< प्रेरिताः 4 >
1 यस्मिन् समये पितरयोहनौ लोकान् उपदिशतस्तस्मिन् समये याजका मन्दिरस्य सेनापतयः सिदूकीगणश्च
१जब पतरस और यूहन्ना लोगों से यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आए।
2 तयोर् उपदेशकरणे ख्रीष्टस्योत्थानम् उपलक्ष्य सर्व्वेषां मृतानाम् उत्थानप्रस्तावे च व्यग्राः सन्तस्तावुपागमन्।
२वे बहुत क्रोधित हुए कि पतरस और यूहन्ना यीशु के विषय में सिखाते थे और उसके मरे हुओं में से जी उठने का प्रचार करते थे।
3 तौ धृत्वा दिनावसानकारणात् परदिनपर्य्यनन्तं रुद्ध्वा स्थापितवन्तः।
३और उन्होंने उन्हें पकड़कर दूसरे दिन तक हवालात में रखा क्योंकि संध्या हो गई थी।
4 तथापि ये लोकास्तयोरुपदेशम् अशृण्वन् तेषां प्रायेण पञ्चसहस्राणि जना व्यश्वसन्।
४परन्तु वचन के सुननेवालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उनकी गिनती पाँच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।
5 परेऽहनि अधिपतयः प्राचीना अध्यापकाश्च हानननामा महायाजकः
५दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उनके सरदार और पुरनिए और शास्त्री।
6 कियफा योहन् सिकन्दर इत्यादयो महायाजकस्य ज्ञातयः सर्व्वे यिरूशालम्नगरे मिलिताः।
६और महायाजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकन्दर और जितने महायाजक के घराने के थे, सब यरूशलेम में इकट्ठे हुए।
7 अनन्तरं प्रेरितौ मध्ये स्थापयित्वापृच्छन् युवां कया शक्तया वा केन नाम्ना कर्म्माण्येतानि कुरुथः?
७और पतरस और यूहन्ना को बीच में खड़ा करके पूछने लगे, “तुम ने यह काम किस सामर्थ्य से और किस नाम से किया है?”
8 तदा पितरः पवित्रेणात्मना परिपूर्णः सन् प्रत्यवादीत्, हे लोकानाम् अधिपतिगण हे इस्रायेलीयप्राचीनाः,
८तब पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उनसे कहा,
9 एतस्य दुर्ब्बलमानुषस्य हितं यत् कर्म्माक्रियत, अर्थात्, स येन प्रकारेण स्वस्थोभवत् तच्चेद् अद्यावां पृच्छथ,
९“हे लोगों के सरदारों और प्राचीनों, इस दुर्बल मनुष्य के साथ जो भलाई की गई है, यदि आज हम से उसके विषय में पूछताछ की जाती है, कि वह कैसे अच्छा हुआ।
10 तर्हि सर्व्व इस्रायेेलीयलोका यूयं जानीत नासरतीयो यो यीशुख्रीष्टः क्रुशे युष्माभिरविध्यत यश्चेश्वरेण श्मशानाद् उत्थापितः, तस्य नाम्ना जनोयं स्वस्थः सन् युष्माकं सम्मुखे प्रोत्तिष्ठति।
१०तो तुम सब और सारे इस्राएली लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया, यह मनुष्य तुम्हारे सामने भला चंगा खड़ा है।
11 निचेतृभि र्युष्माभिरयं यः प्रस्तरोऽवज्ञातोऽभवत् स प्रधानकोणस्य प्रस्तरोऽभवत्।
११यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया।
12 तद्भिन्नादपरात् कस्मादपि परित्राणं भवितुं न शक्नोति, येन त्राणं प्राप्येत भूमण्डलस्यलोकानां मध्ये तादृशं किमपि नाम नास्ति।
१२और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सके।”
13 तदा पितरयोहनोरेतादृशीम् अक्षेभतां दृष्ट्वा तावविद्वांसौ नीचलोकाविति बुद्ध्वा आश्चर्य्यम् अमन्यन्त तौ च यीशोः सङ्गिनौ जाताविति ज्ञातुम् अशक्नुवन्।
१३जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का साहस देखा, और यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उनको पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।
14 किन्तु ताभ्यां सार्द्धं तं स्वस्थमानुषं तिष्ठन्तं दृष्ट्वा ते कामप्यपराम् आपत्तिं कर्त्तं नाशक्नुन्।
१४परन्तु उस मनुष्य को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़े देखकर, यहूदी उनके विरोध में कुछ न कह सके।
15 तदा ते सभातः स्थानान्तरं गन्तुं तान् आज्ञाप्य स्वयं परस्परम् इति मन्त्रणामकुर्व्वन्
१५परन्तु उन्हें महासभा के बाहर जाने की आज्ञा देकर, वे आपस में विचार करने लगे,
16 तौ मानवौ प्रति किं कर्त्तव्यं? तावेकं प्रसिद्धम् आश्चर्य्यं कर्म्म कृतवन्तौ तद् यिरूशालम्निवासिनां सर्व्वेषां लोकानां समीपे प्राकाशत तच्च वयमपह्नोतुं न शक्नुमः।
१६“हम इन मनुष्यों के साथ क्या करें? क्योंकि यरूशलेम के सब रहनेवालों पर प्रगट है, कि इनके द्वारा एक प्रसिद्ध चिन्ह दिखाया गया है; और हम उसका इन्कार नहीं कर सकते।
17 किन्तु लोकानां मध्यम् एतद् यथा न व्याप्नोति तदर्थं तौ भयं प्रदर्श्य तेन नाम्ना कमपि मनुष्यं नोपदिशतम् इति दृढं निषेधामः।
१७परन्तु इसलिए कि यह बात लोगों में और अधिक फैल न जाए, हम उन्हें धमकाएँ, कि वे इस नाम से फिर किसी मनुष्य से बातें न करें।”
18 ततस्ते प्रेरितावाहूय एतदाज्ञापयन् इतः परं यीशो र्नाम्ना कदापि कामपि कथां मा कथयतं किमपि नोपदिशञ्च।
१८तब पतरस और यूहन्ना को बुलाया और चेतावनी देकर यह कहा, “यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखाना।”
19 ततः पितरयोहनौ प्रत्यवदताम् ईश्वरस्याज्ञाग्रहणं वा युष्माकम् आज्ञाग्रहणम् एतयो र्मध्ये ईश्वरस्य गोचरे किं विहितं? यूयं तस्य विवेचनां कुरुत।
१९परन्तु पतरस और यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्वर के निकट भला है, कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें?
20 वयं यद् अपश्याम यदशृणुम च तन्न प्रचारयिष्याम एतत् कदापि भवितुं न शक्नोति।
२०क्योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हमने देखा और सुना है, वह न कहें।”
21 यदघटत तद् दृष्टा सर्व्वे लोका ईश्वरस्य गुणान् अन्ववदन् तस्मात् लोकभयात् तौ दण्डयितुं कमप्युपायं न प्राप्य ते पुनरपि तर्जयित्वा तावत्यजन्।
२१तब उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया, क्योंकि लोगों के कारण उन्हें दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला, इसलिए कि जो घटना हुई थी उसके कारण सब लोग परमेश्वर की बड़ाई करते थे।
22 यस्य मानुषस्यैतत् स्वास्थ्यकरणम् आश्चर्य्यं कर्म्माक्रियत तस्य वयश्चत्वारिंशद्वत्सरा व्यतीताः।
२२क्योंकि वह मनुष्य, जिस पर यह चंगा करने का चिन्ह दिखाया गया था, चालीस वर्ष से अधिक आयु का था।
23 ततः परं तौ विसृष्टौ सन्तौ स्वसङ्गिनां सन्निधिं गत्वा प्रधानयाजकैः प्राचीनलोकैश्च प्रोक्ताः सर्व्वाः कथा ज्ञापितवन्तौ।
२३पतरस और यूहन्ना छूटकर अपने साथियों के पास आए, और जो कुछ प्रधान याजकों और प्राचीनों ने उनसे कहा था, उनको सुना दिया।
24 तच्छ्रुत्वा सर्व्व एकचित्तीभूय ईश्वरमुद्दिश्य प्रोच्चैरेतत् प्रार्थयन्त, हे प्रभो गगणपृथिवीपयोधीनां तेषु च यद्यद् आस्ते तेषां स्रष्टेश्वरस्त्वं।
२४यह सुनकर, उन्होंने एक चित्त होकर ऊँचे शब्द से परमेश्वर से कहा, “हे प्रभु, तू वही है जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया।
25 त्वं निजसेवकेन दायूदा वाक्यमिदम् उवचिथ, मनुष्या अन्यदेशीयाः कुर्व्वन्ति कलहं कुतः। लोकाः सर्व्वे किमर्थं वा चिन्तां कुर्व्वन्ति निष्फलां।
२५तूने पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक हमारे पिता दाऊद के मुख से कहा, ‘अन्यजातियों ने हुल्लड़ क्यों मचाया? और देश-देश के लोगों ने क्यों व्यर्थ बातें सोची?
26 परमेशस्य तेनैवाभिषिक्तस्य जनस्य च। विरुद्धमभितिष्ठन्ति पृथिव्याः पतयः कुतः॥
२६प्रभु और उसके अभिषिक्त के विरोध में पृथ्वी के राजा खड़े हुए, और हाकिम एक साथ इकट्ठे हो गए।’
27 फलतस्तव हस्तेन मन्त्रणया च पूर्व्व यद्यत् स्थिरीकृतं तद् यथा सिद्धं भवति तदर्थं त्वं यम् अथिषिक्तवान् स एव पवित्रो यीशुस्तस्य प्रातिकूल्येन हेरोद् पन्तीयपीलातो
२७“क्योंकि सचमुच तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तूने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी अन्यजातियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए,
28 ऽन्यदेशीयलोका इस्रायेल्लोकाश्च सर्व्व एते सभायाम् अतिष्ठन्।
२८कि जो कुछ पहले से तेरी सामर्थ्य और मति से ठहरा था वही करें।
29 हे परमेश्वर अधुना तेषां तर्जनं गर्जनञ्च शृणु;
२९अब हे प्रभु, उनकी धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे कि तेरा वचन बड़े साहस से सुनाएँ।
30 तथा स्वास्थ्यकरणकर्म्मणा तव बाहुबलप्रकाशपूर्व्वकं तव सेवकान् निर्भयेन तव वाक्यं प्रचारयितुं तव पवित्रपुत्रस्य यीशो र्नाम्ना आश्चर्य्याण्यसम्भवानि च कर्म्माणि कर्त्तुञ्चाज्ञापय।
३०और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएँ।”
31 इत्थं प्रार्थनया यत्र स्थाने ते सभायाम् आसन् तत् स्थानं प्राकम्पत; ततः सर्व्वे पवित्रेणात्मना परिपूर्णाः सन्त ईश्वरस्य कथाम् अक्षोभेण प्राचारयन्।
३१जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन साहस से सुनाते रहे।
32 अपरञ्च प्रत्ययकारिलोकसमूहा एकमनस एकचित्तीभूय स्थिताः। तेषां केपि निजसम्पत्तिं स्वीयां नाजानन् किन्तु तेषां सर्व्वाः सम्पत्त्यः साधारण्येन स्थिताः।
३२और विश्वास करनेवालों की मण्डली एक चित्त और एक मन की थी, यहाँ तक कि कोई भी अपनी सम्पत्ति अपनी नहीं कहता था, परन्तु सब कुछ साझे का था।
33 अन्यच्च प्रेरिता महाशक्तिप्रकाशपूर्व्वकं प्रभो र्यीशोरुत्थाने साक्ष्यम् अददुः, तेषु सर्व्वेषु महानुग्रहोऽभवच्च।
३३और प्रेरित बड़ी सामर्थ्य से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे और उन सब पर बड़ा अनुग्रह था।
34 तेषां मध्ये कस्यापि द्रव्यन्यूनता नाभवद् यतस्तेषां गृहभूम्याद्या याः सम्पत्तय आसन् ता विक्रीय
३४और उनमें कोई भी दरिद्र न था, क्योंकि जिनके पास भूमि या घर थे, वे उनको बेच-बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पाँवों पर रखते थे।
35 तन्मूल्यमानीय प्रेरितानां चरणेषु तैः स्थापितं; ततः प्रत्येकशः प्रयोजनानुसारेण दत्तमभवत्।
३५और जैसी जिसे आवश्यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बाँट दिया करते थे।
36 विशेषतः कुप्रोपद्वीपीयो योसिनामको लेविवंशजात एको जनो भूम्यधिकारी, यं प्रेरिता बर्णब्बा अर्थात् सान्त्वनादायक इत्युक्त्वा समाहूयन्,
३६और यूसुफ नामक, साइप्रस का एक लेवी था जिसका नाम प्रेरितों ने बरनबास अर्थात् (शान्ति का पुत्र) रखा था।
37 स जनो निजभूमिं विक्रीय तन्मूल्यमानीय प्रेरितानां चरणेषु स्थापितवान्।
३७उसकी कुछ भूमि थी, जिसे उसने बेचा, और दाम के रुपये लाकर प्रेरितों के पाँवों पर रख दिए।