< योहनः 6 >

1 ततः परं यीशु र्गालील् प्रदेशीयस्य तिविरियानाम्नः सिन्धोः पारं गतवान्।
इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात् तिबिरियास की झील के पार गया।
2 ततो व्याधिमल्लोकस्वास्थ्यकरणरूपाणि तस्याश्चर्य्याणि कर्म्माणि दृष्ट्वा बहवो जनास्तत्पश्चाद् अगच्छन्।
और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्यकर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे।
3 ततो यीशुः पर्व्वतमारुह्य तत्र शिष्यैः साकम्।
तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा।
4 तस्मिन् समय निस्तारोत्सवनाम्नि यिहूदीयानाम उत्सव उपस्थिते
और यहूदियों के फसह का पर्व निकट था।
5 यीशु र्नेत्रे उत्तोल्य बहुलोकान् स्वसमीपागतान् विलोक्य फिलिपं पृष्टवान् एतेषां भोजनाय भोजद्रव्याणि वयं कुत्र क्रेतुं शक्रुमः?
तब यीशु ने अपनी आँखें उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, “हम इनके भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएँ?”
6 वाक्यमिदं तस्य परीक्षार्थम् अवादीत् किन्तु यत् करिष्यति तत् स्वयम् अजानात्।
परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह स्वयं जानता था कि वह क्या करेगा।
7 फिलिपः प्रत्यवोचत् एतेषाम् एकैको यद्यल्पम् अल्पं प्राप्नोति तर्हि मुद्रापादद्विशतेन क्रीतपूपा अपि न्यूना भविष्यन्ति।
फिलिप्पुस ने उसको उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटी भी उनके लिये पूरी न होंगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए।”
8 शिमोन् पितरस्य भ्राता आन्द्रियाख्यः शिष्याणामेको व्याहृतवान्
उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उससे कहा,
9 अत्र कस्यचिद् बालकस्य समीपे पञ्च यावपूपाः क्षुद्रमत्स्यद्वयञ्च सन्ति किन्तु लोकानां एतावातां मध्ये तैः किं भविष्यति?
“यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं, परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं।”
10 पश्चाद् यीशुरवदत् लोकानुपवेशयत तत्र बहुयवससत्त्वात् पञ्चसहस्त्रेभ्यो न्यूना अधिका वा पुरुषा भूम्याम् उपाविशन्।
१०यीशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। तब लोग जिनमें पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हजार की थी, बैठ गए।
11 ततो यीशुस्तान् पूपानादाय ईश्वरस्य गुणान् कीर्त्तयित्वा शिष्येषु समार्पयत् ततस्ते तेभ्य उपविष्टलोकेभ्यः पूपान् यथेष्टमत्स्यञ्च प्रादुः।
११तब यीशु ने रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालों को बाँट दीं; और वैसे ही मछलियों में से जितनी वे चाहते थे बाँट दिया।
12 तेषु तृप्तेषु स तानवोचद् एतेषां किञ्चिदपि यथा नापचीयते तथा सर्व्वाण्यवशिष्टानि संगृह्लीत।
१२जब वे खाकर तृप्त हो गए, तो उसने अपने चेलों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।”
13 ततः सर्व्वेषां भोजनात् परं ते तेषां पञ्चानां यावपूपानां अवशिष्टान्यखिलानि संगृह्य द्वादशडल्लकान् अपूरयन्।
१३इसलिए उन्होंने बटोरा, और जौ की पाँच रोटियों के टुकड़े जो खानेवालों से बच रहे थे, उनकी बारह टोकरियाँ भरीं।
14 अपरं यीशोरेतादृशीम् आश्चर्य्यक्रियां दृष्ट्वा लोका मिथो वक्तुमारेभिरे जगति यस्यागमनं भविष्यति स एवायम् अवश्यं भविष्यद्वक्त्ता।
१४तब जो आश्चर्यकर्म उसने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि “वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।”
15 अतएव लोका आगत्य तमाक्रम्य राजानं करिष्यन्ति यीशुस्तेषाम् ईदृशं मानसं विज्ञाय पुनश्च पर्व्वतम् एकाकी गतवान्।
१५यीशु यह जानकर कि वे उसे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
16 सायंकाल उपस्थिते शिष्या जलधितटं व्रजित्वा नावमारुह्य नगरदिशि सिन्धौ वाहयित्वागमन्।
१६फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले झील के किनारे गए,
17 तस्मिन् समये तिमिर उपातिष्ठत् किन्तु यीषुस्तेषां समीपं नागच्छत्।
१७और नाव पर चढ़कर झील के पार कफरनहूम को जाने लगे। उस समय अंधेरा हो गया था, और यीशु अभी तक उनके पास नहीं आया था।
18 तदा प्रबलपवनवहनात् सागरे महातरङ्गो भवितुम् आरेभे।
१८और आँधी के कारण झील में लहरें उठने लगीं।
19 ततस्ते वाहयित्वा द्वित्रान् क्रोशान् गताः पश्चाद् यीशुं जलधेरुपरि पद्भ्यां व्रजन्तं नौकान्तिकम् आगच्छन्तं विलोक्य त्रासयुक्ता अभवन्
१९तब जब वे खेते-खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए।
20 किन्तु स तानुक्त्तवान् अयमहं मा भैष्ट।
२०परन्तु उसने उनसे कहा, “मैं हूँ; डरो मत।”
21 तदा ते तं स्वैरं नावि गृहीतवन्तः तदा तत्क्षणाद् उद्दिष्टस्थाने नौरुपास्थात्।
२१तब वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिये तैयार हुए और तुरन्त वह नाव उसी स्थान पर जा पहुँची जहाँ वह जाते थे।
22 यया नावा शिष्या अगच्छन् तदन्या कापि नौका तस्मिन् स्थाने नासीत् ततो यीशुः शिष्यैः साकं नागमत् केवलाः शिष्या अगमन् एतत् पारस्था लोका ज्ञातवन्तः।
२२दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो झील के पार खड़ी थी, यह देखा, कि यहाँ एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न थी, और यीशु अपने चेलों के साथ उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले ही गए थे।
23 किन्तु ततः परं प्रभु र्यत्र ईश्वरस्य गुणान् अनुकीर्त्त्य लोकान् पूपान् अभोजयत् तत्स्थानस्य समीपस्थतिविरियाया अपरास्तरणय आगमन्।
२३(तो भी और छोटी नावें तिबिरियास से उस जगह के निकट आईं, जहाँ उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई थी।)
24 यीशुस्तत्र नास्ति शिष्या अपि तत्र ना सन्ति लोका इति विज्ञाय यीशुं गवेषयितुं तरणिभिः कफर्नाहूम् पुरं गताः।
२४जब भीड़ ने देखा, कि यहाँ न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी-छोटी नावों पर चढ़ के यीशु को ढूँढ़ते हुए कफरनहूम को पहुँचे।
25 ततस्ते सरित्पतेः पारे तं साक्षात् प्राप्य प्रावोचन् हे गुरो भवान् अत्र स्थाने कदागमत्?
२५और झील के पार उससे मिलकर कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?”
26 तदा यीशुस्तान् प्रत्यवादीद् युष्मानहं यथार्थतरं वदामि आश्चर्य्यकर्म्मदर्शनाद्धेतो र्न किन्तु पूपभोजनात् तेन तृप्तत्वाञ्च मां गवेषयथ।
२६यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिए कि तुम रोटियाँ खाकर तृप्त हुए।
27 क्षयणीयभक्ष्यार्थं मा श्रामिष्ट किन्त्वन्तायुर्भक्ष्यार्थं श्राम्यत, तस्मात् तादृशं भक्ष्यं मनुजपुत्रो युष्माभ्यं दास्यति; तस्मिन् तात ईश्वरः प्रमाणं प्रादात्। (aiōnios g166)
२७नाशवान भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात् परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है।” (aiōnios g166)
28 तदा तेऽपृच्छन् ईश्वराभिमतं कर्म्म कर्त्तुम् अस्माभिः किं कर्त्तव्यं?
२८उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें?”
29 ततो यीशुरवदद् ईश्वरो यं प्रैरयत् तस्मिन् विश्वसनम् ईश्वराभिमतं कर्म्म।
२९यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो।”
30 तदा ते व्याहरन् भवता किं लक्षणं दर्शितं यद्दृष्ट्वा भवति विश्वसिष्यामः? त्वया किं कर्म्म कृतं?
३०तब उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तुझ पर विश्वास करें? तू कौन सा काम दिखाता है?
31 अस्माकं पूर्व्वपुरुषा महाप्रान्तरे मान्नां भोक्त्तुं प्रापुः यथा लिपिरास्ते। स्वर्गीयाणि तु भक्ष्याणि प्रददौ परमेश्वरः।
३१हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी।’”
32 तदा यीशुरवदद् अहं युष्मानतियथार्थं वदामि मूसा युष्माभ्यं स्वर्गीयं भक्ष्यं नादात् किन्तु मम पिता युष्माभ्यं स्वर्गीयं परमं भक्ष्यं ददाति।
३२यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है।
33 यः स्वर्गादवरुह्य जगते जीवनं ददाति स ईश्वरदत्तभक्ष्यरूपः।
३३क्योंकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।”
34 तदा ते प्रावोचन् हे प्रभो भक्ष्यमिदं नित्यमस्मभ्यं ददातु।
३४तब उन्होंने उससे कहा, “हे स्वामी, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।”
35 यीशुरवदद् अहमेव जीवनरूपं भक्ष्यं यो जनो मम सन्निधिम् आगच्छति स जातु क्षुधार्त्तो न भविष्यति, तथा यो जनो मां प्रत्येति स जातु तृषार्त्तो न भविष्यति।
३५यीशु ने उनसे कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा।
36 मां दृष्ट्वापि यूयं न विश्वसिथ युष्मानहम् इत्यवोचं।
३६परन्तु मैंने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते।
37 पिता मह्यं यावतो लोकानददात् ते सर्व्व एव ममान्तिकम् आगमिष्यन्ति यः कश्चिच्च मम सन्निधिम् आयास्यति तं केनापि प्रकारेण न दूरीकरिष्यामि।
३७जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी न निकालूँगा।
38 निजाभिमतं साधयितुं न हि किन्तु प्रेरयितुरभिमतं साधयितुं स्वर्गाद् आगतोस्मि।
३८क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन् अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूँ।
39 स यान् यान् लोकान् मह्यमददात् तेषामेकमपि न हारयित्वा शेषदिने सर्व्वानहम् उत्थापयामि इदं मत्प्रेरयितुः पितुरभिमतं।
३९और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उसने मुझे दिया है, उसमें से मैं कुछ न खोऊँ परन्तु उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँ।
40 यः कश्चिन् मानवसुतं विलोक्य विश्वसिति स शेषदिने मयोत्थापितः सन् अनन्तायुः प्राप्स्यति इति मत्प्रेरकस्याभिमतं। (aiōnios g166)
४०क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा।” (aiōnios g166)
41 तदा स्वर्गाद् यद् भक्ष्यम् अवारोहत् तद् भक्ष्यम् अहमेव यिहूदीयलोकास्तस्यैतद् वाक्ये विवदमाना वक्त्तुमारेभिरे
४१तब यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिए कि उसने कहा था, “जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूँ।”
42 यूषफः पुत्रो यीशु र्यस्य मातापितरौ वयं जानीम एष किं सएव न? तर्हि स्वर्गाद् अवारोहम् इति वाक्यं कथं वक्त्ति?
४२और उन्होंने कहा, “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो वह क्यों कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?”
43 तदा यीशुस्तान् प्रत्यवदत् परस्परं मा विवदध्वं
४३यीशु ने उनको उत्तर दिया, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ।
44 मत्प्रेरकेण पित्रा नाकृष्टः कोपि जनो ममान्तिकम् आयातुं न शक्नोति किन्त्वागतं जनं चरमेऽह्नि प्रोत्थापयिष्यामि।
४४कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उसको अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा।
45 ते सर्व्व ईश्वरेण शिक्षिता भविष्यन्ति भविष्यद्वादिनां ग्रन्थेषु लिपिरित्थमास्ते अतो यः कश्चित् पितुः सकाशात् श्रुत्वा शिक्षते स एव मम समीपम् आगमिष्यति।
४५भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, ‘वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।
46 य ईश्वराद् अजायत तं विना कोपि मनुष्यो जनकं नादर्शत् केवलः सएव तातम् अद्राक्षीत्।
४६यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा है परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है।
47 अहं युष्मान् यथार्थतरं वदामि यो जनो मयि विश्वासं करोति सोनन्तायुः प्राप्नोति। (aiōnios g166)
४७मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है। (aiōnios g166)
48 अहमेव तज्जीवनभक्ष्यं।
४८जीवन की रोटी मैं हूँ।
49 युष्माकं पूर्व्वपुरुषा महाप्रान्तरे मन्नाभक्ष्यं भूक्त्तापि मृताः
४९तुम्हारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए।
50 किन्तु यद्भक्ष्यं स्वर्गादागच्छत् तद् यदि कश्चिद् भुङ्क्त्ते तर्हि स न म्रियते।
५०यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उसमें से खाए और न मरे।
51 यज्जीवनभक्ष्यं स्वर्गादागच्छत् सोहमेव इदं भक्ष्यं यो जनो भुङ्क्त्ते स नित्यजीवी भविष्यति। पुनश्च जगतो जीवनार्थमहं यत् स्वकीयपिशितं दास्यामि तदेव मया वितरितं भक्ष्यम्। (aiōn g165)
५१जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूँगा, वह मेरा माँस है।” (aiōn g165)
52 तस्माद् यिहूदीयाः परस्परं विवदमाना वक्त्तुमारेभिरे एष भोजनार्थं स्वीयं पललं कथम् अस्मभ्यं दास्यति?
५२इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे, “यह मनुष्य कैसे हमें अपना माँस खाने को दे सकता है?”
53 तदा यीशुस्तान् आवोचद् युष्मानहं यथार्थतरं वदामि मनुष्यपुत्रस्यामिषे युष्माभि र्न भुक्त्ते तस्य रुधिरे च न पीते जीवनेन सार्द्धं युष्माकं सम्बन्धो नास्ति।
५३यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ जब तक मनुष्य के पुत्र का माँस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।
54 यो ममामिषं स्वादति मम सुधिरञ्च पिवति सोनन्तायुः प्राप्नोति ततः शेषेऽह्नि तमहम् उत्थापयिष्यामि। (aiōnios g166)
५४जो मेरा माँस खाता, और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अन्तिम दिन फिर उसे जिला उठाऊँगा। (aiōnios g166)
55 यतो मदीयमामिषं परमं भक्ष्यं तथा मदीयं शोणितं परमं पेयं।
५५क्योंकि मेरा माँस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है।
56 यो जनो मदीयं पललं स्वादति मदीयं रुधिरञ्च पिवति स मयि वसति तस्मिन्नहञ्च वसामि।
५६जो मेरा माँस खाता और मेरा लहू पीता है, वहमुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उसमें।
57 मत्प्रेरयित्रा जीवता तातेन यथाहं जीवामि तद्वद् यः कश्चिन् मामत्ति सोपि मया जीविष्यति।
५७जैसा जीविते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूँ वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा।
58 यद्भक्ष्यं स्वर्गादागच्छत् तदिदं यन्मान्नां स्वादित्वा युष्माकं पितरोऽम्रियन्त तादृशम् इदं भक्ष्यं न भवति इदं भक्ष्यं यो भक्षति स नित्यं जीविष्यति। (aiōn g165)
५८जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, पूर्वजों के समान नहीं कि खाया, और मर गए; जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।” (aiōn g165)
59 यदा कफर्नाहूम् पुर्य्यां भजनगेहे उपादिशत् तदा कथा एता अकथयत्।
५९ये बातें उसने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपदेश देते समय कहीं।
60 तदेत्थं श्रुत्वा तस्य शिष्याणाम् अनेके परस्परम् अकथयन् इदं गाढं वाक्यं वाक्यमीदृशं कः श्रोतुं शक्रुयात्?
६०इसलिए उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है; इसे कौन मान सकता है?”
61 किन्तु यीशुः शिष्याणाम् इत्थं विवादं स्वचित्ते विज्ञाय कथितवान् इदं वाक्यं किं युष्माकं विघ्नं जनयति?
६१यीशु ने अपने मन में यह जानकर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उनसे पूछा, “क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है?
62 यदि मनुजसुतं पूर्व्ववासस्थानम् ऊर्द्व्वं गच्छन्तं पश्यथ तर्हि किं भविष्यति?
६२और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ वह पहले था, वहाँ ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा?
63 आत्मैव जीवनदायकः वपु र्निष्फलं युष्मभ्यमहं यानि वचांसि कथयामि तान्यात्मा जीवनञ्च।
६३आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं। जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं वे आत्मा हैं, और जीवन भी हैं।
64 किन्तु युष्माकं मध्ये केचन अविश्वासिनः सन्ति के के न विश्वसन्ति को वा तं परकरेषु समर्पयिष्यति तान् यीशुराप्रथमाद् वेत्ति।
६४परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।” क्योंकि यीशु तो पहले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं; और कौन मुझे पकड़वाएगा।
65 अपरमपि कथितवान् अस्मात् कारणाद् अकथयं पितुः सकाशात् शक्त्तिमप्राप्य कोपि ममान्तिकम् आगन्तुं न शक्नोति।
६५और उसने कहा, “इसलिए मैंने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर से यह वरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।”
66 तत्कालेऽनेके शिष्या व्याघुट्य तेन सार्द्धं पुन र्नागच्छन्।
६६इस पर उसके चेलों में से बहुत सारे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।
67 तदा यीशु र्द्वादशशिष्यान् उक्त्तवान् यूयमपि किं यास्यथ?
६७तब यीशु ने उन बारहों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?”
68 ततः शिमोन् पितरः प्रत्यवोचत् हे प्रभो कस्याभ्यर्णं गमिष्यामः? (aiōnios g166)
६८शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, हम किसके पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। (aiōnios g166)
69 अनन्तजीवनदायिन्यो याः कथास्तास्तवैव। भवान् अमरेश्वरस्याभिषिक्त्तपुत्र इति विश्वस्य निश्चितं जानीमः।
६९और हमने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।”
70 तदा यीशुरवदत् किमहं युष्माकं द्वादशजनान् मनोनीतान् न कृतवान्? किन्तु युष्माकं मध्येपि कश्चिदेको विघ्नकारी विद्यते।
७०यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तो भी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।”
71 इमां कथं स शिमोनः पुत्रम् ईष्करीयोतीयं यिहूदाम् उद्दिश्य कथितवान् यतो द्वादशानां मध्ये गणितः स तं परकरेषु समर्पयिष्यति।
७१यह उसने शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के विषय में कहा, क्योंकि यही जो उन बारहों में से था, उसे पकड़वाने को था।

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