< योहनः 14 >
1 मनोदुःखिनो मा भूत; ईश्वरे विश्वसित मयि च विश्वसित।
“तुम्हरो मन दु: खी नहीं हो; परमेश्वर पर विश्वास रखो अऊर मोरो पर भी विश्वास रखो।
2 मम पितु गृहे बहूनि वासस्थानि सन्ति नो चेत् पूर्व्वं युष्मान् अज्ञापयिष्यं युष्मदर्थं स्थानं सज्जयितुं गच्छामि।
मोरो बाप को घर म बहुत सो रहन की जागा हंय, यदि नहीं होतो त मय तुम सी कह्य देतो; कहालीकि मय तुम्हरो लायी जागा तैयार करन जाऊ हय।
3 यदि गत्वाहं युष्मन्निमित्तं स्थानं सज्जयामि तर्हि पनरागत्य युष्मान् स्वसमीपं नेष्यामि, ततो यत्राहं तिष्ठामि तत्र यूयमपि स्थास्यथ।
अऊर यदि मय जाय क तुम्हरो लायी जागा तैयार करू, त फिर आय क तुम्ख अपनो इत ले जाऊं कि जित मय रहूं उत तुम भी रहो।
4 अहं यत्स्थानं ब्रजामि तत्स्थानं यूयं जानीथ तस्य पन्थानमपि जानीथ।
जित मय जाऊ हय तुम उत को रस्ता जानय हय।”
5 तदा थोमा अवदत्, हे प्रभो भवान् कुत्र याति तद्वयं न जानीमः, तर्हि कथं पन्थानं ज्ञातुं शक्नुमः?
थोमा न ओको सी कह्यो, “हे प्रभु, हम नहीं जानय कि तय कित जाय रह्यो हय; त रस्ता कसो जानबो?”
6 यीशुरकथयद् अहमेव सत्यजीवनरूपपथो मया न गन्ता कोपि पितुः समीपं गन्तुं न शक्नोति।
यीशु न ओको सी कह्यो, “रस्ता अऊर सत्य अऊर जीवन मयच हय; बिना मोरो द्वारा कोयी बाप को जवर नहीं पहुंच सकय।
7 यदि माम् अज्ञास्यत तर्हि मम पितरमप्यज्ञास्यत किन्त्वधुनातस्तं जानीथ पश्यथ च।
यदि तुम न मोख जान्यो होतो, त मोरो बाप ख भी जानतो; अऊर अब ओख जानय हय, अऊर ओख देख्यो भी हय।”
8 तदा फिलिपः कथितवान्, हे प्रभो पितरं दर्शय तस्मादस्माकं यथेष्टं भविष्यति।
फिलिप्पुस न ओको सी कह्यो, “हे प्रभु, पिता ख हम्ख दिखाय दे, योच हमरो लायी बहुत हय।”
9 ततो यीशुः प्रत्यावादीत्, हे फिलिप युष्माभिः सार्द्धम् एतावद्दिनानि स्थितमपि मां किं न प्रत्यभिजानासि? यो जनो माम् अपश्यत् स पितरमप्यपश्यत् तर्हि पितरम् अस्मान् दर्शयेति कथां कथं कथयसि?
यीशु न ओको सी कह्यो, “हे फिलिप्पुस, मय इतनो दिन सी तुम्हरो संग हय, अऊर का तय मोख नहीं जानय? जेन मोख देख्यो हय ओन बाप ख देख्यो हय। तय कहाली कह्य हय कि बाप ख हम्ख दिखाव?
10 अहं पितरि तिष्ठामि पिता मयि तिष्ठतीति किं त्वं न प्रत्यषि? अहं यद्वाक्यं वदामि तत् स्वतो न वदामि किन्तु यः पिता मयि विराजते स एव सर्व्वकर्म्माणि कराति।
का तय विश्वास नहीं करय कि मय बाप म हय अऊर बाप मोर म हय? या बाते जो मय तुम सी कहू हय, अपनो तरफ सी नहीं कहूं, पर बाप मोर म रह्य क अपनो काम करय हय।
11 अतएव पितर्य्यहं तिष्ठामि पिता च मयि तिष्ठति ममास्यां कथायां प्रत्ययं कुरुत, नो चेत् कर्म्महेतोः प्रत्ययं कुरुत।
जो मोरी या बात पर विश्वास करो कि मय बाप म हय अऊर बाप मोर म हय; नहीं त कामों को वजह मोरो विश्वास करो।”
12 अहं युष्मानतियथार्थं वदामि, यो जनो मयि विश्वसिति सोहमिव कर्म्माणि करिष्यति वरं ततोपि महाकर्म्माणि करिष्यति यतो हेतोरहं पितुः समीपं गच्छामि।
“मय तुम सी सच सच कहू हय कि जो मोर पर विश्वास रखय हय, यो काम जो मय करू हय ऊ भी करेंन, बल्की इन सी भी बड़ो काम करेंन, कहालीकि मय बाप को जवर जाऊं हय।
13 यथा पुत्रेण पितु र्महिमा प्रकाशते तदर्थं मम नाम प्रोच्य यत् प्रार्थयिष्यध्वे तत् सफलं करिष्यामि।
जो कुछ तुम मोरो नाम सी मांगो, उच मय करू कि बेटा को द्वारा बाप की महिमा होय।
14 यदि मम नाम्ना यत् किञ्चिद् याचध्वे तर्हि तदहं साधयिष्यामि।
यदि तुम मोरो सी मोरो नाम सी कुछ मांगो, त मय ओख करू।”
15 यदि मयि प्रीयध्वे तर्हि ममाज्ञाः समाचरत।
“यदि तुम मोरो सी प्रेम रखय हय, त मोरी आज्ञावों ख मानो।
16 ततो मया पितुः समीपे प्रार्थिते पिता निरन्तरं युष्माभिः सार्द्धं स्थातुम् इतरमेकं सहायम् अर्थात् सत्यमयम् आत्मानं युष्माकं निकटं प्रेषयिष्यति। (aiōn )
मय बाप सी बिनती करू, अऊर ऊ तुम्ख एक अऊर सहायक देयेंन कि ऊ हमेशा तुम्हरो संग रहेंन” (aiōn )
17 एतज्जगतो लोकास्तं ग्रहीतुं न शक्नुवन्ति यतस्ते तं नापश्यन् नाजनंश्च किन्तु यूयं जानीथ यतो हेतोः स युष्माकमन्त र्निवसति युष्माकं मध्ये स्थास्यति च।
यानेकि सत्य की आत्मा, जेक जगत स्वीकार नहीं कर सकय, कहालीकि ऊ नहीं ओख देखय हय अऊर नहीं ओख जानय हय; तुम ओख जानय हय, कहालीकि ऊ तुम्हरो संग रह्य हय, अऊर ऊ तुम म रहेंन।
18 अहं युष्मान् अनाथान् कृत्वा न यास्यामि पुनरपि युष्माकं समीपम् आगमिष्यामि।
“मय तुम्ख अनाथ नहीं छोड़ूं; मय तुम्हरो जवर आऊं।
19 कियत्कालरत् परम् अस्य जगतो लोका मां पुन र्न द्रक्ष्यन्ति किन्तु यूयं द्रक्ष्यथ; अहं जीविष्यामि तस्मात् कारणाद् यूयमपि जीविष्यथ।
अऊर थोड़ी देर रह गयी हय कि फिर जगत मोख नहीं देखेंन, पर तुम मोख देखेंन; येकोलायी कि मय जीन्दो हय, तुम भी जीन्दो रहेंन।
20 पितर्य्यहमस्मि मयि च यूयं स्थ, तथाहं युष्मास्वस्मि तदपि तदा ज्ञास्यथ।
ऊ दिन तुम जानेंन कि मय अपनो बाप म हय, अऊर तुम मोर म, अऊर मय तुम म।”
21 यो जनो ममाज्ञा गृहीत्वा ता आचरति सएव मयि प्रीयते; यो जनश्च मयि प्रीयते सएव मम पितुः प्रियपात्रं भविष्यति, तथाहमपि तस्मिन् प्रीत्वा तस्मै स्वं प्रकाशयिष्यामि।
जेको जवर मोरी आज्ञाये हंय अऊर ऊ उन्ख मानय हय, उच मोरो सी प्रेम रखय हय; अऊर जो मोरो सी प्रेम रखय हय ओको सी मोरो बाप प्रेम रखेंन, अऊर मय ओको सी प्रेम रखू अऊर अपनो आप ख ओको पर प्रगट करू।
22 तदा ईष्करियोतीयाद् अन्यो यिहूदास्तमवदत्, हे प्रभो भवान् जगतो लोकानां सन्निधौ प्रकाशितो न भूत्वास्माकं सन्निधौ कुतः प्रकाशितो भविष्यति?
ऊ यहूदा न जो इस्करियोती नहीं होतो, ओको सी कह्यो, “हे प्रभु, का भयो कि तय अपनो आप ख हम पर प्रगट करनो चाहवय हय अऊर जगत पर नहीं?”
23 ततो यीशुः प्रत्युदितवान्, यो जनो मयि प्रीयते स ममाज्ञा अपि गृह्लाति, तेन मम पितापि तस्मिन् प्रेष्यते, आवाञ्च तन्निकटमागत्य तेन सह निवत्स्यावः।
यीशु न ओख उत्तर दियो, “यदि कोयी मोर सी प्रेम रखेंन त ऊ मोरो वचन ख मानेंन, अऊर मोरो बाप ओको सी प्रेम रखेंन, अऊर हम ओको जवर आयबो अऊर ओको संग रहबो।
24 यो जनो मयि न प्रीयते स मम कथा अपि न गृह्लाति पुनश्च यामिमां कथां यूयं शृणुथ सा कथा केवलस्य मम न किन्तु मम प्रेरको यः पिता तस्यापि कथा।
जो मोरो सी प्रेम नहीं रखय, ऊ मोरो वचन नहीं मानय; अऊर जो वचन तुम सुनय हय ऊ मोरो नहीं बल्की बाप को हय, जेन मोख भेज्यो।”
25 इदानीं युष्माकं निकटे विद्यमानोहम् एताः सकलाः कथाः कथयामि।
“या बाते मय न तुम्हरो संग रहतो हुयो तुम सी कहीं।
26 किन्त्वितः परं पित्रा यः सहायोऽर्थात् पवित्र आत्मा मम नाम्नि प्रेरयिष्यति स सर्व्वं शिक्षयित्वा मयोक्ताः समस्ताः कथा युष्मान् स्मारयिष्यति।
पर सहायक यानेकि पवित्र आत्मा जेख बाप मोरो नाम सी भेजेंन, ऊ तुम्ख सब बाते सिखायेंन, अऊर जो कुछ मय न तुम सी कह्यो हय, ऊ सब तुम्ख याद दिलायेंन।”
27 अहं युष्माकं निकटे शान्तिं स्थापयित्वा यामि, निजां शान्तिं युष्मभ्यं ददामि, जगतो लोका यथा ददाति तथाहं न ददामि; युष्माकम् अन्तःकरणानि दुःखितानि भीतानि च न भवन्तु।
मय तुम्ख शान्ति दियो जाऊं हय, अपनी शान्ति तुम्ख देऊ हय; जसो जगत देवय हय, मय तुम्ख नहीं देऊ: तुम्हरो मन दु: खी नहीं हो अऊर मत डरो।
28 अहं गत्वा पुनरपि युष्माकं समीपम् आगमिष्यामि मयोक्तं वाक्यमिदं यूयम् अश्रौष्ट; यदि मय्यप्रेष्यध्वं तर्ह्यहं पितुः समीपं गच्छामि ममास्यां कथायां यूयम् अह्लादिष्यध्वं यतो मम पिता मत्तोपि महान्।
तुम न सुन्यो कि मय न तुम सी कह्यो, “मय जाऊं हय, अऊर तुम्हरो जवर फिर आऊं।” यदि तुम मोरो सी प्रेम रखतो, त या बात सी खुशी होतो कि मय बाप को जवर जाऊं हय, कहालीकि बाप मोर सी बड़ो हय।
29 तस्या घटनायाः समये यथा युष्माकं श्रद्धा जायते तदर्थम् अहं तस्या घटनायाः पूर्व्वम् इदानीं युष्मान् एतां वार्त्तां वदामि।
अऊर मय न अब येको होनो सी पहिले तुम सी कह्य दियो हय, कि जब ऊ होय जाये, त तुम विश्वास करो।
30 इतः परं युष्माभिः सह मम बहव आलापा न भविष्यन्ति यतः कारणाद् एतस्य जगतः पतिरागच्छति किन्तु मया सह तस्य कोपि सम्बन्धो नास्ति।
मय अब तुम्हरो संग अऊर बहुत बाते नहीं करू, कहालीकि यो जगत को शासक आवय हय। मोरो पर ओको कोयी अधिकार नहीं;
31 अहं पितरि प्रेम करोमि तथा पितु र्विधिवत् कर्म्माणि करोमीति येन जगतो लोका जानन्ति तदर्थम् उत्तिष्ठत वयं स्थानादस्माद् गच्छाम।
पर यो येकोलायी होवय हय कि जगत जाने कि मय बाप सी प्रेम रखू हय, अऊर जसो बाप न मोख आज्ञा दियो हय मय वसोच करू हय। उठो, इत सी चलबो।