadāmi, itaḥparaṁ manujasutaṁ sarvvaśaktimato dakṣiṇapārśve sthātuṁ gagaṇasthaṁ jaladharānāruhyāyāntaṁ vīkṣadhve|
येशु ने उसे उत्तर दिया, “आपने यह स्वयं कह दिया है, फिर भी, मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि इसके बाद आप मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दायीं ओर बैठे तथा आकाश के बादलों पर आता हुआ देखेंगे.”
65 tadā mahāyājako nijavasanaṁ chittvā jagāda, eṣa īśvaraṁ ninditavān, asmākamaparasākṣyeṇa kiṁ prayojanaṁ? paśyata, yūyamevāsyāsyād īśvaranindāṁ śrutavantaḥ,
यह सुनना था कि महापुरोहित ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और कहा, “परमेश्वर-निंदा की है इसने! क्या अब भी गवाहों की ज़रूरत है? आप सभी ने स्वयं यह परमेश्वर-निंदा सुनी है.
66 yuṣmābhiḥ kiṁ vivicyate? te pratyūcuḥ, vadhārho'yaṁ|
अब क्या विचार है आपका?” सभी परिषद ने उत्तर दिया, “यह मृत्यु दंड के योग्य है.”
67 tato lokaistadāsye niṣṭhīvitaṁ kecit pratalamāhatya kecicca capeṭamāhatya babhāṣire,
तब उन्होंने येशु के मुख पर थूका, उन पर घूंसों से प्रहार किया, कुछ ने उन्हें थप्पड़ भी मारे और फिर उनसे प्रश्न किया,
68 he khrīṣṭa tvāṁ kaścapeṭamāhatavān? iti gaṇayitvā vadāsmān|
“मसीह! भविष्यवाणी कीजिए, कि आपको किसने मारा है?”
69 pitaro bahiraṅgana upaviśati, tadānīmekā dāsī tamupāgatya babhāṣe, tvaṁ gālīlīyayīśoḥ sahacaraekaḥ|
पेतरॉस आंगन में बैठे हुए थे. एक दासी वहां से निकली और पेतरॉस से पूछने लगी, “तुम भी तो उस गलीलवासी येशु के साथ थे न?”
70 kintu sa sarvveṣāṁ samakṣam anaṅgīkṛtyāvādīt, tvayā yaducyate, tadarthamahaṁ na vedmi|
किंतु पेतरॉस ने सबके सामने यह कहते हुए इस सच को नकार दिया: “क्या कह रही हो? मैं समझा नहीं!”
71 tadā tasmin bahirdvāraṁ gate 'nyā dāsī taṁ nirīkṣya tatratyajanānavadat, ayamapi nāsaratīyayīśunā sārddham āsīt|
जब पेतरॉस द्वार से बाहर निकले, एक दूसरी दासी ने पेतरॉस को देख वहां उपस्थित लोगों से कहा, “यह व्यक्ति नाज़रेथ के येशु के साथ था.”
72 tataḥ sa śapathena punaranaṅgīkṛtya kathitavān, taṁ naraṁ na paricinomi|
एक बार फिर पेतरॉस ने शपथ खाकर नकारते हुए कहा, “मैं उस व्यक्ति को नहीं जानता.”
73 kṣaṇāt paraṁ tiṣṭhanto janā etya pitaram avadan, tvamavaśyaṁ teṣāmeka iti tvaduccāraṇameva dyotayati|
कुछ समय बाद एक व्यक्ति ने पेतरॉस के पास आकर कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम भी उनमें से एक हो. तुम्हारी भाषा-शैली से यह स्पष्ट हो रहा है.”
74 kintu so'bhiśapya kathitavān, taṁ janaṁ nāhaṁ paricinomi, tadā sapadi kukkuṭo rurāva|
पेतरॉस अपशब्द कहते हुए शपथ खाकर कहने लगे, “मैं उस व्यक्ति को नहीं जानता!” उनका यह कहना था कि मुर्ग ने बांग दी.
75 kukkuṭaravāt prāk tvaṁ māṁ trirapāhnoṣyase, yaiṣā vāg yīśunāvādi tāṁ pitaraḥ saṁsmṛtya bahiritvā khedād bhṛśaṁ cakranda|
पेतरॉस को येशु की वह कही हुई बात याद आई, “इसके पूर्व कि मुर्ग बांग दे तुम मुझे तीन बार नकार चुके होगे.” पेतरॉस बाहर गए और फूट-फूटकर रोने लगे.