< mathiH 24 >
1 anantaraM yIzu ryadA mandirAd bahi rgacchati, tadAnIM ziSyAstaM mandiranirmmANaM darzayitumAgatAH|
येशु मंदिर से निकलकर जा रहे थे कि शिष्यों ने उनका ध्यान मंदिर परिसर की ओर आकर्षित किया.
2 tatO yIzustAnuvAca, yUyaM kimEtAni na pazyatha? yuSmAnahaM satyaM vadAmi, Etannicayanasya pASANaikamapyanyapASANEpari na sthAsyati sarvvANi bhUmisAt kAriSyantE|
येशु ने उनसे कहा, “तुम यह मंदिर परिसर देख रहे हो? सच तो यह है कि एक दिन इन भवनों का एक भी पत्थर दूसरे पर रखा न दिखेगा—हर एक पत्थर ज़मीन पर बिखरा होगा.”
3 anantaraM tasmin jaitunaparvvatOpari samupaviSTE ziSyAstasya samIpamAgatya guptaM papracchuH, EtA ghaTanAH kadA bhaviSyanti? bhavata Agamanasya yugAntasya ca kiM lakSma? tadasmAn vadatu| (aiōn )
येशु ज़ैतून पर्वत पर बैठे हुए थे. इस एकांत में उनके शिष्य उनके पास आए और उनसे यह प्रश्न किया, “गुरुवर, हमें यह बताइए कि ये घटनाएं कब घटित होंगी, आपके आने तथा जगत के अंत का चिह्न क्या होगा?” (aiōn )
4 tadAnIM yIzustAnavOcat, avadhadvvaM, kOpi yuSmAn na bhramayEt|
येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “इस विषय में सावधान रहना कि कोई तुम्हें भरमाने न पाए
5 bahavO mama nAma gRhlanta AgamiSyanti, khrISTO'hamEvEti vAcaM vadantO bahUn bhramayiSyanti|
क्योंकि मेरे नाम में अनेक यह दावा करते आएंगे, ‘मैं ही मसीह हूं’ और इसके द्वारा अनेकों को भरमा देंगे.
6 yUyanjca saMgrAmasya raNasya cAPambaraM zrOSyatha, avadhadvvaM tEna canjcalA mA bhavata, EtAnyavazyaM ghaTiSyantE, kintu tadA yugAntO nahi|
तुम युद्धों के विषय में तो सुनोगे ही साथ ही उनके विषय में उड़ते-उड़ते समाचार भी. ध्यान रहे कि तुम इससे घबरा न जाओ क्योंकि इनका होना अवश्य है—किंतु इसे ही अंत न समझ लेना.
7 aparaM dEzasya vipakSO dEzO rAjyasya vipakSO rAjyaM bhaviSyati, sthAnE sthAnE ca durbhikSaM mahAmArI bhUkampazca bhaviSyanti,
राष्ट्र-राष्ट्र के तथा, राज्य-राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. हर जगह अकाल पड़ेंगे तथा भूकंप आएंगे,
किंतु ये सब घटनाएं प्रसववेदना का प्रारंभ मात्र होंगी.
9 tadAnIM lOkA duHkhaM bhOjayituM yuSmAn parakarESu samarpayiSyanti haniSyanti ca, tathA mama nAmakAraNAd yUyaM sarvvadEzIyamanujAnAM samIpE ghRNArhA bhaviSyatha|
“तब वे तुम्हें क्लेश देने के लिए पकड़वाएंगे और तुम्हारी हत्या कर देंगे क्योंकि मेरे कारण तुम सभी देशों की घृणा के पात्र बन जाओगे.
10 bahuSu vighnaM prAptavatsu parasparam RtIyAM kRtavatsu ca EkO'paraM parakarESu samarpayiSyati|
इसी समय अनेक विश्वास से हट जाएंगे तथा त्याग देंगे, वे एक दूसरे से विश्वासघात करेंगे, वे एक दूसरे से घृणा करने लगेंगे.
11 tathA bahavO mRSAbhaviSyadvAdina upasthAya bahUn bhramayiSyanti|
अनेक झूठे भविष्यवक्ता उठ खड़े होंगे. वे अनेकों को भरमा देंगे.
12 duSkarmmaNAM bAhulyAnjca bahUnAM prEma zItalaM bhaviSyati|
अधर्म के बढ़ने के कारण अधिकांश का प्रेम ठंडा पड़ता जाएगा;
13 kintu yaH kazcit zESaM yAvad dhairyyamAzrayatE, saEva paritrAyiSyatE|
किंतु उद्धार उसी का होगा, जो अंतिम क्षण तक विश्वास में स्थिर रहेगा.
14 aparaM sarvvadEzIyalOkAn pratimAkSI bhavituM rAjasya zubhasamAcAraH sarvvajagati pracAriSyatE, EtAdRzi sati yugAnta upasthAsyati|
पूरे जगत में सारे राष्ट्रों के लिए प्रमाण के तौर पर राज्य के विषय में सुसमाचार का प्रचार किया जाएगा और तब जगत का अंत हो जाएगा.
15 atO yat sarvvanAzakRdghRNArhaM vastu dAniyElbhaviSyadvadinA prOktaM tad yadA puNyasthAnE sthApitaM drakSyatha, (yaH paThati, sa budhyatAM)
“इसलिये जब तुम उस विनाशकारी घृणित वस्तु को, जिसकी चर्चा भविष्यवक्ता दानिएल ने की थी, पवित्र स्थान में खड़ा देखो—पाठक ध्यान दे—
16 tadAnIM yE yihUdIyadEzE tiSThanti, tE parvvatESu palAyantAM|
तो वे, जो यहूदिया प्रदेश में हों पर्वतों पर भागकर जाएं,
17 yaH kazcid gRhapRSThE tiSThati, sa gRhAt kimapi vastvAnEtum adhE nAvarOhEt|
वह, जो घर की छत पर हो, घर में से सामान लेने नीचे न आए.
18 yazca kSEtrE tiSThati, sOpi vastramAnEtuM parAvRtya na yAyAt|
वह, जो खेत में हो, अपना कपड़ा लेने पीछे न लौटे.
19 tadAnIM garbhiNIstanyapAyayitrINAM durgati rbhaviSyati|
दयनीय होगी गर्भवती और शिशुओं को दूध पिलाती स्त्रियों की स्थिति!
20 atO yaSmAkaM palAyanaM zItakAlE vizrAmavArE vA yanna bhavEt, tadarthaM prArthayadhvam|
प्रार्थनारत रहो, ऐसा न हो कि तुम्हें जाड़े या शब्बाथ पर भागना पड़े
21 A jagadArambhAd EtatkAlaparyyanantaM yAdRzaH kadApi nAbhavat na ca bhaviSyati tAdRzO mahAklEzastadAnIm upasthAsyati|
क्योंकि वह महाक्लेश का समय होगा—ऐसा, जो न तो सृष्टि के प्रारंभ से आज तक देखा गया, न ही इसके बाद दोबारा देखा जाएगा.
22 tasya klEzasya samayO yadi hsvO na kriyEta, tarhi kasyApi prANinO rakSaNaM bhavituM na zaknuyAt, kintu manOnItamanujAnAM kRtE sa kAlO hsvIkariSyatE|
“यदि यह आनेवाले दिन घटाए न जाते, कोई भी जीवित न रहता. कुछ चुने हुए विशेष लोगों के लिए यह अवधि घटा दी जाएगी.
23 aparanjca pazyata, khrISTO'tra vidyatE, vA tatra vidyatE, tadAnIM yadI kazcid yuSmAna iti vAkyaM vadati, tathApi tat na pratIt|
उस समय यदि कोई आकर तुम्हें सूचित करे, ‘सुनो-सुनो, मसीह यहां हैं!’ या, ‘वह वहां हैं!’ तो विश्वास न करना.
24 yatO bhAktakhrISTA bhAktabhaviSyadvAdinazca upasthAya yAni mahanti lakSmANi citrakarmmANi ca prakAzayiSyanti, tai ryadi sambhavEt tarhi manOnItamAnavA api bhrAmiSyantE|
क्योंकि अनेक झूठे मसीह तथा अनेक झूठे भविष्यवक्ता उठ खड़े होंगे. वे प्रभावशाली चमत्कार चिह्न दिखाएंगे तथा अद्भुत काम करेंगे कि यदि संभव हुआ तो परमेश्वर द्वारा चुने हुओं को भी भटका दें.
25 pazyata, ghaTanAtaH pUrvvaM yuSmAn vArttAm avAdiSam|
ध्यान दो कि मैंने पहले ही तुम्हें इसकी चेतावनी दे दी है.
26 ataH pazyata, sa prAntarE vidyata iti vAkyE kEnacit kathitEpi bahi rmA gacchata, vA pazyata, sOntaHpurE vidyatE, EtadvAkya uktEpi mA pratIta|
“कि यदि वे तुम्हारे पास आकर यह कहें, ‘देखो, देखो; वह बंजर भूमि में हैं,’ तो उसे देखने चले न जाना; या यदि वे यह कहें, ‘आओ, देखो, वह कोठरी में हैं,’ तो उनका विश्वास न करना.”
27 yatO yathA vidyut pUrvvadizO nirgatya pazcimadizaM yAvat prakAzatE, tathA mAnuSaputrasyApyAgamanaM bhaviSyati|
जैसे बिजली पूर्व दिशा से चमकती हुई पश्चिम दिशा तक चली जाती है, ठीक ऐसा ही होगा मनुष्य के पुत्र का आगमन.
28 yatra zavastiSThati, tatrEva gRdhrA milanti|
गिद्ध वहीं इकट्ठा होते हैं, जहां शव होता है.
29 aparaM tasya klEzasamayasyAvyavahitaparatra sUryyasya tEjO lOpsyatE, candramA jyOsnAM na kariSyati, nabhasO nakSatrANi patiSyanti, gagaNIyA grahAzca vicaliSyanti|
“उन दिनों के क्लेश के तुरंत बाद “‘सूर्य अंधियारा हो जाएगा और चंद्रमा का प्रकाश न रहेगा. आकाश से तारे गिर जाएंगे. आकाश की शक्तियां हिलायी जाएंगी.’
30 tadAnIm AkAzamadhyE manujasutasya lakSma darziSyatE, tatO nijaparAkramENa mahAtEjasA ca mEghArUPhaM manujasutaM nabhasAgacchantaM vilOkya pRthivyAH sarvvavaMzIyA vilapiSyanti|
“तब आकाश में मनुष्य के पुत्र का चिह्न प्रकट होगा. पृथ्वी के सभी गोत्र शोक से भर जाएंगे और वे मनुष्य के पुत्र को आकाश में बादलों पर सामर्थ्य और प्रताप के साथ आता हुआ देखेंगे.
31 tadAnIM sa mahAzabdAyamAnatUryyA vAdakAn nijadUtAn prahESyati, tE vyOmna EkasImAtO'parasImAM yAvat caturdizastasya manOnItajanAn AnIya mElayiSyanti|
मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को तुरही के ऊंचे शब्द के साथ भेजेगा, जो चारों दिशाओं से, आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक जाकर उनके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे.
32 uPumbarapAdapasya dRSTAntaM zikSadhvaM; yadA tasya navInAH zAkhA jAyantE, pallavAdizca nirgacchati, tadA nidAghakAlaH savidhO bhavatIti yUyaM jAnItha;
“अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो: जब उसमें कोंपलें फूटने लगती हैं, पत्तियां निकलने लगती हैं तो तुम जान लेते हो कि गर्मी का समय पास है.
33 tadvad EtA ghaTanA dRSTvA sa samayO dvAra upAsthAd iti jAnIta|
इसी प्रकार तुम जब भी इन सभी घटनाओं को होते देखो तो समझ लेना कि वह पास हैं—परंतु द्वार पर ही हैं.
34 yuSmAnahaM tathyaM vadAmi, idAnIntanajanAnAM gamanAt pUrvvamEva tAni sarvvANi ghaTiSyantE|
सच्चाई तो यह है कि इन घटनाओं के हुए बिना इस युग का अंत नहीं होगा.
35 nabhOmEdinyO rluptayOrapi mama vAk kadApi na lOpsyatE|
आकाश तथा पृथ्वी खत्म हो जाएंगे किंतु मेरे कहे हुए शब्द कभी नहीं.
36 aparaM mama tAtaM vinA mAnuSaH svargasthO dUtO vA kOpi taddinaM taddaNPanjca na jnjApayati|
“वैसे उस दिन तथा उस समय के विषय में किसी को भी मालूम नहीं है—न स्वर्ग के दूतों को और न ही पुत्र को—परंतु मात्र पिता को ही यह मालूम है.
37 aparaM nOhE vidyamAnE yAdRzamabhavat tAdRzaM manujasutasyAgamanakAlEpi bhaviSyati|
“ठीक नोहा के दिनों जैसा होगा मनुष्य के पुत्र का आगमन:
38 phalatO jalAplAvanAt pUrvvaM yaddinaM yAvat nOhaH pOtaM nArOhat, tAvatkAlaM yathA manuSyA bhOjanE pAnE vivahanE vivAhanE ca pravRttA Asan;
जल-बाढ़ के पहले उन दिनों में लोग तब तक खाते-पीते रहे और उनमें विवाह होते रहे जब तक नोहा ने जहाज़ में प्रवेश न किया.
39 aparam AplAvitOyamAgatya yAvat sakalamanujAn plAvayitvA nAnayat, tAvat tE yathA na vidAmAsuH, tathA manujasutAgamanEpi bhaviSyati|
लोग तब तक कुछ न समझे जब तक बाढ़ ने आकर उन्हें डुबो न दिया. ऐसा ही होगा मनुष्य के पुत्र का आगमन.
40 tadA kSEtrasthitayOrdvayOrEkO dhAriSyatE, aparastyAjiSyatE|
उस समय दो व्यक्ति खेत में कार्य कर रहे होंगे; एक उठा लिया जाएगा, दूसरा रह जाएगा.
41 tathA pESaNyA piMSatyOrubhayO ryOSitOrEkA dhAriSyatE'parA tyAjiSyatE|
दो स्त्रियां चक्की पर अनाज पीस रही होंगी; एक उठा ली जाएगी, दूसरी रह जाएगी.
42 yuSmAkaM prabhuH kasmin daNPa AgamiSyati, tad yuSmAbhi rnAvagamyatE, tasmAt jAgrataH santastiSThata|
“इसलिये हमेशा सावधान रहो क्योंकि तुम यह नहीं जानते कि तुम्हारे प्रभु का आगमन किस दिन होगा.
43 kutra yAmE stEna AgamiSyatIti cEd gRhasthO jnjAtum azakSyat, tarhi jAgaritvA taM sandhiM karttitum avArayiSyat tad jAnIta|
याद रखो कि यदि घर के स्वामी को यह पता हो कि चोर रात में किस समय आएगा तो वह सावधान हो जाएगा तथा घर में सेंध लगने न देगा.
44 yuSmAbhiravadhIyatAM, yatO yuSmAbhi ryatra na budhyatE, tatraiva daNPE manujasuta AyAsyati|
तुम्हारा भी इसी प्रकार सावधान रहना ज़रूरी है क्योंकि मनुष्य के पुत्र का आगमन ऐसे समय पर होगा जिसकी तुम कल्पना तक नहीं कर सकते.
45 prabhu rnijaparivArAn yathAkAlaM bhOjayituM yaM dAsam adhyakSIkRtya sthApayati, tAdRzO vizvAsyO dhImAn dAsaH kaH?
“कौन है वह विश्वासयोग्य और समझदार सेवक, जिसे घर का मालिक अपने परिवार की ज़िम्मेदारी सौंप दे कि वह समय के अनुसार सबके लिए भोजन-व्यवस्था करे?
46 prabhurAgatya yaM dAsaM tathAcarantaM vIkSatE, saEva dhanyaH|
धन्य है वह सेवक, जिसे घर का स्वामी लौटने पर यही करते हुए पाए.
47 yuSmAnahaM satyaM vadAmi, sa taM nijasarvvasvasyAdhipaM kariSyati|
सच्चाई तो यह है कि घर का स्वामी उस सेवक के हाथों में अपनी सारी संपत्ति की ज़िम्मेदारी सौंप देगा.
48 kintu prabhurAgantuM vilambata iti manasi cintayitvA yO duSTO dAsO
किंतु यदि वह सेवक बुरा हो और अपने मन में यह विचार करने लगे: ‘स्वामी के लौटने में तो बड़ी देरी हो रही है’
49 'paradAsAn praharttuM mattAnAM saggE bhOktuM pAtunjca pravarttatE,
और वह सहसेवकों के साथ मार-पीट आरंभ कर दे, पियक्कड़ों की संगति में जाकर खाए-पिए और
50 sa dAsO yadA nApEkSatE, yanjca daNPaM na jAnAti, tatkAlaEva tatprabhurupasthAsyati|
उसका स्वामी एक ऐसे दिन लौटेगा, जिसकी उसने कल्पना ही न की थी और एक ऐसे क्षण में, जिसके विषय में उसे मालूम ही न था,
51 tadA taM daNPayitvA yatra sthAnE rOdanaM dantagharSaNanjcAsAtE, tatra kapaTibhiH sAkaM taddazAM nirUpayiSyati|
तो स्वामी उसके टुकड़े-टुकड़े कर उसकी गिनती कपट करनेवालों में कर देगा जहां हमेशा रोना तथा दांत पीसना होता रहेगा.