< लूकः 22 >

1 अपरञ्च किण्वशून्यपूपोत्सवस्य काल उपस्थिते
अखमीरी रोट्टी का त्यौहार जो फसह कुह्वावै सै, धोरै था,
2 प्रधानयाजका अध्यायकाश्च यथा तं हन्तुं शक्नुवन्ति तथोपायाम् अचेष्टन्त किन्तु लोकेभ्यो बिभ्युः।
अर प्रधान याजक अर शास्त्री इस बात की टोह् म्ह थे। के यीशु नै किस तरियां मारै, पर वे माणसां तै डरै थे।
3 एतस्तिन् समये द्वादशशिष्येषु गणित ईष्करियोतीयरूढिमान् यो यिहूदास्तस्यान्तःकरणं शैतानाश्रितत्वात्
फेर शैतान यहूदा म्ह बडग्या, जो इस्करियोती कुह्वावै अर बारहां चेल्यां म्ह गिण्या जावै था।
4 स गत्वा यथा यीशुं तेषां करेषु समर्पयितुं शक्नोति तथा मन्त्रणां प्रधानयाजकैः सेनापतिभिश्च सह चकार।
उसनै जाकै प्रधान याजकां अर पहरेदार के सरदारां के गेल्या बातचीत करी के किस तरियां यीशु नै उनके हाथ पकड़वांवां।
5 तेन ते तुष्टास्तस्मै मुद्रां दातुं पणं चक्रुः।
वे राज्जी होए, अर उस ताहीं रुपिये देण का वादा किया।
6 ततः सोङ्गीकृत्य यथा लोकानामगोचरे तं परकरेषु समर्पयितुं शक्नोति तथावकाशं चेष्टितुमारेभे।
वो मान ग्या अर मौक्का टोह्ण लाग्या के जिब भीड़ न्ही हो तो उसनै उनके हाथ पकड़वा दे।
7 अथ किण्वशून्यपूपोत्मवदिने, अर्थात् यस्मिन् दिने निस्तारोत्सवस्य मेषो हन्तव्यस्तस्मिन् दिने
फेर अखमीरी रोट्टी कै त्यौहार का दिन आया, जिसम्ह फसह का मेम्‍ना बलि करणा जरूरी था।
8 यीशुः पितरं योहनञ्चाहूय जगाद, युवां गत्वास्माकं भोजनार्थं निस्तारोत्सवस्य द्रव्याण्यासादयतं।
यीशु नै पतरस अर यूहन्ना ताहीं यो कहकै भेज्या, “जाकै म्हारै खाण खात्तर फसह त्यार करो।”
9 तदा तौ पप्रच्छतुः कुचासादयावो भवतः केच्छा?
उननै यीशु तै बुझया, “तू कित्त चाहवै सै के हम उसनै त्यार करा?”
10 तदा सोवादीत्, नगरे प्रविष्टे कश्चिज्जलकुम्भमादाय युवां साक्षात् करिष्यति स यन्निवेशनं प्रविशति युवामपि तन्निवेशनं तत्पश्चादित्वा निवेशनपतिम् इति वाक्यं वदतं,
यीशु नै चेल्यां ताहीं कह्या, देक्खो, नगर म्ह बड्तेए एक आदमी पाणी का पैंढ़ा ठाए होए थमनै मिलैगा, जिस घर म्ह वो जावै थम उसके पाच्छै चले जाइयो,
11 यत्राहं निस्तारोत्सवस्य भोज्यं शिष्यैः सार्द्धं भोक्तुं शक्नोमि सातिथिशालाा कुत्र? कथामिमां प्रभुस्त्वां पृच्छति।
अर उसके घर के माल्लिक तै कहियो, “गुरु तेरे तै बुझ्झै सै के वा बैठक कित्त सै जिस म्ह मै अपणे चेल्यां के गेल्या फसह खाऊँ?”
12 ततः स जनो द्वितीयप्रकोष्ठीयम् एकं शस्तं कोष्ठं दर्शयिष्यति तत्र भोज्यमासादयतं।
वो थमनै एक सजी-सजाई बड़ी अटारी दिखा देवैगा, ओड़ैए त्यारी करियो।
13 ततस्तौ गत्वा तद्वाक्यानुसारेण सर्व्वं दृष्द्वा तत्र निस्तारोत्सवीयं भोज्यमासादयामासतुः।
उननै जाकै, जिसा उसनै उनतै कह्या था, उस्से तरियां पाया अर फसह का भोज त्यार करया।
14 अथ काल उपस्थिते यीशु र्द्वादशभिः प्रेरितैः सह भोक्तुमुपविश्य कथितवान्
जद वा घड़ी आगी, के यीशु प्रेरितां गेल्या खाणा खाण बेठ्या।
15 मम दुःखभोगात् पूर्व्वं युभाभिः सह निस्तारोत्सवस्यैतस्य भोज्यं भोक्तुं मयातिवाञ्छा कृता।
अर उसनै उन ताहीं कह्या “मन्नै बड़ी लालसा थी के मरण तै पैहल्या यो फसह भोज थारे गेल्या खाऊँ।
16 युष्मान् वदामि, यावत्कालम् ईश्वरराज्ये भोजनं न करिष्ये तावत्कालम् इदं न भोक्ष्ये।
क्यूँके मै थमनै सच कहूँ सूं के मै इसनै जिब तक न्ही खाऊँगा जब तक यो परमेसवर के राज्य म्ह पूरा न्ही हो।”
17 तदा स पानपात्रमादाय ईश्वरस्य गुणान् कीर्त्तयित्वा तेभ्यो दत्वावदत्, इदं गृह्लीत यूयं विभज्य पिवत।
फेर उसनै अंगूरां के रस का कटोरा लेकै परमेसवर का धन्यवाद करया अर कह्या, “इसनै ल्यो अर आप्पस म्ह बाँट ल्यो।
18 युष्मान् वदामि यावत्कालम् ईश्वरराजत्वस्य संस्थापनं न भवति तावद् द्राक्षाफलरसं न पास्यामि।
क्यूँके के मै थमनै कहूँ सूं के जिब ताहीं परमेसवर का राज्य न्ही आवै तब तक मै अंगूर का रस इब तै कदे न्ही पिऊँगा।”
19 ततः पूपं गृहीत्वा ईश्वरगुणान् कीर्त्तयित्वा भङ्क्ता तेभ्यो दत्वावदत्, युष्मदर्थं समर्पितं यन्मम वपुस्तदिदं, एतत् कर्म्म मम स्मरणार्थं कुरुध्वं।
फेर यीशु नै रोट्टी ली अर परमेसवर का धन्यवाद करकै तोड़ी, अर चेल्यां ताहीं या कहकै दी, “या मेरी देह सै जो थारे खात्तर दी जा सै: मेरी याद म्ह न्यूए करया करो।”
20 अथ भोजनान्ते तादृशं पात्रं गृहीत्वावदत्, युष्मत्कृते पातितं यन्मम रक्तं तेन निर्णीतनवनियमरूपं पानपात्रमिदं।
इसे तरियां तै उसनै खाणे के पाच्छै कटोरा भी यो कहन्दे होए दिया, “यो कटोरा मेरै उस लहू म्ह जो थारे खात्तर बहाया जा सै नया करार सै।
21 पश्यत यो मां परकरेषु समर्पयिष्यति स मया सह भोजनासन उपविशति।
पर देक्खो, जो मन्नै पकड़वावैगा वो म्हारे गेल्या इस भोज म्ह शामिल सै।
22 यथा निरूपितमास्ते तदनुसारेणा मनुष्यपुुत्रस्य गति र्भविष्यति किन्तु यस्तं परकरेषु समर्पयिष्यति तस्य सन्तापो भविष्यति।
क्यूँके मै माणस का बेट्टा तो जिसा मेरे खात्तर तय करया गया सै, ठीक उस्से तरियां होण लागरया सै, पर धिक्कार सै उस माणस पै जिसकै जरिये मै पकड़वाया जाऊँ सूं!”
23 तदा तेषां को जन एतत् कर्म्म करिष्यति तत् ते परस्परं प्रष्टुमारेभिरे।
फेर वे आप्पस म्ह पूच्छताछ करण लाग्ये के म्हारै म्ह तै कौण सै, जो यो काम करैगा।
24 अपरं तेषां को जनः श्रेष्ठत्वेन गणयिष्यते, अत्रार्थे तेषां विवादोभवत्।
उन म्ह या बहस भी होगी के म्हारे मै तै कौण बड्ड़ा समझा जावै सै।
25 अस्मात् कारणात् सोवदत्, अन्यदेशीयानां राजानः प्रजानामुपरि प्रभुत्वं कुर्व्वन्ति दारुणशासनं कृत्वापि ते भूपतित्वेन विख्याता भवन्ति च।
यीशु नै उन ताहीं कह्या, “और गैर यहूदियाँ के राजा उनपै राज करै सै, अर जो उनपै हक जमावैं सै वे भले कुह्वावै सै।
26 किन्तु युष्माकं तथा न भविष्यति, यो युष्माकं श्रेष्ठो भविष्यति स कनिष्ठवद् भवतु, यश्च मुख्यो भविष्यति स सेवकवद्भवतु।
पर थम इसे ना होइयो, बल्के जो थारे म्ह बड्ड़ा सै वो छोट्टे कै बरोब्बर अर जो प्रधान सै, वो सेवक कै बरोब्बर बणै।
27 भोजनोपविष्टपरिचारकयोः कः श्रेष्ठः? यो भोजनायोपविशति स किं श्रेष्ठो न भवति? किन्तु युष्माकं मध्येऽहं परिचारकइवास्मि।
क्यूँके बड्ड़ा कौण सै, वो जो खाणे पै बेठ्या सै, या वो जो सेवा करै सै? के वो न्ही जो ज़िम्मण बेठ्या सै? पर मै थारे बिचाळै सेवक बरोब्बर सूं।
28 अपरञ्च युयं मम परीक्षाकाले प्रथममारभ्य मया सह स्थिता
थम वो सों, जो मेरी मुसीबतां म्ह लगातार मेरै गेल्या रहे,
29 एतत्कारणात् पित्रा यथा मदर्थं राज्यमेकं निरूपितं तथाहमपि युष्मदर्थं राज्यं निरूपयामि।
अर जिस तरियां मेरै पिता नै मेरै खात्तर एक राज्य ठहराया सै, उस्से तरियां मै भी थारे खात्तर ठहराऊँ सूं,
30 तस्मान् मम राज्ये भोजनासने च भोजनपाने करिष्यध्वे सिंहासनेषूपविश्य चेस्रायेलीयानां द्वादशवंशानां विचारं करिष्यध्वे।
ताके थम मेरै राज्य म्ह मेरी मेज पै खाओ-पीओ बल्के सिंहासनां पै बैठकै इस्राएल के बारहां गोत्रां का न्याय करो।”
31 अपरं प्रभुरुवाच, हे शिमोन् पश्य तितउना धान्यानीव युष्मान् शैतान् चालयितुम् ऐच्छत्,
“शमौन, हे शमौन! देख शैतान नै परमेसवर तै हुकम ले लिया सै, के थारे ताहीं परखै जिस तरियां किसान गेहूँ नै भूसी तै न्यारा करै सै।
32 किन्तु तव विश्वासस्य लोपो यथा न भवति एतत् त्वदर्थं प्रार्थितं मया, त्वन्मनसि परिवर्त्तिते च भ्रातृणां मनांसि स्थिरीकुरु।
पर मन्नै तेरे खात्तर बिनती करी ताके थम मेरे पै बिश्वास करणा ना छोड़ दे, अर जिब थम पाप करणा छोड़ दे, तो अपणे भाईयाँ नै भी इसाए करण खात्तर कहियो।”
33 तदा सोवदत्, हे प्रभोहं त्वया सार्द्धं कारां मृतिञ्च यातुं मज्जितोस्मि।
उसनै उसतै कह्या, “हे प्रभु मै, तेरे गेल्या जेळ जाण, बल्के मरण नै भी त्यार सूं।”
34 ततः स उवाच, हे पितर त्वां वदामि, अद्य कुक्कुटरवात् पूर्व्वं त्वं मत्परिचयं वारत्रयम् अपह्वोष्यसे।
उसनै कह्या, “हे पतरस, मै तन्नै सच कहूँ सूं, के आज मुर्गा बाँग न्ही देवैगा जब ताहीं तू तीन बर मेरै बारै म्ह मुकरैगा जावैगा, के मै तन्नै न्ही जाण्दा।”
35 अपरं स पप्रच्छ, यदा मुद्रासम्पुटं खाद्यपात्रं पादुकाञ्च विना युष्मान् प्राहिणवं तदा युष्माकं कस्यापि न्यूनतासीत्? ते प्रोचुः कस्यापि न।
फेर यीशु नै चेल्यां ताहीं कह्या, “जिब मन्नै थारे ताहीं वचन सुणाण खात्तर बटुए, अर झोळी, अर जूत्याँ कै बिना भेज्या था, तो के थमनै किसे चीज की कमी होई थी?” उननै कह्या, “किसे चीज की न्ही।”
36 तदा सोवदत् किन्त्विदानीं मुद्रासम्पुटं खाद्यपात्रं वा यस्यास्ति तेन तद्ग्रहीतव्यं, यस्य च कृपाणोे नास्ति तेन स्ववस्त्रं विक्रीय स क्रेतव्यः।
उसनै चेल्यां तै कह्या, “पर इब जिसकै धोरै बटुआ ना हो वो उसनै ले अर उस्से तरियां जिसकै धोरै तलवार न्ही हो तो वो अपणे लत्ते बेचकै एक मोल लेवै।
37 यतो युष्मानहं वदामि, अपराधिजनैः सार्द्धं गणितः स भविष्यति। इदं यच्छास्त्रीयं वचनं लिखितमस्ति तन्मयि फलिष्यति यतो मम सम्बन्धीयं सर्व्वं सेत्स्यति।
क्यूँके मै थमनै कहूँ सूं, यो जो पवित्र ग्रन्थ म्ह लिख्या सै, ‘वो गुन्हेगार गेल्या गिण्या गया,’ उसका मेरै म्ह पूरा होणा जरूरी सै, क्यूँके मेरै बारै म्ह लिखी सारी बात्तां का होणा जरूरी सै।”
38 तदा ते प्रोचुः प्रभो पश्य इमौ कृपाणौ। ततः सोवदद् एतौ यथेष्टौ।
चेल्यां नै कह्या, “हे प्रभु याड़ै दो तलवार सै।” यीशु नै उन ताहीं कह्या, “भतेरी सै।”
39 अथ स तस्माद्वहि र्गत्वा स्वाचारानुसारेण जैतुननामाद्रिं जगाम शिष्याश्च तत्पश्चाद् ययुः।
फेर यीशु बारणै लिकड़कै अपणी रीत के मुताबिक जैतून कै पहाड़ पै गया, अर चेल्लें उसकै पाच्छै हो लिये।
40 तत्रोपस्थाय स तानुवाच, यथा परीक्षायां न पतथ तदर्थं प्रार्थयध्वं।
उस जगहां पोहुच कै उसनै चेल्यां तै कह्या, “प्रार्थना करो कै थम परखे ना जाओ।”
41 पश्चात् स तस्माद् एकशरक्षेपाद् बहि र्गत्वा जानुनी पातयित्वा एतत् प्रार्थयाञ्चक्रे,
अर आप उनतै न्यारा एक डळा फेकण के बराबर जितनी दूर गया, अर गोड्डे टेक कै प्रार्थना करण लाग्या,
42 हे पित र्यदि भवान् सम्मन्यते तर्हि कंसमेनं ममान्तिकाद् दूरय किन्तु मदिच्छानुरूपं न त्वदिच्छानुरूपं भवतु।
“हे पिता जै तू चाहवै तो इस दुख के कटोरे नै मेरै धोरै तै हटा ले, तोभी मेरी न्ही पर तेरी मर्जी पूरी हो।”
43 तदा तस्मै शक्तिं दातुं स्वर्गीयदूतो दर्शनं ददौ।
फेर सुर्ग तै एक सुर्गदूत उसनै दिख्या जो उसनै सामर्थ दिया करै था।
44 पश्चात् सोत्यन्तं यातनया व्याकुलो भूत्वा पुनर्दृढं प्रार्थयाञ्चक्रे, तस्माद् बृहच्छोणितबिन्दव इव तस्य स्वेदबिन्दवः पृथिव्यां पतितुमारेभिरे।
वो और घणे संकट म्ह काल होकै और भी मन तै प्रार्थना करण लाग्या, अर उसका पसीन्ना मान्नो लहू की बड्डी-बड्डी बूँदां के जू धरती पै गिरै था।
45 अथ प्रार्थनात उत्थाय शिष्याणां समीपमेत्य तान् मनोदुःखिनो निद्रितान् दृष्ट्वावदत्
फेर वो प्रार्थना तै उठ्या अर अपणे चेल्यां कै धोरै आकै उन ताहीं उदासी कै मारै सोन्दे पाया।
46 कुतो निद्राथ? परीक्षायाम् अपतनार्थं प्रर्थयध्वं।
अर उनतै कह्या, “क्यूँ सोवों सों? उठ्ठो, प्रार्थना करो के थम परखे ना जाओ।”
47 एतत्कथायाः कथनकाले द्वादशशिष्याणां मध्ये गणितो यिहूदानामा जनतासहितस्तेषाम् अग्रे चलित्वा यीशोश्चुम्बनार्थं तदन्तिकम् आययौ।
यीशु न्यू कहण ए लागरया था, के एक भीड़ आई, अर उन बारहां चेल्यां म्ह तै एक जिसका नाम यहूदा था उसकै आग्गै-आग्गै आण लाग रह्या था। वो यीशु कै धोरै आया के उसनै चूम ले।
48 तदा यीशुरुवाच, हे यिहूदा किं चुम्बनेन मनुष्यपुत्रं परकरेषु समर्पयसि?
यीशु नै उसतै कह्या, “हे यहूदा, के तू चुम्मा लेकै माणस के बेट्टा नै पकड़वावै सै?”
49 तदा यद्यद् घटिष्यते तदनुमाय सङ्गिभिरुक्तं, हे प्रभो वयं कि खङ्गेन घातयिष्यामः?
उसकै साथियाँ नै जद देख्या के, के होण आळा सै, तो कह्या “हे प्रभु, के हम तलवार चलावां?”
50 तत एकः करवालेनाहत्य प्रधानयाजकस्य दासस्य दक्षिणं कर्णं चिच्छेद।
अर उन म्ह तै एक नै महायाजक के नौक्कर पै तलवार चलाकै उसका सोळा कान उड़ा दिया।
51 अधूना निवर्त्तस्व इत्युक्त्वा यीशुस्तस्य श्रुतिं स्पृष्ट्वा स्वस्यं चकार।
इसपै यीशु नै कह्या, “इब बस करो।” अर उसका कान छू कै उस ताहीं ठीक करया।
52 पश्चाद् यीशुः समीपस्थान् प्रधानयाजकान् मन्दिरस्य सेनापतीन् प्राचीनांश्च जगाद, यूयं कृपाणान् यष्टींश्च गृहीत्वा मां किं चोरं धर्त्तुमायाताः?
फेर यीशु नै प्रधान याजकां अर मन्दर कै पैहरेदारां कै सरदारां अर यहूदी अगुवां तै, जो उसपै चढ़ ग्ये थे, कह्या, “के थम मन्नै डाकू जाणकै तलवार अर लाठ्ठी लेकै लिकड़े सो?
53 यदाहं युष्माभिः सह प्रतिदिनं मन्दिरेऽतिष्ठं तदा मां धर्त्तं न प्रवृत्ताः, किन्त्विदानीं युष्माकं समयोन्धकारस्य चाधिपत्यमस्ति।
जद मै मन्दर म्ह हरेक दिन थारे गेल्या था, तो थमनै मेरै हाथ भी कोनी लाया, पर यो थारा बखत सै, अर अन्धकार का हक सै।”
54 अथ ते तं धृत्वा महायाजकस्य निवेशनं निन्युः। ततः पितरो दूरे दूरे पश्चादित्वा
फेर वे यीशु नै पकड़कै ले चाल्ले, अर महायाजक कै घर म्ह लाये, पतरस दूरे ए दूर उसकै पाच्छै-पाच्छै चाल्लै था।
55 बृहत्कोष्ठस्य मध्ये यत्राग्निं ज्वालयित्वा लोकाः समेत्योपविष्टास्तत्र तैः सार्द्धम् उपविवेश।
अर जद वे आँगण म्ह आग सुलगाकै कठ्ठे बेठ्ठे, तो पतरस भी उसके बिचाळै बैठग्या।
56 अथ वह्निसन्निधौ समुपवेशकाले काचिद्दासी मनो निविश्य तं निरीक्ष्यावदत् पुमानयं तस्य सङ्गेऽस्थात्।
फेर एक नौकराणी उस ताहीं आग कै चाँदणे म्ह बेठ्या देखकै अर उस कान्ही देखकै कहण लाग्गी, “यो भी तो उसकै गेल्या था।”
57 किन्तु स तद् अपह्नुत्यावादीत् हे नारि तमहं न परिचिनोमि।
पर पतरस नै यो कहकै मना कर दिया, के “हे, जनानी मै उसनै कोनी जाणदा।”
58 क्षणान्तरेऽन्यजनस्तं दृष्ट्वाब्रवीत् त्वमपि तेषां निकरस्यैकजनोसि। पितरः प्रत्युवाच हे नर नाहमस्मि।
थोड़ी हाण पाच्छै किसे और नै पतरस ताहीं देखकै कह्या, “तू भी तो उन म्ह तै ए सै।” उसनै कह्या, “हे भाई, मै वो कोनी।”
59 ततः सार्द्धदण्डद्वयात् परं पुनरन्यो जनो निश्चित्य बभाषे, एष तस्य सङ्गीति सत्यं यतोयं गालीलीयो लोकः।
कोए एक घंटे कै पाच्छै एक और माणस पक्के बिश्वास तै कहण लाग्या, “सही म्ह यो भी तो उसकै गेल्या था, क्यूँके यो गलीलवासी सै।”
60 तदा पितर उवाच हे नर त्वं यद् वदमि तदहं बोद्धुं न शक्नोमि, इति वाक्ये कथितमात्रे कुक्कुटो रुराव।
पतरस नै कह्या, “हे भाई, मै न्ही जाण्दा के तू के कहवै सै!” वो या कहवैए था के मुर्गे नै बाँग देई
61 तदा प्रभुणा व्याधुट्य पितरे निरीक्षिते कृकवाकुरवात् पूर्व्वं मां त्रिरपह्नोष्यसे इति पूर्व्वोक्तं तस्य वाक्यं पितरः स्मृत्वा
फेर घूमकै प्रभु नै पतरस की ओड़ देख्या अर पतरस नै प्रभु की बात याद आई जो उसनै कही थी: “आज मुर्गे कै बाँग देण तै पैहल्या, तू तीन बर इन्कार करैगा।”
62 बहिर्गत्वा महाखेदेन चक्रन्द।
अर वो बारणै लिकड़कै नै फूट-फूटकै रोण लाग्या।
63 तदा यै र्यीशुर्धृतस्ते तमुपहस्य प्रहर्त्तुमारेभिरे।
जो माणस यीशु नै पकड़े होए थे, वे उसका मजाक बणाकै पीटण लाग्गे,
64 वस्त्रेण तस्य दृशौ बद्ध्वा कपोले चपेटाघातं कृत्वा पप्रच्छुः, कस्ते कपोले चपेटाघातं कृतवान? गणयित्वा तद् वद।
अर उसकी आँख ढँक कै उसतै बुझया, “भविष्यवाणी करकै बता के तेरे किसनै मारया!”
65 तदन्यत् तद्विरुद्धं बहुनिन्दावाक्यं वक्तुमारेभिरे।
अर उननै घणीए बुराई की बात उसकै बिरोध म्ह कही।
66 अथ प्रभाते सति लोकप्राञ्चः प्रधानयाजका अध्यापकाश्च सभां कृत्वा मध्येसभं यीशुमानीय पप्रच्छुः, त्वम् अभिषिकतोसि न वास्मान् वद।
जिब दिन लिकड़या तो यहूदी अगुवें, प्रधान याजक अर शास्त्री कठ्ठे होए, अर उस ताहीं अपणी बड्डी सभा म्ह ल्याकै बुझया,
67 स प्रत्युवाच, मया तस्मिन्नुक्तेऽपि यूयं न विश्वसिष्यथ।
“जै तू मसीह सै, तो म्हारै ताहीं कह दे!” उसनै उनतै कह्या, “जै मै थारे तै कहूँ, तो बिश्वास कोनी करोगे,
68 कस्मिंश्चिद्वाक्ये युष्मान् पृष्टेऽपि मां न तदुत्तरं वक्ष्यथ न मां त्यक्ष्यथ च।
अर जै बुझ्झु, तो जवाब न्ही द्योगे।
69 किन्त्वितः परं मनुजसुतः सर्व्वशक्तिमत ईश्वरस्य दक्षिणे पार्श्वे समुपवेक्ष्यति।
पर इब तै मै माणस का बेट्टा सर्वशक्तिमान परमेसवर कै सोळी ओड़ बेठ्या रहूँगा।”
70 ततस्ते पप्रच्छुः, र्तिह त्वमीश्वरस्य पुत्रः? स कथयामास, यूयं यथार्थं वदथ स एवाहं।
इसपै सब नै कह्या, “तो के तू परमेसवर का बेट्टा सै?” यीशु नै उन ताहीं कह्या, “थम अपणे-आप्पे कहो सों, क्यूँके मै सूं।”
71 तदा ते सर्व्वे कथयामासुः, र्तिह साक्ष्येऽन्सस्मिन् अस्माकं किं प्रयोजनं? अस्य स्वमुखादेव साक्ष्यं प्राप्तम्।
फेर उननै कह्या, “इब हमनै गवाह की के जरूरत सै, क्यूँके हमनै आप्पे उसकै मुँह तै सुण लिया सै।”

< लूकः 22 >